तब राहुल सांकृत्यायन को नहीं पढ़ा था

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यह कहानी अनुरंजन की कैशोर्य कल्पनाशीलता की है। उसकी अनगढ़ता और दुःसाहस की है। एक ग्रामीण किशोर की अदम्य जिजीविषा भी है यहाँ। जाने क्या है इस कहानी में और जाने क्या नहीं है! कुछ भी हो, उसकी इस कहानी में व्यावहारिकता और डर नहीं है। क्या किसी एकांतप्रिय किशोर के उठाए कदम में यह सब ढूँढ़ना कुछ ज़्यादा उम्मीद करना नहीं है! चाहे जो भी समझिए, मगर, इस कहानी के नायक को अपनी उम्र-जनित सीमा का बोध नहीं है। परिवार और समाज की मान्यताओं और अपेक्षाओं से चिपके रहने का उसका कोई पूर्वाग्रह नहीं है। और शायद इन्हीं कारणों से, उसकी यह कहानी कही भी जा रही है।

Full Novel

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तब राहुल सांकृत्यायन को नहीं पढ़ा था - 1

यह कहानी अनुरंजन की कैशोर्य कल्पनाशीलता की है। उसकी अनगढ़ता और दुःसाहस की है। एक ग्रामीण किशोर की अदम्य भी है यहाँ। जाने क्या है इस कहानी में और जाने क्या नहीं है! कुछ भी हो, उसकी इस कहानी में व्यावहारिकता और डर नहीं है। क्या किसी एकांतप्रिय किशोर के उठाए कदम में यह सब ढूँढ़ना कुछ ज़्यादा उम्मीद करना नहीं है! चाहे जो भी समझिए, मगर, इस कहानी के नायक को अपनी उम्र-जनित सीमा का बोध नहीं है। परिवार और समाज की मान्यताओं और अपेक्षाओं से चिपके रहने का उसका कोई पूर्वाग्रह नहीं है। और शायद इन्हीं कारणों से, उसकी यह कहानी कही भी जा रही है। ...और पढ़े

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तब राहुल सांकृत्यायन को नहीं पढ़ा था - 2

अनुरंजन को अपने सबसे घनिष्ठ दोस्त से इस विषय पर बातचीत करते हुए सचमुच अब काफ़ी मज़ा आने लगा अनुरंजन उसे दालान के भीतर वाले कमरे में ले गया और उससे कुछ राज़ बाँटने के अंदाज़ में कहने लगा, “ हाँ यार, मैंने इलाहाबाद को अपनी कर्म-स्थली बनाने की सोची है। वहीं रहकर स्कूली बच्चों को पढ़ाऊँगा और स्वयं का भरण-पोषण भी करूँगा। ख़ुद भी आगे की पढ़ाई करूँगा।” ...और पढ़े

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तब राहुल सांकृत्यायन को नहीं पढ़ा था - 3

भाषा के भिन्न-भिन्न लहजों और लोगों की भागम-भाग के बीच एक नए माहौल में स्वयं को तैयार करता अनुरंजन अगले कदम की तैयारी कर ही रहा था कि सहसा उसे अपने कंधे पर किसी की हथेली का स्पर्श हुआ। उसने गर्दन घुमाकर पीछे देखा। प्लेटफॉर्म पर मिला यह वही वृद्ध था। इस समय, उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी जो एक विजेता की हँसी में बदल रही थी। और, वह अकेला नहीं था। उसके दाएँ-बाएँ दो-दो मुस्टंडे खड़े थे। ...और पढ़े

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तब राहुल सांकृत्यायन को नहीं पढ़ा था - 4

उसके पिता उस समय गाँव में नहीं थे। अपने बैंक की ओर से ऑडिट करने वे बक्सर तरफ़ के में थे। रात भर में ही लाली देवी की हालत ऐसी हो गई जैसे उसका दस किलो वज़न घट गया हो। लोग उसको समझाते रहे, बाक़ी बच्चों को उनके पास लाते रहे, मगर वह कभी तेज़ तो कभी धीमे स्वर में लगातार रोए जा रही थी। वह किसी भी तरह अनुरंजन का चेहरा देखना चाह रही थी। पूरा गाँव बारी-बारी से उन्हें समझाता रहा, मगर पुत्र-वियोग में वे अपना सुध-बुध खो चुकी थीं। ...और पढ़े

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