बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा

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चार घंटे देरी से जब ट्रेन लखनऊ रेलवे स्टेशन पर रुकी तो ग्यारह बज चुके थे। जून की गर्मी अपना रंग दिखा रही थी। ग्यारह बजे ही चिल-चिलाती धूप से आंखें चुंधियां रही थीं। ट्रेन की एसी बोगी से बाहर उतरते ही लगा जैसे किसी गर्म भट्टी के सामने उतर रहा हूं। गर्म हवा के तेज़ थपेड़े उस प्लेटफॉर्म नंबर एक पर भी झुलसा रहे थे। अपना स्ट्रॉली बैग खींचते हुए मैं वी. आई. पी. एक्जिट के पास बने इन्क्वारी काउंटर पर पहुंचा यह पता करने कि जौनपुर के लिए कोई ट्रेन है, तो वहां से निराशा हाथ लगी।

Full Novel

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 1

चार घंटे देरी से जब ट्रेन लखनऊ रेलवे स्टेशन पर रुकी तो ग्यारह बज चुके थे। जून की गर्मी रंग दिखा रही थी। ग्यारह बजे ही चिल-चिलाती धूप से आंखें चुंधियां रही थीं। ट्रेन की एसी बोगी से बाहर उतरते ही लगा जैसे किसी गर्म भट्टी के सामने उतर रहा हूं। गर्म हवा के तेज़ थपेड़े उस प्लेटफॉर्म नंबर एक पर भी झुलसा रहे थे। अपना स्ट्रॉली बैग खींचते हुए मैं वी. आई. पी. एक्जिट के पास बने इन्क्वारी काउंटर पर पहुंचा यह पता करने कि जौनपुर के लिए कोई ट्रेन है, तो वहां से निराशा हाथ लगी। ...और पढ़े

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 2

गाड़ी आगे जैसे-जैसे बढ़ रही थी मन में बसी गांव की तस्वीर साफ होती जा रही थी। मगर सामने दिख रहा था वह बहुत कुछ बदला हुआ दिख रहा था। पहले के ज़्यादातर छप्पर, खपरैल वाले घरों की जगह पक्के घर बन चुके थे। लगभग सारे घरों की छतों पर सेटेलाइट टीवी के एंटीना दिख रहे थे। अब घरों के आगे पहले की तरह गाय-गोरूओं के लिए बनीं नांदें मुझे करीब-करीब गायब मिलीं। चारा काटने वाली मशीनें जो पहले तमाम घरों में दिखाई देती थी वह इक्का-दुक्का ही दिखीं। जब नांदें, गाय-गोरू गायब थे तो चारे की जरूरत ही कहां थीं? जब चारा नहीं तो मशीनें किस लिए? खेती में मशीनीकरण ने बैलों आदि चौपाओं को पूरी तरह बेदखल ही कर दिया है। ...और पढ़े

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 3

पता नहीं चाचा की सख्ती कहां चली गई थी। शायद उनसे उम्र ने बहुत कुछ छीन लिया था। जो भी उनके वश में नहीं था उन्होंने उससे हार मान ली थी। हथियार डाल दिए थे। मुझे लगा जैसे माहौल में कुछ घुटन महसूस कर रहा हूं। एक घंटा हो भी रहा था। तो मैं उठा और चाचा से बोला ‘चाचा जी अब चलता हूं। काफी समय हो गया।’ तो वह बोले ‘अरे नाहीं बच्चा, ऐइसे कहां जाबा? अरे एतना बरिस बाद आए है। कुछ खाए-पिए नाहीं। ...और पढ़े

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 4

इन दस-पंद्रह बरसों में बहुत कुछ बदल चुका था। गांव की दुकानों पर भी चिप्स, मैगी, कुरकुरे, कोल्ड ड्रिंक, रीचार्ज सब दिख रहा था। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फॉस्ट फूड के पैकेट हर दुकान पर दिख रहे थे। और इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नाक में अकेले ही दम किए पतंजलि के प्रॉडक्ट भी दिख रहे थे। बाबा की फोटो भी। कुछ दूर आगे चलने पर एक अपेक्षाकृत कुछ बड़ी दुकान दिखाई दी। जिसके बाहर पीपों, बोरों में सामान भरा था। चावल, गेहूं, दाल, चना जैसी चीजों के अलावा पैकेट दिवारों पर टंगे थे। ...और पढ़े

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 5

मां-बाप, भाई का दबाव ज़्यादा हुआ तो कह दिया अगर हम इतना ही भारू हो गए हैं तो ठीक हम घर छोड़ दे रहें हैं। कहीं काम-धाम करके, मड़ैया डाल के रह लेंगे। मगर वहां नहीं जाएंगे। बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा के आगे सब हार गए। बिल्लो हमेशा के लिए रह गईं मायके में। मगर बोझ बन कर नहीं। अपनी दुनिया नए ढंग से बनाने और उसमें सबको शामिल करने के लिए। मुझे वह दृश्य धुंधला ही सही पर याद आ रहा था। ...और पढ़े

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 6

शिखर ने आगे जो बताया उस हिसाब से ना तो उसकी पढ़ाई ऐसी थी कि उसे चपरासी से आगे नौकरी मिल पाती ना ही कोई ऐसा काम जानता है कि उसके हिसाब से शहर में कुछ कर पाएगा। मुझे लगा कि यह बाप के बाद खेत, घर सब बेच-बाच कर चला जाएगा। शहर में कुछ कर पाएगा नहीं। और फिर एक दिन सड़क पर आ जाएगा। ...और पढ़े

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 7

मैंने मुस्कुराकर कहा ‘नहीं, मैं देखने की, समझने की कोशिश कर रहा था कि मेरे बचपन की बिल्लो से बिल्लो और कितनी ज़्यादा तेज़़ तर्रार, समझदार, सफल और.....।’ बिल्लो ने मुझे ‘और’ शब्द पर ठहर जाने पर बड़ी शरारत भरी दृष्टि से देखा तो मैं आगे बोला ‘शायद मैं सही शब्द नहीं दे पा रहा हूं।’ तो उसने प्रश्न- भरी दृष्टि से देखते हुए कहा ‘और दबंग भी।’ तब मैंने भी आवाज़ में शरारत घोलते हुए और आगे जोड़ा ‘तीखी भी।’ मेरे इतना कहते ही वह ठठा कर हंस पड़ी। फिर बोली ‘अब काहे की तीखी, और है भी कौन यहां इसकी अहमियत समझने वाला। अच्छा ई बताओ, हममें कौन सा तीखापन देख लिए हो?’ ...और पढ़े

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 8

मैंने किसी को ना बताने का वादा करते हुए कहा ‘मगर बिल्लो एम. पी. का चुनाव आसान नहीं है। बड़ी पार्टी से टिकट मिलने पर भी जीतना आसान नहीं होता। टिकट मिलना ही अपने-आप में बड़ी टेढ़ी खीर है। महिलाओं के लिए तो यह खीर कई गुना ज़्यादा टेढ़ी होती है। बड़े नेताओं द्वारा टिकट देने के नाम पर महिला नेताओं के यौन शोषण की ना जाने कितनी घटनाएं सामने आती रहती हैं।’ बिल्लो के चेहरे पर मेरी इस बात के साथ ही कठोरता भी आ गई। कुछ देर चुप रहने के बाद बोली। ‘जानती हूं। बहुत अच्छी तरह जानती हूं। ...और पढ़े

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