महावीर लचित बड़फूकन

(0)
  • 22.9k
  • 0
  • 10.2k

अपने महापुरुषों का स्मरण भारत में एक श्रेष्ठ परम्परा रही है। कथा-कहानियों से लगाकर पुस्तकों तक उनके कर्तृत्व और आदर्श जीवन का सजीव चित्रण किया गया है। यदा-कदा पर्वों के माध्यम से भी हमने उनका स्मरण करना अपना पुनीत कर्तव्य समझा है। रामनवमी में भगवान राम का, जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण का, शिवरात्रि को भगवान शिव का, नवरात्रों में भगवती दुर्गा माँ का स्मरण, वसन्तोत्सव में वाणी की अधिष्ठात्री सरस्वती की वन्दना, हिन्दू साम्राज्य दिवस पर छत्रपति शिवाजी महाराज इत्यादि का स्मरण हमारे लिए शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक कृत्य रहे हैं। इसी क्रम में हमने महापुरुषों, वैज्ञानिकों, ऋषि मुनियों, साधु संतों, समाज सुधारकों, विभिन्न क्षेत्रों में कीर्ति प्राप्त व्यक्तियों व क्रान्तिकारियों का भी स्मरण किया है। इस पुस्तक के माध्यम से हम प्रस्तुत कर रहे हैं असम के अहोम साम्राज्य के सेनापति लचित बड़फूकन का जीवन वृत्त, जो अपने अद्भ्य साहस, कुशल नेतृत्त्व, पराक्रम व देशप्रेम के कारण इतिहास में अमर स्तम्भ बन गये हैं। मुगल आक्रांताओं से कड़ा संघर्ष करते हुये उन्होंने शत्रु प्रत्येक दुस्साहस को विफल कर दिया। मुगलों के विरुद्ध उनकी रणनीति व सैन्य कौशल अद्भुत था। जब तक इस देश में स्वतंत्रता के प्रति प्रेम का इतिहास लिखा व स्मरण किया जायेगा, लचित बड़फूकन जैसे वीर बहादुर योद्धा सभी के हृदय में सदा अमर रहेंगे।

Full Novel

1

महावीर लचित बड़फूकन - प्रकाशकीय

अपने महापुरुषों का स्मरण भारत में एक श्रेष्ठ परम्परा रही है। कथा-कहानियों से लगाकर पुस्तकों तक उनके कर्तृत्व और जीवन का सजीव चित्रण किया गया है। यदा-कदा पर्वों के माध्यम से भी हमने उनका स्मरण करना अपना पुनीत कर्तव्य समझा है। रामनवमी में भगवान राम का, जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण का, शिवरात्रि को भगवान शिव का, नवरात्रों में भगवती दुर्गा माँ का स्मरण, वसन्तोत्सव में वाणी की अधिष्ठात्री सरस्वती की वन्दना, हिन्दू साम्राज्य दिवस पर छत्रपति शिवाजी महाराज इत्यादि का स्मरण हमारे लिए शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक कृत्य रहे हैं। इसी क्रम में हमने महापुरुषों, वैज्ञानिकों, ऋषि मुनियों, साधु संतों, ...और पढ़े

2

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 1

भारत एक ऐसी पावन एवं पुनीत भूमि है जो प्राचीन काल से महापुरूषों की जननी रही है। यहाँ पर साधु-संत, ऋषि मुनि, साधक, वीर सम्राट, समाज सुधारक व राष्ट्रभक्ति एवं देश प्रेम से ओतप्रोत महापुरुष अवतरित हुये जिन्होंने अपने जप-तप, संस्कारों, शौर्य व अदम्य साहस से प्रेरित आदर्श कृत्यों, विचारों द्वारा मानव समाज का मार्गदर्शन किया। ऐसे ही एक वीर पुरूष थे - लचित बड़फूकन।लचित बड़फूकन के जन्म के पीछे एक विचित्र कथा है।सर्दी की सुबह हो चुकी थी। सूर्य की किरणें धरती पर अपनी छटा बिखेरने वाली थीं। मोमई तामुली बरबरुआ दिनचर्यानुसार शाही बगीचों की देखरेख कर रहा ...और पढ़े

3

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 2

हमारे देश की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही कि कई शताब्दियों तक इस देश पर मुसलमान शासक आक्रमण करते इस देश की अस्मिता, वैभव व संस्कृति पर प्रहार करते रहे। कालान्तर में आपसी फूट के कारण हिन्दू राजा एकजुट होकर मुगलों का प्रतिरोध नहीं कर सके व परिणामस्वरूप मुगल भारत पर शासन करने में सफल रहे। इसके बावजूद भी देश के कुछ भागों ने मुस्लिम शासकों की सत्ता को स्वीकार नहीं किया। मुगलों ने कई बार चढ़ाई की, परन्तु वे असम को नहीं जीत सके। बख्त्यार खिलजी अपनी विशाल सेना के साथ दिल्ली से रवाना हुआ और उसने अपनी ...और पढ़े

4

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 3

औरंगजेब जब मुगल साम्राज्य की गद्दी पर बैठा, तो उसने अपने सेनापति मीर जुमला को विशाल सेना के साथ पर आक्रमण करने के लिए भेजा। मीर जुमला वहाँ के सेनापति को घूस देकर सीधे असम की राजधानी गड़गाँव पहुँच गया। 1662 में मीर जुमला ने असम को जीत लिया, पर वह वहाँ अधिक समय नहीं रुका क्योंकि असम की जलवायु उसकी सेना के लिए उपयुक्त नहीं थी । मुगल वहाँ की मूसलाधार वर्षा एवं मच्छरों के अभ्यस्त नहीं थे । 1663 में पश्चिमी असम के अहोम राजाओं एवं मुगलों के मध्य हुई संधि के अनुसार युद्ध की क्षतिपूर्ति कर ...और पढ़े

5

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 4

राजदूत ने दिल्ली लौट कर सारी बातें औरंगजेब को बता दीं। वह क्रोधाग्नि से जल उठा। उसने निश्चय किया वह घमंडी असमियों को सबक सिखायेगा । औरंगजेब बहुत धूर्त व कपटी राजा था। उस समय शिवाजी आगरा से भागने में सफल हो गये थे। औरंगजेब को राम सिंह पर संदेह था कि उसने शिवाजी को भाग जाने में मदद की है। फिर भी उसने राम सिंह को बुलाया और उसे असम पर आक्रमण का संचालन व नेतृत्व सौंप दिया। असम में जाना ही एक भयभीत करने वाली बात थी। असम काले जादू का गढ़ माना जाता था। वहाँ का ...और पढ़े

6

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 5

युद्ध में गुप्तचरों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। लचित ने अपने कुछ सैनिकों को शत्रु दल में फकीरों वेश में भेजा। वे वहाँ घूमकर सूचनायें एकत्रित करते थे । उन्होंने मुगल सेना में अहोम राजा व उसके सैन्य बल के बहुत अधिक शक्तिशाली होने की अफवाह उड़ानी शुरू कर दी। इससे मुगल सेना का मनोबल गिरने लगा। इसके अतिरिक्त यह भी प्रचारित किया गया कि “अहोम सेना में बहुत से जादूगर हैं जिन्हें कामाख्या देवी का वरदान प्राप्त है। उसकी सेना में ऐसे दानव (राक्षस) भी हैं जो मनुष्य को कच्चा खा जाते हैं।”मुगल सैनिकों को इसका प्रमाण ...और पढ़े

7

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 6

उधर दिन- सप्ताह-महीने बीत गये परन्तु रामसिंह भरसक कोशिश के बाद भी गुवाहाटी में प्रविष्ट नहीं हो सका। उसने से काम लिया। उसने अपने राजदूत के द्वारा लचित को एक पत्र भिजवाया, साथ ही एक थैले में खसखस के दाने भी दिये । पत्र का सारांश था, “अरे बड़फकन, तुम अपने को वीर योद्धा समझते हो तो बाहर मैदान में आकर वीर पुरुष की तरह क्यों नहीं लड़ते ? किले में छिपकर क्यों बैठे हो ? ध्यान रहे, मेरी सेना इतनी विशाल है जितने ये खसखस के दाने । हम तुम्हें कुछ देर में ही समाप्त कर सकते हैं, ...और पढ़े

8

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 7

जब रामसिंह का लिखा पत्र पेलान फूकन को मिला तो उसी समय उसने वह पत्र लाकर राजा को दिया पत्र पढ़कर राजा आगबबूला हो गया। उसने तुरंत लचित को वापस बुलाकर इस बात की पूरी जाँच करनी चाही। राजा को कुछ समय से लचित की विश्वसनीयता पर संदेह तो था ही, परन्तु प्रधानमंत्री अतन बड़गोहाँई ने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि - “यह बिल्कुल गलत है। लचित की ईमानदारी व देशभक्ति पर संदेह करना सरासर गलत है। यह अवश्य कोई षड्यंत्र है।”तब राजा ने लचित को एक चेतावनीभरा पत्र भेजा जिसमें लिखा था, “बड़फुकन! मैंने तुम्हें ...और पढ़े

9

महावीर लचित बड़फूकन - पार्ट - 8

जब लचित को शत्रु के सम्भावित आक्रमण की खबर मिली तो वह बीमारी की स्थिति में भी युद्ध के तैयार हो गया। उसे 'आखोई फुटा' ज्वर था । इस भयावह ज्वर में रोगी के शरीर पर चावल का दाना रखते ही वह तुरंत फूलकर मुरमुरे की तरह बन जाता है। ऐसी गम्भीर हालत में भी वह हठ करके युद्ध नौका पर पहुँचा। उसने देखा कि मुगलों की अनगिनत युद्ध नौकायें गुवाहाटी की ओर बढ़ रही हैं। उसने बिना समय गँवाये अपनी जल सेना को आक्रमण के लिए तैयार रहने को कहा। उस समय यह प्रथा प्रचलित थी कि आक्रमण ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प