अपनी अपनी मरीचिका

(103)
  • 100.8k
  • 56
  • 33.5k

शायद ही कोई ऐसा धंधा करने वाला दुकानदार होगा जिसे लोग कई नामों से पुकारते हों। उसे हेय दृष्टि से देखते हों। नाम सुनकर मुँह बिचका देते हों। लेकिन मेरे धंधे पर ये सब बातें लागू होती हैं। कबाड़ी, कबाड़िया, कबाड़े वाला, लौह-लंगड़़वाला, रद्‌दी वाला, न जाने कौन-कौन से नाम देते हैं लोग मुझे। किसी से कहिए कि अमुक का धंधा भीख माँगना है या अमुक चोरी करने का, जेब काटने का धंधा करता है। उसके होंठों पर मुसकराहट पसीने की बूंदों की तरह उभर आएगी। लेकिन छोटा धंधा करने वाले किसी हेय आदमी की तस्वीर शायद मेरे धंधे का नाम सुनकर ही उभरती है।

Full Novel

1

अपनी अपनी मरीचिका - 1

शायद ही कोई ऐसा धंधा करने वाला दुकानदार होगा जिसे लोग कई नामों से पुकारते हों। उसे हेय दृष्टि देखते हों। नाम सुनकर मुँह बिचका देते हों। लेकिन मेरे धंधे पर ये सब बातें लागू होती हैं। कबाड़ी, कबाड़िया, कबाड़े वाला, लौह-लंगड़़वाला, रद्‌दी वाला, न जाने कौन-कौन से नाम देते हैं लोग मुझे। किसी से कहिए कि अमुक का धंधा भीख माँगना है या अमुक चोरी करने का, जेब काटने का धंधा करता है। उसके होंठों पर मुसकराहट पसीने की बूंदों की तरह उभर आएगी। लेकिन छोटा धंधा करने वाले किसी हेय आदमी की तस्वीर शायद मेरे धंधे का नाम सुनकर ही उभरती है। ...और पढ़े

2

अपनी अपनी मरीचिका - 2

सिंध से खाली हाथ हम क्या इसीलिए आए थे? बाबा और उनके साथियों ने कष्ट क्या इसीलिए उठाए थे? पर्चेबाजी, पिकेटिंग, आंदोलन और लाठी-गोली के खतरे उठाकर भी देश को आजाद कराने की तड़़प क्या इसीलिए थी उनमें? क्या इसीलिए अपने इकलौते, मासूम और नादान बेटे को छपा हुआ साहित्य लेकर इधर से उधर दौड़़ाया करते थे बाबा? काम-धंधा छोड़कर, सर पर कफन बाँधकर घूमने का कठोर व्रत क्या इसीलिए लिया था उन्होंने? ...और पढ़े

3

अपनी अपनी मरीचिका - 3

आज सुबह मैं शरणार्थी शिविर में सिंध में छोड़ी हुई संपत्ति के दावों के संबंध में प्राप्त प्रार्थना-पत्रों की करके रजिस्टर में उनका इंद्राज कर रहा था कि एक सुखद घटना घटी। अप्रत्याशित होने के कारण वह सुखद लग रही थी या अनपेक्षित को साकार पाकर, मैं कह नहीं सकता। मगर काका भोजामल को अचानक सामने खड़़ा देखकर मैं उछल पड़ा। मैंने आगे बढकर उनके चरण-स्पर्श किए तो उन्होंने उठाकर मुझे गले से लगा लिया। ...और पढ़े

4

अपनी अपनी मरीचिका - 4

बाबा के साथ रहते आज एक महीना होने को आया है। उनसे लगभग डेढ़ वर्ष तक हमें अलग रहना इस अवधि में जितना कुछ सीखने और महसूस करने को मिला, अनमोल है। अभाव, तनाव, विवशताएँ, तंगदस्ती, उपेक्षा, गरीबी और बदहाली। मानवता, भाईचारा, सौजन्य, सदाशयता, स्नेह, विश्वास, आत्मीयता, अपनत्व और सहयोग। स्वार्थ, छीना-झपटी, लड़ाई-झगड़े, मार-काट, सर-फुटौवल, भ्रष्टाचार, अनाचार, हृदयहीनता, कुत्साएँ, पैसे के लिए सब कुछ कर गुजरने की तैयारी और अपने हितपोषण के लिए नीचता की पराकाष्ठा तक चले जाना। ...और पढ़े

5

अपनी अपनी मरीचिका - 5

आज एफ़ ० ए ० का परिणाम आया है। प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ हूँ। अंकों का प्रतिशत तो आने के बाद ही पता लगेगा किंतु मेरे अनुमान के अनुसार 67 प्रतिशत अंक आने चाहिएं। भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र और जीव विज्ञान में 70 प्रतिशत अंक होने चाहिएं। मेडीकल कॉलेज में 42 प्रतिशत पर दाखिला मिला था पिछले साल। इस हिसाब से मेडीकल कॉलेज में प्रवेश मिलने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। बाबा चाहते हैं, मैं खूब पढूं। डॉक्टर बनूँ। पढाई में जितना पैसा खर्च होता है, वे कहते हैं कि करेंगे। खर्चे के कारण पढने या न पढ़ने वाली बात मुझे नहीं सोचनी है। 100-150 रुपए महीना जितना भी लगेगा, वे लगाएँगे। ...और पढ़े

6

अपनी अपनी मरीचिका - 6

3 अक्टूबर, 1950 तीन दिन पहले चीफ़ प्रॉक्टर ने मुझे अपने कमरे में बुलाया। प्रवेश करते ही आक्रामक तरीके से मुझ पर सवाल दाग दिया, ‘‘आखिर तुम चाहते क्या हो?' ‘‘कुछ नहीं, सर।' ‘‘फिर यह हंगामा क्यों मचाया हुआ है तीन महीनों से?' ‘‘मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया है, सर।' ‘‘तो किसने किया है?' ...और पढ़े

7

अपनी अपनी मरीचिका - 7

आज प्रथम वर्ष एम.बी.बी.एस. की अंकतालिका लेकर आया। 72 प्रतिशत अंक आए हैं और कक्षा में सातवां स्थान है। के अन्य छात्र- छात्राओं की तुलना में अपना मूल्यांकन करता हूँ तो स्वयं को सर्वश्रेष्ठ तीन-चार लड़कों-लड़कियों में से एक पाता हूँ, इसके बावजूद सातवें स्यान पर धकेल दिया गया हूँ। धकेलना शब्द का प्रयोग मैं जान-बूझकर कर रहा हूँ। सँभलता नहीं और बाकायदा रणनीति बनाकर नहीं चलता तो सातवां स्थान भी नहीं मिलता। ...और पढ़े

8

अपनी अपनी मरीचिका - 8

छात्रसंघ के विभिन्न पदों पर चुनाव के लिए आवेदन-पत्र जमा कराने की आज अंतिम तारीख थी। नियमानुसार प्रथम वर्ष छात्र मतदान तो कर सकते हैं किंतु चुनाव नहीं लड़ सकते। इस दृष्टि से हमारी कक्षा को चुनाव लड़़ने का अवसर पहली बार मिला है। गत वर्ष रैगिंग के मुद्‌दे को लेकर हम लोगों ने चुनावों का बहिष्कार किया था। चुनाव लड़़नेवाले 3 वरिष्ठ छात्रों ने अप्रत्यक्ष रूप से संदेश भेजकर हम लोगों को मतदान करने के लिए राजी करने की कोशिश की थी। हमारा जवाब एक ही था, रैगिंग के मुद्‌दे पर हमारा समर्थन करने की घोषणा करो। नए छात्रों के सभी मत तुम्हें और तुम्हारे प्रत्याशियों को मिलेंगे। ...और पढ़े

9

अपनी अपनी मरीचिका - 9

एक सप्ताह के बाद अम्मा आज घर आई है। घर की सफाई, झाड़-फूँक मैं करता था। बाबा और मैं के लिए काका भोजामल के धर जाते थे। उनके घर में स्थानाभाव है इसलिए रात को अपने घर आकर सोते थे। अम्मा पूरा समय काका भोजामल के घर रहती थी। 31 जनवरी को मीनू का विवाह था। विवाह से तीन दिन पहले रस्में शुरू हो गई थीं। अम्मा का दिन के समय काकी की मदद के लिए उनके घर जाना तो एक महीना पहले ही शुरू हो गया था। ...और पढ़े

10

अपनी अपनी मरीचिका - 10

बीता कल रविवार था और आने वाले कल जन्माष्टमी की छुट्‌टी है। पंद्रह अगस्त का अवकाश भी इसी सप्ताह इसलिए बाहर से जयपुर आकर पढ़ने वाले अधिकतर लड़के घर चले गए हैं। कक्षा में उपस्थिति कम थी, इस कारण से पहला पीरियड पढाने आए अध्यापक ने छुट्‌टी कर दी। इसके बाद सबका मन ऐसा उखड़ा कि साइकिलें उठाकर पिकनिक मनाने निकल गए। आठ बजे घर लौटा हूँ। कई दिनों से डायरी लिखने की बात सोच रहा हूँ। दिमाग में बहुत-सी सामग्री इकट्‌ठी हो गई है। कॉलेज में पढाई नहीं हुई इसलिए रात को पढ़ने की अनिवार्यता नहीं है। ...और पढ़े

11

अपनी अपनी मरीचिका - 11

गुलाल से सराबोर, थकान से चूर, विजय से उल्लसित और नवप्रदत्त दायित्वों के बोझ से दबा कुछ देर पहले लौटा हूँ। अम्मा और बाबा के चरण स्पर्श करके उन्हें महासचिव पद का चुनाव जीतने की सूचना दी तो दोनों ने बाँहों में लेकर मेरा मस्तक चूम लिया। मेरे सिर और बालों में अटा गुलाल अम्मा और बाबा को भी रंगीन बना गया। हम तीनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। विभाजन के केवल पाँच साल बाद बेटा समाज के बुद्धिमान तबके की भावी नाक माने जाने वाले समूह का सिरमोर बनकर आया है, यह इबारत मैं बाबा की आँखों में भली भाँति पढ़ पा रहा था। अम्मा की आँखें, उसका मुखमंडल, उसका अंग-अंग शुद्ध प्रसन्नता से दमक रहा था, किंतु बाबा की आँखों में प्रसन्नता से अधिक गौरव था। ...और पढ़े

12

अपनी अपनी मरीचिका - 12

ईसवी सन्‌ के अनुसार नए साल का पहला दिन है। कॉलेज में दिन भर नववर्ष की शुभकामनाओं का सिलसिला रहा। विद्यार्थियों के बीच उल्लास और उत्साह के साथ नववर्ष की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान, अध्यापकों के पास समूहों में जा-जा कर नववर्ष की शुभकामनाओं की अभिव्यक्ति, कॉलेज और अस्पताल के प्रमुख स्थानों पर हैप्पी न्यू ईयर की चमकीली पन्नियाँ, लगभग हर कक्षा में नए साल के उपलक्ष्य में सामूहिक खान-पान का कोई-न-कोई कार्यक्रम। ...और पढ़े

13

अपनी अपनी मरीचिका - 13

आज तृतीय वर्ष एम.बी.बी.एस. की परीक्षाएँ समाप्त हुई हैं। लिखित परीक्षाएँ, और प्रायोगिक परीक्षाएँ सभी अच्छी हुई हैं। मुझे है कि इस वर्ष कक्षा में स्थिति और भी सुधरनी चाहिए। तेज रफ्तार से दौड़ता समय इस वर्ष घटनाओं के जाल में फँसाकर मुझे पढाई से विरक्त और विमुख करने पर पूरी तरह आमादा था। यदि उद्‌देश्य की मशाल बहुत ज्वलनशील नहीं होती तो इस बात की पूरी संभावना थी कि मैं इस जाल में फँस जाता। ...और पढ़े

14

अपनी अपनी मरीचिका - 14

आज दीपावली की रात है। चारों ओर उल्लास का वातावरण है। बमों और आतिशबाजी की आवाजों के साथ बच्चों किलकारियाँ एकाकार हो गई हैं। थड़ी से पूजन करके बाबा आज जल्दी लौट आए हैं। अम्मा-बाबा के साथ बैठकर मैंने भी लक्ष्मीपूजन की औपचारिकता निभाई है। बिजली और दीपकों की कृत्रिम रोशनी अमावस्या के अंधकार को परास्त -करने में अक्षम है। मेरे हृदय में फैला घना अंधकार निर्णय पर पहुँचने के बाद भी आज की रात की तरह दिशाभ्रम पैदा करता है। ...और पढ़े

15

अपनी अपनी मरीचिका - 15

बाबा ने जब डायरी लिखना सिखाया था तो कई बातों के साथ उन्होंने यह बात भी बताई थी कि के माध्यम से जितना अच्छा आत्मविश्लेषण किया जा सकता है, उसका जोड़ तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा। इसीलिए डायरी की गोपनीयता बहुत जरूरी है। सोचता हूँ, हमारे कार्य-व्यवहार में ऐसा कुछ होना ही क्यों चाहिए कि उसे छिपाना पड़े? अच्छा या खराब, भला या बुरा जो कुछ हम करते हैं यदि उसके पीछे गलत इरादा नहीं है तो सार्वजनिक रूप से खोलकर रख देने में क्या बुराई है? दुनिया तो खेल ही नीयत का है। ...और पढ़े

16

अपनी अपनी मरीचिका - 16

दुनिया का चक्र अपनी रफ्तार से चल रहा है। न तेज, न धीरे। सम गति से। परिस्थितिवश हमें ही है कि समय वहुत तेजी से या बहुत धीरे-धीरे गुजर रहा है। भौतिक और सांसारिक दृष्टि से सब कुछ करते हुए भी मन व्यग्र बना रहता है। ऊपर से कुछ भी असामान्य नहीं लगता लेकिन सचमुच एक बेचैन लावा अंदर-ही-अंदर खौल रहा होता है। चेहरे को भंगिमाओं से नहीं, यदि मन की हलचल को सीधा पढने का कोई तरीका होता तो दुनिया का नक्शा कोई दूसरा रूप ग्रहण कर चुका होता। ...और पढ़े

17

अपनी अपनी मरीचिका - 17

कल से स्वास्थ्य जागरण ट्रस्ट के साथ जुड़ रहा हूँ। जुड़ा हुआ तो प्रारंभ से हूँ, अब पूरे समय लिए जुड़ रहा हूँ। अब तक संतोष के रूप में ट्रस्ट से अपना पारिश्रमिक लेता था। कल से संतोष के साथ भरण-पोषण के लिए भी ट्रस्ट पर निर्भर हो जाऊंगा। ट्रस्ट मुझे मेडीकल कॉलेज के रीडर को मिलने वाला मासिक वेतन, भत्ते, वेतन वृद्धि सुविधाएँ आदि देगा। मैंने तय किया है कि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद जितना पैसा बचेगा उसे ट्रस्ट को ही गुप्त दान के रूप में सौंप दूँगा। घोषणा न मैंने इस इरादे की की है और न विवाह न करने वाले इरादे की। ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प