भले राम और छोटे लाल एक छोटे से गाँव में रहते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। वे बचपन से साथ-साथ खेलते कूदते ही बड़े हुए थे। पूरे गाँव में उनकी दोस्ती के चर्चे थे और हों भी क्यों नहीं उनकी दोस्ती थी ही ऐसी कि यदि ज़रूरत पड़े तो वे एक दूसरे के लिए अपनी जान भी दे सकते थे। भले और छोटे दोस्त होने के साथ ही अच्छे पड़ोसी भी थे। दोनों के परिवारों के बीच भी उनकी दोस्ती के चलते बड़े ही घनिष्ठ सम्बंध थे। भले राम के परिवार में उसके पिता केवल राम, माँ माया और एक बहन सरोज थी। वहीं छोटे लाल के परिवार में उसके पिता मुन्ना लाल, माँ गौरी और बहन छुटकी थी। गाँव में बारहवीं क्लास तक ही स्कूल था। उतनी पढ़ाई दोनों ने साथ-साथ कर ली थी। अब आगे क्या करना है, यह एक बड़ा ही पेचीदा प्रश्न था। गाँव में इसके आगे पढ़ने के लिए कॉलेज नहीं था और गाँव तथा अपने परिवार को छोड़कर दोनों कहीं बाहर शहर जाना नहीं चाहते थे। क्या करें इसी कश्मकश में कुछ समय और बीत गया। इस खाली समय में वे गाँव के अखाड़े में जाकर कसरत करते और दांव पेंच लगाना सीख रहे थे। कुश्ती का खेल देखकर उन्हें भी यह शौक लगा था। लेकिन यह मात्र शौक तक ही सीमित था। जो केवल कुछ ही दिन उनके साथ रह पाया और कुछ ही दिनों में उनका शौक ठंडा पड़ गया।

Full Novel

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मैं ग़लत था - भाग - 1

भले राम और छोटे लाल एक छोटे से गाँव में रहते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। वे से साथ-साथ खेलते कूदते ही बड़े हुए थे। पूरे गाँव में उनकी दोस्ती के चर्चे थे और हों भी क्यों नहीं उनकी दोस्ती थी ही ऐसी कि यदि ज़रूरत पड़े तो वे एक दूसरे के लिए अपनी जान भी दे सकते थे। भले और छोटे दोस्त होने के साथ ही अच्छे पड़ोसी भी थे। दोनों के परिवारों के बीच भी उनकी दोस्ती के चलते बड़े ही घनिष्ठ सम्बंध थे। भले राम के परिवार में उसके पिता केवल राम, माँ माया ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 2

अब चारों आँगन में बैठे भजिये और चाय की चुस्कियों के बीच दुकान खोलने के बारे में चर्चा कर थे। भले राम ने कहा, “बाबूजी हम शहर से अच्छी-अच्छी ऐसी चीजें लेकर आएंगे, जो हमारे गाँव वालों ने कभी भी उपयोग में नहीं लाई होंगी। नई-नई वस्तुओं के आकर्षण में लोग हमारी दुकान पर खिंचे चले आएंगे।” छोटे ने कहा, “चाचा जी हम दोनों मिलकर बहुत ईमानदारी के साथ दुकान चलाएंगे। गाँव के लोगों के साथ कभी किसी भी तरह की बेईमानी या धोखाधड़ी नहीं करेंगे।” केवल राम ने कहा, “तुम्हारी बातों में दम तो है, क्या बोलते हो ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 3

छोटे लाल मन ही मन भले राम की बहन सरोज से प्यार करता था इसीलिए उसने भले से रिश्तेदारी बात कही थी। भले के मुँह से हाँ सुनने के बाद छोटे ने अपने दिल की बात उससे कहने का मन बना लिया। कुछ देर सोचने के बाद छोटे ने कहा, "भले सुन मैं सरोज से शादी करके तुझे मेरा साला बना लेता हूँ। बोल क्या कहता है?" "बात तो पते की है मगर अम्मा बाबू जी से पूछना तो पड़ेगा ना?" "हाँ-हाँ तो वे कौन-सा मना करने वाले हैं। वैसे भी सरोज की उम्र भी शादी लायक तो हो ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 4

बेचैनी भरे इंतज़ार के लम्हों को समाप्त करते हुए मुन्ना लाल ने मुस्कुराते हुए कहा "गौरी जाओ भाई हलवा कर लाओ, सबका मुँह मीठा करवाओ।" यह सुनते ही सभी की ख़ामोशी मुस्कुराहट में बदल गई और चेहरों पर चमक भी आ गई। छोटे लाल भी कान लगाकर सुन रहा था। सबकी हाँ सुनकर उसका मन लंबी-लंबी उछालें मार रहा था; जैसे मानो पूनम की रात में सागर की लहरें मोटी-मोटी उछाल मार रही हों। मुन्ना और गौरी भी बहुत ख़ुश थे। बिना ढूँढे, बिना माथापच्ची किए, इतनी अच्छी सुकन्या घर बैठे ही मिल गई थी। बस कुछ ही समय ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 5

विवाह संपन्न होने के बाद दूसरे दिन विदाई के पहले दोपहर के भोजन का समय हो रहा था। सभी खाने के लिए बैठ गए थे। उनके समाज में ऐसी प्रथा थी कि विवाह के बाद जब लड़का पहली बार खाना खाने बैठता है तब उसे कुछ ना कुछ नेग देना होता है। कभी-कभी लड़का अपनी मनचाही वस्तु की मांग भी करता है और नेग मिलने के बाद ही वह खाना खाता है। यदि उसकी इच्छा पूरी ना हो तो वह खाने से इनकार कर देता है और ऐसा हो यह तो कोई भी नहीं चाहता। यहाँ तो ऐसी किसी ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 6

धीरे-धीरे अब समय आ गया था जब हर आँख में आँसू आ ही जाते हैं यह सरोज की विदाई बेला थी। यूँ तो वह एक घर से निकलकर बाजू वाले घर में ही जा रही थी लेकिन फिर भी विदाई तो विदाई ही होती है। आज भले राम, माया और केवल राम की आँखें आँसुओं से भीगी जा रही थीं। भले ही ससुराल बाजू में ही हो पर फिर भी शादी के बाद बेटी का मायका तो छूट ही जाता है। वह पहले जैसी आज़ादी कहाँ मिल पाती है। सरोज ने जब अपने पिता को चुपके से चश्मे के ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 7

छोटे लाल को अपने दामाद के रूप में पाकर केवल राम और माया तो यही सोच रहे थे कि उनका भले राम है वैसा ही छोटे लाल भी है। केवल राम अपनी पत्नी से कह रहा था, "माया हम कितने भाग्यशाली हैं, अब से तो हमारे एक नहीं दो-दो बेटे हो गए हैं।" " हाँ तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। अभी कोई और लड़का होता तो कितनी औपचारिकतायें करनी पड़ती, है ना? "हाँ फिर भी मैं उसे तिलक लगा कर एक बार उसके पाँव छू लूंगा। कुछ भी कहो आख़िर हमने अपनी बेटी दी है।" "यह बात तो ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 8

छोटे लाल के मन में उसके मायके को लेकर चल रही बातें सुन कर सरोज दंग थी, उसने कहा, घर वालों ने तुम्हारे लिए इस तरह कभी सोचा ही नहीं होगा कि तुम को मान सम्मान चाहिए। वह तो जैसे पहले तुम्हें अपने घर का बच्चा समझते थे वैसे ही आज भी ..." "रहने दो, रहने दो, इसीलिए मुझे लगता है कि मुझे यह शादी करनी ही नहीं चाहिए थी।" सरोज ने कहा, "छोटे मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम्हारे मन में बेवजह की बातों ने डेरा जमा लिया है। तुम क्यों दामाद बन कर रहना चाहते ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 9

छुटकी के प्यार का इकरार करने के बाद भी पंद्रह दिन गुजर गए लेकिन भले राम किसी से भी की बात करने की हिम्मत जुटा ही नहीं पाया। आते-जाते छुटकी जब भी उसे देखती, भले नीचे सर करके निकल जाता। आखिरकार छुटकी समझ गई कि इससे तो ना हो पाएगा, यह भी उसे ही करना पड़ेगा। आज रात जब उसकी माँ खाना बना रही थी; तब छुटकी उनके पास जाकर बैठ गई और कहा, "अम्मा मुझे तुमसे कुछ कहना है, दरअसल मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।" "भले से प्यार करती है तू और यही बात मुझसे कहना चाहती है, है ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 10

केवल राम की ही तरह मुन्ना और उसकी पत्नी भी भले राम के घर अपनी बेटी छुटकी का रिश्ता आए। मुन्ना लाल ने कहा, "समधी जी मुझे तुमसे कुछ मांगना है, क्या दोगे?" केवल राम ने कहा, "हाँ-हाँ मांग ना ज़रूर दूंगा।" "सोच ले केवल राम फिर मुकरना नहीं।" केवल ने सोचा कहीं कोई दहेज ...? तब तक फिर मुन्ना ने कहा, "अरे क्या सोच रहा है, बोल ना?" "अरे मुन्ना पहेलियाँ मत बुझा, मांग ले जो मांगना है। मैंने तो तुझे अपने जिगर का टुकड़ा दे दिया है। अब उससे बड़ा तो कुछ भी नहीं है। चल दे ...और पढ़े

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मैं ग़लत था - भाग - 11 (अंतिम भाग)

विवाह के दो दिन बाद पग फेरे के लिए जब छोटे लाल छुटकी और भले राम को अपने घर गया तब उसने अपने माँ-बाप की आपस में बात सुनी। उसकी माँ ने कहा, "छोटे के बाबूजी एक परात में पानी रख लेते हैं। भले के पाँव धुलवा देना।" मुन्ना लाल ने कहा, "अरे नहीं छुटकी की अम्मा, भले हमारे घर का बच्चा है। तुम यह क्या करने के लिए कह रही हो। उस दिन ज़रा-सा हाथ जोड़ लिया था तो कितना दुखी हो गया था वह। भले जैसा पहले था, अभी भी बिल्कुल वैसा ही है। शादी में कभी ...और पढ़े

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