मंटो की श्रेष्ठ कहानियां

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दिन भर की थकी माँदी वो अभी अभी अपने बिस्तर पर लेटी थी और लेटते ही सो गई। म्युनिसिपल कमेटी का दारोगा सफ़ाई, जिसे वो सेठ जी के नाम से पुकारा करती थी। अभी अभी उस की हड्डियां पसलियां झिंझोड़ कर शराब के नशे में चूर, घर वापस गया था.... वो रात को यहीं पर ठहर जाता मगर उसे अपनी धर्म पत्नी का बहुत ख़याल था। जो उस से बेहद प्रेम करती थी। वो रुपय जो उस ने अपनी जिस्मानी मशक़्क़त के बदले उस दारोगा से वसूल किए थे, उस की चुस्त और थूक भरी चोली के नीचे से ऊपर को उभरे हुए थे। कभी कभी सांस के उतार चढ़ाओ से चांदी के ये सिक्के खनखनाने लगते। और उस की खनखनाहट उस के दिल की ग़ैर-आहंग धड़कनों में घुल मिल जाती। ऐसा मालूम होता कि इन सिक्कों की चांदी पिघल कर उस के दिल के ख़ून में टपक रही है!

Full Novel

1

इफ़्शा-ए-राज़

“मेरी लगदी किसे न वेखी तय टटदी नों जग जांदा” “ये आप ने गाना क्यों शुरू कर दिया है” आदमी गाता और रोता है कौनसा गुनाह किया है ” “कल आप ग़ुसल-ख़ाने में भी यही गीत गा रहे थे” “ग़ुसल-ख़ाने में तो हर शरीफ़ आदमी अपनी इस्तिताअत के मुताबिक़ गाता है इस लिए कि वहां कोई सुनने वाला नहीं होता मेरा ख़याल है तुम्हें मेरी आवाज़ पसंद नहीं आती” ...और पढ़े

2

इश्क़-ए-हक़ीक़ी

इशक़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आशिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। रांझे पीर का चेला था। इशक़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। ...और पढ़े

3

इश्क़िया कहानी

मेरे मुतअल्लिक़ आम लोगों को ये शिकायत है कि मैं इश्क़िया कहानियां नहीं लिखता। मेरे अफ़सानों में चूँकि इश्क़ मोहब्बत की चाश्नी नहीं होती, इस लिए वो बिल्कुल स्पाट होते हैं। मैं अब ये इश्क़िया कहानी लिख रहा हूँ ताकि लोगों की ये शिकायत किसी हद तक दूर हो जाए। ...और पढ़े

4

उल्लू का पठ्ठा

ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरह चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उस के दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी को उल्लु का पट्ठा कहे। बस सिर्फ़ एक बार ग़ुस्से में या तंज़िया अंदाज़ में किसी को उल्लु का पट्ठा कह दे। ...और पढ़े

5

उसका पति

लोग कहते थे कि नत्थू का सर इस लिए गंजा हुआ है कि वो हरवक़्त सोचता रहता है इस में काफ़ी सदाक़त है। क्योंकि सोचते वक़्त नत्थू सर खुजलाया करता है। चूँकि उस के बाल बहुत खुरदरे और ख़ुश्क हैं और तेल न मिलने के बाइस बहुत ख़स्ता हो गए हैं। इस लिए बार बार खुजलाने से उस के सर के दरमियानी हिस्सा बालों से बिलकुल बेनयाज़ हो गया है। अगर उस का सर हर रोज़ धोया जाता तो ये हिस्सा ज़रूर चमकता। मगर मेल की ज़्यादती के बाइस उस की हालत बिलकुल उस तवे की सी हो गई है जिस पर हर रोज़ रोटियां पकाई जाएं। मगर उसे साफ़ न किया जाये। ...और पढ़े

6

ऊपर निचे और दरमियान

मियां साहब बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहबा जी हाँ! मियां साहब बहुत पीछे हटता हूँ मगर ना-अहल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारीयां सँभालनी ही पड़ती हैं ...और पढ़े

7

एक ख़त

तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इस के एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इस लिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ-फ़िक्र में ज़ाए कर दिया था। तुम जानते हो इस सरमाया परस्त दुनिया में अगर मज़दूर मुक़र्ररा वक़्त के एक एक लम्हे के इव्ज़ अपनी जान के टुकड़े तोल कर न दे तो उसे अपने काम की उजरत नहीं मिल सकती। लेकिन ये रोना रोने से क्या फ़ायदा! ...और पढ़े

8

एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

जावेद मसऊद से मेरा इतना गहरा दोस्ताना था कि मैं एक क़दम भी उस की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उठा सकता था। वो मुझ पर निसार था मैं उस पर हम हर रोज़ क़रीब क़रीब दस बारह घंटे साथ साथ रहते। ...और पढ़े

9

एक्ट्रेस की आँख

“पापों की गठड़ी” की शूटिंग तमाम शब होती रही थी, रात के थके मांदे ऐक्टर लक्कड़ी के कमरे में कंपनी के विलेन ने अपने मेकअप्प के लिए खासतौर पर तैय्यार किराया था और जिस में फ़ुर्सत के वक़्त सब ऐक्टर और ऐक्ट्रसें सेठ की माली हालत पर तबसरा किया करते थे, सोफ़ों और कुर्सीयों पर ऊँघ रहे थे। इस चोबी कमरे के एक कोने में मैली सी तिपाई के ऊपर दस पंद्रह चाय की ख़ाली प्यालियां औंधी सीधी पड़ी थीं जो शायद रात को नींद का ग़लबा दूर करने के लिए इन एक्ट्रों ने पी थीं। इन प्यालों पर सैंकड़ों मक्खियां भिनभिना रही थीं। कमरे के बाहर उन की भिनभिनाहट सुन कर किसी नौवारिद को यही मालूम होता कि अन्दर बिजली का पंखा चल रहा है। ...और पढ़े

10

कबूतरों वाला साईं

पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भरी आँखों को सुकेड़ कर और अपनी कमर को दुहरा करके, मुँह क़रीब क़रीब ज़मीन के साथ लगा कर ऊपर तले रखे हुए उपलों के अंदर फूंक घुसेड़ने की कोशिश करती है तो ज़मीन पर से थोड़ी सी राख उड़ती है और इस के आधे सफ़ैद और आधे काले बालों पर जो कि घिसे हुए कम्बल का नमूना पेश करते हैं बैठ जाती है और ऐसा मालूम होता है कि उस के बालों में थोड़ी सी सफेदी और आगई है। ...और पढ़े

11

क़ब्ज़

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडीयो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के शोर की बदौलत हमारे सेठ साहब का काफ़ी नुक़्सान होता था। क्योंकि शूटिंग के दौरान में जब इका ईकी उस कारख़ाने की कोई मशीन चलना शुरू हो जाती। तो कई कई हज़ार फ़ुट फ़िल्म का टुकड़ा बेकार होजाता और हमें नए सिरे से कई सीनों की दुबारा शूटिंग करना पड़ती। ...और पढ़े

12

क़र्ज़ की पीते थे

एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे। बाहर हुआदार मौजूद था। उस में बैठे अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवान-ख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरा दास महाजन बैठा है। ...और पढ़े

13

काली कली

जब उस ने अपने दुश्मन के सीने में अपना छुरा पैवस्त किया और ज़मीन पर ढेर होगया। उस के के ज़ख़्म से सुर्ख़ सुर्ख़ लहू का चशमा फूटने लगा और थोड़ी ही देर में वहां लहू का छोटा सा हौज़ बन गया। क़ातिल पास खड़ा उस की तामीर देखता रहा था। जब लहू का आख़िरी क़तरा बाहर निकला तो लहू की हौज़ में मक़्तूल की लाश डूब गई और वो फिर से उड़ गया। ...और पढ़े

14

क़ासिम

बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररहे थे। अंगीठियों में आग की आख़िरी चिनगारियां राख में सोगई थीं। दूर कोने में क़ासिम ग्यारह बरस का लड़का बर्तन मांझने में मसरूफ़ था। ये रेलवे इन्सपैक्टर साहब का ब्वॉय था। ...और पढ़े

15

किताब का ख़ुलासा

सर्दियों में अनवर ममटी पर पतंग उड़ा रहा था। उस का छोटा भानजा उस के साथ था। चूँकि अनवर वालिद कहीं बाहर गए हुए थे और वो देर से वापस आने वाले थे इस लिए वो पूरी आज़ादी और बड़ी बेपर्वाई से पतंग बाज़ी में मशग़ूल था। पेच ढील का था। अनवर बड़े ज़ोरों से अपनी मांग पाई पतंग को डोर पिला रहा था। इस के भानजे ने जिस का छोटा सा दिल धक धक कर रहा था और जिस की आँखें आसमान पर जमी हुई थीं अनवर से कहा। “मामूं जान खींच के पेट काट लीजीए।” मगर वो धड़ा धड़ डोर पिलाता रहा। ...और पढ़े

16

मिस माला

गाने लिखने वाले अज़ीम गोबिंद पूरी जब ए बी सी परोडकशनर में मुलाज़िम हुआ तो उस ने फ़ौरन अपने म्यूज़िक डायरेक्टर भटसावे के मुतअल्लिक़ सोचा जो मरहटा था और अज़ीम के साथ कई फिल्मों में काम कर चुका था। अज़ीम उस की अहलियतों को जानता था। स्टंट फिल्मों में आदमी अपने जौहर क्या दिखा सकता है, बे-चारा गुम-नामी के गोशे में पड़ा था। ...और पढ़े

17

मिसेज़ डी सिल्वा

बिलकुल आमने सामने फ़्लैट थे। हमारे फ़्लैट का नंबर तेरह था। उस के फ़्लैट का चौदह। कभी कोई सामने दरवाज़ा खटखटाता तो मुझे यही मालूम होता कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक होरही है। इसी ग़लतफ़हमी में जब मैंने एक बार दरवाज़ा खोला तो उस से मेरी पहली मुलाक़ात हूई। ...और पढ़े

18

मिसेस डिकोस्टा

नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहली सी गड़बड़ नहीं थी। पर मिसिज़ डी कोस्टा पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वो बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाले हादिसे की तमाम अन-जानी तकलीफें भूल गई थी और मिसिज़ डी कोस्टा की हालत पर रहम खाने लगी थी। ...और पढ़े

19

मिस्टर मोईनुद्दीन

मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास मिस्टर मोईनुद्दीन आराम-ए-कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँ कि वो इस के आदी नहीं थे। आमदन माक़ूल थी। कराची शहर में उन की मोटरों की दुकान सब से बड़ी थी। इस के अलावा सोसाइटी के ऊंचे हल्क़ों में उन का बड़ा नाम था। कई कलबों के मेंबर थे। बड़ी बड़ी पार्टियों में उन की शिरकत ज़रूरी समझी जाती थी। ...और पढ़े

20

मिस्टर हमीदा

रशीद ने पहली मर्तबा उस को बस स्टैंड पर देखा जहां वो शैड के नीचे खड़ी बस का इंतिज़ार रही थी रशीद ने जब उसे देखा तो वो एक लहज़े के लिए हैरत में गुम होगया इस से क़ब्ल उस ने कोई ऐसी लड़की नहीं देखी थी जिस के चेहरे पर मर्दों की मानिंद दाढ़ी और मोंछें हूँ। ...और पढ़े

21

मिस्री की डली

पिछले दिनों मेरी रूह और मेरा जिस्म दोनों अलील थे। रूह इस लिए कि मैंने दफ़अतन अपने माहौल की वीरानी को महसूस किया था और जिस्म इस लिए कि मेरे तमाम पट्ठे सर्दी लग जाने के बाइस चोबी तख़्ते के मानिंद अकड़ गए थे। दस दिन तक मैं अपने कमरे में पलंग पर लेटा रहा..... पलंग..... इस चीज़ को पलंग ही कह लीजिए जो लकड़ी के चार बड़े बड़े पाइयों, पंद्रह बीस चोबी डंडों और डेढ़ दोमन वज़नी मुस्ततील आहनी चादर पर मुश्तमिल है। लोहे की ये भारी भरकम चादर निवाड़ और सूतली का काम देती है। इस पलंग का फ़ायदा ये है कि खटमल दूर रहते हैं और यूं भी काफ़ी मज़बूत है, यानी सदीयों तक क़ायम रह सकता है। ...और पढ़े

22

मुनासिब कारवाई

जब हमला हुआ तो मोहल्ले में से अक़ल्लियत के कुछ आदमी तो क़त्ल होगए। जो बाक़ी थे जानें बचा भाग निकले। एक आदमी और उस की बीवी अलबत्ता अपने घर के तहख़ाने में छुप गए। दो दिन और दो रातें पनाह-याफ़्ता मियां बीवी ने क़ातिलों की मुतवक़्क़ो आमद में गुज़ार दीं मगर कोई न आया। दो दिन और गुज़र गए। मौत का डर कम होने लगा। भूक और प्यास ने ज़्यादा सताना शुरू किया। ...और पढ़े

23

मुलाक़ाती

“आज सुबह आप से कौन मिलने आया था” “मुझे क्या मालूम मैं तो अपने कमरे में सौ रहा था।” तो बस हर वक़्त सोए ही रहते हैं आप को किसी बात का इल्म नहीं होता हालाँकि आप सब कुछ जानते होते हैं” “ये अजीब मंतिक़ है। अब मुझे क्या मालूम कौन सुबह सवेरे तशरीफ़ लाया था कौन आया होगा। मेरे मिलने वाला या कोई और शख़्स जिसे सिफ़ारिश कराना होगी ” ...और पढ़े

24

मूत्री

कांग्रस हाऊस और जिन्नाह हाल से थोड़े ही फ़ासले पर एक पेशाब गाह है जिसे बंबई में “मूत्री” कहते आस पास के महलों की सारी ग़लाज़त इस तअफ़्फ़ुन भरी कोठड़ी के बाहर ढेरियों की सूरत में पड़ी रहती है। इस क़दर बद-बू होती है कि आदमियों को नाक पर रूमाल रख कर बाज़ार से गुज़रना पड़ता है। ...और पढ़े

25

मेरा और उसका इंतिक़ाम

घर में मेरे सिवा कोई मौजूद नहीं था। पिता जी कचहरी में थे और शाम से पहले कभी घर के आदी न थे। माता जी लाहौर में थीं और मेरी बहन बिमला अपनी किसी सहेली के हाँ गई थी! मैं तन्हा अपने कमरे में बैठा किताब लिए ऊँघ रहा था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई उठ कर दरवाज़ा खोला तो देखा कि पारबती है। ...और पढ़े

26

साहब-ए-करामात

चौधरी मौजू बूढ़े बरगद की घनी छाओं के नीचे खड़ी चारपाई पर बड़े इत्मिनान से बैठा अपना चिमोड़ा पी था। धुएँ के हल्के हल्के बुक़े उस के मुँह से निकलते थे और दोपहर की ठहरी हुई हवा में होले-होले गुम हो जाते थे। वो सुब्ह से अपने छोटे से खेत में हल चलाता रहा था और अब दिखा गया था। धूप इस क़दर तेज़ थी कि चील भी अपना अंडा छोड़ दे मगर अब वो इत्मिनान से बैठा अपने चमोड़े का मज़ा ले रहा था जो चुटकियों में उस की थकन दूर कर देता था। ...और पढ़े

27

सुरमा

फ़हमीदा की जब शादी हुई तो उस की उम्र उन्नीस बरस से ज़्यादा नहीं थी। उस का जहेज़ तैय्यार इस लिए उस के वालदैन को कोई दिक़्क़त महसूस न हुई। पच्चीस के क़रीब जोड़े थे और ज़ेवरात भी, लेकिन फ़हमीदा ने अपनी माँ से कहा कि वो सुर्मा जो खासतौर पर उन के यहां आता है, चांदी की सुर्मे-दानी में डाल कर उसे ज़रूर दें। साथ ही चांदी का सुर्मचो भी। फ़हमीदा की ये ख़ाहिश फ़ौरन पूरी होगई। आज़म अली की दुकान से सुर्मा मंगवाया। बरकत की दुकान से सुर्मे-दानी और सुर्मचो लिया और इस के जहेज़ में रख दिया। ...और पढ़े

28

सोनोरल

बुशरा ने जब तीसरी मर्तबा ख़्वाब-आवर दवा सोनूरल की तीन टिकियां खा कर ख़ुदकुशी की कोशिश की तो मैं लगा कि आख़िर ये सिलसिला क्या है। अगर मरना ही है तो संख्या मौजूद है। अफ़ीम है। इन सुमूम के इलावा और भी ज़हर हैं जो बड़ी आसानी से दस्तयाब हैं, हर बार सोनूरल, ही क्यों खाई जाती है। ...और पढ़े

29

हतक

दिन भर की थकी माँदी वो अभी अभी अपने बिस्तर पर लेटी थी और लेटते ही सो गई। म्युनिसिपल का दारोगा सफ़ाई, जिसे वो सेठ जी के नाम से पुकारा करती थी। अभी अभी उस की हड्डियां पसलियां झिंझोड़ कर शराब के नशे में चूर, घर वापस गया था.... वो रात को यहीं पर ठहर जाता मगर उसे अपनी धर्म पत्नी का बहुत ख़याल था। जो उस से बेहद प्रेम करती थी। ...और पढ़े

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