रात का तीसरा पहर, ऊधवगढ़ का छोटा सा वीरान रेलवें स्टेशन,रेलगाड़ी रुकी और उसमें से इक्का दुक्का मुसाफ़िर उतरें,उन्हीं मुसाफिरों में से एक कृष्णराय निगम भी थे,उन्होनें अपना सामान रेलगाड़ी में से नीचें उतारा और स्टेशन पर कुली को इधरउधर देखने लगें,लेकिन नज़र दौड़ाने पर उन्हें वहाँ कोई कुली नज़र नहीं आया... उन्हें रेलवें प्लेटफार्म पर कुछ ठंड का अनुभव हुआ तो उन्होंने कोट के ऊपर अपना ओवरकोट पहना और सिर पर अपनी हैट भी लगा ली,जब उन्हें कोई कुली ना दिखा तो वें अपना सामान स्वयं लेकर स्टेशन मास्टर के केबिन की ओर गए ,वहाँ उस केबिन में बल्ब की पीली रोशनी थी और वो बल्ब स्टेशन मास्टर साहब की टेबल के ठीक ऊपर लटक रहा था और उन्होंने दरवाजे पर खड़े होकर ये भी देखा कि वहाँ उनके टेबल पर एक नेमप्लेट रखीं थी जिस पर अवधेश कुमार त्रिपाठी लिखा था,फिर उन्होंने वहाँ की कुर्सी पर बैठे स्टेशन मास्टर की ओर नज़र दौड़ाई जो लगभग पैतालिस साल के ऊपर ही रहें होगें,कृष्णराय जी ने स्टेशन मास्टर साहब के केबिन के बाहर से ही पूछा..... मास्टर साहब !क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ?
Full Novel
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१)
रात का तीसरा पहर,ऊधवगढ़ का छोटा सा वीरान रेलवें स्टेशन,रेलगाड़ी रुकी और उसमें से इक्का दुक्का मुसाफ़िर उतरें,उन्हीं मुसाफिरों से एक कृष्णराय निगम भी थे,उन्होनें अपना सामान रेलगाड़ी में से नीचें उतारा और स्टेशन पर कुली को इधरउधर देखने लगें,लेकिन नज़र दौड़ाने पर उन्हें वहाँ कोई कुली नज़र नहीं आया... उन्हें रेलवें प्लेटफार्म पर कुछ ठंड का अनुभव हुआ तो उन्होंने कोट के ऊपर अपना ओवरकोट पहना और सिर पर अपनी हैट भी लगा ली,जब उन्हें कोई कुली ना दिखा तो वें अपना सामान स्वयं लेकर स्टेशन मास्टर के केबिन की ओर गए ,वहाँ उस केबिन में बल्ब की ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२)
कुछ देर बाद आखिरी रेलगाड़ी गुजर गई और स्टेशन मास्टर साहब कृष्णराय निगम जी के साथ उनके घर की चल पड़े,अँधेरी रात और सुनसान सा रास्ता लेकिन रेलवें काँलोनी स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं थी इसलिए दोनों ही जल्दी घर पहुँच गए.... दोनों घर पहुँचे तब घड़ी में सुबह के चार बज चुके थें,स्टेशन मास्टर साहब ने घर का गेट खोला और लाँन को पार करके घर के मेन दरवाजे के पास आएं जो लकड़ी का बना हुआ था,उन्होंने वहाँ आवाज़ लगाई.... रामजानकी....ओ....रामजानकी...दरवाजा खोलो...भाग्यवान!! आती...हू्ँ....आती...हूँ,सुन लिया मैनें ,बहरी नहीं हुई हूँ और फिर इतना बड़बड़ाते हुए रामजानकी ने दरवाजा ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(३)
अच्छा!तो ये बात है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें... उस रात जब किशोर आपसे मिला था तो आपकी उसके साथ क्या बातें हुई थीं?कृष्णराय जी ने पूछा। उनसे जो जो बातें हुई थीं उनका जिक्र तो मैं आपसे पहले ही कर चुका हूँ,स्टेशन मास्टर साहब बोले.... जी!तो क्या फिर मुझे उमरिया गाँव जाकर ही कुछ पता चलेगा?कृष्णराय जी बोलें... लेकिन इतने सालों बाद किसी को वहाँ किशोर बाबू याद होगें,स्टेशन मास्टर साहब ने पूछा.... जी!कोशिश तो करनी पड़ेगी उसे ढूढ़ने की,कृष्णराय जी बोलें.... ऐसे ही कृष्णराय जी और स्टेशन मास्टर साहब के बीच वार्तालाप चलता रहा,उस रेलवें स्टेशन से दो रेलगाड़ियाँ ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(४)
खलासी की बात सुनकर कृष्णराय जी बोलें... अब तो परसो तक इन्तजार करना पड़ेगा... अब इसके सिवाय कोई चारा तो नहीं है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें... ओह...ये तो मुसीबत हो गई,मुझे आपके यहाँ एक रात और रुकना पड़ेगा,खामख्वाह मैं आपकी और भाभी जी की तकलीफ़ें बढ़ा रहा हूँ,कृष्णराय जी बोलें... इसमें तकलीफ़ की क्या बात है इन्जीनियर बाबू!हमारे यहाँ तो वैसें भी कोई भूला भटका मुसाफ़िर ही आता है,हमें आपकी मेहमाननवाजी का मौका मिला,ये तो बहुत ही अच्छी बात है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें... लेकिन फिर भी आप माने या ना माने कि आपको तकलीफ़ हो रही है,ये तो आपकी दरियादिली ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(५)
कुछ समय की यात्रा के बाद कृष्णराय जी रामविलास चौरिहा जी के साथ उमरिया गाँव पहुँच भी गए,रामविलास चौरिहा पहले कृष्णराय जी को अपने कमरें में ले गए और उन्हें चाय पिलाई और अपने माँ के हाथों के बनाएं नमकपारे खिलाएं,कुछ इधरउधर की बातें की और उनके दोस्त किशोर के बारें में और भी बातें जानीं,इसके बाद मुखिया जी के नौकर घीसू से बोले कि वें कृष्णराय जी को रेस्टहाउस छोड़ आइए,रामविलास के कहने पर घीसू कृष्णराय जी का सामान लेकर रेस्ट हाउस की ओर चल पड़ा.... कुछ ही देर में कृष्णराय जी रेस्ट हाउस के ऊबड़ खाबड़ रास्तों ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(६)
कृष्णराय जी ने देखा कि उनके सामने एक नवयुवक और एक नवयुवती खड़े हैं और दरवाजा खुलते ही दोनों के भीतर घुसते चले आएं,तब कृष्णराय जी बोले.... अरे....अरे...कौन हो तुम लोग और भीतर क्यों घुसते चले आ रहे हो? तब नवयुवक कमरें के दरवाजे की कुण्डी लगाते हुए बोला..... साहब!मैं बंसी का बेटा रमेश हूँ.... तब कृष्णराय जी ने नवयुवती की ओर इशारा करते हुए पूछा.... और ये कौन है? तब रमेश बोला .... साहब!यहाँ से पाँच कोस दूर फूलपुर गाँव है,ये उसी गाँव के सरपंच की बेटी है धानी!ये मुझसे मिलने आई थी,तभी हमें किसी ने देख लिया ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(७)
फिर कृष्णराय जी ने नहाकर मैथी के पराँठों और टमाटर की चटनी का नाश्ता किया और चल पड़े साइकिल फूलपुर गाँव की ओर वहाँ के साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल से मिलने,वें ऊबड़ खाबड़ रास्तों में चले जा रहे थे और एक दो घण्टों के सफर के बाद वें लोगों से रास्ता पूछते पूछते फूलपुर गाँव पहुँच भी गए,तभी उन्हें वहाँ के कुएंँ पर वहाँ के सरपंच की बेटी धानी दिखी ,जो कि अपनी सहेलियों के साथ वहाँ पानी भरने आई थी तभी कृष्णराय जी उस कुएँ के पास पहुँचे और पनिहारिनों से बोलें.... कोई पानी पिला देगा मुझे,बहुत प्यास लगी ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(८)
जब साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल जी ने कृष्णराय जी को कुछ नहीं बताया तो वें कुछ मायूस से हो गए साहूकार रामस्वरूप जी कृष्णराय जी से बोलें.... माँफ कीजिएगा,कृष्णराय बाबू! मैं अभी दुकान पर जाता हूँ,कुछ अँधेरा होने पर दुकान बंद कर दूँगा,फिर आपके साथ बैठकर बातें करूँगा,तब तक आप इसी बेंच पर आराम कर लीजिए और ऐसा कहकर साहूकार रामस्वरूप जी अपनी दुकान पर चले गए,कृष्णराय जी सफर में साइकिल चलाते चलाते बहुत थक गए थे इसलिए आराम करने के उद्देश्य से बेंच पर लेट गए और वहीं पर लेटे लेटे उन्हें नींद आ गई,अब सूरज पूरी तरह से ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(९)
जमींदार वीरभद्र सिंह जितने अय्याश थे ,जमींदारन कौशकी जी उतनी ही करूणामयी,ममतामयी और धार्मिक थीं,इसलिए जब जमींदार साहब की हद से ज्यादा बढ़ गई तो जमींदारन कौशकी सिंह हवेली छोड़कर लक्ष्मीनारायण मंदिर से कुछ दूर बने एक पुश्तैनी मकान में चलीं गईं जिसका नाम शांतिनिकेतन था,उस समय ओजस्वी दस साल की थी और तेजस्वी आठ साल की थी,जब जमींदारन साहिबा हवेली छोड़कर शांतिनिकेतन चलीं गईं तो तब जमींदार साहब को रोकने टोकने वाला कोई ना रह गया था,इसलिए अब जमींदार साहब बिलकुल आजाद थे इसलिए उनकी अय्याशियांँ और भी बढ़ गईं थीं और उनकी इस अय्याशी में उनका सबसे ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१०)
फिर सुबह के लगभग नौ बज चुके थे और कृष्णराय जी अपना बोरिया-बिस्तर बाँधकर एकदम तैयार थे और तभी हाउस पर रामविलास चौरिहा जी जीप में बैठकर आएं,जीप रेस्टहाउस के सामने खड़ी हुई तो रामविलास चौरिहा जी उस से उतरकर बाहर आएं और रेस्ट हाउस के दरवाजे पर आकर बोले.... कृष्णराय बाबू!आप तैयार हो गए , जी! हाँ! अभी आया ,कृष्णराय जी ने भीतर से आवाज दी... और फिर कृष्णराय जी बाहर आएं तो रामविलास जी ने जीप के ड्राइवर से जीप में सामान रखने को कहा,तब रामविलास जी ने कृष्णराय जी से पूछा... अरे! बंसी कहाँ है,दिखाई नहीं दे रहा , ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(११)
फिर चाय पीकर रामविलास चौरिहा जी ड्राइवर के साथ इन्सपेक्शन के लिए निकल गए और कृष्णराय जी अपने कमरें आकर अपने बिस्तर पर लेट गए तो दयाराम उनके पास आकर बोला...... साहब! और कुछ लाऊँ आपके लिए क्योंकि फिर मुझे हाट जाना है सामान लेने , नहीं! अभी कुछ नहीं चाहिए,यहाँ पानी का जग भरकर रख दो बस ,कृष्णराय जी बोले... और फिर दयाराम ने कृष्णराय जी के पास रखें टेबल पर जग भरकर रखा तो कृष्णराय जी ने उससे पूछा..... अच्छा! दयाराम! ये बताओ कि यहाँ से शान्तिनिकेतन कितनी दूर है? , बस यही कोई दो तीन कोस होगा,पहले यहाँ से ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१२)
तब दयाराम बोला.... साध्वी जी ऐसा तो किसी के साथ नहीं करतीं,पता नहीं वो आपके साथ ऐसा क्यों रहीं हैं,कोई भी फरियादी उनके द्वार से कभी यूँ नहीं लौटाया जाता जैसा कि उन्होंने आपको लौटा दिया,हुजूर! इस के पीछे जरूर कोई गहरी बात छुपी है,तभी तो उन्होंने ऐसा किया , अब उनके मन की तो वें ही जाने,मैं कैसें उनके मन की बात जान सकता हूँ कि क्या चल रहा है उनके मन में ,? कृष्णराय जी बोले... तो चलिए फिर रेस्ट हाउस चलते हैं,उनसे मुलाकात की उम्मीद करना बेकार है ,दयाराम बोला... हाँ! अब मुझे भी यही लगता है, ,कृष्णराय जी बोले... ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१३)
याद करो कभी तुमने इस नाम के शख्स के बारें में किसी से कुछ सुना हो कृष्णराय जी पूछा... नहीं हुजूर ,मैंने तो ऐसे नाम के किसी शख्स के बारें में नहीं सुना ,दयाराम बोला... अच्छा! ये बताओ,तुम यहाँ कितने साल से हो ,कृष्णराय जी ने दयाराम से पूछा... यही कोई चार साल से ,दयाराम बोला... अच्छा! तो ये बताओ,जो साध्वी जी के साथ जो नर्स रहतीं हैं,वो कितने सालों से साध्वी जी के साथ काम कर रहीं हैं ,कृष्णराय जी ने दयाराम से पूछा... अच्छा! वें....वें तो रुकमनी बहनजी हैं! उन्हें सभी रुकमनी बहनजी कहकर पुकारते हैं,साध्वी जी का सारा कार्यभार वही तो ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१४)
जब कृष्णराय जी दयाराम के पास पहुँचे तो दयाराम ने कृष्णराय जी से पूछा... कोई बात बनी हुजूर! हाँ! रुकमनी बहनजी ने तो थोड़ी उम्मीद जगाई है,लेकिन कुछ समझ में नहीं आता कि क्या तरकीब निकालूँ साध्वी जी से मिलने की ,कृष्णराय जी बोलें..... हूजूर! आपके सभी काम सफल हो जाऐगें यदि आपने चन्द्रिका माई के दर्शन कर लिए तो ,दयाराम बोला... दयाराम! मैनें कहा ना मुझे इन सब पर भरोसा नहीं है ,कृष्णराय जी बोले... लेकिन मुझे उन पर पूरा भरोसा है ,वहाँ के दर्शन करने के बाद आपके सारे काम सफल हो जाऐगें,ये मेरा भरोसा कहता है,कम से कम मेरे भरोसे ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१५)
लेकिन फिर कृष्णराय जी को एक दिन के लिए ही अस्पताल में रखा गया और फिर उन्हें साध्वी जी अपने निवास स्थान शांतिनिकेतन में बुलवा लिया,शाम के वक्त जब कृष्णराय जी अपने बिस्तर पर बैठें कमरें की खिड़की से बाहर का नजारा देख रहे थे तो तभी साध्वी जी उनके कमरें में आई और उनसे पूछा.... अब कैसा है आपके पाँव का दर्द ? डाक्टर साहब की कृपा से अब ठीक है,उनकी दवाइयों से बहुत आराम लग गया ,कृष्णराय जी बोले... आप कभी पहाड़ पर नहीं चढ़े क्या जो ऐसे बच्चों की तरह फिसल गए ,साध्वी जी ने पूछा... हाँ! नहीं ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१६)
मास्टर प्रभुचिन्तन को ये चिन्ता सता रही थी कि अगर उन्होंने अपनी जमीन जमींदार साहब को ना दी तो जमींदार साहब ना जाने किस हद तक गुजर जाएं,उन्हें अपनी चिन्ता नहीं थी लेकिन उन्हें अपनी बेटी की बहुत चिन्ता थी और वें इसी तरह चिन्ता में डूबे बैठे तो उनकी बेटी निर्मला ने उनके पास आकर पूछा.... क्या हुआ बाबूजी! आप इतनी चिन्ता में क्यों बैठें हैं ? क्या बताऊँ बेटी! मुझे मुखिया की बातों ने चिन्ता में डाल रखा है मास्टर प्रभुचिन्तन बोले... बाबूजी! ये देश आजाद है और यहाँ किसी की हूकूमत नहीं चलेगी,चाहे कुछ भी हो जाए,आप ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१७)
और फिर वही हुआ जिसका मास्टर प्रभुचिन्तन को डर था,लक्खा ने लठैतों के साथ मिलकर निर्मला को उनके घर उठवा लिया,जब मास्टर साहब घर पर नहीं थे और उसे गाँव से कहीं दूर ले गए और लक्खा ने उसके साथ जोर जबर्दस्ती करके उसे छोड़ दिया और फिर निर्मला ने नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली और ये खबर पूरे गाँव में आग की तरह फैल गई और फिर कौशकी जी मास्टर साहब के घर आईं,जहाँ वें निर्मला की लाश को देखकर फूट फूटकर रो पड़ी और मास्टर साहब से बोलीं.... मुझे माँफ कर दीजिए मास्टर जी! मैं इस ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१८)
जब बेला का बापू इस ब्याह के लिए नहीं माना तो बेला ने खाना पीना छोड़ दिया,क्योंकि उसका बापू तो उसे बाहर जाने देता था और ना ही बंसी से मिलने देता था और इसी तरह खाना ना खाने से बेला की तबियत एक दिन बहुत खराब हो गई और उसने बिस्तर पकड़ लिया,बेला के बापू मनसुख ने गाँव के वैद्य को बुलाया लेकिन बेला ने तो जैसे मर जाने की जिद पकड़ ली थी इसलिए उसने ना तो वैद्य की दी हुई दवाई खाई और ना ही खाना,अब इसमें वैद्य भी क्या कर सकता था,जब कोई दवा ही ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१९)
अब बेला का करारा जवाब पाकर लक्खा मन ही मन सुलग रहा था और उसकी इस उलझन को बंसी भाँप लिया और उससे पूछा.... क्यों लक्खा? आजकल तू इतना बुझा बुझा सा क्यों रहता है ? अब मैं क्या बताऊँ कि मुझे कौन सा ग़म खाए जा रहा है ?,लक्खा बोला.... ग़म...कौन सा ग़म ?,बंसी बोला... तू रहने दे,मैं तुझे कुछ नहीं बता सकता ,लक्खा बोला... अरे! बोल ना कि क्या बात है ,बंसी ने फिर पूछा... तू मेरा ग़म दूर नहीं कर सकता बंसी! लेकिन उस ग़म की दवा तो तेरे ही पास है ,लक्खा बोला... ये क्या कह रहा है तू? मैं कुछ ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२०)
लक्खा ठाकुर साहब के कहने पर अपने घर वापस तो आ गया लेकिन वो बेला को कभी भूल नहीं और ये कहते कहते साध्वी जी रुक गई तो कृष्णराय जी बोलें... आप रुक क्यों गई,आगे कहिए ना कि फिर ये दुश्मनी अब तक खतम क्यों नहीं हुई लगता है आपको पूरी कहानी जानने की बहुत जल्दी है ,साध्वी जी ने पूछा... हाँ! कहानी जानने की जल्दी तो है ,कृष्णराय जी बोले... वो क्यों भला! ,साध्वी जी ने पूछा... वो इसलिए कि मैं जिसे ढूढ़ने आया हूँ,शायद उस कहानी में उसका कोई सुराग मिल जाए ,कृष्णराय जी बोलें... कृष्णराय जी की बात सुनकर साध्वी ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२१)
बंसी और बेला पहले रामस्वरूप जी के पास गए फिर रामस्वरूप जी उन्हें ठाकुराइन कौशकी जी के पास ले कौशकी जी दोनों से बोलीं... तुम दोनों घबराओ नहीं! बेला को कुछ नहीं होगा,मैं लक्खा से बात करूँगीं , और फिर फिर ठकुराइन कौशकी जी ने लक्खा के घर किसी से संदेशा भिजवाया कि ठकुराइन जी ने तुझे फौरन शान्तिनिकेतन बुलवाया है,वें तुझसे कुछ जरूरी बात करना चाहतीं हैं,ठकुराइन जी के संदेश को लक्खा कभी नहीं टालता था इसलिए वो फौरन भागा भागा शान्तिनिकेतन पहुँचा और ठकुराइन जी के पास जाकर बोला.... मालकिन! आपने मुझे बुलवाया , हाँ! लक्खा! बहुत जरूरी काम ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२२)
तब जागृति लक्खा की बात सुनकर बोली... बच्चे को अभी उसके पिता के पास ही रहने देते,अभी दोनों एक दूसरे की ज्यादा जरूरत है , तू अपनी जुबान बंद रखा कर,बड़ी हिमायती बन रही है बाप बेटे की,बंसी ने खुद बच्चे को ले जाने को कहा था इसलिए ले आया उसे,मुझे कोई शौक नहीं चढ़ा था दूसरे की औलाद को अपने घर रखने का ,लक्खा बोला.... कह दिया होगा उसने परेशान होकर और तुम ले भी आए बच्चे को यहाँ,ये तुमने ठीक नहीं किया ,जागृति बोली... मैंने कहा ना कि अपनी जुबान बंद रखा कर,खबरदार! जो आज के बाद मेरी बात काटने ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२३)
अब जब कृष्णराय जी को ये पता चल चुका था कि उनका दोस्त किशोर अब इस दुनिया में नहीं तो फिर उन्होंने शान्तिनिकेतन क्या इस इलाके से ही जाने का मन बना लिया और वो अपना सामान पैक करके रुकमनी बहनजी के पास पहुँचे और उनसे बोले.... बहनजी! तो चलता हूँ आपसे इजाज़त लेने आया था,डाक्टर साहब कहाँ है मैं उन्हें भी शुक्रिया कहे देता हूँ , ये क्या आप जा रहे हैं ?,रुकमनी बहनजी ने पूछा... हाँ!अब जाना ही पड़ेगा ,कृष्णराय जी बोले.... डाक्टर साहब तो नहीं हैं,वे दवाइयांँ लेने शहर गए हैं ,एकाध दिन बाद ही लौटेगें ,रुकमनी बहनजी बोलीं... तो ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२४)
ठाकुर वीरभद्र सिंह ने गुस्से में आकर लक्खा से कहा.... अब इस किशोर का कुछ ना कुछ इन्तजाम ही पड़ेगा,ये अपनी हदें भूल रहा है,शायद इसे मालूम नहीं कि हम कौन हैं इसलिए शायद इसने हमारी इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की है,वन विभाग में शिकायत करने वाली धमकी तक तो ठीक था लेकिन अब इसने हमारे घर में सेंध लगा दी है, जिसे हम कभी बरदाश्त नहीं कर सकते , तो मेरे लिए क्या हुकुम है सरकार! ,लक्खा ने पूछा... पहले ओजस्वी को लौटने दो,देखते हैं कि वो क्या जवाब देती है,तभी हम अपना फैसला तुम्हें बताऐगे़ ,ठाकुर वीरभद्र सिंह ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२५)
और बंदूक चलने की आवाज़ से ओजस्वी जोर से चीख पड़ी फिर बोली.... आपने ये क्या किया बाबूजी? और फिर ठाकुर साहब कराहते हुए लरझती आवाज़ में बोलें... तूने मेरे लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा था बेटी! मैं अपने बनाएं नियम को खुद भी नहीं तोड़ सकता था,अच्छी लग रही है तू दुल्हन बनके,भगवान सदा तेरी जोड़ी बनाएँ रखें और इतना कहकर ठाकुर साहब ने अपने प्राण त्याग दिए... क्योंकि ठाकुर साहब ने किशोर को नहीं खुद को गोली मारी थी,अपने खानदान की इज्जत बचाने का उनके पास यही उपाय था,जब बेटी ने उनके मन की नहीं की तो ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२६)
ओजस्वी हवेली के भीतर पहुँची तो वहाँ का सन्नाटा देखकर उसका मन भर आया,फिर वो तेजस्वी के कमरें की गई ,जहाँ तेजस्वी उदास और मायूस सी अपने कमरें में लेटी थी, तेजस्वी के बिस्तर के पास पहुँचकर ओजस्वी ने उससे कहा... कैसीं हो तेजस्वी ? ओजस्वी को सामने देखकर तेजस्वी गुस्से से बोली.... दीदी! तुम! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की ? मैं तुम्हें लेने आई हूँ तेजस्वी! ,ओजस्वी बोली... मुझे लेने आई हो,कहाँ लेकर जाओगी मुझे,वहीं जहाँ बाबूजी ने तुमसे तंग आकर आत्महत्या कर ली थी,मुझे भी बाबूजी की तरह मार डालने का इरादा है क्या तुम्हारा? , तेजस्वी ने ज़हर ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२७)
अभी तीन चार दिन ही हुए थे किशोर और ओजस्वी को शान्तिनिकेतन में रहते हुए कि तभी ठकुराइन कौशकी का ऋषिकेश से तार आया और उसमें लिखा था कि...... उनकी बहुत ज्यादा तबियत खराब है,उन्होंने सबको ऋषिकेश बुलवाया है,उनका सभी को देखने का बहुत मन है और हाँ तेजस्वी को लाना मत भूलना,क्या पता अब मैं यहाँ और कितने दिन की मेहमान हूँ... ये खबर सुनकर ओजस्वी परेशान हो उठी और किशोर से बोली... हम सभी को फौरन ऋषिकेश के लिए रवाना होना होगा , हाँ!चलो आज ही हम सभी माँ के पास चलते हैं ,किशोर बोला... उन्होंने तो तेजस्वी को ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२८)
फिर उस रात जो हुआ मैं आपसे नहीं कह सकती कृष्ण बाबू ,साध्वी जी बोलीं.... क्या हुआ था रात,भगवान के लिए बताइएं,क्या तेजस्वी ने किशोर की हत्या कर दी ,कृष्णराय जी ने परेशान होकर पूछा... उस रात वो हुआ जो नहीं होना चाहिए था,उस रात ओजस्वी की बसी बसाई दुनिया उजड़ गई,उसका भरोसा टूट गया ,साध्वी बोली... मैं कुछ समझा नहीं साध्वी जी!,ऐसा क्या किया था तेजस्वी ने किशोर के साथ ,कृष्णराय जी ने पूछा... उस रात तेजस्वी ने अपने खानदान की इज्जत को तार तार कर दिया ,वो अपना बदला लेने में ये भूल गई कि उसका अन्जाम क्या होगा ,साध्वी जी बोलीं... ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२९)
यहाँ तेजस्वी ने किशोर को अपने कमरें में कैद करके रखा था और उधर ऋषिकेश में ओजस्वी अपनी छोटी और पति का इन्तजार करती रही,लेकिन दोनों ऋषिकेश ना पहुँचे फिर ओजस्वी ने दोनों को वहाँ से तार भेजा और उसका जवाब भी ना पहुँचा तो ओजस्वी को दोनों की बहुत चिन्ता हुई और अब ये खबर लक्खा सिंह तक पहुँची तो वो एक रात आगबबूला होकर हाथ में कुल्हाड़ी लेकर हवेली पहुँचा,वो किशोर को मारने वहाँ आया था और जैसे ही वो हवेली में कुल्हाड़ी लेकर दाखिल हुआ और तेजस्वी के कमरें वो किशोर को मारने पहुँचा तो तेजस्वी ...और पढ़े
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--(अन्तिम भाग)
ओजस्वी को दुखी देखकर नारायन को बिलकुल अच्छा नहीं लगा और वो बिना किसी को बताएं जीप उठाकर हवेली ओर चला गया और इधर शान्तिनिकेतन में ओजस्वी के साध्वी बनने का अनुष्ठान चलने लगा,कोढ़ियों के आश्रम के गुरूजी की देख रेख में ये कार्य हो रहा था,ओजस्वी सफेद सूती साड़ी धारणकर, माथे पर चन्दन लगा और गले में तुलसी की माला पहनकर वो हवनकुण्ड के पास जा बैठी,वो अब इस सांसारिक माया मोह से मुक्ति पाना चाहती थी,जिसे उसने सबसे ज्यादा चाहा था उसी ने उसे धोखा देकर उसकी छोटी बहन को अपना लिया था,ये बात ओजस्वी के हृदय ...और पढ़े