आवश्यक सूचना- इस उपन्यास में स्थानों के नाम तो वास्तविक हैं पर इसकी कहानी और पात्र नितांत काल्पनिक हैं. ____________________________________ प्रथम परिच्छेद *** 'भीख माँगनेवाले की झोली में कोई दया और सहानुभूति के साथ दो पैसे डालता है, तो कोई उसमें छेद भी कर देता है- आपकी खुशियां यदि मेरे मिट जाने में ही सुरक्षित रह सकती हैं, तो फिर अब वही होगा, जो आपने चाहा है- मगर इतना अवश्य ही कहूँगा की चोट मारने के पश्चात तड़पनेवाले का दर्द नहीं पूछा जाता है किरण जी ! केवल उसके झुलसे और तबाह हुए अरमानों की लाश देखकर स्वयं को झूठी तसल्ली देने की एक कोशिश-भर ही की जाती है। उसका अन्तिम अंजाम देखा जाता है। गुजरे हुए दिनों में जब आपकी लालसा होगी, तब आपको इस सूरज के प्यार की बिखरी और उड़ती हुई राख में ना कोई चिंगारी मिलेगी और ना ही कोई शोला ! उस वक्त तक सब कुछ समाप्त हो चुका होगा। मेरा प्यार ! आपकी ताड़नायें … और शायद आपके जीने की ख्वाइश भी… '
Full Novel
तुम दूर चले जाना - भाग 1
आवश्यक सूचना- इस उपन्यास में स्थानों के नाम तो वास्तविक हैं पर इसकी कहानी और पात्र नितांत काल्पनिक हैं. प्रथम परिच्छेद *** 'भीख माँगनेवाले की झोली में कोई दया और सहानुभूति के साथ दो पैसे डालता है, तो कोई उसमें छेद भी कर देता है- आपकी खुशियां यदि मेरे मिट जाने में ही सुरक्षित रह सकती हैं, तो फिर अब वही होगा, जो आपने चाहा है- मगर इतना अवश्य ही कहूँगा की चोट मारने के पश्चात तड़पनेवाले का दर्द नहीं पूछा जाता है किरण जी ! केवल उसके झुलसे और तबाह हुए अरमानों की लाश देखकर स्वयं को झूठी ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - भाग 2
जब वह मथुरा के गर्ल्स कॉलेज में एक अध्यापिका थी। अंग्रेजी विषय में उसने ‘मास्टर ऑफ आर्ट’ की उपाधि की थी, सो कॉलेज में भी वह अँग्रेजी ही की अध्यापिका थी। इंटर कक्षाओं की युवा लड़कियों को वह पढ़ाया करती थी। आज से लगभग ढाई वर्ष पूर्व कौन जनता था कि इतने अरसे पूर्व की कोई स्मृति उसके वर्तमान का विष बन जाएगी। कल की भूली-बिसरी बातों का महत्व उसके आनेवाली भावी जीवन की हर खुशियों पर अपना प्रभाव भी डालेगा?कॉलेज समाप्त करके तब किरण को बस पकड़ने के लिए थोड़ी दूर पैदल ही चलना पड़ता था। उसके कॉलेज ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 3
प्लूटो!कितना अच्छा था- कितना अधिक! उसके जीवन का पहला-पहला प्यार। प्यार का प्रथम अनछुआ सा अनुभव- उसका दुखदर्दों का प्लूटो। प्लूटो एक वास्तविकता। एक कठोर, कभी भी न भूलनेवाला सच, जिसके साथ वह बचपन से खेली थी। एक साथ पढ़ी भी थी। बचपन के कितने ढेरों-ढेर वर्ष उसने प्लूटो के साथ गुजार दिये थे। तब जबकि वह भरतपुर में रहती थी। आज से लगभग छ: वर्ष पूर्व। प्लूटो तब उसके घर के सामने ही रहता था। एक ही महल्ले में। प्लूटो और उसके पिता में एक अच्छी मित्रता थी। वह दोस्ती जो आज तक अचल और अटल है।किरण तब ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - भाग 4
प्लूटो के जाने के पश्चात किरण उदास हो गयी, गम्भीर भी- स्वाभाविक ही था। दिल का प्यार ही जब के आँगन से दूर हो। मिलन की आस और उम्मीद में जब वियोग से वास्ता आ पड़ा हो, तो मन का उदास होना बहुत निश्चित ही था। प्लूटो की अनुपस्थिति के कारण किरण का तो सारा संसार ही व्यर्थ प्रतीत होने लगा। दुनिया नष्ट हो गयी। स्वत: ही उसके चेहरे की सारी रंगत फीकी पड़ गयी। आशा मलिन हो गयी। आँखों में कभी भी न बोलनेवाली एक खामोशी ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। दृष्टि मानो थक सी गयी थी। ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - भाग 5
प्लूटो की दी हुई वह पीतल की चेन, क्या कुएँ के जल ने निगल ली थी कि उसके पश्चात् किरण के प्यार में जैसे घुन लगना आरम्भ हो गया। प्लूटो के पत्र अचानक ही आना बन्द हो गये। वह अपनी ओर से लिख-लिखकर परेशान हो गयी, परन्तु प्लूटो ने एक भी पत्र का उत्तर नहीं दिया- नहीं दिया तो उसे अपना प्यार ही दुखी करने लगा। प्लूटो और उसके विश्वास में उसे खोट नजर आने लगी। उसके विश्वास पर वह शंकित हो गयी। सन्देह होना स्वाभाविक ही था। जो युवक उसको सप्ताह में चार-चार पत्र लिखता हो? हर पत्र ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - भाग 6
लाज लुटा देने के पश्चात किरण दीपक पर और भी अधिक जी-जान से निछावर हो गयी। पहले से भी वह उसको प्यार करने लगी। इतना अधिक कि दीपक के खयालों में वह प्लूटो को भी भूलने लगी, और भूलना अब स्वाभाविक भी था। एक औरत, जिसने प्यार किसी अन्य से किया हो- दिल कहीं अन्यत्र दे बैठी हो, परन्तु उसका कौमार्य किसी दूसरे की भेंट चढ़ चुका हो, तो ये बहुत स्वाभाविक भी हो जाता है कि वह उसी को अपना भगवान, अपने दिल का देवता समझने लगती है, जिसके साथ वह एक हो लेती है। यही किरण का ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 7
किरण जब दीपक के साथ मथुरा के बस- अडूडे, पर उतरी, तो उस समय तक दिन डूबा जा रहा ठीक उसी के दिल की दशा के समान। जैसे मन-ही-मन वह भी निराश कामनाओं की ठण्डी अर्थी समान निढाल हुआ जा रहा था। आकाश पर सूर्य की अन्तिम लाली की रश्मि कभी भी अपनी जीवनलीला समाप्त कर सकती थी। दिनभर की सफर की थकी-थकायी किरण को देखकर दीपक ने पहले थोडा विश्राम कर लेना उचित समझा, इसलिए वह उसको साथ लेकर बसंस्टेड के बाहर बने एक रेस्टोरेंट की तरफ बढने लगा। किरण भी चुपचाप उसके साथ चल दी। दीपक अभी ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 8
घर छोडने के पश्चात जब किरण मथुरा और वृन्दावन में भी प्रसन्न नहीं रह सकी और जब उसको अपने की मृत्यु का शोक अधिक व्याकुल करने लगा, तो दीपक मन बहलाने के लिए उसे नैनीताल ले आया। पहाड़ी इलाके पर कुमाऊँ की प्रसिद्ध पर्वती घाटियों में। भारत की सुन्दर प्राकृतिक पर्वती छटाओं के सहारे उसने किरण का दु:खी मन बहलाने का अथक प्रयत्न किया। यही सोचकर कि समय के गुजरते ही यहां किरण कुछ हद तक बहुत कुछ भूल जायेगी। फिर हुआ भी ऐसा ही। वह नैनीताल की विश्व-प्रसिद्ध झील को देखकर स्वत: ही प्रसन्न हो गयी। हर तरफ ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 9
किरण इस बार प्रसन्न ही नहीं, बल्कि सन्तुष्ट भी थी। इस समय उसे ज़माने के किसी भी दुख की नहीं थी। लगता था कि जैसे वह अपना पिछला सारा अतीत भूल गयी थी। इस समय उसका मन-मस्तिष्क, दोनों ही स्वस्थ और प्रसन्न ये। दीपक ने ऐसे ही वातावरण में अपने दिल का बोझ हल्का करने की बात सोची, तो वह अचानक ही गंभीर पड़ गया। आँखों में किरण के साथ के वे पिछले सारे दिन चलचित्र के समान आकर चले गये, जिन्हें वह अपने प्यार का वास्ता देकर उसके साथ बिता चुका था। जिन्दगी के इन ढेर सारे जिये ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 10
उसने गौर से एक बार दीपक को देखा- निहारा- जी भर के वह उसको देखती रही- टकटकी लगाये। बिना झपकाए- सोचा, शायद दीपक ने उससे कोई मजाक कर दिया हो? उसे विश्वास भी नहीं हो पा रहा था। शायद दीपक ने उसके असीम प्यार को पहचानना चाहा हो? उसकी परीक्षा ली हो? मगर नहीं, दीपक की खामोशी उसके दिल के सारे बिगड़े हुए जजबात पेश कर रही थी। चेहरे की गंभीरता ने उसकी सारी परेशानियों का जिक्र कर दिया था। इसके साथ ही उसकी झुकी-झुकी निगाहें, बेदम दृष्टि, तथा फीकी पड़ गयी मुखमण्डल की सारी आभा उसके एक गुनहगार ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 11
उस रात किरण एक पल भी नहीं सो सकी। उसचाह कर भी उसे नींद नहीं आयी। सारी रात उसने ही काट दी। उस रात सितारे सरकते रहे। बादल अपनी आवारगी में सारे आकाशमण्डल में भटकते फिरे… और पूरा नैनीताल खामोशियों का बुत बना हुआ, चुपचाप किरण की परिस्थिति को देख-देखकर, अपनी बेबसी पर आँसू बहाता रहा। झील खामोशी से उदासियों का प्रतिबिम्ब बनकर उसके दर्द में भागीदार बनकर सारी रात काँपती रही। वनस्पति भीगती रही। आकाश से शबनम की बूंदें रात की वियोगिन बनकर अपने आँसू बहाती रहीं, परन्तु किरण को एक पल भी चैन नहीं आया। वातावरण की ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 12
इलाहाबाद में जब किरण का मन अधिक नहीं लग सका तो वह वापस मथुरा आ गयी। आकर उसने अपनी रद्द करवायी और फिर से काँलेज जाने लगी। अपनी दिनचर्या को उसे किसी-न-किसी रूप में सँवारना तो था ही। जो कुछ उसके साथ हो गया था, उसे दिल में ही छुपाते हुए अपने जीवन के शेष दिन व्यतीत करने थे। यूं भी किरण प्यार के नाम पर इस कदर टूट चुकी थी कि वह अब इस बारे में कुछ सोच भी नहीं पाती थी। काँलेज में उसकी साथी-सहेलियाँ अपने-अपने प्यार और प्रेमियों का जब कभी भी चर्चा चला देती थीं ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 13
द्वितीय परिच्छेद *** सूरज का संसार उजड़ गया। दुनिया जल गयी। सपने नष्ट हो गये। वह तबाह-सा हो गया। की बेरुखी देखकर वह बुरी तरह टूट भी गया। दिल में जैसे किसी ने तेज कटार घोंप दी थी- फाड़ दिया था। चिथड़े-चिथड़े कर दिया गया था, इस कदर कि उसको अब एक पल भी मथुरा में ठहरना मुश्किल हो गया। स्वत: ही यहां से नफरत हो गयी ! घृणा ! दिल की जब आरजू ही टूट गयी, तो उसको हर कोई दुष्ट नज़र आने लगा। ऐसी परिस्थिति में वह मथुरा में एक पल भी नहीं ठहरना चाहता था। जिस ...और पढ़े
तुम दूर चले जाना - 14 - अंतिम भाग
तृतीय परिच्छेद बहुत दिनों के पश्चात. एक अर्सा गुज़र गया। ऋतुएँ समाप्त हो गयीं। तारीखें बढकर, हफ़्तों, महीनों और में बीत गयीं। समय की पतों में सबकुछ दब गया। बहुत कुछ समाप्त-सा हो चला। दीनापुर का रेलवे स्टेशन बनकर पूर्णत: तैयार हो गया है। वीनस ने इस रेलवे-लाइन को बिछाने में अपने परिश्रम और सूझबूझ का परिचय दिया । … इस प्रकार कि उसकी पदोन्नति हो गयी है। यादों के सिलसिले में बात आयी-गयी हो गयी। प्यार की बातें करनेवाले आगे बढ़ गये। बहुत कुछ भूल भी गये- हालांकि वही दीनापुर है। दीनापुर का वही छोटा-सा गाँव भी है। ...और पढ़े