‘‘वाह! बहनजी, बहुत ही खूबसूरत कढ़ाई की है इन चुन्नियों पर। अब ये सारी चुन्नियाँ सीधी फिल्मों के सेट पर जाएँगी। इन चुन्नियों को फिल्मों की हिरोइनें अपनी फिल्मों में ओढ़ेंगी।’’ सूट बूट पहने व्यक्ति ने एक-एक कर सभी चुन्नियों को देखते हुए कहा। घर में आए उस अनजान व्यक्ति के मुँह से चुन्नियों की तारीफ़ सुनकर तारा की माँ बहुत खुश हुई। उस आदमी की बात सुनकर बाबा भी कमरे से बाहर आ गए थे। वो बोलें -‘'ये हमारी लाड़ली तारा के हाथों का कमाल है।’' ‘हाँ भाई साहब मोहल्ले की औरतों को देख-देख कर हमारी बेटी को बचपन से ही ये शौक चढ़ गया। इसने सिलाई-कढाई किसी सीखी नहीं बल्कि सब कुछ देख-देखकर अपने-आप अपनी मेहनत और दिमाग से सीखा और बनाया है। ये है हमारी बेटी तारा।’’ सीढ़ियों में खड़ी तारा की तरफ हाथ से इशारा करते हुए माँ ने कहा। सूट बूट वाले ने तारा की तरफ देखा तो वो देखता ही रह गया और मन ही मन बुदबुदाया -‘‘इतनी छोटी उम्र और इन हाथों में इतना हुनर। हाथ चूमने का मन कर रहा है इसके।’’ पर उसने अपने आप को संभालते हुए कहा- ‘‘ हाँ बहनजी इस तरह का काम कोई बहुत ही हुनरमंद व्यक्ति ही कर सकता है। आप बहुत भाग्यवान हैं कि आपकी बेटी इतनी अच्छी सिलाई-कढ़ाई करती है। हाँ तो बहनजी इन सबके मिलाकर कितने पैसे हुए ।’’

Full Novel

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बहुत करीब मंजिल - भाग 1

‘‘ बहुत करीब मंजिल ’’‘‘वाह! बहनजी, बहुत ही खूबसूरत कढ़ाई की है इन चुन्नियों पर। अब ये सारी चुन्नियाँ फिल्मों के सेट पर जाएँगी। इन चुन्नियों को फिल्मों की हिरोइनें अपनी फिल्मों में ओढ़ेंगी।’’ सूट बूट पहने व्यक्ति ने एक-एक कर सभी चुन्नियों को देखते हुए कहा। घर में आए उस अनजान व्यक्ति के मुँह से चुन्नियों की तारीफ़ सुनकर तारा की माँ बहुत खुश हुई। उस आदमी की बात सुनकर बाबा भी कमरे से बाहर आ गए थे। वो बोलें -‘'ये हमारी लाड़ली तारा के हाथों का कमाल है।’' ‘हाँ भाई साहब मोहल्ले की औरतों को देख-देख कर ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 2

"एक महीने में दस चुन्नियों पर कढ़ाई...! ना ना भाई साहब माफ करें। वैसे भी तारा के पास समय और इतनी चुन्नियाँ एक साथ..!" तारा की माँ की बात सुनकर उस व्यक्ति ने तारा की माँ को यह बताया कि हाथ की कढ़ाई वाली यह चुन्नियाँ वो फिल्मों में काम करने वाली हीरोइनों के लिए ले रहा है और वहाँ हाथ की कढ़ाई की इन चुन्नियों की बहुत कीमत है। यह जानकर तारा की माँ बड़ी खुश हुई कि उसकी बेटी के हाथ का हुनर पसंद किया जा रहा है और बहुत आगे जा रहा है पर उन्होंने और ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 3

"ना - ना अभी बहुत छोटी है तारा उसे कुछ समझ नहीं.. और घर पर तो मैं देख लेती बाहर.. ना - बाबा ना।" तारा की माँ ने साफ इंकार करते हुए कहा। " ओहो! कौन-सा मैं अभी कह रहा हूँ…!" पिताजी बात पूरी करते इससे पहले ही माँ ने उन्हें टोकते हुए कहा। " कौन-सा इसे यहाँ रहना है, ससुराल में जाकर कर लेगी जो करना है। "" क्यों यहाँ क्यों नहीं, मैं तो तारा की शादी तभी करूँगा जब ये अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी… अब क्या करना है ये जाने…! " पिताजी ने तारा की ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 4

कभी लाल के साथ हरा तो कभी नीले के साथ पीला। इन सतरंगी धागों के मिलने से शाखों से निकलने लगती हैं कलियां और फूल-पत्तियों के झुरमुट। हर बार ये फूल अपनी हद में ही रहते हैं और जुड़े रहते हैं शाख से। पर इस बार जाने क्यों इस बार ये शाखें भी फूलों से इतनी लद गई है कि झुक गई है इनके बोझ से। ये फूल भी आमादा हैं खुद शाख से गिरने या शाखा को गिराने के लिए। भाग रहे हैं ये अपनी ही खुशबू के पीछे और बिखर रहे हैं आस-पास। डिजाईन के हिसाब से ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 5

चंदा जीजी से तो नन्नू बहुत ज्यादा डरता था उसे पता था कि वो पीटती है तो बीच में की किसी की हिम्मत नहीं और किसी के मनाने का तो सवाल ही नहीं उठता। बेचारा कितना ही रो ले। फिर तो कोई खाने तक को नहीं पूछता इसलिए वो चंदा जीजी से थोड़ा दूर ही रहता है। नन्नू रात के लगभग दस बजे तक सो जाता है। पर आज न जाने नन्नू को क्या हुआ उसे नींद ही नहीं आ रही और वो बार-बार में तारा जीजी के कमरे के चक्कर काट रहा था। उसके इस तरह आने-जाने से ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 6

अब तो ये रोज की बात हो गई थी। वो व्यक्ति रोज रात को ग्यारह बजे को फोन करता उसे उसकी कला की सही जगह यानी मुंबई जाने के सपने दिखाने लगा। इस बात पर वो मायूस हो जाती और कहती कि - "इस जीवन में तो मैं कभी मुंबई नहीं जा पाऊँगी। आप ही मेरे बनाए कपड़े और कढ़ाई को फिल्मी हस्तियों तक पहुँचा दिया करें मेरे लिए तो यही काफी है।" इन सब को चलते लगभग डेढ़ महीना हो गया। वो व्यक्ति जिसका नाम कैलाश था वो इस समय मुंबई में था और तारा से रोज यहीं ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 7

कैलाश ने बताया कि वो आज बंबई से आ रहा है अगर तुम अपने माता-पिता से बात नहीं कर तो मैं ही आकर बात करता हूँ।इस पर तारा ने हामी भरते हुए कहा-"हाँ आप ही बात करना मैं नहीं बात कर सकती मम्मी -पापा से । कैलाश दोपहर को ही बंबई से आया था और शाम ढ़लने तक तारा के घर आ पहुँचा ।उसके दरवाजा खटखटाने पर माँ ने ही दरवाजा खोला। उसने आते ही आत्मीयता से माँ को नमस्कार किया और पैर छूने के लिए झुका तो माँ हड़बड़ा गई और उन्होंने कहा- ‘‘अरे अरे बस..... बस।’’ आप ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 8

उस व्यक्ति का घर में इस तरह आ जाना तारा के पिताजी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा फिर भी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कैलाश से कहा - ‘ बैठिए।’’कैलाश को पिताजी से बात करते देख तारा चुपचाप ऊपर अपने कमरे में चली गई। कैलाश ने बैठने के लिए मना करते हुए बिना इधर-उधर की बात किए बड़े आत्मविश्वास से सीधे-सीधे पिताजी से कहा - ‘‘आपकी बेटी तारा बहुत गुणी है, मैं इसे पसंद करता हूँ और इससे शादी करना चाहता हूँ।’’ कैलाश की बात सुनकर पिताजी के तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 9

कैलाश की इतनी आत्मीयता भरी बातें सुनकर तारा रोने लगी और कुछ बोल नहीं पाई। इस पर कैलाश ने को चुप करवाते हुए कहा -" तारा रोना किसी समस्या का समाधान नहीं। बस तुम इतना याद रखो तुम्हारे परिवार वाले कभी भी हमारी शादी के लिए राजी नहीं होंगे। " कैलाश की बात सुनकर जैसे उसके हाथ में आया हर रेशमी धागा टूटने लगा। वो सिसकते हुए बोली - " तो अब क्या !" उसके जवाब में कैलाश बोला -" अब फैसला तुम्हारे हाथ है तारा अगर तुम अपने सपने पूरे करना चाहती हो तो चलो मेरे साथ बंबई ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 10

तारा को पता था कि एक दो दिन में वो हमेशा के लिए घर से जा रही है इसलिए भाई और दादी के पास ज्यादा बैठा करती थी। माँ और पिताजी तो उसे चंदा के पक्षधर लगते थे इसलिए वो उन लोगों से कम ही बात करती थी। धीरे-धीरे करके उसने सिलाई-कढ़ाई में काम आने वाले छोटे-छोटे सामान को एक थैले में रख लिया था। उसने अपने बैग में कपड़े में खिंचाव के काम आने वाले फ्रेम तो चार-पाँच साइज़ के रख लिए और साथ में हर रंग के धागे। अपने तीन चार सूट भी अब तो उसने अलमारी ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 11

आदरणीय पिताजी, प्रणाम!,आप सभी से बहुत प्यार करती हूँ, पर उतना ही प्यार अपने सपनों से भी करती हूँ शायद यहाँ रहकर मैं कभी अपने सपने पूरे नहीं कर पाऊँगी। मेरा सपना है कि मैं बहुत बड़ी ड्रेस डिजाइनर बनूँ। पर जीजी के सपनों के आगे आपको किसी के सपने दिखाई ही नहीं देते। क्या आपने कभी मेरे सपनों के बारे में पूछा ? याद कीजिए आपने कभी मुझसे नहीं पूछा कि आगे जाकर मैं क्या करना चाहती हूँ। जब से समझने लगी हूँ तब से आपको एक ही सपना देखते-देखा है कि आपकी लाडली चंदा जीजी डॉक्टर बन ...और पढ़े

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बहुत करीब मंजिल - भाग 12 - अंतिम भाग

नन्नू का इस तरह दादी के कमरे में जाकर तारा को बुलाना माँ-पिताजी और चंदा की धकड़ने बढ़ा रहा वो एक-दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहे थे कि क्या जवाब दें नन्नू को, कहाँ है इसकी तारा जीजी? चंदा की कलेजा धक-धक कर रहा था तभी। पिताजी ने आँखों ही आँखों में तारा की माँ और चंदा को आश्वस्त किया कि - "मै जाता हूँ तारा को ढूंढ़ने" और चंदा ने कहा - "मैं उसकी सहेलियों के यहाँ पता करती हूँ।" उधर दादी के कमरे में नन्नू ने झुंझलाते हुए कहा- ‘‘जीजी सुनती नहीं है क्या ? ऐसे ...और पढ़े

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