डेफोड़िल्स ! - 1 तेरे झरने से पहले समर्पित नेह को, स्नेह को डेफोड़िल्स ही क्यों ? यह प्रश्न अवश्य मस्तिष्क में आया होगा दिलो-दिमाग को सताया होगा आख़िर जब इतने खूबसूरत फूलों का देश है हमारा भारत तब ये ‘डेफोड़िल्स’ ही क्यों? सच कहूँ तो मेरे मस्तिष्क ने इसको बहुत बहुत बार सोचा लेकिन यह भीतर से निकल ही नहीं पाया ! इसका सीधा सा, छोटा सा कारण था | बचपन में कभी वर्ड्स्वर्थ की छोटी सी रचना पढ़ी थी यद्ध्यपि उस रचना का जन्म नकारात्मकता से हुआ था किन्तु इन फूलों के कारण ही सकारात्मकता के परिवेश में रचना का समापन हुआ | बात इस मुद्दे की है कि प्रकृति किस प्रकार से चीज़ों में खूबसूरत मोड़ ले आती है | जिजीविषा को जन्म देती है | इसके बाद कुछ सोचना रहा नहीं | वर्ष याद नहीं, पूरी रचना भी याद नहीं लेकिन न जाने कौनसे परिवेश में एक रचना लिखी गई थी | उसका सार था कि पीढ़ियाँ हमें बहुत कुछ दे जाती हैं, हम ही उन्हें नहीं संभाल पाते | एक और महत्वपूर्ण विचार संभवत: रहा कि ‘नर्गिस’ भी इसी जाति का फूल है | सो,बिना कुछ अधिक चिंतन किए पूरी सृष्टि को नमन करते हुए इस पुस्तक के शीर्षक का जन्म सहज ही हुआ |

Full Novel

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डेफोड़िल्स ! - 1

तेरे झरने से पहले समर्पित नेह को, स्नेह को डेफोड़िल्स ही क्यों ? यह प्रश्न अवश्य मस्तिष्क में होगा दिलो-दिमाग को सताया होगा आख़िर जब इतने खूबसूरत फूलों का देश है हमारा भारत तब ये ‘डेफोड़िल्स’ ही क्यों? सच कहूँ तो मेरे मस्तिष्क ने इसको बहुत बहुत बार सोचा लेकिन यह भीतर से निकल ही नहीं पाया ! इसका सीधा सा, छोटा सा कारण था | बचपन में कभी वर्ड्स्वर्थ की छोटी सी रचना पढ़ी थी यद्ध्यपि उस रचना का जन्म नकारात्मकता से हुआ था किन्तु इन फूलों के कारण ही सकारात्मकता के परिवेश में रचना का समापन ...और पढ़े

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डेफोड़िल्स ! - 2

6 - था कभी वो कभी एक घर हुआ करता था जिसमें से खनकती रहती थीं आवाज़ें कुछ ऐसे–जैसे खनकती है, बच्चों की गुल्लक में जैसे हवा की सनसनाहट खड़े करने लगती है रौंगटे स्फुरित होने लगता है मन चहचहाहट से भर उठता है पक्षियों का बसेरा भीग जाते सारे एहसास कहीं न कहीं झूम जाता मन तेरे साथ होने की तेरे पास होने की कोशिश मुझे जिलाए रखती है सदा रहने को तेरे साथ मैं,एक मीन हूँ जो तेरे समुंदर में रहती है सदा - मेरी मुहब्बत प्रकृति !! 7 - मत बहक आशाओं का बागीचा कामनाओं ...और पढ़े

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डेफोड़िल्स ! - 3

21 - अमलतास मैंने लिखा है तेरा नाम सुबह की हथेली पर सूरज की किरण से मैंने छूआ है नाम एक-एक कोमल फूल जैसे चमन से मैंने बोए हैं बीज अमलतास के जिन पर फूले हैं गुच्छे आशा, विश्वास के धड़कनों ने की है सरगोशी भी ओढ़ाया है दुपट्टा शर्म का, लिहाज़ का मेरी हथेली पर सजी है मेंहदी तेरी मुहब्बत की झुकी पलकों में छिपी है कोई कहानी भी वो सब इसलिए कि ज़िंदा है तू मुझमें प्रकृति अपनी सारी संवेदनाओं के साथ !! 22 - खोखले क्यों ? मुझे आभास होने दो मुझे विश्वास होने ...और पढ़े

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डेफोड़िल्स ! - 4

36 - मेरे पारिजात ! पारिजात ! मैंने लगाया कितने जतन से तुम्हें प्रतीक्षा की और अचानक एक दिन देखा, मुस्कुराते हुए हरियाली के बीच तुम बिना मेरे स्पर्श के बिछुड़ गए थे डाल से किस कमाल से ! मुझे मिले कुल चार माया,ममता,स्नेह और प्यार पता लगा धीमे-धीमे सूरज के बाद उगते हो तुम पूरी रात महकते, चहकते हो तुम क्या सजनी से बातें करते हो ? बाँटकर उसको प्यार क्या करते हो मनुहार ? पारिजात ! तुम करते हो उससे अभ्यर्थना,आने वाली रात में मिलने की इसीलिए जुदा होते हो शायद टपक जाते हो डाल से दुखी ...और पढ़े

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डेफोड़िल्स ! - 5

51 - मैं, माँ–तुम सबकी बिखरी चली जाती हूँ जब दीवानगी छाती है मेरी धड़कन मेरी साँसें ठिठक जाती मैं तुम्हारी माँ हूँ तुम रूठ क्यों जाते हो मुझसे सारे ही बंधन तोड़ जाते हो मुझे रौंदने लगते हो कैसी सिसकती हूँ क्या देख नहीं पाते हो ? महसूस करो मेरी साँसों को मेरी धड़कन को मेरे तन-मन को तुम्हारी माँ हूँ जन्मे हो इस गर्भ से ही !! 52 - रोता क्यूँ है ? सुबकी सी सिसकी है आँखों में विश्वास नहीं मैं तेरे साथ खड़ा हूँ क्यों तुझको अहसास नहीं ? तन-मन लगा दूँगा तुझको बचा ...और पढ़े

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डेफोड़िल्स ! - 6 - अंतिम भाग

66 - रुलाते क्यों ? क्यों रुलाते हो हँसते हुए चमन को चमेली सी हँसी में घोलते हो दुष्ट इरादे पकड़ते हो नहीं हो हाथ जो काँपते हैं विश्वास की भूमि पर रोपते हो कंटक क्या पाते हो जीव ब्रह्मांड का कण मन को कैसे बहलाते हो तुरुप के इक्के पर सारी दुनिया को हाँक ले जाते हो !! 67 - जिजीविषा हाँ,ज़िंदा हैं सारे चाँद –तारे ज़िंदा हैं मुहब्बत के कतरे इधर-से उधर बहकती चाँदनी गुमसुम से तुम क्यों ? हैं ज़िंदा तो प्रमाण दे ज़िंदगी का मुस्कुराते चेहरों के बीच खिलते कमल सा तुम्हारा मुखड़ा ...और पढ़े

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