जुड़ी रहूँ जड़ों से शहर की सबसे आलीशान कोठी में एक तरफ बैडमिंटन कोर्ट है जहाँ अभी भी कुछ लोग काम करे रहे है। इसी के दूसरे छोर पर दो आउट हाऊस भी बने हुए है। दोनों आउट हाऊस हरियाली से घिरे हैं जो कोठी की सुन्दरता बढ़ाते हैं। उन दोनों आउट हाऊस में कोठी में काम करने वाले माली काका और चौकीदार का परिवार रहता है। इसीलिए दोनो घरों से रोशनी के साथ ही हँसी की आवाज भी आ रही है। कोठी में दूसरी तरफ बहुत ही बड़ा लॉन है जिसके बीच में नरम दूब है, तो चारों ओर हरी-भरी बेल और रंग-बिरंगे फूलों वाले पेड़-पौधे हैं । लॉन के एक कोने में आर्टिफिशल घास से बना बहुत ही सुंदर और बड़ा छाता लगा है जिसके नीचे कुर्सियाँ और टी टेबल रखा है और दो तरफ बड़े सुंदर झूले रखे हुए हैं। हर तरफ बिखरी संपन्नता के बीच वहीं पार्क में लगे झूले पर बैठी है उदास और गुमसुम मालकिन तबस्सुम। वो ख्यालों में इस कदर डूबी है कि हाथ में लिए मोबाइल की घंटी तक को नहीं सुन पा रही। अचानक मोबाइल से आती रोशनी देखकर उन्हें मोबाइल की घंटी बजने का ध्यान आया और उन्होंने फोन उठाया। फोन उनकी फूफी का था जो इसी शहर में रहती है कहने को जरूर वो उनकी फूफी है पर बातें ऐसे करती हैं जैसे पक्की सहेलियाँ हों। एक बार दोनों बात करने लगती हैं तो फोन को घंटे भर पहले नहीं छोड़तीं।

Full Novel

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 1

भाग - 1 जुड़ी रहूँ जड़ों से शहर की सबसे आलीशान कोठी में एक तरफ बैडमिंटन कोर्ट है जहाँ भी कुछ लोग काम करे रहे है। इसी के दूसरे छोर पर दो आउट हाऊस भी बने हुए है। दोनों आउट हाऊस हरियाली से घिरे हैं जो कोठी की सुन्दरता बढ़ाते हैं। उन दोनों आउट हाऊस में कोठी में काम करने वाले माली काका और चौकीदार का परिवार रहता है। इसीलिए दोनो घरों से रोशनी के साथ ही हँसी की आवाज भी आ रही है। कोठी में दूसरी तरफ बहुत ही बड़ा लॉन है जिसके बीच में नरम दूब है, ...और पढ़े

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 2

भाग - 2 मालिकों के गाड़ी से उतरते ही ब्राउनी और टाइगर ने कूं-कूं करते हुए उन्हें घेर लिया वो दोनों तब तक चुप नहीं हुए जब तक कि मालिकों ने उन्हें प्यार से सहलाया नहीं। " बालू भाई रमन कहाँ है, भई उसका पर्चा कैसा हुआ ।" खान साहब ने माली काका से पूछा।"आपका आशीर्वाद लेकर गया था पर्चा ठीक कैसे ना होता.. …" माली काका ने इतना कहा ही था तब तक रमन आ गया और बोला -"हाँ अंकल आपके आशीर्वाद से मेरे सारे पेपर अच्छे गए।" इस पर अमन हँसते बोला - " तो अब्बा मान ...और पढ़े

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 3

अब्बू की बात सुनकर तबस्सुम का गुस्सा थोड़ा कम हुआ और उन्होंने गर्दन को झटकते हुए कहा- "पर ये भाई- बहन हमें कुछ समझें तब ना।" अब्बू के कहने के अंदाज से अमन समझ गया था कि अब्बू चाहते है कि अम्मी को गुस्सा ना दिलाया जाए वरना आज फिर अम्मी बिना खाना खाए सो जाएंगी, जो उनकी तबीयत के लिए बिल्कुल ठीक नहीं। अमन ने अम्मी का गुस्सा शांत करने की नीयत से अम्मी पकड़ कर कहा - ‘‘मेरी प्यारी.. अम्मीजान आज मैं भी आपके साथ हूँ हम उसे अच्छी तरह समझा देंगे कि रोज-रोज झगड़ा करके अम्मी ...और पढ़े

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 4

माँ के गले से लगी शबनम को अब्बू अपने कमरे के बाहर खड़े देख रहे थे। लाडली बेटी इस माँ से लिपटा देखकर उनकी आँखें छलछला आईं थी इसलिए वो फिर कमरे में जाकर आँसू पौंछ कर बाहर आए । उन्हें ऐसा करते सिर्फ अमन ने देखा। अब्बा की आँखों में आँसू देखकर अमन भी थोड़ा भावुक हो गया। अब्बू का ध्यान शबनम की शादी की बात से हटाने की कोशिश करते हुए अमन बोला - " आइए अब्बू, बहुत अच्छी खुशबू आ रही है लगता है आज कुछ स्पेशल बना है।" कहते हुए डाइनिंग टेबल पर खाना लगाने ...और पढ़े

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 5

अपने देश और अपनों की याद में आज भी छुप-छुपकर आँसू बहाने वाली तबस्सुम देश से आने वाली चिट्ठी पढ़कर ऐसे रोमांचित हो जाती है जैसे सोलह साल की लड़की पहली बार प्रेम- पत्र पढ़कर रोमांचित होती है। जब अपने देश पाकिस्तान से किसी के आने की बात सुनती है तो जैसे पंखों में नई स्फूर्ति और नई जान ही आ जाती है और वो गौरया सी फुदकने लगती है इधर-उधर, गाने लगती है अपने देश के मीठे गीत। पर जबसे इस शहर में आई है इतने बड़े बंगले की मालकिन होने पर भी खुद को अकेली सी महसूस ...और पढ़े

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 6

अमन भी नहीं चाहता था कि कैरियर के लिए ऊँची उड़ान भरती बहन के पंखों को इतनी जल्दी शादी बंधन में बांधा जाए।बात देश में शादी की होती तो वो फिर भी सोचता पर यहां तो बहन को की शादी देश से बाहर करने की बात हो रही थी वो भी उस देश में जहाँ बहन की स्वतंत्रता में अवश्य बाधा आएगी। इसीलिए। अम्मी की बात सुनकर अमन भी कुछ कहने हुआ पर उससे पहले शबनम बोल पडी-‘‘ ओ हो अम्मी... शबनम अम्मी को कुछ कहना चाह रही थी पर अब्बू ने उसे आँखों से चुप रहने का इशारा ...और पढ़े

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 7

दोनों बच्चे और उनके अब्बू तबस्सुम को ख़यालों की उड़ान से वापस धरातल पर नहीं लाना चाहते थे इसलिए चुपचाप उनकी बातें सुन रहे थे वो बिना रुके बोले जा रही थीं - "मैं और फूफी खूब बातें करेंगे उससे पाकिस्तान की अपने इस्लामाबाद की। भाई नए जमाने की लड़की है सब जानती होगी इस्लामाबाद के बारे में.... कितना बदल गया होगा इस्लामाबाद शफीक मियां की रबड़ी की दुकान के कारण सब हमारी गली को रबड़ी वाली गली कहते थे और गुट्टन चाचा की चाट और पानी पताशे। अहा! कितना मज़़ा आता था। पता नही अब गुट्टन चाचा है ...और पढ़े

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 8

अपने बचपन और अपने मुल्क के ख्यालों में खिलखिलाती तबस्सुम खानसाहब की बात सुनकर जैसे सुन्न हो गई। खान की उलझी उलझी बातों में वो ऐसे उलझ गई जैसे जैसे कोई उड़ता हुआ हुआ पंछी उलझ गया हो पतंग के धागों में। खान साहब की तीखी बातों से उसके घायल होने लगे थे उसके पंख पर तबस्सुम का ये हाल देखकर परिस्थिति को संभालते हुए खान साहब फिर बोले- " बेगम सच कहूँ तो जब भी आपको अपने वतन की याद में सिसकते देखता हूँ तो बहुत कोसता हूँ अपने आप को....!क्योंकि मैं दुनिया का हर सुख आपकी झोली ...और पढ़े

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जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 9 - अंतिम भाग

अम्मी को समझाते और अपनी फिक्र करते अब्बू के भावुक हो जाने पर अम्मी को समझाते हुए शबनम बोली- आप तो आप बिलाल के मिजाज के बारे में भी जानती हैं और और हमारे मिजाज को भी अच्छी तरह पहचानती हैं। आपको तो पता है हम आपके जैसे बिल्कुल नहीं हैं । चाहकर भी हम किसी की गलत बात को इग्नोर नहीं कर सकते इसी कारण वहाँ पाकिस्तान में अगर किसी ने भूल से भी हमारे सामने हमारे मुल्क के बारे में कुछ कह दिया तो....! नही रह सकेंगे चुप अपने मुल्क़ के खिलाफ़ एक भी लफ़्ज सुनकर।" कहती ...और पढ़े

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