यह कैसी विडम्बना है

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जगमगाती हुई बल्बों की सीरीज, आसमान पर चमकते पटाखों की सुंदर रौशनी, घोड़े पर सवार वह शख़्स जो आज रात संध्या का जीवन साथी बन जाएगा। घर में ख़ुशियों का माहौल, इन सबके बीच धड़कता संध्या का दिल, अपने जीवन की नई पारी के इंतज़ार में खोया हुआ था। सात फेरे और मांग में सिंदूर भरते ही संध्या पत्नी बन कर हमेशा के लिए अपने जीवनसाथी वैभव की हो गई। जिस आँगन में उस ने जन्म लिया था, उस आँगन की आज वह मेहमान बन गई। ग़म और ख़ुशी के बीच के यह पल बड़े ही अजीब होते हैं। एक तरफ़ बाबुल का आँगन छूटने का ग़म होता है तो दूसरी तरफ़ नए परिवार से मिलने की ख़ुशी भी होती है। संध्या के पिता ने बहुत खोजबीन करने के बाद अनेक रिश्तो में से यह रिश्ता पसंद किया था। पढ़ा-लिखा परिवार, आर्थिक तौर पर संपन्न, अच्छा लड़का, अच्छी नौकरी, बस यही सब तो देखा जाता है और इस सब के बीच में होता है सबसे बड़ा विश्वास। विश्वास जो एक दूसरे पर किया जाता है उसका कोई सबूत नहीं होता। इसी विश्वास की डोर से बंधा था संध्या और वैभव का रिश्ता।

Full Novel

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यह कैसी विडम्बना है - भाग १

जगमगाती हुई बल्बों की सीरीज, आसमान पर चमकते पटाखों की सुंदर रौशनी, घोड़े पर सवार वह शख़्स जो आज संध्या का जीवन साथी बन जाएगा। घर में ख़ुशियों का माहौल, इन सबके बीच धड़कता संध्या का दिल, अपने जीवन की नई पारी के इंतज़ार में खोया हुआ था। सात फेरे और मांग में सिंदूर भरते ही संध्या पत्नी बन कर हमेशा के लिए अपने जीवनसाथी वैभव की हो गई। जिस आँगन में उस ने जन्म लिया था, उस आँगन की आज वह मेहमान बन गई। ग़म और ख़ुशी के बीच के यह पल बड़े ही अजीब होते हैं। एक ...और पढ़े

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यह कैसी विडम्बना है - भाग २

आर्थिक संपन्नता के नाम पर उसे संपन्नता कहीं भी दिखाई नहीं दे रही थी। हर चीज में काट-कसर की रही थी। उसने कई बार वैभव और निराली को धीरे-धीरे कुछ बात करते भी सुना था। आर्थिक तंगी का सामना करते अपने परिवार के हालात समझने में संध्या को ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। उसे हर समय कुछ कमी-सी लगती ही रहती थी। एक ही छत के नीचे रहते हुए, आख़िर संध्या से क्या-क्या और कब तक छुप सकता था। वह सोचती रही कि वैभव से बात करुँगी पर कर ना पाई। संध्या के विनम्र स्वभाव और उसके संस्कार उसे रोक ...और पढ़े

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यह कैसी विडम्बना है - भाग ३

वैभव शांत बैठा हुआ संध्या के गुस्से को देख रहा था। वह समझ रहा था कि संध्या का यह बिल्कुल जायज़ है। वह सोच रहा था कि उसका गुस्सा थोड़ा शांत हो जाए तभी उससे बात करना ठीक रहेगा। उसने कहा, "संध्या प्लीज़ नाराज़ मत हो। मुझे तुम्हें पहले ही सब बता देना चाहिए था लेकिन अब मैं तुम्हें सब कुछ सच-सच बता दूँगा। बस पहले तुम शांत हो जाओ तुम्हारी नाराज़ी मुझे शर्मिंदा कर रही है। मेरा यक़ीन मानो मैं तुम्हें सब बताऊँगा, बस मुझे विश्वासघाती मत समझना।" संध्या नाराज़ होकर रजाई से मुँह ढक कर दूसरी तरफ़ ...और पढ़े

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यह कैसी विडम्बना है - भाग ४

“वैभव मैं नाराज़ ज़रूर थी, सूटकेस लेकर जाने के लिए निकल भी पड़ी थी लेकिन तुम्हारे प्यार ने मुझे लिया। जीवन साथी हूँ तुम्हारी, हर क़दम पर तुम्हारा साथ दूँगी, सिर्फ़ तुम मुझे सच्चाई से मिलवा दो।” “संध्या यह लंबी कहानी है, जिस समय मैं कॉलेज में पढ़ता था तब एक लड़की मुझसे प्यार करने लगी थी, पागल थी वह मेरे लिए। मैं जानता था कि उसके दिल में क्या चल रहा है। दिखने में बहुत ही खूबसूरत और दिमाग़ से भी उतनी ही होशियार। उसे इस बात का बड़ा ही घमंड था। उसे लगता था कि यदि वह ...और पढ़े

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यह कैसी विडम्बना है - भाग ५

“वह कहते हैं ना संध्या कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या ज़रूरत। कई बार सच भी झूठ लगता है झूठ भी सच। उस समय उस प्रोफ़ेसर ने जो भी देखा वह उनके लिए सच था लेकिन सच में तो वह झूठ ही था। मैंने बहुत कोशिश की उन्हें समझाने की परंतु मेरी बात का किसी ने भी विश्वास नहीं किया। मैं निर्दोष था संध्या यह सच्चाई मैं जानता था और वह लड़की जानती थी। बात प्रिंसिपल तक पहुँच गई, मेरी कोई भी दलील ना सुनते हुए उन्होंने सीधे मुझसे इस्तीफा मांग लिया, यहाँ तक कि पुलिस को भी बुला ...और पढ़े

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यह कैसी विडम्बना है - भाग ६

"हाँ संध्या यह शालिनी ही है, क्या तुम जानती हो इसे?" "हाँ मैं जानती हूँ बहुत ही घमंडी एकदम तुनक मिजाज़ लड़की है वह। वैभव जब हम नौवीं कक्षा में थे तब यह लड़की किसी दूसरे स्कूल से हमारे स्कूल में आई थी। बहुत ही मगरूर टाइप की लेकिन बहुत ही होशियार, साथ ही उतनी ही ख़ूबसूरत भी । उसे आने के बाद ऐसा लग रहा था कि अब इस क्लास में सिर्फ़ वह ही वह है उसके आगे कोई भी टिक ना पाएगा। यही तो थी उसकी मानसिकता। जिस दिन वह आई थी उस दिन मैं अनुपस्थित थी। ...और पढ़े

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यह कैसी विडम्बना है - भाग ७

“वैभव तुम्हारी बेगुनाही का कहीं ना कहीं, कुछ ना कुछ, सबूत तो अवश्य ही होगा और मैं उसे ढूँढ रहूँगी।” अब संध्या के दिमाग़ में केवल एक ही फितूर था कि किसी भी तरह से वैभव को उतने ही मान-सम्मान के साथ उसी कॉलेज में वापस लेकर जाना होगा, पर कैसे? बहुत विचार विमर्श करने के बाद उसने ख़ुद उस कॉलेज में पढ़ाने के लिए आवेदन पत्र दे दिया। उन्हें भी इस समय लेक्चरर की ज़रूरत थी। उन्होंने तुरंत ही संध्या को इंटरव्यू के लिए बुला लिया। कुछ ही दिनों में संध्या को वह नौकरी मिल गई। संध्या को ...और पढ़े

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यह कैसी विडम्बना है - भाग ८

“मैम मैं आपको कुछ दिखाना चाहती हूँ,” कह कर संध्या ने अपने पर्स से वह तस्वीर निकाली और मलिक को दिखाया । “मैम यह देखिए, यही है ना वह लड़की शालिनी जो तस्वीर में एकदम वैभव के आगे खड़ी है।” “हाँ संध्या पर तुम मुझे यह क्यों दिखा रही हो?” “मैम यह वैभव के साथ उसी कॉलेज में पढ़ती थी और उसकी क्लास मेट थी। वह वैभव से प्यार करती थी। उसे शुरू से अपनी सुंदरता और तेज दिमाग़ पर बहुत घमंड था। अपनी सुंदरता के कारण उसे ऐसा लगता था कि यदि वह किसी को पसंद करेगी तो ...और पढ़े

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यह कैसी विडम्बना है - (अंतिम भाग)

“जी हाँ मैम, मैं इस कॉलेज में इसीलिए आई हूँ ताकि अपने निर्दोष पति को इंसाफ़ दिला सकूँ। यह की लड़ाई है मैम और मुझे पूरा विश्वास है कि आप भी सच का ही साथ देंगी। मैम इतने अच्छे लड़के का जीवन क्या आप यूँ ही षड्यंत्र का शिकार होकर बर्बाद होने देंगी? उसने हमेशा अपने स्कूल और कॉलेज में टॉप किया है। लेकिन उसका दुर्भाग्य देखिए कि एक प्रतिष्ठित कॉलेज से उसे ग़लत आरोप लगा कर निकाल दिया गया। परिणाम स्वरुप अब वह एक छोटे से स्कूल में पढ़ा रहा है। मैम क्या इतने सबूत वैभव की बेगुनाही ...और पढ़े

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