जीवन में जन्म की पहली श्वांस से मृत्यु की अंतिम श्वांस तक मानव संघर्षरत रहता है। हम कल्पनाओं को हकीकत में बदलने हेतु प्रयासरत रहते हैं। कभी खुशी कभी ग़म के बीच जीवन के 62 बसंत बीत गये। जो कुछ देखा, सुना और समझा उन विचारों को कहानी के माध्यम से व्यक्त किया है। ये रोचकता के साथ साथ, प्रेरणास्पद भी रहें, ऐसा मेरा प्रयास है। रचनाओं को सजाने, सँवारने में श्री राजेश पाठक ‘ प्रवीण ‘ एवं श्री देवेन्द्र राठौर का अमूल्य सहयोग प्राप्त होता रहा है। मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।

Full Novel

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प्रेरणा पथ - भाग 1

आत्म कथ्य जीवन में जन्म की पहली श्वांस से मृत्यु की अंतिम श्वांस तक मानव संघर्षरत रहता है। हम को हकीकत में बदलने हेतु प्रयासरत रहते हैं। कभी खुशी कभी ग़म के बीच जीवन के 62 बसंत बीत गये। जो कुछ देखा, सुना और समझा उन विचारों को कहानी के माध्यम से व्यक्त किया है। ये रोचकता के साथ साथ, प्रेरणास्पद भी रहें, ऐसा मेरा प्रयास है। रचनाओं को सजाने, सँवारने में श्री राजेश पाठक ‘ प्रवीण ‘ एवं श्री देवेन्द्र राठौर का अमूल्य सहयोग प्राप्त ...और पढ़े

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प्रेरणा पथ - भाग 2

2. विद्यादान परिधि एक संभ्रांत परिवार की पुत्रवधू थी। वह प्रतिदिन अपने आस-पास के गरीब बच्चों को पढ़ाती थी। उसकी कक्षा में तीन चार दिन पहले ही एक बालक बब्लू आया था। बब्लू की माँ का देहांत हो चुका था और पिता मजदूरी करके किसी प्रकार अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। वह प्रारंभिक शिक्षा हेतू आया था। बब्लू शिक्षा के प्रति काफी गंभीर था। वह मन लगाकर पढ़ना चाहता था एक दिन अचानक ही उसका पिता नाराज होता हुआ आया और बच्चे ...और पढ़े

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प्रेरणा पथ - भाग 3

11. आदमी और संत नर्मदा नदी के तट पर एक महात्मा जी रहते थे। उनके शिष्य ने उनसे निवेदन किया कि मुझे आपकी सेवा करते हुये दस वर्षों से भी अधिक समय हो गया है और आपके द्वारा दी हुई शिक्षा भी अब पूर्णता की ओर है। मैं भी अब संत होना चाहता हूँ और आपके आशीर्वाद की अपेक्षा रखता हूँ। महात्मा जी ने मुस्कुराकर कहा - पहले इंसान बनने का गुण समझो फिर संत बनने की अपेक्षा करना। इंसान का गुण है कि ...और पढ़े

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प्रेरणा पथ - भाग 4

21. लक्ष्मी जी का वास एक धनवान व्यक्ति को स्वप्न में लक्ष्मी जी के साक्षात दर्शन वे भाव विभोर हो गये परंतु लक्ष्मी जी द्वारा यह कहने पर कि अब मैं तुम्हारे पास कुछ दिन की ही मेहमान हूँ फिर मैं विदा होकर दूसरे स्थान जा रही हूँ, उनके होश उड़ गये और वे हडबडाकर नींद से उठकर बैठ गये। वे दिनभर ऊहापोह की स्थिति में मनन करते रहे कि अब ऐसी परिस्थिति में क्या करना चाहिये। वे संशय की स्थिति में अपने पारिवारिक गुरू जी के ...और पढ़े

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प्रेरणा पथ - भाग 5

31. विदाई विष्व में हमारी सभ्यता, संस्कृति व संस्कारों का बहुत मान-सम्मान है। इसका मूलभूत कारण हमारी षिक्षा पद्धति है। मैं जिस पाठषाला में पढ़ता था वहां की परम्परा थी कि बारहवीं कक्षा में उत्तीर्ण होने के पष्चात षाला की षिक्षा समाप्त होकर छात्र महाविद्यालय में प्रवेष लेकर आगे अध्ययन करते थे। षाला की ओर से ऐसे सभी विद्यार्थियों के लिये एक विदाई समारोह का आयोजन होता था। इसमें षाला के प्राचार्य अपना अंतिम आषीर्वचन छात्रों को देते थे। मुझे आज भी उनके द्वारा ...और पढ़े

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प्रेरणा पथ - भाग 6 - अंतिम भाग

41 पागल कौन एक अर्द्धविक्षिप्त वृद्ध महिला मैले कुचैले कपड़े पहने किसी तरह अपने शरीर को हुये सड़क पर जा रही थी। उसे देखकर बच्चे पागल पागल कहकर उसे चिढाने लगे, वह भी चिढकर विचित्र हरकतें करने लगी और बच्चों के मनोरंजन का केंद्र बन गयी। उसी समय अचानक एक लडके ने उसकी ओर पत्थर फेंका जो कि उसके माथे पर लग गया और गहरी चोट के कारण वह वही बैठकर रोने लगी उसकी ऐसी स्थिति देखकर एक बुजुर्ग दंपती उसके पास पहुँचे और उसे ...और पढ़े

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