राजस्थान के अपने एक छोटे से गांव में नन्दन लगभग ६ साल बाद आया और आने का कारण भी कुछ और नहीं बल्कि उसके पिताजी की मौत थी, वो उसी गांव के सरपंच भी थे. पिताजी की मौत अजीब ही हालात में हुई थी ना ही दिल का दौरा ना ही कोई एक्सीडेंट.. जब नन्दन को गांव से परिवार का फोन आया तब वो शहर में ऑफ़िस के किसी मीटिंग में था और उतना सुनते ही वो तुरन्त अपने गांव जाने के लिया निकला पर अब भी उसका दिमाग एक के बाद एक कई सवाल उस से पूछ रहा था की ये कैसे हो सकता है , बाबा जो की नन्दन के पापा थे वो उन्हें बाबा कहकर बुलाता था वो इतने तंदरुस्त होने के बाद अचानक ये कैसा हुआ नन्दन के लिए ये सबकुछ बेहद अजीब था पर गांव वालो के लिए बिल्कुल भी नही, पिछले कुछ 8 - 10 महीनों से गांव में बहुत मौतें हुई और हैरानी की बात ये थी कि सब लगभग एक ही जैसी मौत मारे गए थे, गांव का माहौल पहले से काफी अलग हो चुका था अब हवाओं में पंछियों की मीठी आवाज़े नहीं बल्कि खौफनाक डर की दस्तक हो रही थी और अब गांव की हवा अजीब आवाज़ों के साथ चल रह थी

Full Novel

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घर का डर - १

राजस्थान के अपने एक छोटे से गांव में नन्दन लगभग ६ साल बाद आया और आने का कारण भी और नहीं बल्कि उसके पिताजी की मौत थी, वो उसी गांव के सरपंच भी थे. पिताजी की मौत अजीब ही हालात में हुई थी ना ही दिल का दौरा ना ही कोई एक्सीडेंट.. जब नन्दन को गांव से परिवार का फोन आया तब वो शहर में ऑफ़िस के किसी मीटिंग में था और उतना सुनते ही वो तुरन्त अपने गांव जाने के लिया निकला पर अब भी उसका दिमाग एक के बाद एक कई सवाल उस से पूछ रहा था ...और पढ़े

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घर का डर - २

नन्दन काका के पीछे जाकर उन्हें पकड़ कर फिर पूछने लगा, "काका मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं, बताओ" काका ने बस इतना ही कहा की अगर सच जानना ही है तो कल रात मेरे साथ उस घर के अन्दर चलना .. तय वक्त के मुताबिक रात का अंधेरा गिरते ही नन्दन काका के साथ निकल पड़ा उस घर की ओर, वहा पहुंचते ही काका ने कहा की कुछ दिखाई दे या कुछ भी हो जाए बस शोर मत मचाना. घर के अंदर घुसकर काका ने आंगन में टिफिन खोलकर सारा खाना एक प्लेट में सजाया और फिर एक ...और पढ़े

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घर का डर - ३

"क्या बकवास करते हो ? मैने ये कब कहा तुमसे ..? रसोइया खून जमा देने वाली हँसी के साथ अलग ही आवाज़ में बोला, "चुपचाप घर पर खाना देकर आजायेगा, वरना आपके पिताजी भी सरपंच थे गांव के पर खुदको बचा वो भी नहीं पाए रसोइए ने एक इतनी बड़ी बात खड़ी थी जो नन्दन सोच नही पाया था.. उसने जब पूछा की वो कहना क्या चाहता है ? तो रसोइए ने उसी मुस्कान के साथ कहा " आपके पिताजी भी एक दिन खाना ले जाना भूल गए थे इसलिए तो ये हाल हुआ.. आप मत भूलिएगा और अब जाइए ...और पढ़े

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घर का डर - ४ - अंतिम भाग

उस कंडक्टर की इस बात से ही नन्दन की नींद खुली हाफते हाफते माथे का पसीना पोछा और अपने में देखा तो एक पल को सुकून से आँख भर आयी.. नन्दन का ३ महीने का बच्चा नंदन की बीबी से लिपटकर सुकून से सो रहा था नन्दन को रोज रात वक्त पे खाना पहुँचाते हुए ३ साल हो चुके थे जब वहा से भागने के उसके सारे तरीके जवाब दे गये तो आखिरकार नन्दन ने अपने पिताजी यानी सरपंच की खेतीबाड़ी और अनाज का सारा काम काज संभल लिए इसी बिच उसने शादी भी की और अब एक छोटी ...और पढ़े

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