"माँ" मेरे हिसाब से ये एक ही ऐसा शब्द है,जिस पर दुनिया टिकी हुई है,मानव इतिहास के जन्म के समय से ही स्त्री माँ बनती आई है और मातृत्व को जीती आई है,ये अलग बात है कि स्त्री गर्भावस्था से लेकर प्रसवपीड़ा तक इतना कुछ झेलती है इसके बावजूद भी बच्चे को हमेशा पिता की सन्तान रूप में इंगित किया जाता है,माँ की सन्तान के रूप मे नही.... फिर भी वो कुछ नहीं बोलती,बस चुप्पी साधकर सालों साल वंश की बेल बढ़ाने की परम्परा को कायम रखती है और जमाना उसे दायित्व,फर्ज और कर्तव्य का नाम दे देता है,कितनी
Full Novel
मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(१)
"माँ" मेरे हिसाब से ये एक ही ऐसा शब्द है,जिस पर दुनिया टिकी हुई है,मानव इतिहास के जन्म समय से ही स्त्री माँ बनती आई है और मातृत्व को जीती आई है,ये अलग बात है कि स्त्री गर्भावस्था से लेकर प्रसवपीड़ा तक इतना कुछ झेलती है इसके बावजूद भी बच्चे को हमेशा पिता की सन्तान रूप में इंगित किया जाता है,माँ की सन्तान के रूप मे नही.... फिर भी वो कुछ नहीं बोलती,बस चुप्पी साधकर सालों साल वंश की बेल बढ़ाने की परम्परा को कायम रखती है और जमाना उसे दायित्व,फर्ज और कर्तव्य का नाम दे देता है,कितनी ...और पढ़े
मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(२)
कमरें में बंद महुआ दिनभर रोती रहीं,शाम होने को आई लेकिन मधुबनी ने दरवाजा नहीं खोला,रात भी हो गई रात को मधुबनी ने महुआ को ना खाना दिया और ना ही कमरें का दरवाजा खोला,दूसरे दिन भी महुआ ऐसे ही भूखी प्यासी कमरें में पड़ी रही लेकिन निर्दयी मधुबनी ने कमरें के दरवाज़े नहीं खोले...... और फिर रात होने को आई थी,ना महुआ ने दरवाज़ा खोलने को कहा और ना मधुबनी ने दरवाज़े खोलें,ये देखकर उपेन्द्र को महुआ की कुछ चिन्ता हो आई क्योंकि करीब करीब दो दिन होने को आए थे ,महुआ को कमरें में बन्द हुए,ऐसा ना ...और पढ़े
मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(३)
कुछ ही दिनों में मोतीबाई उस कोठे की सबसे मशहूर तवायफ़ बन गई,अपनी गायकी और नाच से वो सबकी बन गई,उसकी आवाज़ का जादू अच्छे अच्छो का मन मोह ले लेता,जो एक बार अजीजनबाई के कोठे पर मोतीबाई की ठुमरी सुन लेता वो बार बार सुनने के लिए आता,अजीजनबाई के दिनबदिन ग्राहक बढ़ते ही जा रहे थें,अजीजनबाई की आमदनी भी बहुत बढ़ गई थी,जिससे वो मोतीबाई की हर इच्छा मान लेती,मोतीबाई जो भी कहती तो अजीजनबाई कभी भी उसकी बात नहीं काटती।। इस तरह मोतीबाई इस काम से खुश तो नहीं थी लेकिन उसके पास अब दौलत और ...और पढ़े
मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(४)
इसके बाद फिर कभी भी उपेन्द्र ने मोतीबाई पर शक़ नहीं किया,उसे प्रभातसिंह की बात अच्छी तरह समझ में गई थी कि प्रेम उथला नही गहरा होना चाहिए,अब मधुबनी कुछ भी कहती रहती और उपेन्द्र उसकी एक ना सुनता,इसी तरह जिन्द़गी के दो साल और गुज़र गए,वक्त ने करवट ली और एक बार फिर मोतीबाई की गोद हरी हुई,इस तरह उसने एक बार फिर से एक और बेटी को जन्म दिया,उसका नाम मोतीबाई ने मिट्ठू रखा।। दो दो बेटियों को देखकर मधुबनी की नीयत खराब होने लगी,वो इन लड़कियों को भी कोठे पर बिठाने के सपने देखने लगी,अब ...और पढ़े
मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(५)
उपेन्द्र बिना देर किए हुए दोनों बेटियों को संगीत कला केन्द्र में प्रभातसिंह के साथ भरती करवाने ले गया,प्रभातसिंह चचेरी बहन ही संगीत कला केन्द्र को चलातीं थीं इसलिए एडमिशन मे कोई दिक्कत ना हुई,बच्चियों के संगीत केन्द्र चले जाने से अब उपेन्द्र और महुआ की परेशानी कुछ कम हो गई थी,फिर से उनका जीवन सुचारू रूप से चलने लगा, इसी बीच जब उपेन्द्र के पास बेटियों की जिम्मेदारी खतम हो गई तो उसने सोचा कोई काम शुरू किया जाए,वो पढ़ा लिखा तो था नहीं,इसलिए उसने एक डेरी खोलने का सोचा,शहर से बाहर उसने कुछ जमीन और कुछ गाय ...और पढ़े
मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(६)
पहले तो उपेन्द्र ने बाहर खूब शराब की और घर आकर महुआ से ये कहा.... तुम कमाती हो जब चाहो मनमानी करोगी,तुमने जमींदार साहब से पलाश को बोर्डिंग स्कूल भेजने को कहा,तुम चाहती क्या हो ? कि एक एक करके मेरे सारे बच्चे मुझ से दूर चलें जाएं,तुम्हारी इतनी हिम्मत,लगता है तुम अपनी औकात भूल गई हो और उस रात उपेन्द्र ने शराब के नशे में महुआ पर हाथ भी उठा दिया,महुआ उस समय तो कुछ ना बोली क्योंकि वो जानती थी कि अभी उपेन्द्र नशें में है उसकी बात वो नहीं समझेगा और वो चुपचाप मार खाती रही।। ...और पढ़े
मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(७)
जमींदार प्रभातसिंह की बात सुनकर अजीजन बोली.... काश,आपकी तरह दुनिया का हर मर्द हम औरतों की इज्जत करता तो दुनिया में औरतों की ये दशा ना होती,जमींदार साहब! इस पुरूषसत्तात्मक दुनिया में ये सदियों से चला आ रहा है लेकिन औरतों का हौसला आज भी कायम है,जो एक जीव को धरती पर ला सकती है वो कुछ भी कर सकती है,बस करना नहीं चाहती क्योंकि उसकी ममता और उसके भीतर जो दया का भाव है वो उसे गलत काम करने से रोकता है,अगर औरत जैसी दया और ममता मर्दों में एक प्रतिशत भी आ जाए तो उस दिन ये ...और पढ़े
मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--(अन्तिम भाग)
अब दो साल महुआ को बेटे का मुँह देखे बिना काटने थे लेकिन तब भी उसने तसल्ली रख ली,बेटियाँ एक दो महीने में माँ से मिलने आतीं रहतीं,फिर पता चला कि रिमझिम उम्मीद से है इसलिए उसकी देखभाल के लिए महुआ ने उसे अपने पास बुला लिया चूँकि रिमझिम का पति अनाथ था इसलिए उसकी देखभाल के लिए वहाँ कोई महिला नहीं थी।। कुछ महीनों के इन्तज़ार के बाद रिमझिम ने एक नन्ही मुन्नी प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया,उस बच्ची को देखकर महुआ की खुशी का कोई ठिकाना ना रहा,वो नानी बन चुकी थी ये उसे अब ...और पढ़े