महर्षि अष्टावक्र प्रदत्त ब्रह्म-विद्या को अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग की परम्परा के सद्गुरुओं ने इस आधुनिक युग में आनन्द-योग के रूप में व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों के सामन्जस्य एवं समुचित समावेश के साथ-साथ गृहस्थ धर्मानुकूल साधना पद्धति का विकास किया है। साधना पद्धति जो परम पूज्य महात्मा श्री यशपाल जी महाराज (पूज्य भाई साहब जी) ने सरल एवं क्रियात्मक रूप से आज की परिस्थितियों को देखते हुए हम सबके लाभार्थ प्रस्तुत की है। उन तमाम प्रश्नों की गुत्थी सुलझाने की कुन्जी के समान है, जो हम से जुड़े हुए हैं। हम से जुड़े प्रश्न अक्सर यही हैं कि क्या हमारे जीवन का मकसद संसार में केवल कीड़े-मकोड़ों की तरह आना, जानवरों की तरह रहना, उन्हीं की तरह ही मर जाना ही है या कुछ और ? पूजा पाठ में समय क्यों बरबाद करें ? इससे क्या लाभ है ? भाई हम तो सच्चाई ईमानदारी से अपना काम करते हैं, पूजा पाठ के चक्कर में कौन पड़े ? इत्यादि-इत्यादि। इन तमाम प्रश्नों का समाधान पूज्य भाई साहब जी द्वारा लिखित साधना पद्धति मे लिपिबद्ध है। इस पुस्तिका मे परम पूज्य भाई साहिब जी ने सिलसिले के बुजुर्गों की तपस्या एवं कठिन साधनाओं से प्राप्त संकेतों एवं सूत्रों को सरल रूप से प्रस्तुत किया है । आनन्द योग की साधना पद्धति में राजयोग, सहजयोग, हठयोग, कर्मयोग, भक्ति योग व ज्ञान योग का समुचित समन्वय है। फलस्वरूप इस साधना से गृहस्थाश्रम के सम्पूर्ण सांसारिक कार्यकलाप धर्मानुकूल सम्पन्न होने के साथ-साथ सच्चा आनन्द, आध्यात्मिक चक्रों का जागरण, सुषुप्ति, सहज समाधि व जीवन-मुक्त अवस्था की स्थिति प्राप्त कर सकते है।

Full Novel

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1 संरक्षक का संदेश

महर्षि अष्टावक्र प्रदत्त ब्रह्म—विद्या को हमारी परम्परा के सद्‌गुरुओं ने इस आधुनिक युग में आनन्द—योग के रूप में व्यक्तिगत, व सामाजिक जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों के सामन्जस्य एवं समुचित समावेश के साथ—साथ गृहस्थ धर्मानुकूल साधना पद्धति का विकास किया है। वास्तव में आनन्द योग का मार्ग ‘इतिमार्ग' (Method of addition) है, जिसमें अपनी दैनिक दिनचर्या में राम—नाम अर्थात्‌ अपने इष्टदेव का नाम जोड़ना होता है अर्थात्‌ ‘दस्त ब कार, दिल ब यार'। ...और पढ़े

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2. संक्षिप्त परिचय परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी

परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज का जन्म गुरुवार, 5 दिसम्बर, 1918 को बुलन्दशहर (उ॰प्र॰)में हुआ। आपके पिता सोहन लाल जी बुलन्दशहर जजी कचहरी में मुन्सरिम (प्रधान मुन्शी) थे। आपकी शिक्षा बुलन्दशहर एवं इलाहाबाद में हुई। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात्‌ आप पोस्ट व टेलीग्राफ विभाग में टेलीग्राफिस्ट के पद पर नियुक्त हुए। नौकरी के साथ-साथ आप आई॰ई॰टी॰ई॰ (Institute of Electronics and Telecommunication Engineers) करके निरन्तर उन्नति करते-करते IETE के फैलो (Fellow) होकर पी. एण्ड टी. डिपार्टमेंट (P T Department) के टेलीकम्यूनिकेशन रिसर्च सेन्टर (Telecommunication Research Centre) के फाउन्डर डायरेक्टर (Founder Director) हुए और इसी पद से दिसम्बर, 1976 में सेवानिवृत्त हुए। ...और पढ़े

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3. अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग (रजि०) का संक्षिप्त विवरण

परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी (परम पूज्य भाई साहब जी महाराज) ने अपने सद्‌गुरुदेव परम सन्त महात्मा श्री लाल जी महाराज (परम पूज्य दद्दा जी महाराज) द्वारा प्रदान की गई आनन्द-योग पद्धति के सिद्धातों को जनमानस में प्रचार व प्रसार हेतु अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग की स्थापना 1969 में की। आनन्द योग राजयोग का एक परिष्कृत प्रारूप है जिसमें राजयोग में आने वाली कठिनाईयों को दूर करके सहजता पूर्वक अध्यात्म के उच्चतम शिखर तक पहुंचा जा सकता है। आनन्द योग का पवित्र ज्ञान वही प्राचीन ब्रह्म-ज्ञान है जो महर्षि अष्टावक्र जी ने अपने प्रिय शिष्य राजा जनक को प्रदान कर उन्हें जीवन के वास्तविक उद्देश्य ‘‘आत्म-साक्षात्कार रूपी' सत्य का दिग्दर्शन कराया। ...और पढ़े

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4. इति—मार्ग की साधना

पहली बात इन सन्तों ने यह बताई कि परमात्मा ने बड़ी असीम दया-कृपा करके हमें मनुष्य योनि प्रदान की यह उसकी सबसे बड़ी देन है जो हमें प्राप्त है। मनुष्य योनि ऐसी योनि है, जिसमें परमात्मा ने हमें विवेक बुद्धि दी है और कर्म करने की स्वाधीनता दी है। बाकी 84 (चौरासी) लाख योनियाँ, भोग योनियाँ हैं, बड़ी दया-कृपा करके हमें ईश्वर ने यह मौका दिया है और हमें इस अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए। ...और पढ़े

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5. पूजा क्यों करें?

पूजा क्यों और कैसे करें, एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। खासकर आज की इस दुनिया में, जबकि मनुष्य की व्यस्तता बढ़ती जा रही है और वह भूलता जा रहा है कि वह है क्या ? पूजा क्यों करें? एक बार जबलपुर में एक डाक्टर ने प्रश्न किया कि साहब, पूजा से क्या फायदा है? यह तो बेकार (Idler’s) लोगों का काम है। जिनके पास कोई काम नहीं है, माला लेकर बैठें, आधा घण्टा सुबह बर्बाद (waste) करें, आधा घण्टा शाम को बर्बाद करें। लेकिन जिनके पास काम है वे तो काम करें, हम लोग तो डाक्टर हैं, आधा घण्टे में एक दो मरीज बच सकते हैं। अगर पूजा में बैठे तो गया। क्या फायदा ? ईश्वर को किसने देखा है ? क्या पता, है या नहीं ? ...और पढ़े

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6. पूजा कैसे करें ?

हमारे महर्षियों ने हमें बताया कि चाहे आप गृहस्थी हैं या सन्यासी, कोई भी हों आधा घण्टा प्रातः काल अवश्य करना चाहिये और आधा घण्टा सायं काल। यह दो समय निश्चित कर दिये हैं हमारे महर्षियों ने। और हमारे देश में 99 प्रतिशत लोग परमात्मा को मानने वाले हैं, ईश्वर को मानने वाले हैं। और अपने किसी न किसी ढंग से पूजा करते हैं। बहुत लोग आधा घण्टे से ज्यादा करते हैं। यदि हम उनसे पूछें कि इस पूजा से क्या लाभ है तो दो-चार बातें बताने के बाद वह भी खामोश हो जायेंगे। पहली बात यह है कि भाई ईश्वर का नाम लेना अच्छी बात है। हमारे घर में मन्दिर है, हमारे दादाजी पूजा करते थे, हमारे पिताजी करते हैं, हम करते हैं, हमारी देखा-देखी हमारे बच्चे भी करते हैं। ईश्वर-परस्त (God fearing) हैं। अच्छा है, और आप इससे ज्यादा क्या चाहते हैं ? अगर हम यह पूछें कि इससे क्या कोई आन्तरिक लाभ हुआ तो बहुत कम ऐसे लोग हैं जो यह कहेंगे कि हाँ हुआ। तो इन सन्तों ने कहा कि हम एक तरीका बताते हैं। यदि आप इस तरीके से पूजा करेंगे तो आपको विशेष लाभ होगा और उन्होंने ऐसा तरीका बताया जो Universal (यूनीवर्सल) है। ...और पढ़े

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7. साप्ताहिक ध्यान योगाभ्यास सत्संग कार्यक्रम

देश-विदेश के विभिन्न सत्संग केन्द्रों पर संरक्षक के द्वारा मनोनीत सत्संग संचालकों द्वारा प्रत्येक रविवार प्रातःकाल (प्रातः 9 बजे 11 बजे तक) एवं गुरुवार सायंकाल (6.30 बजे से 8 बजे तक) आध्यात्मिक ध्यान योगाभ्यास सत्संग कार्यक्रम आयोजित होते हैं। ...और पढ़े

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8. आध्यात्मिक साधना शिविर-राष्ट्रीय सत्संग कार्यक्रम

अखिल भारतीय सन्तमत सत्संग की परम्परा के सद्‌गुरुओं का मूलभूत सिद्धान्त रहा है कि आन्तरिक ध्यान-योगाभ्यास व उपासना से मानव जीवन में समुचित मानवीय गुणों एवं आध्यात्मिक जीवन का विकास सम्भव है। इसी उद्देश्यानुकूल सद्‌गुरुओं व सत्संग संचालक साधकों द्वारा साप्ताहिक, मासिक शान्ति पाठ के अतिरिक्त प्रत्येक माह में आध्यात्मिक साधना शिविर-राष्ट्रीय सत्संग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। ये कार्यक्रम मुख्यतः तीन भागों में सम्पन्न होते हैं। ...और पढ़े

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9. संक्षिप्त जीवन परिचय संरक्षक, अखिल भारतीय संतमत सत्संग (रजि.)

आधुनिक काल में आनन्द-योग के वर्तमान पथ-प्रदर्शक परम सन्त महात्मा श्री सुरेश जी (परम पूज्य भैया जी) का शुभ तपोमय गृहस्थ सन्त एवं संस्थापक अखिल भारतीय संतमत सत्संग परम सन्त महात्मा श्री यशपाल जी महाराज एवं परम सन्त पूज्या श्रीमती रूपवती देवी जी (पूज्या माता जी) के संतान के रूप में 17 अगस्त, 1953 को जबलपुर (म.प्र.)में हुआ । प्रारंभिक व अभियान्त्रिकी (Engineering) शिक्षा प्राप्त कर आप इन्डियन टेलीफोन इन्डस्ट्रीज (ITI) रायबरेली (उ.प्र.) में कार्यरत हुए । आप अपनी कर्तव्य निष्ठा अध्यवसाय व दक्षता के फलस्वरूप वहाँ पर Safety Engineering का कार्यभार संभालते रहे । ये कार्य अत्यन्त कुशलता एवं सर्तकता के थे जो आपने प्रशंसनीय रूप से संपन्न किये। अपने सेवा काल के शेष 15 वर्ष इन्डियन टेलिफोन इन्डस्ट्री में दिल्ली समन्वय कार्यालय (ITI Limited Delhi Co-Ordination Office) में प्रबन्धक (Manager) का कार्यभार कुशलतापूर्वक संपन्न करके 31 अगस्त 2011 को आप सेवा-निवृत हुए । ...और पढ़े

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10. आनन्द योग - ध्यान-योगाभ्यास से लाभः

जब हम अपने जीवन व चेतना को अन्तर्मुखी करके अपने अन्दर की ओर चलना प्रारम्भ कर देते हैं तो शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के आवरणों को भेद कर आत्म - साक्षात्कार की मंजिल तक पहुंच जाते हैं । तभी अक्षय व शाश्वत आनंद की प्राप्ति होती है। यही मानव-जीवन का चरम लक्ष्य एवं सर्व श्रेष्ठ उपलब्धि है। ...और पढ़े

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11. प्रार्थना

हे दीनबन्धु दयालु भगवन दुःख भय संशय हरण । जग मोह जाल कराल है आया प्रभू तेरी शरण ।। मैं पतित तुम पतित पावन, दास मैं तुम नाथ हो। दिन रात सोते जागते प्रभु तुम हमारे साथ हो ।। ...और पढ़े

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