"मैं तो अब कुछ ही क्षणों का महेमान हूँ श्रद्धा की माँ!" कहते हुए सुन्दरपाल की आवाज लड़खड़ा गई| "ऐसी बात मुँह से नहीं निकालते श्रद्धा के बापू |" माया कुर्सी से उठकर अपने पति के समीप चारपाई पर ही आ बैठी | उसे अपने पति के बचने की आशा कम ही थी, तो भी वह आनेवाले भयंकर पल की कल्पना से स्वयं को बचाने का प्रयास कर रही थी | सुन्दरपाल पिछ्ले तीन महीनों से चारपाई पर पड़े थे और अब तो डाक्टरों ने भी उनके बचने की आशा छोड़ ही दी थी |
Full Novel
पराभव - भाग 1
पराभव मधुदीप भाग - एक "मैं तो अब कुछ ही क्षणों का महेमान हूँ श्रद्धा की माँ!" कहते हुए की आवाज लड़खड़ा गई| "ऐसी बात मुँह से नहीं निकालते श्रद्धा के बापू |" माया कुर्सी से उठकर अपने पति के समीप चारपाई पर ही आ बैठी | उसे अपने पति के बचने की आशा कम ही थी, तो भी वह आनेवाले भयंकर पल की कल्पना से स्वयं को बचाने का प्रयास कर रही थी | सुन्दरपाल पिछ्ले तीन महीनों से चारपाई पर पड़े थे और अब तो डाक्टरों ने भी उनके बचने की आशा छोड़ ही दी थी | ...और पढ़े
पराभव - भाग 2
पराभव मधुदीप भाग - दो गाँव में आदर्श विद्या मन्दिर की स्थापना हुए दो वर्ष व्यतीत हो चुके थे इन दो वार्षों में श्रद्धा बाबू और मास्टर जसवन्त सिंह के अथक प्रयास से विद्यालय की ख्याति दूर-दूर के गाँवों तक पहुँच गई थी | इन दोनों के अतिरिक्ति मनोरमा तो प्रारम्भ से ही इस विद्यालय में पढ़ाने का काम कर रही थी, अब बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विद्यालय में एक अध्यापक और एक अध्यापिका की नियुक्ति और कर ली गई थी | श्रद्धा बाबू गाँव की बालिकाओं की शिक्षा पर अधिक जोर देता था | उसका ...और पढ़े
पराभव - भाग 3
पराभव मधुदीप भाग - तीन श्रद्धा बाबू की स्वीकृति लेकर उसकी माँ मास्टर जसवन्त सिंह के पास चल दी मास्टरजी को क्या देरी थी, उन्होंने उसी समय पण्डित बुलाकर अगले माह में ही विवाह का मुहूर्त निकलवा लिया | दोनों ओर से विवाह की तैयारियाँ होने लगीं | यधपि मास्टरजी विवाह में लेन-देन के पक्ष में नहीं थे तो भी वे अपनी हैसियत के अनुसार बेटी को सब कुछ दे देना चाहते थे | विवाह से बीस दिन पूर्व वे मनोरमा को लेकर अपने गाँव चले गए थे | वे अपनी बेटी का विवाह अपने पूर्वजों के घर से ...और पढ़े
पराभव - भाग 4
पराभव मधुदीप भाग - चार रविवार का अवकाश था तो भी मास्टर जसवन्त सिंह जी और श्रद्धा बाबू विद्यालय कार्यालय में बैठे हुए बातें कर रहे थे | स्टाफ का कोई अन्य अध्यापक या अध्यापिका वहाँ उपस्थित न थी | विद्यालय की बातों से हटकर बातों का प्रवाह व्यक्तिगत जीवन पर आ गया था | "श्रद्धा बेटे, मनोरमा के विवाह के उपरान्त एक बड़ा बोझ मेरे सिर से उतर गया है | जीवन में यही एक इच्छा थी कि बेटी को उपयुक्त वर के हाथों में सौंपकर उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाऊँ | भगवान ने मेरी सुन ली जो ...और पढ़े
पराभव - भाग 5
पराभव मधुदीप भाग - पाँच समय किसी तीव्र गति रेलगाड़ी की भाँती तेजी से भागता जा रहा था | बाबू के विवाह को पाँच वर्ष व्यतीत हो चुके थे | सब सुख-सुविधाओं से पूर्ण घर भी बिना बच्चों की किलकारियों के सूना-सूना-सा लगता था | मनोरमा की गोद खाली थी और श्रद्धा बाबू के कान बच्चे की तुतलाहट भरी आवाज सुनने को तरस रहे थे | उसके जीवन में किसी तरह का अभाव न था | विद्यालय दिन-प्रतिदिन प्रगति कर रहा था | आर्य समाज संस्थान और श्रद्धा बाबू के सहयोग और परिश्रम का ही फल था जो की ...और पढ़े
पराभव - भाग 6
पराभव मधुदीप भाग - छह पास के गाँव में प्रतिवर्ष चैत्र की अष्टमी को देवी का मेला लगता था तीन-चार दिन पूर्व से ही मेले की तैयारियाँ प्रारम्भ हो जाती थीं | गाँव के लोगों के लिए यह मेला पशुओं के क्रय-विक्रय का भी अच्छा केन्द्र था | श्रद्धालु लोग नवरात्रों में प्रतिदिन ही देवी के दर्शन करने वहाँ पहुँचते थे और अष्टमी के दिन तो उस गाँव में चारों ओर आदमियों की भीड़ ही भीड़ दिखाई देती थी | प्रतिवर्ष की भाँती इस वर्ष भी मेले की तैयारियाँ प्रारम्भ हो गई थीं | दो दिन से लगातार श्रद्धालु ...और पढ़े
पराभव - भाग 7
पराभव मधुदीप भाग - सात दोपहर के दो बजे थे | मनोरमा घर के कार्य से निबटकर अन्दर के में बैठी सिलाई कर रही थी | उसकी सास बाहर के कमरे में बैठी किसी से बातें कर रही थी | उन दोनों की आवाज मनोरमा तक भी पहुँच रही थी मगर दुसरे व्यक्ति की आवाज से वह परिचित न थी | थोड़ी देर के बाद सास ने मनोरमा को आवाज दी तो वह सिलाई का काम छोड़कर बाहर की ओर चल दी | मनोरमा ने बाहर के कमरे में आकर देखा | उसकी सास एक भगवा वस्त्रधारी साधू से ...और पढ़े
पराभव - भाग 8
पराभव मधुदीप भाग - आठ श्रद्धा बाबू का एक मित्र रंजन शहर में रहता था | हाई-स्कूल की पढ़ाई मध्य कस्बे में वे दोनों होस्टल के एक ही कमरे में रहते थे | विचारों की समानता ने दोनों को बहुत ही समीप ला दिया था | श्रद्धा बाबू ने हाई-स्कूल की शिक्षा के बाद अध्यापक के प्रशिक्षण हेतु प्रवेश ले लिया था और रंजन आगे की पढ़ाई के लिए कॉलिज में प्रविष्ट हो गया था | श्रद्धा बाबू जब भी विद्यालय का कोई सामान खरीदने या अन्य किसी कार्य से शहर जाता तो रंजन से मिले बिना न आता ...और पढ़े
पराभव - भाग 9
पराभव मधुदीप भाग - नौ सन्ध्या के छह बज रहे थे | मनोरमा अभी-अभी खाना बनाकर चुकी थी | जसवन्त सिंह जी अभी खेत से नहीं लौटे थे | यधपि मास्टरजी श्रद्धा बाबू के गाँव से लौटे तो उनका उद्देश्य यहाँ पर कोई कार्य न करके पूर्ण आराम करने का था, मगर जिस मनुष्य ने अपने सारे जीवन में महेनत की हो, वह पूर्णतया निष्क्रिय नहीं बैठ सकता | जसवन्त सिंह जी भी यहाँ आकर अपनी खेती में लग गए थे | जमीन अधिक न थी तो भी उनके गुजारे योग्य प्रबन्ध उससे हो ही जाता था | "मनोरमा ...और पढ़े
पराभव - भाग 10
पराभव मधुदीप भाग - दस विद्यालय की अन्तिम घंटी चल रही थी | श्रद्धा बाबू विद्यालय के छात्रों द्वारा गई क्यारियों को देख रहा था | कुछ छात्र उस क्यारियों में पानी देने का कार्य कर रहे थे | दो-तीन और अध्यापक भी वहाँ खड़े थे | उनकी कक्षा की छात्र-छात्राएँ भी खेती-बाड़ी की घंटी होने के कारण क्यारियों में कार्य कर रहे थे | "भूमि चाहे कितनी ही उपजाऊ क्यों न हो, यदि उसमें अच्छा बिज न डाला जाए तो फसल उत्पन्न नहीं हो सकती |" एक अन्य अध्यापक अपनी कक्षा के छात्र-छात्राओं को समझा रहे थे | ...और पढ़े
पराभव - भाग 11
पराभव मधुदीप भाग - ग्यारह भास्कर क्लीनिक में बैठा हुआ श्रद्धा बाबू बहुत ही घबरा रहा था | रंजन साथ था | पिछ्ले छह महीने से डॉक्टर भास्कर द्वारा उसका इलाज किया जा रहा था | जब श्रद्धा बाबू प्रथम बार रंजन के साथ इस क्लीनिक में आया था तो स्वयं में बहुत ही लज्जित महसूस कर रहा था | उस समय सारी बातें अपने मित्र से कहते हुए वह शर्म से मर ही गया था | कितने दुख और घबराहट से वह कह पाया था कि उसे अपने पौरुष पर शक है और वह अपनी जाँच करवाना चाहता ...और पढ़े
पराभव - भाग 12
पराभव मधुदीप भाग - बारह श्रद्धा बाबू घर में पहुँचा तो वहाँ एक कोहराम-सा मचा हुआ था | बर्तनों इधर-उधर फेंके जाने, माँ के चिल्लाने और मनोरमा के सिसकने का मिश्रित स्वर सुनाई पड़ रहा था | वह स्वयं में ही बहुत अधिक दुखी था और घर लौटने पर इस क्लेश ने उसे बिलकुल ही खिन्न कर दिया | उसका दिल चाह रहा था कि वह इस समय घर न जाकर वापस कहीं लौट जाए मगर फिर भी वह शिथिल कदमों से चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गया | श्रद्धा बाबू की मानसिक शान्ति समाप्त हो चुकी थी ...और पढ़े
पराभव - भाग 13
पराभव मधुदीप भाग - तेरह दो दिन पश्चात् ही श्रद्धा बाबू अपनी पत्नी मनोरमा सहित शहर पहुँच गया | समय गाड़ी स्टेशन पर पहुँची, उस समय दोपहर के दो बज रहे थे | श्रद्धा बाबू ने रंजन को अपने शहर आने की सुचना न दी थी, इसलिए उसका घर पर मिलने का प्रश्न ही न था | रंजन के माँ-बाप गाँव में रहते थे और शादी उसने अभी तक की ही नहीं थी | शहर में वह अकेला ही रहता था और श्रद्धा बाबू जानते थे कि इस समय घर पर ताला बन्द होगा, इसलिए वह अपनी पत्नी सहित ...और पढ़े
पराभव - भाग 14
पराभव मधुदीप भाग - चौदह दो मास बाद जब मनोरमा ने अपनी सास को बताया कि वह गर्भवती है सुनकर उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने आसमान से चाँद तोड़कर उसकी झोली में डाल दिया हो | छह वर्ष बाद आखिर भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली थी | खुशी के कारण उसके चेहरे की झुर्रियाँ और भी अधिक गहरी हो गई | "क्या सच कह रही है बहू तू?" अपनी खुशी को दबाते हुए वह पूछ उठी | "हाँ माँजी |" मनोरमा सिर्फ इतना ही कह सकी | "है प्रभु! आखिर तुमने मेरी सुन ही ली |" कहते ...और पढ़े
पराभव - भाग 15
पराभव मधुदीप भाग - पन्द्रह "आपको मालूम है...आज हमारे मुन्ना की तीसरी वर्षगाँठ है |" मनोरमा ने कृष्ण को में लेते हुए कहा | "होगी!" उपेक्षा से श्रद्धा बाबू ने कहा | "आप आज मुन्ना को क्या लाकर देंगे?" "तुम ही कुछ लाकर दे दो |" "मैं ही क्यों?" "तुम्हारा इस पर अधिकार है |" "और तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है?" "मेरा अधिकार!" कुछ सोचते हुए श्रद्धा बाबू ने कहा, "तुम्हीं बताओ, मेरा इस पर क्या अधिकार है?" "तुम इसके पिता हो |" "लेकिन असली नहीं |" "आपको ऐसी बातें मुन्ना के सामने नहीं कहनी चाहिए | अब वह ...और पढ़े
पराभव - भाग 16
पराभव मधुदीप भाग - सोलह श्रद्धा बाबू को देखकर गाँव के लोग आश्चर्य करते थे | एक श्रद्धा बाबू था, जिस पर लोग गर्व करते थे और जिससे मिलना और बातें करना वे गौरव समझते थे | एक शराबी श्रद्धा बाबू यह था जो कि आम आदमी से भी बहुत अधिक बदतर हो गया था | किसी को भी इसका कारण समझ में नहीं आ रहा था | कोई भी तो नहीं जानता था की श्रद्धा बाबू जैसा आदर्श व्यक्ति क्यों अपनी राह से भटक गया है | उससे इर्ष्या करने वाले अब कहने लगे थे, "बड़ा आया था ...और पढ़े
पराभव - भाग 17
पराभव मधुदीप भाग - सत्रह मनोरमा चारों ओर से निराश हो चुकी थी | हारकर उसने शहर से रंजन बुलाने के लिए पत्र लिखा था | रंजन को इस गाँव में आए चार वर्ष से भी अधिक समय हो गया था | मनोरमा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के बाद वह स्वयं भी अपने को दोषी अनुभव करने लगा था | मित्रता के कारण वह श्रद्धा बाबू की बात को ठुकरा नहीं सका था मगर अपने संस्कारों के कारण वह अपने आपको पतित महसूस करने लगा था | थोड़े दिन बाद ही जब उसका ट्रांसफर एक दूर के शहर ...और पढ़े
पराभव - भाग 18
पराभव मधुदीप भाग - अठारह "आज किसके लिए पकवान बना रही हो?" रसोई के सामने खड़े होकर श्रद्धा बाबू नशे के कारण अपनी लड़खड़ाती आवाज में कहा | "आपके लिए!" किसी विवाद से बचने के लिए मनोरमा ने हल्की-सी मुसकान के साथ कहा | "मेरे लिए कभी तुमने पकवान बनाए हैं क्या?" विवाद करने वाला झगड़े का कोई न कोई कारण खोज ही लेते है, "हरामजादी, क्या इस घर में भी तेरे यार आने लगे |" श्रद्धा बाबू ने चीख कर कहा | "क्या बकते हो, जरा धीरे बोलो |" क्रोध को अन्दर ही अन्दर पीते हुए भी मनोरमा ...और पढ़े
पराभव - भाग 19
पराभव मधुदीप भाग - उन्नीस श्रद्धा बाबू रात को घर नहीं आया था | वह पहला अवसर था, जव गाँव में सारी रात घर से बाहर रहा था | रात को उसके घर आने में देर तो प्रायः हो ही जाया करती थी लेकिन किसी न किसी समय वह घर पहुँच अवश्य जाता था | रात ग्यारह बजे तक मनोरमा पति के लौटने की प्रतीक्षा करती रही | सुबह से ही उसने खाना नहीं खाया था | दोपहर का बना खाना पड़ा-पड़ा बासी हो रहा था | शाम को तो वह चूल्हा जलाने के लिए उठ भी नहीं पाई ...और पढ़े
पराभव - भाग 20
पराभव मधुदीप भाग - बीस मनोरमा एक निश्चय करके घर से निकल तो आई थी मगर उसका मन भय डर रहा था | वह स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर रही थी | पति कैसा भी था, उसके साथ रहते हुए उसने स्वयं को इतना असुरक्षित तो कभी नहीं समझा था | आज वह स्वयं को बहुत ही कमजोर महसूस कर रही थी | बच्चे रास्ते पर एक हाथ में ट्रंक लिए और दुसरे से कृष्ण का हाथ पकड़े वह तेजी से बढ़ी जा रही थी | उसने समय का अनुमान लगाया, लगभग तीन बजे थे | गाड़ी साढ़े तीन ...और पढ़े
पराभव - भाग 21
पराभव मधुदीप भाग - इक्कीस श्रद्धा बाबू थका-सा पलंग पर लेटा हुआ सारी स्थिति पर विचार कर रहा था आज पुनः एकबार उसकी दृष्टि सामने दिवार पर टंगे स्वामी दयानन्द के चित्र पर जमी हुई थी | एक दिन उन्हीं की प्रेरणा से तो उसने नियोग विधि द्वारा सन्तान प्राप्ति का निश्चय किया था | उस दिन उसने सोचा था कि यह सब कुछ उचित और धर्म के अनुकूल है | उसने इस विधि को आदर्श समझकर ही अपनाया था | आज स्थिति बदल चुकी थी | उसने उस आदर्श को अपना तो लिया था मगर वह उसे सहन ...और पढ़े