मुहल्ले में घूमने-फिरने के बाद रासमणि अपनी नातिन के साथ घर लौट रही थी। गाँव की सड़क कम चौड़ी थी, उस सड़क के एक ओर बंधा पड़ा मेमना (बकरी का बच्चा) सो रहा था। उसे देखते ही बुढ़िया नातिन को चेतावनी देने के स्वर में सावधान करती हुई बोली ‘ऐ लड़की, कहीं आँख मींचकर चलती हुई मेमने की रस्सी लांधने की मूर्खता न कर बैठना। अरी, यह क्या, लांध गयी. तू भी हरामजादी बिना ध्यान दिये चल देती है। क्या तुझे रास्ते में बंधी बकरी दिखाई नहीं देती?’ नातिन बोली, ‘दादी, बकरी तो सो रही है।’ ‘तो क्या, सो रही बकरी की रस्सी टापने में दोष नहीं लगता? तुझे क्या इतना भी मालूम नहीं कि मंगल और शनि के दिन रस्सी लांधने का परिणाम अनर्थ होता है।’
Full Novel
ब्राह्मण की बेटी - 1
मुहल्ले में घूमने-फिरने के बाद रासमणि अपनी नातिन के साथ घर लौट रही थी। गाँव की सड़क कम चौड़ी उस सड़क के एक ओर बंधा पड़ा मेमना (बकरी का बच्चा) सो रहा था। उसे देखते ही बुढ़िया नातिन को चेतावनी देने के स्वर में सावधान करती हुई बोली ‘ऐ लड़की, कहीं आँख मींचकर चलती हुई मेमने की रस्सी लांधने की मूर्खता न कर बैठना। अरी, यह क्या, लांध गयी. तू भी हरामजादी बिना ध्यान दिये चल देती है। क्या तुझे रास्ते में बंधी बकरी दिखाई नहीं देती?’ नातिन बोली, ‘दादी, बकरी तो सो रही है।’ ‘तो क्या, सो रही बकरी की रस्सी टापने में दोष नहीं लगता? तुझे क्या इतना भी मालूम नहीं कि मंगल और शनि के दिन रस्सी लांधने का परिणाम अनर्थ होता है।’ ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 2
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 2 ठाकुर-घर से बाहर निकली जगदधात्री दालान में बैठकर कुछ सीने-परोने में लड़की को कुछ देर तक देखती रही और फिर बोली, “बिटिया, सवेरे-सवेरे यह क्या सी रही हो? दोपहर चढ आयी है, समय की सुध ही नहीं, कब नहाओ-धोओगी, पूजा-पाठ करोगी और फिर कब खाओ-पिओगी? अभी परसों तो तुमने रोग-निवृत होने पर खाना प्रारंभ किया है। इतना अधिक श्रम करोगी, तो दोबारा ज्वर से पीड़ित हो सकती हो।” धागे को दांत से काटकर संध्या बोली, “माँ, अभी बाबू जी तो आये नहीं।” “जानती हूँ, मुफ्त में लोगों का इलाज करने वाले ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 3
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 3 जगदधात्री और संध्या के सामने रासमणि जिस गोलोक चटर्जी की प्रशंसा गीत गाते थकती न थी और जिसे साक्षात धर्मावतार और न्यायमूर्ति बताने में गौरव का अनुभव कर रही थी, वह प्रातःकालीन पूजा-पाठ से निबटकर बैठक में आ गये हैं और नौकर द्वारा रखे हुक्के को गु़ड़गु़ड़ा रहे हैं। आँख मीचकर तमाखू पीते तोंदिल बाबू ने भीतर द्वारा के खुलने की आवाज सुनी, तो बोले, “कौन?” ओट मे खड़ी महिला बोली, “बिना खाये-पिये क्यो चले आये हो? क्या मेरी किसी गलती पर रुष्ट हो?” गोलोक बोले, “क्रोध और अभिमान के दिन ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 4
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 4 संध्या का स्वास्थ्य पिछले कुछ दिनों से बिगड़ता जा रहा है, के उपचार से लाभ होना, तो दूर रहा, उलटे हानि हो रही है। जगदधात्री डॉक्टर विपिन से सम्पर्क करने को कहती और संध्या असहमति में झगड़ा करती। आज शाम संध्या द्वारा बनाये साबूदाना को अनमने भाव से निगल गयी; क्योंकि यह पथ्य उसे कभी रुचिकर नहीं रहा, किन्तु आज माँ उपालम्भ से बचने के लिए वह न चाहते हुए भी निगल गयी। वह इस तथ्य से भली प्रकार परिचित थी कि उसकी माँ का सारा ध्यान इस ओर टिका होगा ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 5
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 5 लोगों के मुक्त इलाज के प्रति समर्पित प्रयिनाथ प्रभात होते ही हाथ में डॉक्टरी की किताबें और दूसरे हाथ में दवाइयों का बक्सा थामे निकल पड़ते थे। आज उनके पीछे चलती हुई दूले की विधवा स्त्री खुशामद करती हुई चल रही थी। वह बोली, “महाराज! आपर ठुकरा दोगे, तो हम बेंसहारा और असहाय लोग किधर जायेंगे? आपके सिवाय हमारा और कौन है?” बात करने के लिए फुरसत न होने से प्रियनाथ चलते-चलते बोल, “नहीं, अब तुम लोग यहाँ नहीं रह सकते। मैं जाने गया हूँ कि तुम लोग अपनी सीमा में ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 6
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 6 संध्या के अन्धकार के गहरा जाने पर भी अरुण ने अपने में रोशनी नहीं की थी। वह अपनी स्टडी टेबल पर पैर रखे छत की ओर देखे जा रहा था। मेज पर खुली पड़ी पुस्तक को देखकर लगता है कि अरुण इस पुस्तक को पढ़ रहा होगा। इसके साथ पढ़ने की इच्छा बनी रहने के कारण उसने पुस्तक को बन्द नहीं किया होगा। वास्तव में, संध्या के घर से लौटने के दिन से ही वह काम पर नहीं जा सका था। उसके दिमाग मे एक बी बात ने हलचल मचा रखी ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 7
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 7 एक दिन तालाब से नहाकर घर लौटती जगदधात्री की रहा में रासमणि से भेंट हो गयी। रासमणि का चेहरा इस प्रकार उदास और बुझा हुआ था, मानो वह अभी-अभी कही से पिटकर आयी हो। समीप आकर आँसू बहाती हुई रासमणि रुंधे कण्ठ से बोली, “जगदधानी रानी, बड़ी भाग्यशाली हो और तुम्हारी लड़की भी लगता है कि पिछले जन्म मे बहुत पुण्य कर्म किये है।” कुछ समझ पाती और लड़की के उल्लेख से परेशान हुई जगदधात्री बोली, “मौसी, कुछ साफ-साफ बता, तू कहना क्या चाहती है? तुम्हारी यह पहेली-जैसी बातें मेरी समझ ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 8
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 8 पूजा पाठ तथा सात्विक जलपान से निवृत्त होकर नीचे उत्तर आये गोलोक चटर्जी किसी कार्यवश बाहर निकल ही रहे थे कि कुछ याद आ जाने के कारण लौट आये और एक बरामदे से दूसरे बरामदे में घूमने लगे। अचानक रुककर ज्ञानदा को मीठी डांट लगाते हुए चिन्तित स्वर में बोले, “छोटी मालकिन, तुम्हें कितनी बार समझाऊंगा कि स्वास्थ्य की चिन्ता सबसे पहले। ऐसा भला कौन-सा काम है, जिसे निपटना जरूरी हो गया है?” हंसिया से तरकारी काटती पूर्ववत् अपने काम में जूटी रही, मानो उसने चटर्जी के खडा़ंऊं की खट-खट को ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 9
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 9 ज्ञानदा ने कमरे में आकर एक बार भीतर से दरवाजा बन्द तो फिर खोली ही नहीं। दासी और बूढ़ा ससुर विमूढ़ बनकर दोपहर तक बैठे रहे। वे अपनी बहू की इस आनाकानी का कारण समझ ही नहीं पाये। फिर भी, उन्हे इस तरह खाली लौट जाना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने दरवाजे के बाहर से काफी गन्दी और अशोभनीय बातें भी कही, झूठ आरोप भी लगाये। ज्ञानदा ने सब कुछ सुना, किन्तु किसी भी बात का उत्तर न दिया। इतना ही नहीं, ज्ञानदा ने अपने रोने की आवाज भी बाहर नहीं आने ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 10
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 10 प्रतिष्ठित एवं कुलीन जयराम मुखर्जी के धेवते वीरचन्द्र बनर्जी के साथ का विवाह होना स्थिर हो गया है। कन्यापक्ष के परिवार में वरपक्ष से लोगों के स्वागत की जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं। अगहन महीने का शुभ मुहूर्त निकला है। बहूत समय बाद जगदधात्री के घर में आनन्दोत्सव हो रहा है, इसलिए उसका उत्साह देखते ही बनता है। वह मिठाई बनाने में लगे हलवाइयों की देख-रेख कर रही है, तो उसकी बूढ़ी सास कालीतारा माला जप रही है। बुढ़िया ने भगवा रंग के वस्त्र पहन रखे है। बुढ़िया बहू से ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 11
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 11 जाड़े का मौसम होने से पहर रात बीतते ही गाँव में छा गया था। ज्ञानदा अपने कमरे में टिमटिमाते दीये की रोशनी में धरती पर बैठी हुई थी। साथ बैठी रासमणि अपना हाथ हिलाकर ज्ञानदा को समझा-बूझा रही थी, “बेटी, मेरा कहना मान, दवा पी ले, न पीने की हठ मत कर। दवा पीने से तू फिर से पहले जैसी बन जाएगी, किसी को भनक तक न पड़ेगी।” आँसू बहाती ज्ञानदा रुंधे कण्ठ से बोली, “जीजी, तुम भी अजीब हो, एक पाप के बाद दूसरा पाप करने को कह रही हो। ...और पढ़े
ब्राह्मण की बेटी - 12 - अंतिम भाग
ब्राह्मण की बेटी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय प्रकरण - 12 अगहन महीने में आज के दिन बाद बहुत समय तक विवाह शुभ मुहूर्त न निकलने के कारण आज दिन-भर चारों ओर शहनाई का मधुर नाद कानों में पड़कर आनन्दित कर रहा है। लगता है कि इस छोटे से गाँव के चार-पाँच घरों में विवाह का आयोजन है। संध्या का विवाह भी आज ही हो रहा है। अरुण अपनी जन्मभूमि और अपने मकान को छोड़ने के इरादे को अमल में नहीं ला सका है और पहले की तरह ही वह अपने काम-धन्धे पर भी जाने लगा है। उसके बाहरी जीवन में किसी ...और पढ़े