प्रेमचंद की बाल कहानियाँ

(36)
  • 184.9k
  • 31
  • 93.6k

रेमचंद हिंदी के उन महान्‌ कथाकारों में थे, जिन्होंने बडों के लिए विपुल कथा-संसार की रचना के साथ-साथ विशेष रूप से बच्चों के लिए भी लिखा। उस समय एक ओर स्वतंत्रता संग्राम अपने पूरे जोरों पर था और देश के बच्चे-बच्चे में राष्ट्रीयता के भाव जगाए जा रहे थे। दूसरी ओर अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी संस्कृति का इतना प्रभाव फैल गया था कि भारतीय समजा अजीब स्थिति में फंसा हुआ था। एक ओर स्वदेशी की भावना, हमारे नैतिक मूल्यों और परंपरा से चली आ रही सभ्यता और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न था, तो दूसरी तरफ विश्व में हो रही विज्ञान की प्रगति और नयी-नयी खोजों के प्रति भारतीयों में जागृति आ रही थी। पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव का विरोध और स्वदेशी की भावना स्वतंत्रता आंदोलन के नारे बन चुके थे। महात्मा गांधी का प्रभाव, खादी, विदेशी कपडों की होली - ये सभी उन दिनों चर्चा के विषय थे। भारतीय और पाश्चात्य मूल्यों का संघर्ष, भारतीय समाज के लिए विचित्र समस्या बन गया था। बच्चों के लिए जो पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही थीं जैसे ‘बालसखा’, ‘वानर’ आदि, वे सभी बीच का रास्ता निकालकर, बच्चों को ऐसी रचनाएं पढ़ने को दे रही थीं, जो बच्चों के बुनियादी मूल्यों की रक्षाकरते हुए उन्हें अपने समय के प्रति जागरूक और जानकार भी बना रही थीं। उस समय हिंदी के अनेक वरिष्ठ कवि और लेखक बच्चों के लिए भी रचनाएं लिख रहे थे और उन्हें राष्ट्र-भावना, स्वदेशी और भारतीय नैतिक मूल्यों आदि के संदेश के साथ विज्ञान और नयी दुनिया से भी परिचित करा रहे थे। प्रेमचंद ने भी उन्हीं दिनों जो रचनाएं बच्चों के लिए लिखीं वे उस समय के बच्चों में नैतिकता, साहस, स्वतंत्र-विचार, अभिव्यक्ति और आत्मरक्षा की भावना जगाने वाली सिद्ध हुई।

Full Novel

1

भाग-१- प्रेमचंद की बाल कहानियाँ

Part-1 - Premchand ki Bal Kahaniya ...और पढ़े

2

भाग-२- प्रेमचंद की बाल कहानियाँ

Part-2 - Premchand ki Bal Kahaniya ...और पढ़े

3

भाग-३- प्रेमचंद की बाल कहानियाँ

Part-3 - Premchand ki Bal Kahaniya ...और पढ़े

4

भाग-४- प्रेमचंद की बाल कहानियाँ

Part-4 - Premchand ki Bal Kahaniya ...और पढ़े

5

भाग-५- प्रेमचंद की बाल कहानियाँ

Part-5 - Premchand ki Bal Kahaniya ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प