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Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Magazine in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cultures....Read More


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  • अंग्रेजी शिखना जरुरी नही

    अंग्रजी भाषा शिखाने के पीछे जो उद्देश्य पुराने लोगो का आज़ादी से पहले था। उस उद्द...

  • वो काली अंधेरी रात

    पूर्णिमा ने देखा कि तेज धारा में बहती हुई लकड़ी कुछ दूर तक तो जलती रही, फिर पानी...

  • वो दलित लड़की

    दलित क्यों हैं, क्यों बने और कितने अत्याचार पीढ़ी दर पीढ़ी सहते रहे मौका मिलने पर...

अपनी तो ये आदत है By sushil yadav

हमारी जुबान को एक धमकी में कोई भी, किसी भी वक्त बंद करवा सकता था
एक बार बंद हो जाने के बाद हमारी जुबान ,बंद करने वाले ‘आका’ की हो जाती थी आका जब तक न चाहे नही खुलती थी
सैकड़...

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ये तेरी सरकार है पगले ..... By sushil yadav

मुझे ये भी लगा कि, अब ज्यादा भाव खाने से बात बिगडनी शुरू हो जायेगी मेरी स्तिथि यूँ थी कि ग्राहक को भाव पसंद न आये तो खिसकने की तैय्यारी कर लेता है तब दूकानवाले को उन्हें उनकी शर...

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अंग्रेजी शिखना जरुरी नही By Sultan Singh

अंग्रजी भाषा शिखाने के पीछे जो उद्देश्य पुराने लोगो का आज़ादी से पहले था। उस उद्देश्य को नई पीढ़ीने बर्बाद कर दिया और तो ओर आनेवाली पीढ़ी को भी अंग्रेजी के सामने लाचार बनाकर खड़ा कर दि...

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भाषा का ज्ञान माँ के गर्भ से आरम्भ By S Sinha

जब शिशु अपनी माँ के गर्भ में ही होता है , वह भाषा का प्रारम्भिक ज्ञान गर्भ से ही सीखना शुरू कर देता है। इस आलेख में इसी संबंध में कुछ प्रकाश डालने का एक प्रयास किया गया है।

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आवारा कुत्तों का रोड शो ..... By sushil yadav

हमारा प्रयास होना चाहिए कि रोड-शो के अंजाम को रूबरू देखें शामिल होने वालों की कद-काठी पहचाने अगर लगे कि इसमें कोई गुडा- तत्व,उठाईगिरी करने वाले ,मुनाफाखोर ,घपलेबाज ठेकेदार ,नीयत...

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टोपी आम आदमी की.... By sushil yadav

सदर बाजार के एक और मारवाड़ी जिनका सोने-चांदी का बिजनेस था,पुरोहित के नक्शे –कदम में टोपी पहना करते थे उनकी खासियत थी कि जब भी बड़ा ग्राहक आये, वे टोपी उतार के रख देते थे

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बॉडी लैंगुएज By S Sinha

सभी बातें शब्दों में बोली जाएँ यह आवश्यक नहीं है. बहुत बार हम अपनी बात दूसरों तक शरीर के हव भाव या हरकत से पहुँचा सकते हैं. इस लेख में शरीर के भिन्न अंगों द्वारा दिए गए संवाद को बत...

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आइये ‘सरकार’ को हम बाँट लें By sushil yadav

नहीं बाटने वाली चीजे भी भगवान ने बनाई है वो है ‘उपर की आमदनी’ इस आद्रिश आमदनी को लोग सीधे –सीधे देख तो नहीं पाते, केवल अनुमान लगाते रहते हैं रहन-सहन में एकाएक बदलाव, हाव-भाव में रई...

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मन की पीड़ा By S Sinha

यह एक आलेख है मन की पीड़ा पर. हर किसी के जीवन में कोई न कोई ऐसी घटना होती है जिससे मनुष्य को चोट पहुँचती है। शारीरिक चोट का उपचार तो हम डॉक्टर के यहाँ जा कर करा सकते हैं। पर अगर चोट...

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आत्मा-राम की सलाह ..... By sushil yadav

ज़रा सी उनकी छींक –जुकाम में,पार्टी के दफ्तर में ताला जड जाता था पार्टी के लोग व्याकुल हो जाते थे मन्दिरों में प्रार्थनाएँ ,घरों में दुआओं का दौर शुरू हो जाता था

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पहली सी मुहब्बत, मेरे महबूब न मांग ........... By sushil yadav

मैंने कहा भाई गनपत ,साफ-साफ कहो ,पहेलियाँ मत बुझाओ वैसे पिछले महीने भर से इलेक्शन वाली पहेलियाँ बुझा-बुझा के आपने हमारा दिमाग खाली कर लिया है सीधे-सीधे बताओ तो सही बात क्या है...

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वो काली अंधेरी रात By Ved Prakash Tyagi

पूर्णिमा ने देखा कि तेज धारा में बहती हुई लकड़ी कुछ दूर तक तो जलती रही, फिर पानी में डूब कर अदृशय हो गयी। सक्षम डूब गया, सक्षम डूब गया इस तरह चिल्ला कर वह गंगा में कूदने की कोशिश...

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सस्पेंडेड थानेदार का इंटरव्यू By sushil yadav

वो थानेदार इंटरव्यू देने के नाम पे बहुत काइयां है बड़े से बड़ा कॉड हो जाए वो मुह नई खोलता ऐसे कारनामो में भी जिसमे उसे श्रेय लेने का हक होता है वहाँ भी चुप्पी लगा जाता है
पत्रक...

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द्रोपदी का चीर हरण By sushil yadav

हिज हाईनेस ने मंत्री-मंडल से मुखातिब होके पूछा ,कब तक रिपोर्ट मिल जाएगी मंत्री लोग एक-दूसरे का मुह ताकने लगे
हाईनेस ने कहा , हम ज्यादा इंतिजार नहीं कर सकते पांडुरंगो सामने चु...

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वो दलित लड़की By Ved Prakash Tyagi

दलित क्यों हैं, क्यों बने और कितने अत्याचार पीढ़ी दर पीढ़ी सहते रहे मौका मिलने पर एक दलित भी अपनी प्रतिभा पूरी निष्ठा और ईमानदारी से दिखा सकता है और गर्व करता है स्वयं पर, अपने पिता...

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भाई चारे की तलब By sushil yadav

दबंगई वाले पूर्ण आश्वस्त होते हैं कि टिकट उनकी बपौती है
निरीहों को, शंका के बादल घेरे होते हैं उनकी पत्नियां घर घुसते ही दागती हैं ,बात बनी ...
वे सर झुकाए यूँ खड़े हो जाते है...

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आओ बच्चो तुम्हे दिखाएं By sushil yadav

यूँ, सुनने में बहुत अच्छा लगता है ,बाबूजी ,ये अपना मकान है न ,जर्जर ,खंडहर सा हो रहा है ,इस इलाके में अभी कीमत अच्छी मिल रही है हो सकता है कल मेट्रो या सड़क चौडीकरण में अपना मकान फ...

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पत्नी की मिडिल क्लास, मंगल-परीक्षा By sushil yadav

देखो उधर जा रहे हो तो, अपने घर के लिए भी एक कुप्पी रख लेना। एक-एक चम्मच प्रसाद जैसे, मोहल्ले में और किट्टी वाली जतालाऊ औरतों में बाट दूँगी! क्या मतलब .... वैसे ही, जैसे लोग गंगा-ज...

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वो जिहादी लड़की By Ved Prakash Tyagi

जिहादी लड़की, एक हिन्दू लड़की, जिसने अपनी कच्ची उम्र में एक मुस्लिम युवक के प्यार पर विश्वास किया, जिसने उसको प्यार तो नहीं दिया बल्कि एक मानव बम बना दिया। कच्ची उम्र का पहला प्यार ब...

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दृष्टिकोण चांगला पाहिजे ..... By sushil yadav

जिसके पास बखान करने का ज्यादा मसाला होता है उसकी दिन भर के चाय-समोसे का इन्तिजाम पक्का हो जाता है प्रवचन सुनाने वाला,श्रोता जमात और जजमान को देखकर गदगद रहता है पूरे स्टाफ में प्र...

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इहलोक से परलोक तक By VANITA BARDE

It is a article written by Vanita Barde about parlok .To know more download the article.Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks

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साधू न ही सर्वत्र By sushil yadav

वे जो साधू होने का स्वांग रचते हैं, विशुद्ध बनिए या याचक के बीच के जीव होते हैं साधू का अपना घर-बार नहीं होता घर नहीं होता इसलिए वे कहीं भी, रमता-जोगी के रोल में पाए जाते हैं ’बा...

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अब पछताए होत क्या By sushil yadav

किसान खेतों में बीज डाल के,चिड़िया के चुग जाने पर जो पछतावा करता है, उसी को बतौर नजीर- नसीहत किसानों को बतलाया जाता है,कि हे किसान तूने जमीन में बीज डाल कर नेक काम किया था मगर तेरी...

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धर्मो रक्षति रक्षितः By Bhatt Nikunj

“धर्मो रक्षति रक्षितः”
अर्थात :- ( तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा )
धर्म ही इस चराचर जगत एवं सम्पूर्ण जीवों के जीवन का मूल है धर्म के बिना न इस सृष्टि की कल...

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कुछ कहने पे तूफान उठा लेती है दुनिया By sushil yadav

ये दुनिया इतनी बड़ी नहीं कि मुट्ठी में न समा सके ....
आप की वाणी इतनी सरल –सहज हो कि हरदम , ‘सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय’ की भाषा बोले आजकल अनुवादक लोगो की भीड़ है
बिना मिर्...

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अथ महाभारतम… By sushil yadav

इधर अपने, ई सी ने आम चुनाव का आगाज कर दिया है, उधर लोग जीत हार के फर्जी आंकड़े जुटाने में लग गए हैं इसे आम जनता तक चुनावी संभावना के नाम पर इलेक्शन पोल के ग्राफिक बना कर जीतने वाल...

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आत्म चिन्तन का दौर By sushil yadav

अनेक नेता तो जैसे ,‘हाईबरनेशन पीरियड’ से आँख मलते हुए बाहर निकलते हैं एक क्विक निगाह चारो तरफ डालते हैं जरूरी ‘मदों’ के बारे में अपनी जानकारी फटाफट अपडेट करते हैं ,मसलन प्याज के...

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बाजार बड़ ठगनी हम जानि By kaushlendra prapanna

बाजार ने ख़ासकर महिलाओं के सौदर्य आकर्षण को अपना शिकार बनाया है। महिलाओं में सुंदर दिखने की सहज प्रवृत्ति को विभिन्न प्रोडक्ट से लुभाते हैं। इसकी का परिणाम है कि रेज दिन नई नई प्रोड...

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आ बैल By sushil yadav

मैंने बैलो में, श्रंगार की अनुभूति का आनन्द लेते, सिर्फ प्रेमचन्द जी की कहानी ‘हीरा-मोती’ में महसूस किया वैसे सजे –सजाये बैल फिर कभी सुने-दिखे नहीं
बैल जोडी के निशाँन को लेकर ए...

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नन्द लाल छेड़ गयो रे By sushil yadav

भइय्या जी, बात ये है कि आजकल की राजनीति में दम नहीं है हम रोज अखबार पढ़ते हैं ,आप भी देखे होंगे ....न छीन झपट,न जूतम पैजार .... न किसी के अन्गदिया पैर उखाड़े जाते ,न एक दूसरों की स...

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समान विचार-धारा के कुत्ते By sushil yadav

आदमी को,देहात में समान विचार-वाले लोग, गली-गली मिलते रहते हैं जय -जोहार और खेती –किसानी के अतिरिक्त विचारों का आदान –प्रदान होते रहता है
गाँव के आदमी और गाँव के कुत्ते में ,...

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हम आपके डील में रहते हैं By sushil yadav

सूर्य-पुत्र कर्ण के बाद, आपने दूसरा दानी देखा है ....
वे एक लाख पच्चीस हजार करोड़ ,दान में दे आये ....
बिना योजना के, बिना प्लानिग के, बिना आगा पीछा देखे, दान देने वाले बहुत कम...

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गुलाटी कला महातम्य By Pradeep Kumar sah

वह बोला, भाई लोगो, पलटना उर्फ़ गुलाटी शीर्ष स्तर का एक अद्भुत और बेहद रोमांचक कला है तथा चराचर सृष्टि में उससे केवल मानव मात्र ही परिचित हैं. वहाँ भी सभी मानव को वह सौभाग्य प्राप्त...

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सन्मार्ग में चलने की सलाह By sushil yadav

जितनी मेरी उमर है लगभग उतने सालों से (चलिए ,दो एक कम कर लीजिए) मै चलने-चलाने के नाम पर एक ही रिकार्ड सुनते आया हूँ ,सन्मार्ग में चलो ,सन्मार्ग में चलो
सन्मार्ग क्या होता है, शु...

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लेखक - एक अजीब प्राणी By Khushi Saifi

लेखक को कोई विचार आया नही कि फ़ौरन जेब से मोबाइल निकाल कलम नुमा अंगूठे से टाइपिंग करनी शुरू कर दी। ये यूँ अचानक टाइपिंग कभी कभी सामने वाले को शक में भी मुब्तला कर देती है कि कहीं......

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मन रे तू काहे न धीर धरे By sushil yadav

हम बाकायदा पिछले दस आम-चुनाओं के सजग-चैतन्य मतदाता रहे सुबह सात बजे मतदान देने ,बाकायदा लाइन हाजिर हो जाते थे न हम नेताओं के भाषण को मन में रखते थे न उनके वादों के अमल होने की कोई...

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सवाल जो मुझसे नहीं पूछे गए By sushil yadav

अच्छा हुआ ! मुझे किसी ने कोई पुरूस्कार से नहीं नवाजा .... पुरूस्कार मिलता तो उस कहावत माफिक चोट लगती ,”बेटा न हो तो एक दुःख ,हो के मर जाए तो सौ दुख,और हो के निक्कमा,नकारा निकल जाए...

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मेरी लाल साइकल By Ved Prakash Tyagi

पुलिस और अपराधी गठजोड़ के सामने एक आम आदमी कुछ नहीं कर पाता जबकि चोर और चोरी हुआ सामान पुलिस के सामने होता है और पुलिस चोर को बचाने के सभी प्रयत्न करती है और उसमे सफल भी होती है।

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मन चंगा तो By sushil yadav

एक बार संत रैदास के पास उसका दुखी मित्र आया,कहने लगा आज गंगा में स्नान करते समय उसका सोने की अंगूठी गिर गई लाख ढूढने पर मिल नहीं सकी संत रैदास ने पास में रखे कठौते (काष्ट के बड़...

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मैं बपुरा बुडन डरा By sushil yadav

पानी में तैरते जहाज को समुंदर में देखना,लोगों को कितना सुकून देता है यही जहाज प्रायोजित तरीके से आजकल समुंदर के किनारे की तरफ लाकर डुबाये जा रहे हैं करोड़ों का क्लेम बूढ़े जहाजों...

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और मनी ऑर्डर वापस आ गया By Ved Prakash Tyagi

इसमे दो कहानियाँ है, पहली एक वायर्लेस ऑपरेटर की है जिसमे अपने वेतन को पूरे महीने चलाने के लिए गलत मनी ऑर्डर भेजता है जो उसे 22 तारीख को वापस मिलता है और उसके बाकी के दिनों का खर्चा...

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भारत के वीर By Anubhav verma

इस कदर वाकिफ़ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से, अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूं तो इंक़लाब लिखा जाता है . भगत सिंह के इस वाक्य से तो आप वाकिफ़ ही होंगे. देशभक्ति उनके अंदर इस कदर हावी थी कि...

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पुरूस्कार व्यथा By sushil yadav

धिक्कार है सुशील ! ,लेखक जमात, अपने -अपने पुरूस्कार लौटा रहे है तेरे पास लौटाने के लिए कुछ भी नहीं है ....
तुमने क्या ख़ाक लिखा..... जो साहित्य-बिरादरी में स्थापित नहीं हुए
तेर...

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प्रभु मेरे अवगुण By sushil yadav

पहले जमाने में प्रभु से सीधे संवाद का न जाने कौन सा यंत्र,मन्त्र, तन्त्र था जो डाइरेक्ट डीलिंग और डायलिग का बन्दोबस्त हो जाता था
”इस रुट की सभी लाइने व्यस्त है”, जैसा वाकया...

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व्यंगात्मक कथा By sushil yadav

हमारा ज़माना बहुत दूर अभी नहीं गया है
फकत पच्चास-साठ साल पीछे चले जाओ
आपको पुराने फैशन के नेरो या बेल-बाटम पतलून –शर्ट, घाघरा-चोली, धारी युवक –कन्याए यानी ‘प्री-जीन्स’ युग के...

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व्यंग्यात्मक कथा By sushil yadav

अरे मै ‘पांडे वाले मंगल ’ की नहीं कह रहा हूँ डोबी ...! मंगल ग्रह की बोल रहा हूँ.... मंगल ग्रह ......! वो.... उधर.... ऊपर आसमान देख रही हो .... वो जो यहाँ से करोडो मील दूर है नव-...

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थाईलैंड By Santosh Srivastav

थाईलैंड की पूरी इकॉनॉमी स्त्री प्रधान है इस बात की गवाह थी पूरी पटाया नगरी बस की खिड़की के शीशों के उस पार बाज़ार, बड़े-बड़े मॉल, होटल, फुटपाथ पर लगा बाज़ार, फलों की दुकानें, मछली तलत...

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भूटान द लैंड ऑफ थंडर ड्रैगन By Santosh Srivastav

हिमालय पर्वत श्रृंखला में बसा छोटा सा देश भूटान बिल्कुल रोडोडेंड्रॉन फूल जैसा खूबसूरत रोडोडेंड्रॉन पहले भूटान का राष्ट्रीय पुष्प हुआ करता था लाल मख़मली पंखुड़ियों वाला..... इस फूल क...

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हिंदुत्व By Lakshmi Narayan Panna

अब जब हिंदुत्व की बात तूल पकड़ने लगी तो एक प्रश्न फिर पैदा हुआ कि जो आज देश की जनता ने एक जुट होकर , एक साथ एकता का परिचय देकर , पूर्ण बहुमत से एक नई सरकार का चुनाव किया है । तो क्...

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मॉल की शरण में By kaushlendra prapanna

छोटे और मंझोले शहरों की जिंदगी भी बदली है वह भी परिवर्तन के साथ कदम ताल कर रहे हैं। लेकिन जिस रफ्तार से महानगर में तब्दीली आई है उसके अनुपात में कम मान सकते हैं। क्योंकि वहां अभी भ...

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अपनी तो ये आदत है By sushil yadav

हमारी जुबान को एक धमकी में कोई भी, किसी भी वक्त बंद करवा सकता था
एक बार बंद हो जाने के बाद हमारी जुबान ,बंद करने वाले ‘आका’ की हो जाती थी आका जब तक न चाहे नही खुलती थी
सैकड़...

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ये तेरी सरकार है पगले ..... By sushil yadav

मुझे ये भी लगा कि, अब ज्यादा भाव खाने से बात बिगडनी शुरू हो जायेगी मेरी स्तिथि यूँ थी कि ग्राहक को भाव पसंद न आये तो खिसकने की तैय्यारी कर लेता है तब दूकानवाले को उन्हें उनकी शर...

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अंग्रेजी शिखना जरुरी नही By Sultan Singh

अंग्रजी भाषा शिखाने के पीछे जो उद्देश्य पुराने लोगो का आज़ादी से पहले था। उस उद्देश्य को नई पीढ़ीने बर्बाद कर दिया और तो ओर आनेवाली पीढ़ी को भी अंग्रेजी के सामने लाचार बनाकर खड़ा कर दि...

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भाषा का ज्ञान माँ के गर्भ से आरम्भ By S Sinha

जब शिशु अपनी माँ के गर्भ में ही होता है , वह भाषा का प्रारम्भिक ज्ञान गर्भ से ही सीखना शुरू कर देता है। इस आलेख में इसी संबंध में कुछ प्रकाश डालने का एक प्रयास किया गया है।

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आवारा कुत्तों का रोड शो ..... By sushil yadav

हमारा प्रयास होना चाहिए कि रोड-शो के अंजाम को रूबरू देखें शामिल होने वालों की कद-काठी पहचाने अगर लगे कि इसमें कोई गुडा- तत्व,उठाईगिरी करने वाले ,मुनाफाखोर ,घपलेबाज ठेकेदार ,नीयत...

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टोपी आम आदमी की.... By sushil yadav

सदर बाजार के एक और मारवाड़ी जिनका सोने-चांदी का बिजनेस था,पुरोहित के नक्शे –कदम में टोपी पहना करते थे उनकी खासियत थी कि जब भी बड़ा ग्राहक आये, वे टोपी उतार के रख देते थे

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बॉडी लैंगुएज By S Sinha

सभी बातें शब्दों में बोली जाएँ यह आवश्यक नहीं है. बहुत बार हम अपनी बात दूसरों तक शरीर के हव भाव या हरकत से पहुँचा सकते हैं. इस लेख में शरीर के भिन्न अंगों द्वारा दिए गए संवाद को बत...

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आइये ‘सरकार’ को हम बाँट लें By sushil yadav

नहीं बाटने वाली चीजे भी भगवान ने बनाई है वो है ‘उपर की आमदनी’ इस आद्रिश आमदनी को लोग सीधे –सीधे देख तो नहीं पाते, केवल अनुमान लगाते रहते हैं रहन-सहन में एकाएक बदलाव, हाव-भाव में रई...

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मन की पीड़ा By S Sinha

यह एक आलेख है मन की पीड़ा पर. हर किसी के जीवन में कोई न कोई ऐसी घटना होती है जिससे मनुष्य को चोट पहुँचती है। शारीरिक चोट का उपचार तो हम डॉक्टर के यहाँ जा कर करा सकते हैं। पर अगर चोट...

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आत्मा-राम की सलाह ..... By sushil yadav

ज़रा सी उनकी छींक –जुकाम में,पार्टी के दफ्तर में ताला जड जाता था पार्टी के लोग व्याकुल हो जाते थे मन्दिरों में प्रार्थनाएँ ,घरों में दुआओं का दौर शुरू हो जाता था

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पहली सी मुहब्बत, मेरे महबूब न मांग ........... By sushil yadav

मैंने कहा भाई गनपत ,साफ-साफ कहो ,पहेलियाँ मत बुझाओ वैसे पिछले महीने भर से इलेक्शन वाली पहेलियाँ बुझा-बुझा के आपने हमारा दिमाग खाली कर लिया है सीधे-सीधे बताओ तो सही बात क्या है...

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वो काली अंधेरी रात By Ved Prakash Tyagi

पूर्णिमा ने देखा कि तेज धारा में बहती हुई लकड़ी कुछ दूर तक तो जलती रही, फिर पानी में डूब कर अदृशय हो गयी। सक्षम डूब गया, सक्षम डूब गया इस तरह चिल्ला कर वह गंगा में कूदने की कोशिश...

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सस्पेंडेड थानेदार का इंटरव्यू By sushil yadav

वो थानेदार इंटरव्यू देने के नाम पे बहुत काइयां है बड़े से बड़ा कॉड हो जाए वो मुह नई खोलता ऐसे कारनामो में भी जिसमे उसे श्रेय लेने का हक होता है वहाँ भी चुप्पी लगा जाता है
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द्रोपदी का चीर हरण By sushil yadav

हिज हाईनेस ने मंत्री-मंडल से मुखातिब होके पूछा ,कब तक रिपोर्ट मिल जाएगी मंत्री लोग एक-दूसरे का मुह ताकने लगे
हाईनेस ने कहा , हम ज्यादा इंतिजार नहीं कर सकते पांडुरंगो सामने चु...

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वो दलित लड़की By Ved Prakash Tyagi

दलित क्यों हैं, क्यों बने और कितने अत्याचार पीढ़ी दर पीढ़ी सहते रहे मौका मिलने पर एक दलित भी अपनी प्रतिभा पूरी निष्ठा और ईमानदारी से दिखा सकता है और गर्व करता है स्वयं पर, अपने पिता...

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भाई चारे की तलब By sushil yadav

दबंगई वाले पूर्ण आश्वस्त होते हैं कि टिकट उनकी बपौती है
निरीहों को, शंका के बादल घेरे होते हैं उनकी पत्नियां घर घुसते ही दागती हैं ,बात बनी ...
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आओ बच्चो तुम्हे दिखाएं By sushil yadav

यूँ, सुनने में बहुत अच्छा लगता है ,बाबूजी ,ये अपना मकान है न ,जर्जर ,खंडहर सा हो रहा है ,इस इलाके में अभी कीमत अच्छी मिल रही है हो सकता है कल मेट्रो या सड़क चौडीकरण में अपना मकान फ...

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पत्नी की मिडिल क्लास, मंगल-परीक्षा By sushil yadav

देखो उधर जा रहे हो तो, अपने घर के लिए भी एक कुप्पी रख लेना। एक-एक चम्मच प्रसाद जैसे, मोहल्ले में और किट्टी वाली जतालाऊ औरतों में बाट दूँगी! क्या मतलब .... वैसे ही, जैसे लोग गंगा-ज...

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वो जिहादी लड़की By Ved Prakash Tyagi

जिहादी लड़की, एक हिन्दू लड़की, जिसने अपनी कच्ची उम्र में एक मुस्लिम युवक के प्यार पर विश्वास किया, जिसने उसको प्यार तो नहीं दिया बल्कि एक मानव बम बना दिया। कच्ची उम्र का पहला प्यार ब...

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दृष्टिकोण चांगला पाहिजे ..... By sushil yadav

जिसके पास बखान करने का ज्यादा मसाला होता है उसकी दिन भर के चाय-समोसे का इन्तिजाम पक्का हो जाता है प्रवचन सुनाने वाला,श्रोता जमात और जजमान को देखकर गदगद रहता है पूरे स्टाफ में प्र...

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इहलोक से परलोक तक By VANITA BARDE

It is a article written by Vanita Barde about parlok .To know more download the article.Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks Thanks

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साधू न ही सर्वत्र By sushil yadav

वे जो साधू होने का स्वांग रचते हैं, विशुद्ध बनिए या याचक के बीच के जीव होते हैं साधू का अपना घर-बार नहीं होता घर नहीं होता इसलिए वे कहीं भी, रमता-जोगी के रोल में पाए जाते हैं ’बा...

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अब पछताए होत क्या By sushil yadav

किसान खेतों में बीज डाल के,चिड़िया के चुग जाने पर जो पछतावा करता है, उसी को बतौर नजीर- नसीहत किसानों को बतलाया जाता है,कि हे किसान तूने जमीन में बीज डाल कर नेक काम किया था मगर तेरी...

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धर्मो रक्षति रक्षितः By Bhatt Nikunj

“धर्मो रक्षति रक्षितः”
अर्थात :- ( तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा )
धर्म ही इस चराचर जगत एवं सम्पूर्ण जीवों के जीवन का मूल है धर्म के बिना न इस सृष्टि की कल...

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कुछ कहने पे तूफान उठा लेती है दुनिया By sushil yadav

ये दुनिया इतनी बड़ी नहीं कि मुट्ठी में न समा सके ....
आप की वाणी इतनी सरल –सहज हो कि हरदम , ‘सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय’ की भाषा बोले आजकल अनुवादक लोगो की भीड़ है
बिना मिर्...

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अथ महाभारतम… By sushil yadav

इधर अपने, ई सी ने आम चुनाव का आगाज कर दिया है, उधर लोग जीत हार के फर्जी आंकड़े जुटाने में लग गए हैं इसे आम जनता तक चुनावी संभावना के नाम पर इलेक्शन पोल के ग्राफिक बना कर जीतने वाल...

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आत्म चिन्तन का दौर By sushil yadav

अनेक नेता तो जैसे ,‘हाईबरनेशन पीरियड’ से आँख मलते हुए बाहर निकलते हैं एक क्विक निगाह चारो तरफ डालते हैं जरूरी ‘मदों’ के बारे में अपनी जानकारी फटाफट अपडेट करते हैं ,मसलन प्याज के...

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बाजार बड़ ठगनी हम जानि By kaushlendra prapanna

बाजार ने ख़ासकर महिलाओं के सौदर्य आकर्षण को अपना शिकार बनाया है। महिलाओं में सुंदर दिखने की सहज प्रवृत्ति को विभिन्न प्रोडक्ट से लुभाते हैं। इसकी का परिणाम है कि रेज दिन नई नई प्रोड...

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आ बैल By sushil yadav

मैंने बैलो में, श्रंगार की अनुभूति का आनन्द लेते, सिर्फ प्रेमचन्द जी की कहानी ‘हीरा-मोती’ में महसूस किया वैसे सजे –सजाये बैल फिर कभी सुने-दिखे नहीं
बैल जोडी के निशाँन को लेकर ए...

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नन्द लाल छेड़ गयो रे By sushil yadav

भइय्या जी, बात ये है कि आजकल की राजनीति में दम नहीं है हम रोज अखबार पढ़ते हैं ,आप भी देखे होंगे ....न छीन झपट,न जूतम पैजार .... न किसी के अन्गदिया पैर उखाड़े जाते ,न एक दूसरों की स...

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समान विचार-धारा के कुत्ते By sushil yadav

आदमी को,देहात में समान विचार-वाले लोग, गली-गली मिलते रहते हैं जय -जोहार और खेती –किसानी के अतिरिक्त विचारों का आदान –प्रदान होते रहता है
गाँव के आदमी और गाँव के कुत्ते में ,...

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हम आपके डील में रहते हैं By sushil yadav

सूर्य-पुत्र कर्ण के बाद, आपने दूसरा दानी देखा है ....
वे एक लाख पच्चीस हजार करोड़ ,दान में दे आये ....
बिना योजना के, बिना प्लानिग के, बिना आगा पीछा देखे, दान देने वाले बहुत कम...

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गुलाटी कला महातम्य By Pradeep Kumar sah

वह बोला, भाई लोगो, पलटना उर्फ़ गुलाटी शीर्ष स्तर का एक अद्भुत और बेहद रोमांचक कला है तथा चराचर सृष्टि में उससे केवल मानव मात्र ही परिचित हैं. वहाँ भी सभी मानव को वह सौभाग्य प्राप्त...

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सन्मार्ग में चलने की सलाह By sushil yadav

जितनी मेरी उमर है लगभग उतने सालों से (चलिए ,दो एक कम कर लीजिए) मै चलने-चलाने के नाम पर एक ही रिकार्ड सुनते आया हूँ ,सन्मार्ग में चलो ,सन्मार्ग में चलो
सन्मार्ग क्या होता है, शु...

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लेखक - एक अजीब प्राणी By Khushi Saifi

लेखक को कोई विचार आया नही कि फ़ौरन जेब से मोबाइल निकाल कलम नुमा अंगूठे से टाइपिंग करनी शुरू कर दी। ये यूँ अचानक टाइपिंग कभी कभी सामने वाले को शक में भी मुब्तला कर देती है कि कहीं......

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मन रे तू काहे न धीर धरे By sushil yadav

हम बाकायदा पिछले दस आम-चुनाओं के सजग-चैतन्य मतदाता रहे सुबह सात बजे मतदान देने ,बाकायदा लाइन हाजिर हो जाते थे न हम नेताओं के भाषण को मन में रखते थे न उनके वादों के अमल होने की कोई...

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सवाल जो मुझसे नहीं पूछे गए By sushil yadav

अच्छा हुआ ! मुझे किसी ने कोई पुरूस्कार से नहीं नवाजा .... पुरूस्कार मिलता तो उस कहावत माफिक चोट लगती ,”बेटा न हो तो एक दुःख ,हो के मर जाए तो सौ दुख,और हो के निक्कमा,नकारा निकल जाए...

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मेरी लाल साइकल By Ved Prakash Tyagi

पुलिस और अपराधी गठजोड़ के सामने एक आम आदमी कुछ नहीं कर पाता जबकि चोर और चोरी हुआ सामान पुलिस के सामने होता है और पुलिस चोर को बचाने के सभी प्रयत्न करती है और उसमे सफल भी होती है।

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मन चंगा तो By sushil yadav

एक बार संत रैदास के पास उसका दुखी मित्र आया,कहने लगा आज गंगा में स्नान करते समय उसका सोने की अंगूठी गिर गई लाख ढूढने पर मिल नहीं सकी संत रैदास ने पास में रखे कठौते (काष्ट के बड़...

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मैं बपुरा बुडन डरा By sushil yadav

पानी में तैरते जहाज को समुंदर में देखना,लोगों को कितना सुकून देता है यही जहाज प्रायोजित तरीके से आजकल समुंदर के किनारे की तरफ लाकर डुबाये जा रहे हैं करोड़ों का क्लेम बूढ़े जहाजों...

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और मनी ऑर्डर वापस आ गया By Ved Prakash Tyagi

इसमे दो कहानियाँ है, पहली एक वायर्लेस ऑपरेटर की है जिसमे अपने वेतन को पूरे महीने चलाने के लिए गलत मनी ऑर्डर भेजता है जो उसे 22 तारीख को वापस मिलता है और उसके बाकी के दिनों का खर्चा...

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भारत के वीर By Anubhav verma

इस कदर वाकिफ़ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से, अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूं तो इंक़लाब लिखा जाता है . भगत सिंह के इस वाक्य से तो आप वाकिफ़ ही होंगे. देशभक्ति उनके अंदर इस कदर हावी थी कि...

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पुरूस्कार व्यथा By sushil yadav

धिक्कार है सुशील ! ,लेखक जमात, अपने -अपने पुरूस्कार लौटा रहे है तेरे पास लौटाने के लिए कुछ भी नहीं है ....
तुमने क्या ख़ाक लिखा..... जो साहित्य-बिरादरी में स्थापित नहीं हुए
तेर...

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प्रभु मेरे अवगुण By sushil yadav

पहले जमाने में प्रभु से सीधे संवाद का न जाने कौन सा यंत्र,मन्त्र, तन्त्र था जो डाइरेक्ट डीलिंग और डायलिग का बन्दोबस्त हो जाता था
”इस रुट की सभी लाइने व्यस्त है”, जैसा वाकया...

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व्यंगात्मक कथा By sushil yadav

हमारा ज़माना बहुत दूर अभी नहीं गया है
फकत पच्चास-साठ साल पीछे चले जाओ
आपको पुराने फैशन के नेरो या बेल-बाटम पतलून –शर्ट, घाघरा-चोली, धारी युवक –कन्याए यानी ‘प्री-जीन्स’ युग के...

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व्यंग्यात्मक कथा By sushil yadav

अरे मै ‘पांडे वाले मंगल ’ की नहीं कह रहा हूँ डोबी ...! मंगल ग्रह की बोल रहा हूँ.... मंगल ग्रह ......! वो.... उधर.... ऊपर आसमान देख रही हो .... वो जो यहाँ से करोडो मील दूर है नव-...

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थाईलैंड By Santosh Srivastav

थाईलैंड की पूरी इकॉनॉमी स्त्री प्रधान है इस बात की गवाह थी पूरी पटाया नगरी बस की खिड़की के शीशों के उस पार बाज़ार, बड़े-बड़े मॉल, होटल, फुटपाथ पर लगा बाज़ार, फलों की दुकानें, मछली तलत...

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भूटान द लैंड ऑफ थंडर ड्रैगन By Santosh Srivastav

हिमालय पर्वत श्रृंखला में बसा छोटा सा देश भूटान बिल्कुल रोडोडेंड्रॉन फूल जैसा खूबसूरत रोडोडेंड्रॉन पहले भूटान का राष्ट्रीय पुष्प हुआ करता था लाल मख़मली पंखुड़ियों वाला..... इस फूल क...

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हिंदुत्व By Lakshmi Narayan Panna

अब जब हिंदुत्व की बात तूल पकड़ने लगी तो एक प्रश्न फिर पैदा हुआ कि जो आज देश की जनता ने एक जुट होकर , एक साथ एकता का परिचय देकर , पूर्ण बहुमत से एक नई सरकार का चुनाव किया है । तो क्...

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मॉल की शरण में By kaushlendra prapanna

छोटे और मंझोले शहरों की जिंदगी भी बदली है वह भी परिवर्तन के साथ कदम ताल कर रहे हैं। लेकिन जिस रफ्तार से महानगर में तब्दीली आई है उसके अनुपात में कम मान सकते हैं। क्योंकि वहां अभी भ...

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