अखबार की कहानी Ashish Kumar Trivedi द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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अखबार की कहानी

अखबार की कहानी

आशीष कुमार त्रिवेदी

आप यदि किसी से पूँछें कि एक दिन की अच्छी शुरुआत कैसे करना चाहेंगे तो जवाब मिलेगा कि चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ते हुए समय बिताना उन्हें अच्छा लगेगा।

अखबार आज हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। सूचना क्रांति के इस युग में चौबीस घंटे खबरें प्रसारित करने वाले टीवी चैनल हैं। जो हर एक खबर हम तक पहुँचाते हैं। फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो जब तक अखबार में समाचार का विवरण ना पढ़ लें तब तक संतुष्ट नहीं होते हैं। अखबार ना केवल हमें देश विदेश की खबरें देते हैं बल्कि हमारे शहर की स्थानीय खबरें भी हम तक पहुँचाते हैं। इसके साथ ही साथ संपादकीय पृष्ठ पर हमें समकालीन समस्याओं पर लेख भी पढ़ने को मिलते हैं। यही कारण है कि समाचार प्राप्त करने के अनेक संसाधन होते हुए भी लोग अखबार पढ़ना पसंद करते हैं। भारत में आज हिंदी अंग्रेज़ी एवं स्थानीय भाषाओं के कई अखबार निकलते हैं।

एक समय था जब खबरें पाने का प्रमुख माध्यम अखबार ही थे। लोग अखबार के आने का बेसब्री से इंतज़ार करते थे। ताकि पिछले चौबीस घंटों में दुनिया में क्या क्या घटा, कौन से महत्वपूर्ण फैसले हुए आदि के बारे में जान सकें। हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में भी अखबारों ने अहम भूमिका निभाई थी। कई जानी मानी हस्तियों ने अखबारों में लेख लिख कर लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। देश के कई प्रमुख नेताओं ने उस समय अपने अखबार आरंभ किए। आज़ादी के बाद भी अखबारों ने जन जागरण फैलाने में मुख्य काम किया।

अखबार का इतिहास

दुनिया का पहला दैनिक अखबार निकालने का श्रेय जूलियस सीजर को दिया जाता है। उसके इस पहले अखबार का नाम था एक्टा डाइएर्ना (Acta Diurna) अर्थात दिन की घटनाएं। यह दरअसल पत्थर या धातु की बनीं पट्टियां होती थीं जिन पर समाचार अंकित होते थे। ये पट्टियां रोम के मुख्य स्थानों पर रख दी जाती थीं ताकि आम जनता देख सके। इनके माध्यम से वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति, नागरिकों की सभाओं के निर्णयों और ग्लेडिएटरों की लड़ाइयों के परिणाण आदि के बारे में सूचनाएं दी जाती थीं।

मध्यकाल में यूरोप के व्यापारिक केंद्रों में कारोबार, क्रय-विक्रय और मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के समाचार वाले हस्तलिखित 'सूचना-पत्र' निकलते थे।

1439 में योहानेस गुटेनबर्ग द्वारा धातु के अक्षरों से छापने की मशीन का आविष्कार किया गया। जिसके ज़रिए पहली बाइबल छापी गई जिसे 'गुटेनबर्ग बाइबल' कहा जाता है। इस तकनीकि से छपाई का काम आरंभ हुआ। किताबें तथा अखबार छप कर आने लगे।

1605 में योहन कारोलूस नाम के एक व्यापारी ने छपाई की मशीन ख़रीद कर विश्व का प्रथम मुद्रित अखबार निकाला जिसका नाम ‘रिलेशन’ था।

भारत में अखबार की शुरुआत

भारत में सबसे पहले प्रिंटिंग प्रेस का आरंभ पुर्तगालियों ने किया। 1684 में अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में प्रथम प्रिंटिग प्रेस की स्थापना की। किंतु भारत में पहला अखबार उसके लगभग 100 सालों के बाद छपा। भारत का सबसे पहला अखबार 29 जनवरी 1780 में कलकत्ता से शुरू हुआ। इसकी शुरुआत करने वाले थे जेम्स ऑगस्टस हीकी। इनके अखबारों का नाम 'हिकी'ज बंगाल गजट' और 'दि ओरीजनल कैलकटा जनरल एड्वरटाइजर' थे। दो पन्नों के अखबार में में ईस्ट इंडिया कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों के निजी जीवन पर लिखे गए लेख छपते थे। इसक आदर्श वाक्य था "सभी के लिये खुला फिर भी किसी से प्रभावित नहीं।" समाचार पत्र की शुरूआत विद्रोह की घोषणा से हुई।

इसका पालन करते हुए हीकी ने अपने अखबार के माध्यम से गवर्नर की पत्नी पर कुछ आक्षेप लगाए। इससे नाराज़ होकर अधिकारियों ने उसे उसे 4 महीने के लिए जेल भेज दिया और उस पर 500 रुपये का जुर्माना भी लगा दिया गया। लेकिन हीकी इससे ज़रा भी हतोत्साहित नहीं हुआ। उसने अपने अखबार के ज़रिए सरकार की आलोचना जारी रखी। जब उसने गवर्नर तथा सर्वोच्च न्यायाधीश की भी आलोचना की तो उसे एक वर्ष के कारावास तथा 5000 रुपए के जुर्माने का दंड मिला। अतः उसका अखबार बंद हो गया।

इसके बाद भारत में अंग्रेज़ी भाषा के और भी अखबार स्थापित हुए। लेकिन ये सभी अधिकतर शासन के मुखपत्र थे। जो शासन की तारीफ करते थे।

1816 में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गैजेट' नामक पहला भारतीय अंग्रेज़ी अखबार कलकत्ता से निकला। यह एक साप्ताहिक अखबार था।

ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बकिंघम को प्रेस की स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है। 2 अक्टूबर 1818 में बकिंघम ने 'कलकत्ता जनरल' नामके अखबार का संपादन किया। बकिंघम का यह अखबार सरकारी नीतियों का निर्भीक आलोचक था। इस अखबार जैसी स्वतंत्रता व उदारता पहले किसी पत्र में नही देखी गयी थी। कैलकटा जनरल ने उस समय के एंग्लोइंडियन अखबारों को प्रचार प्रसार में पीछे छोड़ दिया था। एक रूपये मूल्य के इस अखबार का दो वर्ष में सदस्य संख्या एक हजार से अधिक हो गयी थी। यह अखबार सही मायनों में जनता का प्रतिनिधित्व करता था। 1823 में बकिमघम को देश निकाला दे दिया गया। हालांकि इंगलैंड जाकर बकिंघम ने ओरियंटल हेराल्ड निकाला जिसमें वह भारतीय समस्याओं और कंपनी के हाथों में भारत का शासन बनाये रखने के खिलाफ लगातार अभियान चलाता रहा। प्रेस का आधुनिक रूप जेम्स सिल्क बकिंघघम का ही प्रदान किया हुआ है।

1861 के इंडियन कांउसिल एक्ट पास होने के बाद समाज के पढ़े लिखे तबकों में राजनीतिक चेतना उभरी। जिसके कारण अंग्रेज़ी तथा भारतीय दोनों भाषाओं के अखबारों की संख्या बढ़ी। 1861 में बंबई में टाइम्स आफ इंडिया की 1865 में इलाहाबाद में पायनियर 1868 में मद्रास मेल की 1875 में कलकत्ता स्टेटसमैन की और 1876 में लाहौर में सिविल ऐंड मिलटरी गजट की स्थापना हुई। ये सभी अंग्रेजी दैनिक अखबार ब्रिटिश शासनकाल में जारी रहे। इसके अतिरिक्त अमृत बाजार पत्रिका, बांबे क्रानिकल, बांबे सेंटिनल, हिन्दुस्तान टाइम्स, हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड, फ्री प्रेस जनरल, नेशनल हेराल्ड व नेशनल कॉल अंग्रेजी में छपने वाले लक्ष्य प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी दैनिक और साप्ताहिक पत्र थे।

हिंदी के अखबार

1826 में कानपुर निवासी पंडित युगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से ‘उदंत मार्तंड’ नाम से हिंदी के प्रथम समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया। यह साप्ताहिक पत्र 1827 तक चला और पैसे की कमी के कारण बंद हो गया।

1846 में राजा शिव प्रसाद ने हिंदी पत्र ‘बनारस अख़बार’ का प्रकाशन शुरू किया। राजा शिव प्रसाद शुद्ध हिंदी का प्रचार करते थे। उन्हें लोगों द्वारा उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी का प्रयोग अच्छा नहीं लगता था।

1854 में हिंदी का पहला दैनिक समाचार पत्र 'सुधा वर्षण’ निकला। इसके अलावा ‘भारतमित्र’ (सन् 1878 ई, में) ‘सार सुधानिधि’ (सन् 1879 ई.) और ‘उचितवक्ता’ (सन् 1880 ई.) ‘ज्ञानदीप’, ‘मालवा अखबार’, ‘जगद्दीपक भास्कर’, ‘साम्यदंड सुधाकर’, ‘बुद्धिप्रकाश’, ‘प्रजाहितैषी’ और ‘कविवचन सुधा’ आदि हिंदी अखबार भी निकाले गए। 'कविवचन सुधा’ का संपादन भारतेन्दु हरिशचन्द्र किया करते थे।

अखबार और भारत का स्वतंत्रता आंदोलन

जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी ने लिखा है "जहाँ तक क्रांतिकारी आंदोलन का संबंध है भारत का क्रांतिकारी आंदोलन बंदूक और बम के साथ नही समाचारपत्रों से शुरु हुआ।"

यह कथन स्पष्ट करता है कि हमारे देश के स्वाधीनता आंदोलन में अखबारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

अजीमुल्ला खां ने 8 फरवरी 1857 को दिल्ली से पयामे आजादी नामक अखबार प्रारंभ किया। अल्पकाल तक जीवित रहे इस अखबार ने ओजस्वी भाषा में लोगों में देश प्रेम की भावना जगाई। पयामे आजादी अखबार से अंग्रेज़ी सरकार इतनी आतंकित थी कि यदि किसी के पास भी इस अखबार की प्रति पायी जाती उसे विद्रोही घोषित कर गोली मार दी जाती थी।

1 जनवरी 1881 में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और विष्णु शास्त्री चिपलणकर ने मराठी में केसरी और अंग्रेजी में मराठा साप्ताहिक अखबार निकाले। केसरी और मराठा ने महाराष्ट्र में जनचेतना फैलाई। लोगों में व्याप्त हीन भावना तथा भय को दूर कर स्वदेश प्रेम की भावना जगाई। राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में इन पत्रों का स्वर्णिम योगदान रहा था।

1896 में भारी आकाल पड़ा जिसके कारण हजारों लोगों की मृत्यु हुई। बंबई में इसी समय प्लेग की महामारी फैली। अंग्रज़ी सरकार ने स्थिति संभालने के लिये सेना बुलायी। सेना ने घर घर तलाशी लेना शुरू कर दिया। जिससे जनता में असंतोष पैदा हो गया। सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए तिलक ने केसरी में एक लेख लिखा। इसके कारण सरकार उनसे क्रोधित हो गई। तिलक को 18 मास का कारावास मिला। तिलक अपने पत्रों के जरिए भारतीय जनमानस में चेतना भरने में कामयाब रहे।

अक्टूबर 1904 में लाला लाजपत राय और उनके सहयोगियों ने सीएफ एंड्रयूज के सुझाव पर ‘द पंजाबी’ नामक अखबार का शुभारंभ किया।

द पंजाबी’ ने अपने प्रथम संस्करण से ही यह ऐलान कर दिया कि अखबार का उद्देश्य अंग्रेज़ी हुकूमत को भारत से उखाड़ फेकने के लिए देश के जनमानस को जाग्रत करना और उनमें राजनीतिक चेतना पैदा करना है। 'द पंजाबी' ने देश के स्वाधीनता आंदोलन में अखबारों की भूमिका को स्पष्ट किया और राष्ट्रवादी पत्रकारिता की नींव डाली।

1919 गाँधी जी ने यंग इंडिया नामक अखबार का संपादन किया। हिन्दी - गुजराती में नवजीवन का प्रकाशन आरंभ किया। इनके माध्यम से उन्होंने अपने राजनीतिक दर्शन, कार्यक्रम और नीतियों का प्रचार किया। उनके व्यक्तित्व ने जनता पर जादू सा कर दिया था। उनकी आवाज पर लोग मर मिटने को तैयार हो गये। ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित कानूनों के कारण जनमत के अभाव में ये पत्र बंद हो गए।

1933 के बाद उन्होंने अंग्रेज़ी में हरिजन और हिन्दी में हरिजन सेवक तथा गुजराती में हरिबंधु का भी प्रकाशन शुरू किया।

पंडित मोतीलाल नेहरू ने भी 1919 में इलाहाबाद से इंडीपेंडेंट नामक अंग्रेजी दैनिक का प्रकाशन शुरू किया।

स्वराज पार्टी के नेता ने दल के कार्यक्रम के प्रचार के लिये 1922 में दिल्ली में के एम पन्नीकर के संपादन में अंग्रेज़ी दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स का प्रकाशन शुरू किया। इसी काल में लाला लाजपत राय के प्रयासों के फलस्वरूप लाहौर से अंग्रेजी राष्ट्रवादी दैनिक पिपुल प्रकाशन शुरू किया गया।

हेमेन्द्र कुमार घोष, शिशिर कुमार घोष और मोतीलाल घोष के संयुक्त प्रयास से 1868 में बंगाल के छोटे से गांव अमृत बाजार से एक बांगला साप्ताहिक पत्र अमृत बाजार पत्रिका की शुरुआत हुई। बाद में यह कलकत्ता से बांगला और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में छपने लगा। वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट के कारण इसे सिर्फ अंग्रेज़ी में ही प्रकाशित किया जाने लगा। 1891 में यह एक दैनिक पत्र में बदल गया।

अमृत बाजार पत्रिका ने तगड़े राष्ट्रीय विचारों का प्रचार किया। सरकारी नीतियों की आलोचना करने के कारण इस अखबार का दमन भी हुआ। इसके कई संपादकों को जेल की भी सजा भुगतनी पड़ी।

अखबार के माध्यम से देश की जनता में जागरूकता फैलाने का काम किया गया। देश के बड़े बड़े नेताओं ने अखबारों में लेख लिख कर लोगों में देश प्रेम की भावना जाग्रत की।

क्रांतिकारी विचारों के जनक विपिन चंद्र पाल ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में जैसे आग भर दी। उन्होंने अपने धारदार विचारों से स्वदेशी आंदोलन में प्राण फूंका और अपने पत्रों के माध्यम से ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार कर स्वदेशी अपनाने की मुहिम चलाई।

पंडित मदन मोहन मालवीय ने भी कई पत्रों का संपादन कर देश की चेतना को प्रबुद्ध करने में अहम भूमिका निभाई। देशभक्त राजा रामपाल सिंह के अनुरोध पर उन्होंने उनके हिंदी व अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदुस्तान का संपादन किया। 1909 में दैनिक अखबार 'लीडर' निकालकर जनमत निर्माण का महान कार्य संपन्न किया। फिर 1924 में दिल्ली आकर ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ को सुव्यवस्थित किया।

गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ नामक अखबार का प्रकाशन कर ब्रिटिश हुकूमत की जड़े कमज़ोर करना शुरु कर दिया। इसमें में प्रकाशित नानक सिंह की ‘सौदा ए वतन’ कविता से नाराज होकर अंग्रेजों ने विद्यार्थी जी पर राजद्रोह का आरोप लगाकर ‘प्रताप’ का प्रकाशन बंद करवा दिया। लेकिन अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध जाकर विद्यार्थी जी ने इसका पुनः प्रकाशन किया।

वारिन्द्र घोष का पत्र युगांतर वास्तव में युगान्तरकारी पत्र था। कोई जान नही पाता था कि इस पत्र का संपादक कौन है। अनेक व्यक्तियों ने ससमय अपने आपको पत्र का संपादक घोषित किया और जेल गये। दमनकारी कानून बनाकर पत्र को बंद किया गया।

18वीं शताब्दी में जब भारतीय समाज बहु-विवाह, बाल-विवाह, जाति प्रथा और पर्दा-प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों से अभिशप्त था तब समाज सुधारक राजाराम मोहन राय ने ‘संवाद कौमुदी’ 'बंगदूत' 'बांगला हेराल्ड' और ‘मिरातुल' अखबार’ के जरिए भारतीय जनमानस को जाग्रत किया।

वर्तमान समय में अखबार

आज के युग को सूचना क्रांति का युग कहा जाता है। सेटेलाइट टीवी के ज़रिए कई हिंदी, अंग्रेज़ी और अन्य भारतीय भाषाओं के न्यूज़ उपलब्ध हैं। यह न्यूज़ चैनल 24 घंटे समाचार एवं वार्ताएं प्रसारित करते हैं। इंटरनेट भी समाचार जानने का एक अच्छा माध्यम है। लेकिन इन सबके बीच आज भी अखबारों की अहमियत कम नहीं हुई है। बहुत से लोगों को अखबार पढ़ने की आदत है। यह एक स्वस्थ व लाभदायक आदत है। जो खबरें आप टीवी पर बहुत तड़क भड़क व उत्तेजना के साथ सुनते हैं उन्हें आप इत्मिनान के साथ अखबार में पढ़ सकते हैं।

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साहित्य में रुचि रखने वालों, बच्चों, महिलाओं के लिए भी अच्छी सामग्री उपलब्ध कराते हैं। कई सरकारी परियोजनाओं की विस्तृत जानकारी हमें अखबारों से ही मिलती है।

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