Pyar ki paribhasha - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार कि परिभाषा - 1

मुबंई, सपनो का शहर! शहर के बिचो बीच जुहू में बनी एक 15 मंजिला आलिशान इमारत, और उस आलिशान इमारत के टॉप फ्लोअर के सबसे मेहंगे फ्लॅट में रेहने वाला एक शक्स रवी कुमार पांडे.

रवी उदास मन से सोफे पर बैठा था, पुरा घर अस्तव्यस्त पडा था. जैसे काफी दिन से वहा सफाई ना हुई हो. घर के पडदे बंद थे इस वजह से कमरे में उजाला बिलकुल नही था और इसके कारण कमरा काफी मनहूसियत भरा लग रहा था.
रवी ने सामने पडी व्हिस्की उठाई और ग्लास में भर उसे मूह से लगा लिया. वो काफी दुःखी लग रहा था. कारण भी था... उसकी प्यारी श्रद्धा, घर छोडकर और उसे छोड कर चली गइ थी हमेशा हमेशा के लिए.
उसने टेबल पर पडी अपनी शादी कि तसवीर उठाई और श्रद्धा को याद करके कहा-"प्लिज श्रद्धा मुझे माफ कर दो, मुझसे बोहोत बडी गलती हो गई. मुझे माफ कर दो... प्लिज वापस आ जाओ...प्लिज!" ये सब बोलते वक्त उसकि आंखो से आंसू बह रहे थे. लेकीन उन आंसुओ कि अब कोई किमत नही थी, क्योकी रवी ने जो श्रद्धा के साथ किया था वो माफी के लायक नही था.

पांच साल पेहले रवी, जबलपूर से मुबंई आया था नोकरी के लिए. उसका जबलपूर में काफी बडा परिवार था. माँ, पापा, दो बडी बेहने और रवी. हलाकी रवी के बेहनो कि शादी हो चुकी थी लेकीन रवी के पापा मोहन पांडे जी ने उनके दोनो दमादो को अपने कारोबार में व्यस्त करके घर जमाई बना लिया था. ये सब उन्होने इतने शातीर तरिके से किया था... कि उनके दोनो जमाई को पता ही नही चला कि कब वो अपने परिवार से दूर हो गये.
रवी कि माँ एक टिपिकल ठकूराईन थी, और बेहने किसी टी. व्ही. सिरीयल कि वॅम्प कि तरह. रवी घर में सबसे छोटा और लाडला. लेकीन उसका दम घुटता था वहा हवेली में. उसका एक ही सपना था... मुबंई!

मुबंई के एक आय. टी. कंपनी में रवी का आज पेहला दिन था. उसने कंपनी में एंटर किया ही था कि लिफ्ट के यहा भीड में प्राची से टकरा गया, प्राची ने उसका आय कार्ड देखा तो कहा -"हाय, आय ऍम प्राची अगरवाल युवर टीम लीडर, आप न्यू जॉईन हैं ना. रवी पांडे,! कल हमारी फोन पर बात हुई थी " प्राची ने मुस्कुराकर रवी ओर हाथ बढाया.
रवी ने भी मुस्कुराकर जवाब दिया और कहा -"एस मॅडम! सॉरी वो भीड में...." रवी के कुछ बोलने से पेहले ही प्राची ने कहा "अरे, ये तो रोज का हैं. सबको ऑफिस जल्दी पोहचना हैं और लिफ्ट सिर्फ दो हैं, तो ये धक्काबुक्की तो चलती रहती हैं, तुम्हे भी आदत हो जायेगी "
रवी बस प्राची कि बात सुनकर मुस्कुरादिया. 7 वि मंजिल आ चुकी थी. रवी और प्राची साथ साथ ही अंदर आये. प्राची को देख सब ने उसे गुड मॉर्निंग विश किया. प्राची ने रवी को उसका डेस्क दिखाया और थोडी देर से केबिन में आना बोलकर अपने केबिन में चली गई.
रवी ने सामने रखा काम्युटर ऑन किया और वहा रखे कुछ नोट्स पढने लगा. तभी साईड से किसी ने कहा -"हाय!न्यू जॉईन "
रवी ने देखा एक लडका जो कि हाईट में उससे थोडा कम था, मुस्कुराकर उसके जवाब का इंतजार कर रहा था.
रवी :"येस, रवी कुमार पांडे!अँड यु? "
"हाय! आय एम मुकुंद दवे "उस लडके ने अपना हाथ बढाकार कहा.
तभी पीछे से किसी लडकी कि आवाज आई "यु.... मुकुंद! आज तो तुम गये.... फिर तुम मुझे बिना बतायें उपर आ गये!" वो लडकी मुकुंद कि ओर गुस्से में आते हुए बडबडाये जा रही थी.
"श्रद्धा मैंने तुम्हे आवाज दी थी, लेकीन तुम तो मॉर्निंग सेल्फी में बिझी थी, प्राची ऑलरेडी आ चुकी हैं.. तो में चला आया कम से कम दोनो में से एक तो बच जाये प्राची कि डाट से " मुकुंद ने सफाई देते हुए कहा.
अब रवी का ध्यान श्रद्धा पर था, उसने देखा तो बस देखता रह गया...गोरा रंग, लंबे सिल्की बाल, भूरी आँखे, कमाल का फिगर और गुलाबी ओठ हाईट में थोडा मार खा गई थी लडकी, लेकीन उसकी खुबसूरती उसके हाईट पर भी मात दे जाती! कुलमिलाके बडा ही जबरदस्त कॉम्बीनेशन थी श्रद्धा!

क्रमश :


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