दो कहानियाँ- एक मीठा सफ़र और स्कूल भाग गया SAMIR GANGULY द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दो कहानियाँ- एक मीठा सफ़र और स्कूल भाग गया

चींटीटोला की सतरंगी चींटी के उस दिन की शुरूआत गन्ने की फांक से मीठा रस चूसते हुए हुई.

यह देख टांयटांय तोता आम के पेड़ को दिखाता हुआ बोला,‘‘ मीठे में आम का जवाब नहीं.’’

सतरंगी चींटी बोली,‘‘ अच्छा,तो वहां तक पहुंचूं कैसे?’’

तोता बोला,‘‘ मेरे पंजे के ऊपर टिक जाओ,मैं तुम्हें एक पके आम पर टिका दूंगा.’’

और अगले ही पल सतरंगी चींटी एक पके आम का रस लपालप चूस रही थी.’’

मगर तभी तेज हवा चलने लगी. आम जोर-जोर से हिलने लगा.चींटी छिटक कर एक पत्ते पर आ गिरी.हवा और तेज चली,पत्ता डाल से टूटा और हवा में उड़ने लगा.संग-संग चींटी भी.

चींटी को डर लगा,उसने पत्ती से पूछा,‘‘हम कहां चले.’’

पत्ती बोली,‘‘जहां हवा ले चले.’’

और पत्ती जा गिरी एक तालाब में. जहां अनेक कमल खिले थे.

चींटी पानी देख रोने लगी.यह देख एक मधुमक्खी पास आकर बोली,‘‘ चुप हो जाओगी तो मीठा-मीठा कमल का रस पिलाऊंगी.चींटी चुप हो गई.

मधुमक्खी उसे अपने पंख पर बिठाकर एक कमल पर ले गई.

चींटी अब सब कुछ भूलकर कमल का मीठा पराग-रस पीने लगी.

थोड़ी देर बाद कमल बोला,‘‘ ऐ चींटी घर जाओ,शाम हो रही है.अब मैं पंखुड़ियां समेट रहा हूं.’’

चींटी बोली,‘‘मगर मेरा तो पेट नहीं भरा,और पानी में मुझे तैरना भी नहीं आता.’’

कमल बोला,‘‘ तो मैं क्या करूं.कूदो पानी में.निकलो यहां से.’’

चींटी जोर-जोर से रोने लगी.यह देखकर एक भौंरे को दया आ गई.

वह बोला,‘‘ चुप हो जाओ और मेरे सिर पर बैठ जाओ.मैं हलवाई की दुकान जा रहा हूं.चलो तुम्हें सबसे मीठा रस पिलाता हूं.जलेबी का रस.’’

भौंरा चींटी को हलवाई के यहां ले गया.वहां उसने छक कर जलेबी का रस पीया.जब पेट भर गया तो उसे घर की याद आई.मगर भौंरा तो गायब हो गया था.चारों तरफ घना अंधेरा छाया था.

चींटी रोने लगी.

तभी एक चूहा आया.उसने पूछा.‘‘तुम चींटीटोला में रहती हो ना?मेरी पूंछ पकड़ कर बैठो.मैं तुम्हें वहां पहुंचा दूंगा.’’

और चूहे ने दौड़ते हुए उसे घर पहुंचा दिया.

घर पहुंच कर सतरंगी चींटी ने मां चींटी की महीन डांट और पिता चींटी की धमाकेवाली डांट खायी.

और उसने जाना कि मां-बाप की डांट में भी कम मिठास नहीं.

*******

दूसरी कहानी

स्कूल भाग गया

स्कूल भाग गया.

घाटी में इस खबर से हंगामा हो गया.

दूर-दूर तक यह अकेला स्कूल था, जो सतरह बच्चों को पढ़ाता था.

बिना किसी कॉपी-किताब और मिस या मास्साब. सबको डांटता रहता था-तुम्हारे पंख निकल रहे हैं!

और लो कल रात खुद ही फुर्र हो गया.

उसे घाटी के घूमन ने जाते देखा. वह उसके घर के ऊपर से ‘टाटा-टाटा बाई-बाई’ कहते हुए गुजरा.

सुबह हुई टोगी और रूमा मिले तो टोगी बोला, ‘‘ मैं जानता था. एक दिन वह चला जाएगा.’’

रूमा ने सिर हिलाकर जवाब दिया, ‘‘ हमें सता-सताकर उसका मन भर गया था. रोज कहता था और बच्चों को ढूंढ कर लाओ.’’

टोगी सिर खुजाते हुए बोला, ‘‘ पता नहीं कहां गया होगा? कैसा होगा?

रूमा बोला, ‘‘ ज्ञान बटारने किसी नयी जगह ! सचमुच बड़ा ज्ञानी था वो.’’

टोगी ने हां मिलाते हुए गहा, ‘‘धरती के नीचे, पानी के अंदर और आकाश के ऊपर तक की बातें बताता था. गणित भी गा-गाकर पढ़ाता था.’’

रूमा ने फैसला लिया, ‘‘ उसे वापस लाना होगा?’’

टोगी: मगर उसका पता-ठिकाना?

रूमा: यही तो उसके पढ़ाए-सिखाए की परीक्षा होगी.

टोगी: यानी हवा की दिशा, नया ज्ञान मिलने की संभावना, नया स्कूल चाहने वालों की धरती. ये सब बातें ध्यान में रखनी होगी.

रूमा: यानी हमें उत्तर-पूर्व दिशा में बढ़ना होगा.

***

फिर टोगी और रूमा अपने स्कूल को ढूंढने और लौटा लाने के लिए निकल पड़े.

सात दिन चलकर, तीन पहाड़ियां और दो नदियां पार कर वे एक नई घाटी में जा पहुंचे.

वहां उनका स्कूल एक नए रूप में खड़ा था. उसे फूलों से सजाया गया था. बीस-बाइस छोटे-छोटे बच्चे आसपास जमा थे.

टोगी को स्कूल पर बड़ा गुस्सा आया. जी चाहा पास जाकर उसे बुरा-भला कहे. लेकिन रोमा ने उसे रोक लिया. उसने अपनी कमर से बांसुरी निकाली और उसे बजाने लगा. स्कूल लहराकर नाचने लगा, साथ-साथ बच्चे भी.

स्कूल जान गया था कि दो विद्यार्थी उसे ढूंढते हुए यहां तक आ पहुंचे हैं.

लेकिन टोगी और रोमा स्कूल के पास नहीं गए. उससे लौट चलने की फरियाद भी नहीं की.

स्कूल खुश रहे. बच्चे खुश रहें.

वे अपनी घाटी की तरफ लौट चले.

रास्ते में टोगी ने रोमा से कहा, ‘‘ हम नया स्कूल बनाएंगे.’’

रोमा सिर हिलाकर बोला, ‘‘ और उसकी बुनियाद इतनी मजबूत बनाएंगे कि वह कभी हमें छोड़कर न जाने पाए.

***