सब कुशल मंगल है
बच्चों लॉक-डाउन किया है हमारी सरकार ने, स्कूल-ऑफिस सब बंद हैं अब से घर पर कामवाली भी नहीं आयेगी और हम भी कहीं बाहर नहीं जायेंगे |
अच्छा हुआ बेटा तुम तो हॉस्टल से घर आ गए वरना मुझे तुम्हारी चिंता सता रही थी | इतने सारे विद्यार्थी एक साथ रहते एवं पढ़ते हैं यदि एक को भी कोरोना का संक्रमण होता तो पूरे हॉस्टल में फ़ैलने में ज्यादा समय न लगता |
ह्म्म्म तुम्हारी माँ ठीक ही कहती है, तुम्हारी परीक्षाएं भी स्थगित हो गयी हैं मई तक छुट्टियां हैं तुम अपनी पढाई लगातार करते रहो, घर की व्यवस्था मैं और तुम्हारी माँ मिलकर संभालेंगे |
“सुनो, नाश्ते में कितनी देर है यदि पंद्रह मिनट का समय है तो मैं नहा कर मंदिर का दीया-बत्ती कर लूं” निशा के पति ने पूछा |
हाँ, यही ठीक रहेगा आप नहा लीजिये |
दो दिन में बिटिया की भी ऑनलाइन क्लासेस शुरू हो गयीं और बेटा भी स्वतः ही अपने कॉलेज की पढाई करने लगा |
अभी कुछ चार दिन ही बीते कि “निशा मुझे गले में दर्द और बुखार जैसी हरारत महसूस हो रही है”
उफ्फ् ! बुखार होना चिंता की बात है, अपने फिजीशियन को फोन करके बताइये, देखते हैं क्या कहते हैं डॉक्टर साहब |
ये लीजिये थर्मामीटर और अपना बुखार देखिये तो कितना है ?
डॉक्टर ने दवा बतायी है और कहा है कि एक कमरे में अपने आप को क्व़ारेनटाइन करके रखिये | लगातार बुखार चेक करते रहिये और मुझे बताते रहिये | यदि दवा से बुखार न उतरे और तेज बुखार हो तो ज़रुरत पड़ने पर मैं अस्पताल में रेफर कर दूंगा |
डॉक्टर की बात सुनकर निशा के माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आयी थीं | वह अपने पति के लिए एक कमरे में अलग रहने की व्यवस्था करने में जुट गयी, एक गद्दा अलग कमरे में सोने के लिए लगा दिया | बाथरूम तो कमरे में है ही, कुछ कपडे देते हुए डॉक्टर के कहे अनुसार हिदायत भी दे दी कि अपने रोज के कपड़े एवं बर्तन वे स्वयं धोएं |
समय-समय पर चाय-नाश्ता, खाना कमरे में ही भेज दिया जाएगा, अब पंद्रह दिन तक ऐसे ही रहना होगा |
घर के सारे दरवाज़े और कुण्डियों को सैनीटाइज़ किया और पूरे घर में डिसइनफेकटेंट डाल कर पोंछा किया |
निशा के पति भी अपने दिमाग पर जोर दे कर सोचने लगे थे कि इन दिनों कहाँ-कहाँ बाहर गए थे, ताकि निश्चित हो सके कि यह कोरोना संक्रमण है या साधारण बुखार ?
थोड़ा सोचा तो याद आया कि पंद्रह दिन पूर्व ही फ्लाईट से मुम्बई जा कर अपने माता-पिता से मिलकर आये थे, सो चिंता बढ़ना लाजमी था |
अब कामवाली नहीं और पूरे घर की साफ़-सफाई से लेकर छोटे-बड़े सभी काम निशा पर आन पड़े थे |
उसने बेटे को घर की स्थिति समझाते हुए कहा “बेटे अब मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता है, मैं काम के समय में अकेली पड़ गयी हूँ”
“ठीक है मॉम”
निशा के पति ने बुखार चेक किया तो १०० डिग्री दिखा रहा था, उनकी फ़िक्र बढ़ने लगी थी सो बोले “मेरी अलमारी से वो इंश्योरेंस, मेडीक्लेम की फ़ाइल लाओ तो”
निशा फाइल लेकर आई और कमरे के बाहर फर्श पर ही बैठ गयी | वे पोलिसीज़ और इंश्योरेंस के बारे में बताते हुए बोले, यदि मुझे अस्पताल जाना हुआ तो उसके बाद तुम से मिल नहीं सकूंगा इसलिए तुम्हें सारी जानकारी होना आवश्यक है, न जाने फोन पर बात हो सके या नहीं | हमारे फाइनेंस एडवाइज़र को बोल कर सारे शेयर भी बेच देने हैं, क्यूंकि न जाने मैं अब संभाल भी सकूंगा या नहीं | और यदि मुझे कुछ हो गया तो दो लाख प्रति माह .....
उनका इतना बोलना था और निशा की घबराहट बढ़ गयी थी, आँखों के आगे अँधेरा सा छाने लगा था, उसने घबराहट में बेटे को पुकारा |
उसे सारी फाइलें दिखाते हुए बोली “अब तुम भी तो अट्ठारह वर्ष के हो चुके हो, इसलिए तुम्हें भी सारी जानकारी होनी चाहिए, पापा जो बोल रहे हैं ध्यान से सुनो”
वह मन ही मन सोचने लगी थी कैसी विकट घड़ी आ गयी है, कभी घर के फाइनेंशियल मैनेजमेंट के बारे में तो सोचा भी नहीं था, पति ने कभी हम पर ज़रा सी आंच भी न आने दी, इतने वर्षों से मेडिक्लेम, पोलिसीज़, इन्वेस्टमेंट वक़्त-वक़्त पर स्वयं ने ही पूरी जिम्मेदारी के साथ संभाल रखा है और आज स्वयं ही खुद के न रहने पर मुझे घर कैसे संभालना है वह समझा रहे हैं, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे |
आँसू पोंछते हुए उसने बेटे से कहा “बेटा ये सब फाइलें संभाल कर आलमारी में रख दो, तू ही मेरा खजांची है, तेरा ही बड़ा सहारा है मुझे”
अनिष्ट की आशंका से पल भर में ही सबकुछ उलट-पुलट होता नज़र आने लगा था | ईश्वर से खैर मनाते हुए वह अपने कमरे में बिटिया को लेकर सो गयी थी |
अगले दिन से बेटा घर के काम में पूरी मदद करने लगा था | सुबह नीचे जा कर दूध लाना, रसोई का डस्टबिन लेकर कूड़ा डाल कर आना, डस्टिंग करना, वैक्यूम क्लीनिंग करना |
वह जब तक यह सब करता निशा खाना पकाती, रसोई की साफ़-सफाई करती, डिश-वाशर लोड करती, यह सब करते हुए मन ही मन ईश्वर से कुशल-मंगल की प्रार्थना करती |
बेटा घर के काम के बाद पढाई करता तो वह मन ही मन उस पर नाज़ करती और उसके सर पर हाथ जरूर फिराती |
करीब दस दिन बीत चुके थे तभी उसका ध्यान मंदिर पर पड़ा जिसमें सुबह-शाम का दिया-बत्ती होना तो बंद ही हो गया था | उसने मौक़ा देख कर कहा “बेटा यह दिया-बत्ती भी तुम कर दिया करो”
“मॉम मुझे ये सब ढकोसले लगते हैं”
फिर भी उस ने कहा “बेटा मैं भगवान में भरोसा करती हूँ, दुःख-सुख में उन्हीं का आसरा होता है, ख़ास कर के जब हमारे हाथ में कुछ न हो तो, डॉक्टर्स भी तो यही कहते हैं “हम कोशिश कर सकते हैं, बाकी सब ईश्वर के हाथ में हैं” इसलिए जब तक पापा की तबियत ठीक नहीं तुम्हें दीया-बत्ती तो करना होगा”
अगले दिन निशा को तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी |
“मॉम आप आराम करें, मैं आपको दाल-चावल-सब्जी बना कर खिला दूंगा”
सच में उसका बनाया गरमा-गरम खाना खा कर मज़ा तो आ ही गया था, गर्व भी महसूस हो रहा था |
अगले दिन निशा सब्जी ले कर आयी, सुपर मार्केट से राशन लेकर आयी, सोशल-डिसटेंसिंग के कारण हर काम में समय ज्यादा लग रहा था | दोपहर का एक बज गया था |
आ कर नहा-धो कर खाना पकाया, बेटे ने पूरी मदद की |
शाम को जब वह रसोई में जाने लगी तो सोचा बेटे को बुला लूं उसके साथ बात करते-करते काम करना अच्छा लगता है |
उसके कमरे में गयी देखा वह गहरी नींद में सोया हुआ था |
सोचा थक गया होगा यह भी तो कितना काम कर रहा है घर में | सो चुपचाप रसोई में आ कर डिश-वाशर से बर्तन खाली कर रैक्स में ज़माने लगी |
तभी बेटा रसोई में आया और डिश-वाशर से बर्तन निकालने लगा |
निशा बोली “तुम तो सोये थे न मैं अभी देख कर आयी थी, एकदम से कैसे आ गए रसोई में”
“मॉम बर्तन की आवाज़ सुन कर आ गया आपको मदद करने”
निशा की ऑंखें भर आयी थीं, उस ने बेटे का माथा चूम लिया |
मन ही मन कहा “नज़र न लगे मेरे फ़ौजी को”
मुस्कराहट होठों पर तैर गयी थी, कल तक रात को देर तक स्पोर्ट्स चैनल देख कर सुबह देर से जागने वाला बेटा हॉस्टल में नाश्ता खाए बिना भागते-दौड़ते क्लास में पहुँचने वाला बेटा, जिसकी वह घर बैठ कर चिंता किया करती अब घर की जिम्मेदारी समझने लगा था |
पंद्रह दिन पूरे हुए पति भी स्वस्थ, साधारण बुखार के चलते आइसोलेशन करना आवशयक था किन्तु अब सब कुशल-मंगल है |
रोचिका अरुण शर्मा, चेन्नई