सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कहानियाँ
1 - ‘भेड़िया, भेड़िया’
एक चरवाहा लड़का गाँव के जरा दूर पहाड़ी पर भेड़ें ले जाया करता था। उसने मजाक करने और गाँववालों पर चड्ढी गाँठने की सोची। दौड़ता हुआ गाँव के अंदर आया और चिल्लाया, ''भेड़िया, भेड़िया! मेरी भेड़ों से भेड़िया लगा है।''
गाँव की जनता टूट पड़ी। भेड़िया खेदने के हथियार ले लिए। लेकिन उनके दौड़ने और व्यर्थ हाथ-पैर मारने की चुटकी लेता हुआ चरवाहा लड़का आँखों में मुसकराता रहा। समय-समय पर कई बार उसने यह हरकत की। लोग धोखा खाकर उतरे चेहरे से लौट आते थे।
एक रोज सही-सही उसकी भेड़ों में भेड़िया लगा और एक के बाद दूसरी भेड़ तोड़ने लगा। डरा हुआ चरवाहा गाँव आया और 'भेड़िया-भेड़िया' चिल्लाया।
गाँव के लोगों ने कहा, ''अबकी बार चकमा नहीं चलने का। चिल्लाता रह।''
लड़के की चिल्लाहट की ओर उन लोगों ने ध्यान नहीं दिया। भेड़िये ने उसके दल की कुल भेड़ें मार डालीं, एक को भी जीता नहीं छोड़ा।
इस कहानी से यह नसीहत मिलती है कि जो झूठ बोलने का आदी है, उसके सच बालने पर भी लोग कभी विश्वास नहीं करते।
***
2 - कंजूस और सोना
एक आदमी था, जिसके पास काफी जमींदारी थी, मगर दुनिया की किसी दूसरी चीज से सोने की उसे अधिक चाह थी। इसलिए पास जितनी जमीन थी, कुल उसने बेच डाली और उसे कई सोने के टुकड़ों में बदला। सोने के इन टुकड़ों को गलाकर उसने बड़ा गोला बनाया और उसे बड़ी हिफाजत से जमीन में गाड़ दिया। उस गोले की उसे जितनी परवाह थी, उतनी न बीवी की थी, न बच्चे की, न खुद अपनी जान की। हर सुबह वह उस गोले को देखने के लिए जाता था और यह मालूम करने के लिए कि किसी ने उसमें हाथ नहीं लगाया! वह देर तक नजर गड़ाए उसे देखा करता था।
कंजूस की इस आदत पर एक दूसरे की निगाह गई। जिस जगह वह सोना गड़ा था, धीरे-धीरे वह ढूँढ़ निकाली गई। आखिर में एक रात किसी ने वह सोना निकाल लिया।
दूसरे रोज सुबह को कंजूस अपनी आदत के अनुसार सोना देखने के लिए गया, मगर जब उसे वह गोला दिखाई न पड़ा, तब वह गम और गुस्से में जामे से बाहर हो गया।
उसके एक पड़ोसी ने उससे पूछा, ''इतना मन क्यों मारे हुए हो? असल में तुम्हारे पास कोई पूँजी नहीं थी, फिर कैसे वह तुम्हारे हाथ से चली गई? तुम सिर्फ एक शौक ताजा किए हुए थे कि तुम्हारे पास पूँजी थी। तुम अब भी खयाल में लिए रह सकते हो कि वह माल तुम्हारे पास है। सोने के उस पीले गोले की जगह उतना ही बड़ा पत्थर का एक टुकड़ा रख दो और सोचते रहो कि वह गोला अब भी मौजूद है। पत्थर का वह टुकड़ा तुम्हारे लिए सोने का गोला ही होगा, क्योंकि उस सोने से तुमने सोनेवाला काम नहीं लिया। अब तक वह गोला तुम्हारे काम नहीं आया। उससे आँखें सेंकने के सिवा काम लेने की कभी तुमने सोची ही नहीं।''
यदि आदमी धन का सदुपयोग न करे, तो उस धन की कोई कीमत नहीं।
***
3 - गधा और मेढक
एक गधा लकड़ी का भारी बोझ लिए जा रहा था। वह एक दलदल में गिर गया। वहाँ मेढकों के बीच जा लगा। रेंकता और चिल्लाता हुआ वह उस तरह साँसें भरने लगा, जैसे दूसरे ही क्षण मर जाएगा।
आखिर को एक मेढक ने कहा, ''दोस्त, जब से तुम इस दलदल में गिरे, ऐसा ढोंग क्यों रच रहे हो? मैं हैरत में हूँ, जब से हम यहाँ हैं, अगर तब से तुम होते तो न जाने क्या करते?"
हर बात को जहाँ तक हो, सँवारना चाहिए। हमसे भी बुरी हालतवाले दुनिया में हैं।
***
4 - दो घड़े
एक घड़ा मिट्टी का बना था, दूसरा पीतल का। दोनों नदी के किनारे रखे थे। इसी समय नदी में बाढ़ आ गई, बहाव में दोनों घड़े बहते चले। बहुत समय मिट्टी के घड़े ने अपने को पीतलवाले से काफी फासले पर रखना चाहा।
पीतलवाले घड़े ने कहा, ''तुम डरो नहीं दोस्त, मैं तुम्हें धक्के न लगाऊँगा।''
मिट्टीवाले ने जवाब दिया, ''तुम जान-बूझकर मुझे धक्के न लगाओगे, सही है; मगर बहाव की वजह से हम दोनों जरूर टकराएँगे। अगर ऐसा हुआ तो तुम्हारे बचाने पर भी में तुम्हारे धक्कों से न बच सकूँगा और मेरे टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे। इसलिए अच्छा है कि हम दोनों अलग-अलग रहें।''
जिससे तुम्हारा नुकसान हो रहा हो, उससे अलग ही रहना अच्छा है, चाहे वह उस समय के लिए तुम्हारा दोस्त भी क्यों न हो।
***
5 - महावीर और गाड़ीवान
एक गाड़ीवान अपनी भरी गाड़ी लिए जा रहा था। गली में कीचड़ था। गाड़ी के पहिए एक खंदक में धँस गए। बैल पूरी ताकत लगाकर भी पहियों को निकाल न सके। बैलों को जुए से खोल देने की जगह गाड़ीवान ऊँचे स्वर में चिल्ला-चिल्लाकर इस बुरे वक्त में देवताओं की मदद माँगने लगा कि वे उसकी गाड़ी में हाथ लगाएँ। उसी समय सबसे बली देवता महावीर गाड़ीवान के सामने आकर खड़े हो गए, क्योंकि उसने उनका नाम लेकर कई दफे उन्हें पुकारा था।
उन्होंने कहा, ''अरे आलसी आदमी! पैंजनी से अपना कंधा लगा, और बैलों को बढ़ने के लिए ललकार। अगर इस तरह गाड़ी नहीं निकली, तब तेरा काम देवताओं को पुकारना होता है। क्या तुम्हारे विचार में यह आता है कि जब तुम खड़े हो, उन्हें तुम्हारे लिए काम करना पड़ता है? यह अनुचित है।''
जो अपनी मदद करता है, ईश्वर उसी की मदद करते हैं।
***
6 - शिकार को निकला शेर
एक शेर एक रोज जंगल में शिकार के लिए निकला। उसके साथ एक गधा और कुछ दूसरे जानवर थे। सब-के-सब यह मत ठहरा कि शिकार का बराबर हिस्सा लिया जाएगा। आखिर एक हिरन पकड़ा और मारा गया। जब साथ के जानवर हिस्सा लगाने चले, शेर ने धक्के मारकर उन्हें अलग कर दिया और कुल हिस्से छाप बैठा।
उसने गुर्राकर कहा, ''बस, हाथ हटा लो। यह हिस्सा मेरा है, क्योंकि मैं जंगल का राजा हूँ और यह हिस्सा इसलिए मेरा है, क्योंकि मैं इसे लेना चाहता हूँ, और यह इसलिए कि मैंने बड़ी मेहनत की है। और एक चौथे हिस्से के लिए तुम्हें मुझसे लड़ना होगा, अगर तुम इसे लेना चाहोगे।'' खैर, उसके साथी न तो कुछ कह सकते थे, न कर सकते थे; जैसा अकसर होता है, शक्ति सत्य पर विजय पाती है, वैसा ही हुआ।
***
7 - सौदागर और कप्तान
एक सौदागर समुद्री यात्रा कर रहा था, एक रोज उसने जहाज के कप्तान से पूछा, ''कैसी मौत से तुम्हारे बाप मरे?"
कप्तान ने कहा, ''जनाब, मेरे पिता, मेरे दादा और मेरे परदादा समंदर में डूब मरे।''
सौदागर ने कहा, ''तो बार-बार समुद्र की यात्रा करते हुए तुम्हें समंदर में डूबकर मरने का खौफ नहीं होता?"
''बिलकुल नहीं,'' कप्तान ने कहा, ''जनाब, कृपा करके बतलाइए कि आपके पिता, दादा और परदादा किस मौत के घाट उतरे?"
सौदागर ने कहा, ''जैसे दूसरे लोग मरते हैं, वे पलंग पर सुख की मौत मरे।''
कप्तान ने जवाब दिया, ''तो आपको पलंग पर लेटने का जितना खौफ होना चाहिए, उससे ज्यादा मुझे समुद्र में जाने का नहीं।''
विपत्ति का अभ्यास पड़ जाने पर वह हमारे लिए रोजमर्रा की बात बन जाती है।
***