शांतनु मातृभारती पर इसी नाम से अत्यंत लोकप्रिय साबित हुए गुजराती उपन्यास का हिन्दी रूपांतरण है इस उपन्यास में एक तरफ़ा प्रेम और दोस्ती की ऊंचाईयों को बड़ी परिपक्वता से दर्शाया गया है आइये साथ साथ पढ़ना शुरू करते हैं... शांतनु!

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शांतनु - 1

शांतनु मातृभारती पर इसी नाम से अत्यंत लोकप्रिय साबित हुए गुजराती उपन्यास का हिन्दी रूपांतरण है इस उपन्यास एक तरफ़ा प्रेम और दोस्ती की ऊंचाईयों को बड़ी परिपक्वता से दर्शाया गया है आइये साथ साथ पढ़ना शुरू करते हैं... शांतनु! ...और पढ़े

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शांतनु - 2

शांतनु अपने ऑफ़िस देर से ज़रूर पहुँचता है, पर बाद में कुछ ऐसा होता है जो शांतनु की जिंदगी पूरी तरह बदल देने की प्रक्रिया की शुरुआत मात्र थी! चलिये जानते है की शांतनु की जिंदगी में तूफान बन कर कौन आने वाला है ...और पढ़े

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शांतनु - 3

शांतनु को उस लड़की का एड्रेस पूछना महज़ इत्तेफाक नहीं था, शांतनु को अभी और कुछ देखना बाकी था, वो लड़की अब शांतनु के आसपास ही दिखनेवाली है, आइये देखते हैं कैसे .... ...और पढ़े

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शांतनु - 4

सरल और शांत शांतनु न जाने क्यों उस अनजान लड़की के पीछे दौड़ पड़ा अब देखना ये है वो लड़की शांतनु के कोम्प्लेक्स में क्यों आई थी और क्या शांतनु की उसके साथ बातचीत हो पायेगी ...और पढ़े

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शांतनु - 5

शांतनु और अक्षय उस लड़की के पीछे पागलों की तरह भागते हैं और वो लड़की कोफ़ी शॉप घुस जाती है क्या वो लड़की के पीछे ये दोनों भी कोफ़ी शॉप में जायेंगे या शांतनु वहीँ हथियार डाल देगा ...और पढ़े

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शांतनु - 6

शांतनु और अनुश्री की पहली मुलाकात अब क्या रंग लाएगी? क्या ये एकमात्र मुलाकात बन के रह जायेगी या दोनों करीब भी आयेंगे? ...और पढ़े

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शांतनु - ७

शांतनु और अनुश्री की अब तो जान पहचान भी हो गयी थी, पर मामला अब टिका था की शांतनु इस कहानी को आगे कैसे बढ़ा पाता है शांतनु का पूरा दारोमदार अक्षय के प्लान पर आधारित था.... ...और पढ़े

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शांतनु - ८

“फ़िर? आपको तो आने में अभी देर थी तो हमने आपसे पूछे बगैर ही आपके पार्किंगवा के बगलवाली जगह दे दी और कहा की आज से यहीं पार्क करियेगा उनका नाम अनुस्री मैडम है, हमका उन्हों ने सौ रुपया भी दिया हम भी बोले दिये रहे की अब आपकी स्कूटी की जिम्मेवारी हमार है सांतनु बाबा आप को तो कोई हर्ज़ा नहीं है ना अगर इ स्कूटी आपकी बाइक के बगल में रहे तो? आप तो पूरा दिन बहार रहते हो, और इनका दिन तो छ बजे ही खत्म हो जाता है, और उ तो पूरा दिन ऑफ़िस में ही रहेगी, अगर आपको कोई तकलीफ़ होगी तो हम हैं ना? अड्जेस्ट कर लेंगे ” मातादीन ने एक ही साँस में बोल दिया ...और पढ़े

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शांतनु - ९

शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) नौ “केन आई कोल यु नाओ इफ़ यु आर नोट बिज़ी? कल का वेन्यु फ़िक्स करें?” अनुश्री का मैसेज आया और शांतनु का चहेरा मुस्कुराया “वेइट, अभी खाना खा रहा हूँ, थोड़ी देर बाद?” शांतनु ने जवाब तो दे दिया पर उससे ही ‘वेइट’ होने वाला नहीं था इस लिये उसने फटाफट खाना खा लिया और खड़े हो कर हाथ धो लिये ज्वलंतभाई को यह सब अच्छा नहीं लगा} “दिन में एक बार ही इसको शांति से खाना खाने को मिलता ...और पढ़े

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शांतनु - १०

शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) दस जोड़ीयों में ही सीड़ियाँ चढ़ रहे थे, मतलब शांतनु और अनुश्री और सीरतदिप और अक्षय| सबसे पहले अक्षय दरवाज़े पर पहुंचा और उसने दरवाज़ा खोल कर दोनों ‘लेडीज़’ को अंदर आने का आदर पूर्ण इशारा किया| यह देख कर शांतनु को लगा की उसे अभी भी अक्षय के पास बहुत कुछ सीखना बाकी है| अंदर जाते ही रेस्तरां के फ्लोर मेनेजर ने कितने लोग है वगैरह की पुछताज की और उन चारों को ‘व्यु साइड’ टेबल दिया, जहाँ से बहार ...और पढ़े

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शांतनु - ११

अक्षय बाइक को उस गली के कोने तक ले गया और फ़िर अनुश्री के घर से पहले वाली गली उसको मोड़ा और फ़िर से अनुश्री के घर की गली में ले कर आया और इस बार उसने बाइक को अनुश्री के घर के दरवाज़े के बिलकुल सामने रखा तब तक अनुश्री अपने बाल सुखा चुकी थी और उन्हें अपने टॉवेल में बांध चुकी थी और जैसे ही अक्षय ने बाइक रोकी उसकी नज़र शांतनु पर पड़ी और शांतनु की अनुश्री पर शांतनु और अक्षय को अपने घर के दरवाज़े पर देख अनुश्री आश्चर्यचकित हो गयी “हेय, वाओ! व्होट अ सरप्राइज? शांतनु...आप यहाँ?” अनुश्री के चेहरे के हावभाव उसकी ख़ुशी ही दिखा रहे थे ...और पढ़े

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शांतनु - १२

शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) बारह “अनु?...अनु?” शांतनु के सुझाव के बारे में क्या किया जाय उसकी सोच में डूबी अनुश्री का शांतनु ने ध्यान भंग किया| “हमम? क्या?” अनुश्री भी अचानक नींद से जागी हो उस तरह शांतनु को देखने लगी| “मेरे घर जायें?” शांतनु ने फ़िरसे पूछा| “हममम... लगता है और कोई रास्ता भी नहीं, पर मुझे मम्मा को बताना होगा|” अनुश्री की आँखे भीगी हुई थी, उसे अभी भी अपने घर ही जाना था वो उसके चेहरे से स्पष्ट दिखाई दे रहा था ...और पढ़े

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शांतनु - १३

शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) तेरह शांतनु, हमने तो सफ़ेद झंडी दिखा दी...युध्द विराम!! आइए अनुश्री मैं आप को हमारे रसोईघर से मिलवाता हूँ...” कह कर ज्वलंतभाई खड़े हुए| “कौन कौन सी सब्जियाँ है?” रसोई में घुसते ही अनुश्री बोली| “फ़िलहाल तो सिर्फ़ भिंडी और आलू ही है, पर हमारे शांतनुभाई को भिंडी ज़रा भी पसंद नहीं है|” ज्वलंतभाई हंसते हुए बोले| उनकी बात सुन कर अनुश्री ज्वलंतभाई के पीछे खड़े शांतनु की ओर देख कर हंस पड़ी| “आज उन्हें भिंडी पसंद आएगी, आई बेट! अंकल ...और पढ़े

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शांतनु - १४

“श्योर अनु, और मैं भी वचन देता हूँ की मैं अपनी यह दोस्ती, चाहे कुछ भी हो जाये मरते तक निभाऊंगा ” अनुश्री का हाथ पकड़ कर शांतनु ने उसे वचन दिया “थैंक्स अ लोट शांतनु...एक बात और भी है जो मुझे आपसे बहुत दिनों से पूछनी थी ” अनुश्री ने अब शांतनु की उत्कंठा को और बढ़ा दिया अब पता नहीं अनुश्री और क्या कहने वाली है? कहीं दोस्ती के बाद वो अपने प्यार कर इज़हार तो नहीं करने वाली है? सोचते हुए शांतनु के दिल की धड़कने तेज़ होने लगी और उसने यह सब सिर्फ़ दो सेकंड्स में सोच भी लिया ...और पढ़े

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शांतनु - १५

शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) पन्द्रह शांतनु ने इतना ही जवाब दिया| “क्या हुआ था?” अनुश्री ने पूछा| “ब्रेस्ट केन्सर... दो साल पहेले ही...” शांतनु ने वाक्य को अधुरा छोड़ दिया| “सेड... पेरेन्ट के जाने से कितना दुःख होता है, मुझे भी उसका अनुभव है|” “हमम... पप्पा ने बहुत सेवा की और डॉक्टर्स ने भी काफ़ी कोशिश की पर आखिर वही हुआ जो होना था|” शांतनु के स्वर में निराशा थी| “आई नो... अंकल भी अकेले हो गए होंगे ना? तुम तो जॉब और फ्रेंड्ज़ ...और पढ़े

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शांतनु - १६

आज और रविवार के बीच तिन दिन और थे, इन तिन दिनों में शांतनु और अनुश्री ऑफ़िस पर हर मिले और वोट्स अप पर भी देर रात तक एक दूसरे से चैट करते रहे और आख़िरकार रविवार भी आ गया, शांतनु सुबह से ही शाम होने का इन्तज़ार करने लगा धीरे धीरे शाम भी हो गई और शांतनु और ज्वलंतभाई पिछले दिन तय किये हुए समय पर अनुश्री के घर पहुंचे...अनुश्री के मम्मा और सुवास ने ज्वलंतभाई और शांतनु का उस दिन अनुश्री को संभाल लेने के लिये दिल से उनका धन्यवाद किया तो ज्वलंतभाई और शांतनु ने भी उन्हों ने जो किया वो उनका फर्ज़ बताया अनुश्री तो जैसे ज्वलंतभाई को सालों से जानती हो वैसे उनकी बगल में बैठ गयी और उनके बारे में उनके घर के बारे में अपने मम्मा और सुवास को बताने लगी ...और पढ़े

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शांतनु - १७

शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) सत्रह का ध्यान अनुश्री की ब्रेसियर से चिपके हुए कुर्ते से दिख रहे, किसी भी पुरुष के स्वप्न में आनेवाले वक्षस्थल पर गया| अनुश्री मेन्यु कार्ड देखने में व्यस्त थी और शांतनु को उसके गुलाबी कुर्ते के पीछे छिपा उसका सफ़ेद अंत:वस्त्र स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था| अनुश्री को इस हालत में देख कर कोई भी पुरुष पागल हो सकता था, शांतनु को तो यह सब अचानक ही भेंट में मिल गया था| शांतनु का ध्यान अब वहां चिपक ...और पढ़े

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शांतनु - १८

शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) अठारह की सीढियां खत्म होते ही शांतनु ने अपने जूते उतारे और सीधा मंदिर के गर्भगृह में दौड़ पड़ा और जिसको अपना दोस्त मानता था वैसे भगवान शिव से उसने अपनी उस ‘भूल’ पर बार बार माफ़ी मांगी और अगर शिव इस माफ़ी को पर्याप्त नहीं मानते तो उसे कठोर सज़ा देने की भी बार बार विनती की| शांतनु ऐसे ही थोड़ी देर शिव लिंग के पास आँखे बंद कर बैठा रहा| दोपहर के इस समय में कोई मंदिर नहीं आता ...और पढ़े

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