मेरे बचपन की यादों में जिस तरह अलीबाबा, सिंदबाद, अलादीन, पंचतंत्र की कहानियाँ और अलिफ़ लैला के संग शहर बगदाद आज भी ज़िंदा है उसी प्रकार पिछले सैंतीस वर्षों से मुम्बई मेरे खून में रच बस गया है जब मैं यहाँ आई थी तो यह बम्बई था अब बम्बई को मुम्बई कहती हूँ तो लगता है एक अजनबी डोर मेरे हाथ में थमा दी गई है जिसका सिरा मुझे कहीं दिखलाई नहीं देता शहरों के नाम जो अनपढ़ गँवार, बूढ़े, बच्चे सबकी ज़बान से चिपक गये हों..... केवल मुम्बई ही नहीं पूरे भारत का हर शहर, हर गाँव बम्बई नाम में अपने सपने खोजता है क्योंकि यह शहर सपनों के सौदागर का है आप सपने खरीदिए वह बेचेगा..... एक से बढ़कर एक लाजवाब सपने..... रुपहले, चमकीले, सुनहले और जादुई.....
Full Novel
आमची मुम्बई - 1
मेरे बचपन की यादों में जिस तरह अलीबाबा, सिंदबाद, अलादीन, पंचतंत्र की कहानियाँ और अलिफ़ लैला के संग शहर आज भी ज़िंदा है उसी प्रकार पिछले सैंतीस वर्षों से मुम्बई मेरे खून में रच बस गया है जब मैं यहाँ आई थी तो यह बम्बई था अब बम्बई को मुम्बई कहती हूँ तो लगता है एक अजनबी डोर मेरे हाथ में थमा दी गई है जिसका सिरा मुझे कहीं दिखलाई नहीं देता शहरों के नाम जो अनपढ़ गँवार, बूढ़े, बच्चे सबकी ज़बान से चिपक गये हों..... केवल मुम्बई ही नहीं पूरे भारत का हर शहर, हर गाँव बम्बई नाम में अपने सपने खोजता है क्योंकि यह शहर सपनों के सौदागर का है आप सपने खरीदिए वह बेचेगा..... एक से बढ़कर एक लाजवाब सपने..... रुपहले, चमकीले, सुनहले और जादुई..... ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 2
गेटवे ऑफ़ इंडिया सेलगा हुआ है ताज महल कॉन्टिनेंटल होटल किसी महल सा भ्रम देता राजसी होटल गोथिककला के खूबसूरत नमूने से बेहद आकर्षक दिखता यह होटल एक सौ चार साल पुराना है इस, पाँच सितारा होटल को यानी ताजमहल पैलेस एंड टॉवर को एशिया के प्रमुख होटलका दर्ज़ा दिया गया है बेहद रोचक है इसके निर्माण की कहानी सिनेमा के जनक लुमायर भाईयों ने अपनी पहली फिल्म मुम्बई केआलीशान होटल बोटसनमें ७ जुलाई १८९६ को प्रदर्शित की ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 3
मैं मुम्बई के अतीत की गलियों से गुज़र रही हूँ..... यहाँ गेटवे ऑफ़ इन्डिया और ताज महल की भव्यता सजधज नहीं है फिर आँखें चकित क्यों हैं? कहाँ है मेरी मुम्बई ये तो हरे भरे जंगलों, खेतों और आदिवासियों से भरी कोई अनजानी जगह है यहाँ की दो जनजातियों से मैं रूबरू होती हूँ कोली और अगरिया जो ईसा पूर्व से यहाँ रहती आई हैं इनके वंशज मछुआरों और नमक बनाने वाले मज़दूरों के रूप में जाने जाते हैं यह वंश परम्परा आज भी कायम है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 4
अतीत पीछे छूट गया और मैं आ पहुँची कोलियों के कर्मक्षेत्रससून डॉक में जो कोलाबा में स्थित है ब्रह्ममुहूर्त में सूरज के उदय होने का संकेत देता सुरमई उजाला..... इसी उजाले केसाथ जाग उठता है ससून डॉक कोली मछुआरों की चहल-पहल..... सिर पर मछली का टोकरा लादे भागती मछुआरिनें, केयरटेकर्स, मछलियों को छाँटते और बड़ी-बड़ी टोकरियों व प्लास्टिक की थैलियों में भरते दिहाड़ी मज़दूर, बर्फ़ व डीज़ल कीहाथ गाड़ियों और रपटीली-सँकरी सड़कों पर फैले मछली मारने के जालों के जंजाल से भरी सुबह रौनक से लबरेज हो उठती है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 5
लंदन में मैंने टफ़ालगर स्क्वेयर देखा था जहाँ नेल्सन की प्रतिमा हैं प्रतिमा के चारों ओर चार शेर काले पत्थर से बने हैं इस पूरे कॉलम को नेल्सन कॉलम कहतेहैं अब देखिये कुछ इसी तरह का बल्कि इससे भी खूबसूरत मुम्बई का टाइम्स स्क्वेयर मुझे आवाज़ दे रहा हैकि“आओ, हमें देखो, हममें छुपे इतिहास की परतें खोलो..... उसमें तुम मुझे पाओगी और खुद को भी ” हाँ सच ही है..... अँग्रेज़ों के शासन काल में बनी टाइम्स स्क्वायर की तमाम इमारतें..... अब मुम्बई की धरोहर मानी जाती हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 6
मुम्बई का फोर्ट इलाका बेहद मशहूर इमारतों के लिए जाना जाता है यहाँ की डी. एन. रोड(दादाभाई रोड) के नाम से टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सामने की सड़क पहचानी जाती है यह सड़क और विक्टोरिया टर्मिनस तीस पैंतीस साल पहले साहित्यकारों के आकर्षण का केंद्र था क्योंकि तब टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप से हिंदी, अंग्रेज़ी की बेहतरीन साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक पत्रिकाएँ निकलती थीं धर्मयुग, सारिका, माधुरी, नंदन, ऑनलुकर, इलस्ट्रेटेड वीकली जैसी बड़े सर्कुलेशन की पत्रिकाएँ यहाँ से निकलती थीं और भारत के हर शहर के पाठक वर्ग तक हाथों हाथ पहुँच जातीं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 7
भिंडी बाज़ार मुम्बई का मुस्लिम बहुल आबादी वाला वो हिस्सा है जहाँ हर वक़्तजनसमूह उमड़ा नज़र आता है भिंडी बाज़ार ने अपने नाम के लफ़्ज़ के सफ़र में तीन परतों को पार किया है इस जगह में दरख़्त के नीचे आसपास के गाँवों के हाट लगा करते थे इसलिए इसका नाम भिंडी बाज़ार पड़ा यहीं कहीं बर्तन भीबना करते थे बर्तन को मराठी में भांडी कहते हैं एक वजह यह भी है तीसरी वजह है कि फोर्ट में स्थित क्रेफ़र्ड मार्केट के पीछे बसा होने के कारण इसे बिहाइंड मार्केट कहते थे जो बाद में बिहाइंड का भिंडी हो गया है वैसे अब यह क्षेत्र बहुत विस्तार ले चुका है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 8
सवा सौ बरसों से भी अधिक पुरानी विश्व की सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशन कहलाने वाली इमारत अब छत्रपति शिवाजी कहलाती है शॉर्ट में सीएसटी..... यह भारत का पहला रेलवे स्टेशन और एशिया की पहली ट्रेन के चलने का गौरव भी प्राप्त कर चुका है दूर से भव्यता का एहसास कराती और नज़दीक से अपनी खूबसूरती से आकर्षित करती इस इमारत का स्थापत्य विक्टोरियन नियो, गोथिक शैली का है इसके ३३०फीट ऊँचे बुर्ज, कंगूरेदार खंभे, नुकीली मेहराब व मीनारें, घेरेदार सीढ़ियाँ, अर्धवृत्ताकार तोरण, कलश, गोलगुंबद, पच्चीकारी कला की फूल पत्तियाँ सहज आकर्षित करती हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 9
गुज़रे ज़माने में कोलाबा पश्चिम रेलवे का टर्मिनस हुआ करता था बॉम्बे बैकवे की पहली उपनगरीय ट्रेन रोड और बसीन रोड के बीच १ नवंबर १८६५ में चली उपनगरीय इलाक़े जहाँ समुद्री खाड़ियाँ थीं, खाड़ियों को पाटकर समतल कर रेलवे ट्रेक बनायेगये ३०जून १८७३ में बम्बई सरकार ने जब चर्चगेट और कोलाबा के पास पैसेंज रस्टेशन की डिज़ाइन को मंजूरी दी तो ससून डॉक के निकट समुद्र पाट कर कोलाबा स्टेशन खोला गया कोलाबा से ही सबसे अधिक मछली की टोकरियाँ ट्रेनों में लादकर बाज़ार भेजी जाती थीं ३१ दिसंबर १९३० के दिन कोलाबा से आख़िरी ट्रेन चली और कोलाबा स्टेशन बंद कर दिया गया ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 10
जब मेट्रो चलने लगी है तो विक्टोरिया अलविदा कह रही है इस शाही घोड़ा गाड़ी का सफ़र ख़तम होने जा रहा है पेटा और एनिमल एंड बर्ड चेरिटेबल ट्रस्ट बहुत तनाव में था कि इस पर बैन लगाया जाए क्योंकि यह घोड़ों के हित में नहीं है उसने मुम्बई हाईकोर्ट में इस पर रोक लगाने की अपील की थी हाईकोर्ट ने याचिका मंजूर कर ली और ढलते सूरज के सुरमई अँधेरे ने जुहू सागर तट पर तिलिस्म सा रचती विक्टोरिया का रोमेंटिक सफ़र ख़तम हुआ ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 11
जिस समय अंग्रेज़ों ने मुम्बई में पदार्पण किया था घाटियों के बाहुल्य के साथ ही धनी घरानों की तादाद यहाँ बढ़ने लगी थी पर्शिया से पारसी भी आकर मुम्बई में बसने लगे वे जोरोस्ट्रियन यानी जरथ्रुस्ट धर्म के थे और पवित्र अग्नि ईरान शाह के उपासक वैसे दीव में बसे पारसियों को अंग्रेज़ों ने मुम्बई में ‘टॉवर ऑफ़ साइलेन्स’ बनाने के लिए आमंत्रित किया ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 12
प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुए भारतीय वीर सैनिकों को श्रृद्धांजलि देते हुए उनकी याद में तीन स्मारक बनाए गये पी डिमेलो रोड ठाना स्ट्रीट स्थित इंडियन सेलर्स होम स्थित बॉम्बे मेमोरियल (१९१४-१९१८) जो २२०७ भारतीय अदनी और पूर्वी अफ़्रीकी मरींस शहीदों के नाम समर्पित है स्मारक के हॉल में आठ पैनलों में इन शहीदों के नाम दर्ज़ हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 13
गिरगाँव चौपाटी को महानगर का दिल कहा गया है इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है ने‘अँग्रेज़ों भारत छोड़ो’का नारा सर्वप्रथम ग्रांट रोड स्थित गवालिया टैंक से आरंभ किया था और क्रांतिकारियों का दल गिरगाँव चौपाटी समुद्र तट पर इकट्ठा हुआ था उस वक्त यह तट नारियल के पेड़ों से भरा था अब इक्का दुक्का ही रह गए हैं नारियल के पेड़ अब यहाँ नाना-नानी पार्क बन गया है जिसमें बुजुर्ग टहलते-बतियाते हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 14
गिरगाँव चौपाटी से मालाबार हिल की चढ़ाई बाबुलनाथ से शुरू होती है व्हाईट हाउस, वालकेश्वर, बाणगंगा, राजभवन..... पहुँचकर मालाबार हिल का एक कोना समाप्त हो जाता है चढ़ाई चढ़ते हुए लगता है मानो कोई पहाड़ी शहर हो मुम्बई के उमस भरे मौसम से छुटकारा मिल जाता है और ताज़गी भरी ठंडक बदन को तरोताज़ा कर देती है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 15
प्रियदर्शिनी पार्क से महालक्ष्मी तक की सड़क महत्त्वपूर्ण इमारतों से युक्त है मुकेश चौक में गायक मुकेश स्मृति में सी स्टोन से बनी दो मूर्तियाँ स्थापित हैं जो भारतीय संगीत का बेहतरीन नमूना हैं पैडर रोड, भूलाभाई देसाई रोड, ब्रीच कैंडी अस्पताल जो फिल्मी हस्तियों के इलाज के लिए जाना जाता है और जहाँ भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के घुटनों का ऑपरेशन हुआ था, वार्डन रोड का प्रभुकुंज स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर का निवास स्थान है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 16
भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब भीमराव रामजी आंबेडकर की सवा सौवीं जयंती वर्ष के अवसर पर दादर के इंदु मिल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों ४२५ करोड़ रुपये लागत से देश के भव्यतम आंबेडकर स्मारक का भूमिपूजन भी सम्पन्न हुआ है चैत्य भूमि जहाँ ६ दिसंबर को बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर उनकी भस्म और अन्य अवशेषों के दर्शन के लिए देश, विदेश के कोने-कोने से अनुयायी आते हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 17
मुम्बई मैं घूमने के लिए नहीं बल्कि यहीं बस जाने के लिएआई थी जब जबलपुर में थी कच्ची उमर के मेरे लेखन में प्रौढ़ता नहीं थी हालाँकि मेरी कहानियाँ तब भी बड़ी बड़ी पत्रिकाओं धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, ज्ञानोदय, सारिका, कहानीआदि में प्रकाशित हुई हैं लेकिन मेरे लेखन को प्रौढ़ता मुम्बई ने ही दी मुझे पत्रकारिता के लिए ज़मीन भी मुम्बई ने ही दी मुम्बई के फलक पर मेरे ढेरों दोस्त बने आज मुम्बई का पूरा साहित्यिक वर्ग मेरा दोस्त है नई पीढ़ी की युवा लेखिकाएँ मुझे अपना आदर्श मानती हैं और मैं उन्हें यथासंभव प्रमोट भी करती हूँ आज ये सब मेरीअंतरंग सहेलियाँ हैं मुम्बई ने मुझे जीना सिखाया, मुम्बई तुझे सलाम ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 18
मुम्बई में इटीएफ(दि एक्सपेरिमेन्टल थियेटर फाउंडेशन)एक रंग आंदोलन के रूप में उभरा जिसके प्रणेता मंजुल भारद्वाज हैं ऑफ़ रेलेवेंस इटीएफ़ का दर्शन है जो अन्य नाट्य संस्थाओं से अलग हटकर सहभागियों को मंच नाटक और जीवन का सम्बन्ध, नाट्य लेखन, अभिनय, निर्देशन, समीक्षा, नेपथ्य, रंगशिल्प, रंगभूषा आदि विभिन्न रंग आयामों को प्रदान करता है, प्रशिक्षित करता है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 19
ग्रांटरोड स्टेशन से मात्र एक किलोमीटर के फासले पर है कमाठीपुरा मुम्बई में कमाठीपुरा दो तरह से जाता है मराठी के मशहूर लेखक जिन्होंने दलित पैंथर जैसे क्रन्तिकारी संगठन की स्थापना की कमाठीपुरा में ही पैदा हुए और वे थे नामदेव ढसाल नामदेव ढसाल महार जाति के थे और उनके माता पिता कमाठीपुरा स्थित छोटे से बीड़ी कारखाने में श्रमिक थे उनका काव्य संग्रह ‘गोलपीठा’ जबरदस्त चर्चा का विषय था ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 20
ऑपेरा हाउस मरीन लाइन्स रेलवे स्टेशन के सामने है द रॉयल ऑपेरा हाउस नाम से जाना जाने यह भारत का एकमात्र ऑपेरा हाउस है जिसका निर्माण १९०९ में अंग्रेज़ों के शासनकाल में हुआ जब जॉर्ज पंचम १९११ में मुम्बई आये तो इसका उद्घाटन उनके हाथों हुआ था हालाँकि यह पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ १९१५ में ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 21
मरीन लाइन्स और चर्नीरोड के बीच में यदि पैदल चला जाए तो धोबी तालाब इलाके में मिलेगा परिदृश्य प्रकाशन विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का मशहूर बिक्री केन्द्र है पहले यहाँ से पुस्तकें भी प्रकाशित होती थीं मैंने मुम्बई के कथाकारों की सांप्रदायिक दंगे और विभाजन पर आधारित कहानियों की पुस्तक संपादित की थी ‘नहीं, अब और नहीं’ यह पुस्तक परिदृश्य प्रकाशनसे प्रकाशित हुई और बहुत अधिक चर्चित भी हुई ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 22
मुम्बई में एक और विशिष्ट आकर्षण का केन्द्र है ठीक धोबी घाट की तरह ही डिब्बावाला एसोसिएशन मेरा मुम्बई में पदार्पण हुआ और आर टी वी सी में मेरा कॉपी राईटिंग का काम शुरू हुआ तो मैं रोज़ ही देखती..... सफेद कपड़ों में डिब्बावाला एक जैसे टिफ़िन सबको पकड़ा कर चला जाता उन एक जैसे टिफिन कैरियर में लाल अक्षरों में नम्बर अंकित होते वही लाल नंबर पहचान थे उन टिफिन कैरियर के मालिकों के जिन्हें लँच के समय खोलकर सब अपने-अपने घरों के खाने का आनंद लेते थे ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 23
मुम्बई में भव्यता के पैमाने पर जो दर्ज़ा छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, ताजमहल होटल, मरीन ड्राइव, गिरगाँव चौपाटी का है दर्ज़ा किंग्ज़ सर्किल का है ब्रिटिश शासनकाल में यह पूरा इलाका किंग्ज़ सर्किल के नाम से प्रचलित था किन्तु अब यह माहेश्वरी उद्यान के नाम से जाना जाता है हालाँकि रेलवे स्टेशन किंग्ज़ सर्किल ही कहलाता है जो सीधे वी. टी. तक जाता है किंग्ज़ सर्कल के पास साउथ इंडिया एजुकेशन सोसाइटी हाईस्कूल है जो मुम्बई के पुराने स्कूलों में से एक है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 24
दशकों पहले सायन को मुम्बई की सरहद या प्रवेश द्वार कहा जाता था मराठी में इसे शीव हैं जिसका अर्थ है बाऊँड्री सायन रेलवे स्टेशन सैंट्रल और हार्बर लाइनों से जुड़ा है यहाँ का ऐतिहासिक स्थान है हिल टॉ पगार्डन जहाँ सायन का किला स्थित है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 25
१७५ हेक्टेयर भूमि पर बसा धारावी एशिया का सबसे बड़ा स्लम एरिया है पहले धारावी द्वीप पर मछुआरे रहते थे और बहुतायत से मेंग्रोव्ज़ की झाड़ियाँ थीं कोली मछुआरों को कोलीवाड़ा में स्थानान्तरित कर १८८२ में धारावी बसाया गया ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 26
मुम्बई बड़े दिलवाली है, सुनहले सपनों की खान है सबको अपने मेंसमेट भी लेती है और सपनों सच करने का रास्ता भी दिखाती है मुम्बई ने न जाने कितने गाँवों को अपने में समेट लिया है जो आते तो ठाणे, अलीगढ़, डोंबीवली, कल्याण में हैं पर उनके सूत्र मुम्बई से जुड़े हैं कुर्ला से आगे विद्याविहार, घाटकोपर, सानवाड़ा, विक्रोली, कांजुर मार्ग, भांडुप, मुलुंड, ठाणे, भिवंडी, नेरल, कर्जत और फिर इसतरफ़ नवी मुम्बई, वाशी, नेरुल, बेलापुर..... इनको जोड़ता है ठाणे क्रीक, बृहन्मुम्बई ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 27
स्पा के इस युग में शायद ही किसी को यकीन होगा कि मुम्बई जैसे महानगर में मुग़ल हमाम भी करते थे बल्कि थोड़ी सी खोजबीन से उनके आज भी मौजूद होने की पुख़्तगी हासिल हुई सैंडहर्स्ट रोड से कुछ ही दूरी पर स्थित डोंगरी में ये मुग़ल हमाम मौजूद हैं हालाँकि वहाँ स्थित ईरानी या मुग़ल मस्जिद जैसी शान इस हमाम को नहीं मिल पाई है पर यह उससे भी ज़्यादा पुराना और ऐतिहासिक है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 28
जब जबलपुर में थी तो मुम्बई का मराठा मंदिर सिनेमाघर बहुत आकर्षित करता था मुम्बई सैंट्रल स्टेशन सामने यह सिनेमाघर सालों साल चलने वाली सुपरहिट फिल्मों से दर्शक वर्ग को अपनी ओर खींचता था मराठा मंदिर में मैंने पहली फिल्म देखी“दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे” जब यह फिल्म रिलीज़ हुई थी तो इसकी नायिका काजोल की शादी नहीं हुई थी और यह फिल्म अभी भी मॉर्निंग शो में चल रही है काजोल की शादी हुई, बच्चे हुए और फिल्म चलती रही निश्चय ही काजोल जब मराठा मंदिर के सामने से गुज़रती होगीतो ये शेर उसके ज़ेहन में आता होगा- ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 29
बदलाव फिल्म स्टूडियो में भी आया है एक ज़माना था जब आउटडोर शूटिंग नहीं के बराबर होती ज़्यादा से ज़्यादा शूटिंग हुई भी तो कश्मीर की दिलकश वादियों में तब स्टूडियो में ही नगर,मोहल्ले, मंदिर, महल, किले, नदियाँ, पहाड़ सब हुआ करते थे और खूबी यह कि दर्शकों को पता भी नहीं चलता था कि सब कुछ नकली है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 30
गोरेगाँव में ५२० एकड़ भूमि पर फैली है फिल्म सिटी जिसे ३० अप्रैल २००१ में फिल्मों के जनक दादासाहब चित्रनगरी नाम दियागया है २६ सितंबर १९७७ में इसका उद्घाटन हुआ और यहाँ छोटे परदे यानी टी. वी. सीरियल्स की शूटिंग आरंभ हुई बड़े परदे की फिल्में भी यहाँ शूट की जाती हैं दो लाख स्क्वेयर फीट के कार्पेट एरिया में१६स्टूडियो निर्मित हैं यहाँपूरी कायनात मय लावलश्कर के मौजूद है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 31
गोरेगाँव पूर्व में एक बहुत बड़ालगभग १६ स्क्वेयरकिलोमीटर तक फैला हरा भरा इलाका है जिसे आरे कॉलोनी से जाना है १९४९ में यहाँ मिल्ककॉलोनी बनी जिसमें भैंसों के ३२ तबेले हैं और उन तबेलों में १६००० भैंस हैं ये तबेले १२८७ हेक्टेयर एरिया में हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 32
मुम्बई में हर त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है होली, दीपवाली, ईद, क्रिसमस, गणेशोत्सव बाज़ारों की सजधज ही पता लग जाते हैं रथयात्रा जुहू स्थित इस्कॉन मंदिर से शुरू होकर जब मुम्बई की सड़कों पर निकलती है तो पूरा मुम्बई कृष्णमय हो जाता है बिहार की छठ पूजा गिरगाँव चौपाटी और जुहू के तट पर हज़ारों की भीड़ में सम्पन्न होती है लेकिन छठ पूजा ने राजनीतिक रूप ले लिया है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 33
ब्राह्ममुहूर्त में यानी चार बजे से ही भूलेश्वर में फूलों से लदे ट्रक फूलों की दुकानों पर उँडलना शुरू जाते हैं हवाओं में भक्तों की आस्थाके स्वर मुखरित होते हैं और शंखनाद और घंटानाद राहगीरों को पलभर ठिठका देता है कारोबारी महानगरी के दक्षिण में सैंकड़ों सालों से बसा यह जो भूलेश्वर इलाका है यहाँ सौ से भी ज़्यादा मंदिर हैं और उससे भी कहीं अधिक भक्तों की भीड़ भूलेश्वर मंदिर में शंकरजी विराजमान हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 34
वैसे तो मुम्बई जो किसी ज़माने में हरा भरा नदी, सरोवरऔर समँदर को अपने आगोश में समेटे पूरी दुनिया आकर्षित करता था, अब विकास के जुनून में कंकरीट के जंगलों में बदलता जा रहा है बहुमंज़िली इमारतें मॉल, मेट्रो और बढ़ती जनसंख्या इसकी पहचान बन गये हैं लेकिन पारसियों, मारवाड़ियों, पुर्तगालियों और अंग्रेज़ों के कुछ बँगले अब भी यदा कदा मुम्बई की रौनक कहे जा सकते हैं हालाँकि कई बँगलों ने अब रूप भी बदल लिया है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 35
बांद्रा रिक्लेमेशन से वर्ली की आधा घंटे की दूरी आठ मिनट से भी कम समय में!! सचमुच यकीन नहीं मगर ये संभव कर दिखाया है बाँद्रा वर्ली सी लिंक ने सचमुच ये सफ़र बेहद रोमाँचकारी है सी लिंक पर बने विशालकाय तारों से सुसज्जित ब्रिज सम्मोहित कर लेता है और जब उसके बीच से गुज़रती हैं गाड़ियाँ तो लगता है मानो साँसें थम जाएँगी ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 36
जब भी वर्ली सी लिंक से गुज़रती हूँ लगता है समँदर मेरा हमसफ़र है नजाने मुझसे कहाँ-कहाँ सैर करा देता है न जाने कितने तटों पर बैठाकर अपनी लहरों से मुझे छूता है, बतियाता है मानो कह रहा हो..... मैं तुम्हारी हँसी में समा जाना चाहता हूँ हवा की तरह भर जाना चाहता हूँ तुममें उड़ा देना चाहता हूँ तुममें जमा दुख-पीड़ा..... मैं अचकचा जाती हूँ याद आता है जुहू सागर तट जो मेरे मुम्बई आगमन का पहला साक्षी है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 37
प्रकृति ने न केवल सुरम्य तटों की समृद्धि मुम्बई कोदी है बल्कि अरब महासागर के साथ-साथचली गई समुद्र रेखा सामानांतर पश्चिमी घाट माथेरान, खंडाला, लोनावला, अम्बोली, एम्बीवैली और महाबलेश्वर जैसे हरे भरे पर्वतीय सैरगाह भी हैं जिन्हें मुम्बई वासी हिलस्टेशन कहते हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 38
जनवरी लगते ही मुम्बई का आकाश और खाड़ियों के किनारे खूबसूरत गुलाबीपंखों वाले समुद्री पक्षी फ्लेमिंगो से भर जाता मुम्बई में खारे समुद्री पानी की कई खाड़ियाँ हैं पश्चिम में माहिम की खाड़ी, बाँद्रा की खाड़ी, मालाड की खाड़ी है पूर्व में भी कई खाड़ियाँ हैं मुम्बई से जुड़े उपनगरों और गाँवों उरण, करनाला, पनवेल, शिवड़ी में खाड़ियाँ मेंग्रोव्ज़ से घिरी हैं मइन्हींमेंग्रोव्ज़ की सघनता में बर्फीले देशों जैसे साइबेरिया आदि से आये ये प्रवासी पक्षी प्रजनन करते हैं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 39
चर्चगेट से विरार तक जाने वाली लोकल ट्रेन मुम्बई की सबसे रोमाँचक यात्रा कराती है इस पर आवर्स में चढ़ना तो दूर दरवाज़े पर लटकने भी मिल जाए तो अहो भाग्य मुम्बई की ज़िन्दग़ी केअसल रंग दिखाती है यह लोकल भीड़ भड़क्के का पर्याय व मानक, खट्टी मीठी यादों से जुड़ा और लगभग मिथक विरार पश्चिम रेल का अंतिम स्टेशन है यहाँ से पालघर, दहाणू, सूरत, भरूच, वलसाड़ के लिए शटल भी जाती है ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 40
एक ज़माने में मुम्बई में पारदर्शी मीठे पानी की पाँच प्रमुख नदियाँ बहती थीं उल्हास नदी जहाँ क्रीक में फिल्म वालों के आकर्षण का केन्द्र रही वहीं मीठे स्वच्छ जल से लबालब ये नदियाँ मुम्बई के पर्यावरण की खूबसूरती में चार चाँद लगाती थीं ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 41
मुम्बई कभी सोती नहीं उसकी नाइटलाइफ़ के बारे में यही कहा जाता है मुझे याद रहाहै ‘मुम्बई रात की बाहों में’ एथेना, लश, पॉइजन, वेलोसिटी, अजियानो, व्हाइट, इन्सोम्निया और इनिग्मा के डांस फ्लोर्स, कॉफ़ी शॉप्स और बार्स रात भर गुलज़ार रहते थे इन्हीं में से तय किया जाता था पार्टी का कांसेप्ट, थीम्स ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 42
शायद यही वजह है कि मुम्बई की जीवन रेखा कही जाने वाली लोकल ट्रेन चौबीसों घंटे में से कभी खाली नहीं मिलती प्रत्येक प्रहर अलग-अलग तरह की भीड़ ट्रेन में सफ़र करती नज़र आती है सुबह शाम दफ़्तर के कर्मचारियों और विद्यार्थियों की भीड़, दोपहर को शॉपिंग, बिज़नेसवालों को रात को फिल्मी दुनिया में संघर्ष करने वालों, ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 44 - Last Part
मुम्बई से अगर चॉल शब्द हटा दिया जाए तो मुम्बई की पहचान और इतिहास दोनों ख़त्म हो जाएँगे चॉल मुम्बईकरों की एकजुटता का उदहारण है वरनादस बाई दस के कमरे में दस पंद्रह लोगों का एक साथ रहना क्या संभव है?चॉल ने कितनी ही महान हस्तियों को संघर्ष के शुरूआती दिनों में पनाह दी है फिल्मी दुनिया के तो ज़्यादातर कलाकारचॉल में ही रहकर फिल्मी संघर्ष करते थे ...और पढ़े
आमची मुम्बई - 43
मुम्बई की अपनी अलग संस्कृति है मुम्बई में हर शख़्स ज़िन्दादिल है वो ज़िन्दग़ी को हाल में हँसते-हँसते जीता है चाहे भीड़ भरी लोकल हो, अनवरत होती घनघोर बारिश हो..... कभी रूकती नहीं मुम्बई मानो हर हाल में सब कुछ अपनी पहुँच में हो दिन भर की कड़ी मेहनत, कार्यालय पहुँचने की आपाधापी के बावजूद मुम्बई कर मौज-मस्ती का कोई मौका नहीं चूकते ...और पढ़े