दुनिया के इस आपाधापी में राधिका अपने आप को धकेलते हुए आगे बढती जा रही थी। उसे सिर्फ इतना पता था कि किसी भी तरह उसे अपने आप को संभालते हुए आगे बढना है आत्मनिर्भर बनना है।, और अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे घर की चारदीवारी में ही कैद रहना पडेगा। क्योंकि वह जानती थी,भारतीय सामाजिक ढांचा कुछ इस तरह ही है पढाई खत्म होते ही शादी। मानो लडकियों को सिर्फ इसलिए पढाया जाता है कि शादी हो जाए।जबकि दुनिया वैैैश्विक स्तर पर दुुनिया 21/22 शताब्दी की ओर अग्रसर होते जा रही है पर लोगों की संकीर्ण सोच
नए एपिसोड्स : : Every Thursday
एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - भाग - 1
दुनिया के इस आपाधापी में राधिका अपने आप को धकेलते हुए आगे बढती जा रही थी। उसे सिर्फ इतना था कि किसी भी तरह उसे अपने आप को संभालते हुए आगे बढना है आत्मनिर्भर बनना है।, और अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे घर की चारदीवारी में ही कैद रहना पडेगा। क्योंकि वह जानती थी,भारतीय सामाजिक ढांचा कुछ इस तरह ही है पढाई खत्म होते ही शादी। मानो लडकियों को सिर्फ इसलिए पढाया जाता है कि शादी हो जाए।जबकि दुनिया वैैैश्विक स्तर पर दुुनिया 21/22 शताब्दी की ओर अग्रसर होते जा रही है पर लोगों की संकीर्ण सोच ...और पढ़े
एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - भाग - 2
बात उन दोनों की है जब अनामिका शोध छात्रा थी,' अर्थात एम ए द्वितीय वर्ष की' और उन दिनों में द्वितीय वर्ष में लघु शोध करना होता था साथ ही किसी विद्यालय में ढाई तीन महीने पढाना होता था। अत: एक दिन वो समय भी आ गया जब सभी को शोध कार्य हेतु अलग अलग गट मेंं बांंट दिया गया। सभी छात्राएँ अपने अपने काम में लग गईं । एक दिन उनकी सुपरवाइजर ने कहा अनामिका तुम 10 से 15 दिन लगभग कक्षा दसवीं को पढाओगी। समय सारणी के अनुसार अनामिका दसवीं कक्षा में पढाने ...और पढ़े
एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - भाग - 3
आधुनिक युग के इस स्पर्धा में हर कोई मशीन की भाँति बस भागता जा रहा है। हर ओर धमाका "बस तीव्र गति से भागता हुआ यह युग यंत्रवत बनता जा रहा है, किसी के पास किसी के लिए वक्त नही ं। जब समय मानव का साथ दे तो जिंदगी के क्षण पवित्र आशीर्वाद सा लगने लगता है और जो साथ न दे तो " मानो जिंदगी बोझ लगने लगती है " ऐसे ही झंझावातों को स्वीकारती क्षमा जब पहली बार युनिवर्सिटी में पढने आयी तो अकस्मात ही सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो गया। "सुंदरता की अप्रतिम मूर्ति"" कानों में ...और पढ़े
एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - 4
चांदनी को अनामिका तब से जानती थी जब चांदनी चौथी कक्षा में पढती थी। तब अनामिका स्वयं 11र्वीं कक्षा पढती थी। पढते हुए पढाना इतना आसान काम नहीं। जब उसने घर में नौकरी करने का प्रस्ताव रखा तो घर वाले उसके विरोध में हो गए। उस समय कोई भले ही युग आधुनिकता की अंधी दौड़ में अंधों की तरह भाग रहा है पर सोच वही संकीर्णता की बलिवेदी पर अपनी हविष चढाये जा रही थी। लोग भले ही अपने पंख पसार कर ऊंची उडान उड़ ले लेकिन अपना विस्तार वह स्वतंत्रता से नहीं कर सकता था। खासकर के Female ...और पढ़े
एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - 5
सौम्या, रमा, पूनम, रंजना नूतन एक ही college की छात्रा थीं। चारो चार जिस्म एक प्राण, हर जगह साथ साथ घुमतीं तस्वीर खिंचवाती.... कभी-कभी तो शरारत ऐसा करतीं की पागलपन की हद पार कर जातीं। पूरा college उनकी शरारत से परेशान रहता। कई बार उन्हें office में बुलाकर समझाया भी गया। चारो अपनी पढाई, अपनी शरारत से लबरेज जिंदगी में इतनी व्यस्त थीं कि उनको खुद भी नहीं पता था आगे जीवन अचानक किस ओर यू टर्न लेगा....." हाहाहाहा"! और ऐसा हर किसी के जीवन में भयानक और आश्चर्यचकित कर देने वाला यू टर्न आया ...और पढ़े
एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर...6
कुछ दिन गुज़र गए। पंचवटी की एक ही लता कम हुई थी लेकिन पंचवटी के बाकी पौधे मुर्झाये लगे बेजान, नीरस, अजीब सा सूनापन बिखरने लगा था। परीक्षा नजदीक आ चुकी थी पर पढने का मन किसी का नहीं कर रहा था। सबके जहन में सिर्फ और सिर्फ रंजना थी... "पता नहीं वो आगे पढ सकेगी या नहीं? "जिंदगी question marks बनती जा रही एक दिन रमा बोली "चलो स्टेडियम मे सब के सब वहाँ जाकर पढते हैं और "थोड़ा मन भी फ्रेश हो जाएगा"। फिर वहाँ थोड़ी मजाक मस्ती करेंगे। सौम्या ने सबकी तंद्रा तोडते हुए कहा " ...और पढ़े
एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर...7
पंचवटी की अब दुसरी वटी गुजरात के लिए विदा हो चुकी थी। अब किसी का मन बिलकुल नहीं लग था। पढाई तो मानो बोझ बनती जा रही थी। सबकुछ बदल गया था। कभी Girls college पंचवटियों से हैरान परेशान रहता था और अब आश्चर्य चकित थे। सबकुछ इतना जल्दी बदल जाऐगा किसी ने सोचा ही नहीं। अब बस जैसे जैसे पढना उद्देश्य बनता जा रहा था। गुजरात पहूँचने के बाद सौम्या ने एकाध बार पत्र लिखा नूतन के पास। पर उसके बाद उसका संपर्क टूट गया। अगरी बारी आयी नूतन की ...... नूतन की शादी बारहवीं के परीक्षा के ...और पढ़े