एक अदद फ्लैट

(21)
  • 17.6k
  • 2
  • 5.8k

नंदलाल यादव दिल्ली में नौकरी करते हैं और साहिबाबाद में किराए के एक फ्लैट में रहते हैं। लोकल ट्रेन से आना-जाना करते हैं। आई.टी.ओ. पर उतर कर बस से आर.के.पुरम जाते हैं।सुबह शाम सप्ताह में पूरे पाँच दिन उनकी यही दिनचर्या रहती है। किसी दिन छुट्टी हो गई तो उस दिन बल्ले-बल्ले। नंदलाल शायरी पढ़ने के शौकीन हैं और जब तब किसी पसंदीदा शे’र को गुनगुनाते रहते हैं। जो शे’र उनके मनोभावों को जम जाए या जिसका निहितार्थ उनकी ज़िंदगी पर फिट हो जाए, वह उनका पसंददा शे’र बन जाया करता था।

Full Novel

1

एक अदद फ्लैट - 1

नंदलाल यादव दिल्ली में नौकरी करते हैं और साहिबाबाद में किराए के एक फ्लैट में रहते हैं। लोकल ट्रेन आना-जाना करते हैं। आई.टी.ओ. पर उतर कर बस से आर.के.पुरम जाते हैं।सुबह शाम सप्ताह में पूरे पाँच दिन उनकी यही दिनचर्या रहती है। किसी दिन छुट्टी हो गई तो उस दिन बल्ले-बल्ले। नंदलाल शायरी पढ़ने के शौकीन हैं और जब तब किसी पसंदीदा शे’र को गुनगुनाते रहते हैं। जो शे’र उनके मनोभावों को जम जाए या जिसका निहितार्थ उनकी ज़िंदगी पर फिट हो जाए, वह उनका पसंददा शे’र बन जाया करता था। ...और पढ़े

2

एक अदद फ्लैट - 2

इन दिनों दिन-रात नंदलाल का मस्तिष्क इन्हीं धन-राशि के इंतज़ाम में लगा हुआ रहता था। वे बिल्डर द्वारा दिए एक-एक मद को बड़े ध्यान से देखते। चश्मे की आँख से वे मद उन्हें ख़ूब बड़े दिखते। कुछ ऐसे कि हर मद अपने आप में जलकुंभियों से भरा कोई विशालकाय तालाब हो और वे उसमॆं गिरकर उलझनेवाले हो। वे चिल्ला रहे हों और कोई उन्हें बचाने के लिए उनके पास नहीं आ रहा हो। फ्लैट की क़ीमत 3700 रुपए प्रति वर्गफीट। ...और पढ़े

3

एक अदद फ्लैट - 3

नंदलाल ऊषा की बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे। उन्हें अपनी माँ से कुछ ऐसी ही शुष्कता की थी। उन्हें हमेशा यह मलाल रहा कि उन्हें कभी भी समय पर अपने घर से कोई मदद नहीं मिली। आर्थिक मदद तो ख़ैर बिल्कुल ही नहीं। एक वक़्त था जब नंदलाल अपने दो छोटे भाइयों को अपने साथ रखकर पढ़ाते-लिखाते थे। अपने मामूली से वेतन में उनके लिए जितना हो सका, सब कुछ किया। मगर आज हालात ये हैं कि दोनों भाई अपने कार्य में सफल होकर नंदलाल को भूल चुके हैं। किसी ‘इमरजेंसी’ में नंदलाल उनसे किसी मदद की उम्मीद नहीं रख सकते थे। ...और पढ़े

4

एक अदद फ्लैट - 4

नंदलाल बैठे हुए सोचने लगे...ये बुज़ुर्ग कोई पैंसठ साल के होंगे। व्यास जी पचपन के और वे स्वयं भी पचास पार कर ही गए हैं। अलग अलग उम्र के ये तीनों अधेड़ लोग अपने अपने हिसाब से अपना जीवन जी रहे हैं। हर व्यक्ति अपने तरीके से और अपने दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है। अपने अनुभवों से अपने परिवार-वृक्ष को सींचता आगे बढ़ता चला जा रहा है। ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प