कांट्रैक्टर

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सब अपने-अपने हिसाब से नौकरी करने आए थे। सब अपने-अपने हिसाब से नौकरी किए जा रहे थे। अगर देखा जाए तो आख़िरकार कोई ऑफिस भला क्या होता है! राजनीति और कार्यनीति का अखाड़ा ही तो। एन.आई.सी.एल. भी कुछ वैसा ही ऑफिस था। बड़े पदों वाले बॉस आते-जाते रहते थे मगर कुछ स्थानीय लोग छोटे और मंझोले पदों पर वहीं जमा रहा करते थे। बॉस को भी आने से पहले हर बात की पूरी जानकारी रहा करती थी।

Full Novel

1

कांट्रैक्टर - 1

सब अपने-अपने हिसाब से नौकरी करने आए थे। सब अपने-अपने हिसाब से नौकरी किए जा रहे थे। अगर देखा तो आख़िरकार कोई ऑफिस भला क्या होता है! राजनीति और कार्यनीति का अखाड़ा ही तो। एन.आई.सी.एल. भी कुछ वैसा ही ऑफिस था। बड़े पदों वाले बॉस आते-जाते रहते थे मगर कुछ स्थानीय लोग छोटे और मंझोले पदों पर वहीं जमा रहा करते थे। बॉस को भी आने से पहले हर बात की पूरी जानकारी रहा करती थी। ...और पढ़े

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कांट्रैक्टर - 2

राकेश सोचने लगा। अच्छे फँसे। आज लगता है जैसे केबिन-केबिन का म्यूजिकल चेयर खेल रहा हूँ। कभी बिग बॉस केबिन में जा रहा हूँ तो कभी एच.आर. हेड की केबिन में। लगता है कि आज का दिन इसी दौड़-धूप में बीत जाएगा। और फिर चाहे कितनी ही देर हो, अपनी सीट का काम तो ख़ैर पूरा करना ही है। मरता क्या न करता, वह हरिकिशन के केबिन में गया। ...और पढ़े

3

कांट्रैक्टर - 3

हरिकिशन की साँस में साँस आई। वे एक नवयुवक अधिकारी के आगे अपनी महत्ता पूरी तरह गँवाने से बच थे। कम से कम खाने के मेनू का अधिकार उनके पास था। उनके चेहरे पर तसल्ली के भाव स्पष्ट दिख रहे थे। ...और पढ़े

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कांट्रैक्टर - 4

राकेश हल्का सा मुस्कुराता हुआ चुप ही रहा। वह कुछ संकोच में भी आ रहा था। चरणजीत ने बिकास बात को पूरी शिद्दत से आगे बढ़ाते हुए और पहले राकेश एवं बाद में बिकास चटर्जी की ओर देखते हुए कहा, आप बिल्कुल दुरुस्त कह रहे हैं दादा। सोलह आना सच। एकदम किसी खरे सोने के माफ़िक। ...और पढ़े

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कांट्रैक्टर - 5

जिस दिन सांस्कृतिक संध्या का आयोजन था, सुबह से ही गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। टीसीएस अपनी आदत के ऑफिस में इधर-उधर घूमता फिर रहा था। राकेश भी अपने कार्यालयी कार्यों के साथ नीचे की जा रही तैयारी का मॉनीटर कर रहा था। दोनों दो दिशाओं में व्यस्त थे। मामूली से दुआ सलाम के बाद दोनों अपने-अपने काम में व्यस्त थे। राकेश ने दो दिन पहले ही बैनर वाले वेंडर चंदर कश्यप को अपनी सीट पर बुलाकर बैनर बनाने से लेकर माला, चंदन, कपूर, पोस्टर आदि कई सामग्री लाने के कुछ छोटे-मोटे काम दे दिए थे। ...और पढ़े

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कांट्रैक्टर - 6

देखते-देखते एक साल और बीत गया। रजिंदर मित्तल का तीन वर्षों का कार्यकाल पूरा हो चुका था। एक आदेश हुआ और रजिंदर मित्तल रायपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुए। जाते-जाते भी टीसीएस ने उनकी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ी। उनके पीछे उनके घर का एक-एक सामान मूवर्स एंड पैकर्स वाले के साथ मिलकर पैक करवाया और उन्हें दिल्ली पहुँचाया। ...और पढ़े

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