एक बार फिर विनय का फोन। अब तो मैं मोबाइल की तरफ देखे बिना ही बता सकती हूं कि विनय का ही फोन होगा। वह दिन में तीस चालीस बार फोन करता है। कभी यहां संख्या पचास पार कर जाती है। और इतनी ही संख्या में व्हाट्सअप मैसेज। पहले बीच-बीच में मैं उसके मैसेज पढ़ लेती थी लेकिन जब देखा कि वही मैसेज कॉपी पेस्ट करके हर दिन और हर बार रिपीट किये जा रहे हैं और उनमें अपनी हरकत के लिए माफी मांगने के अलावा कुछ नहीं होता तो मैंने वे संदेश पढ़ने भी बंद कर दिये हैं।

Full Novel

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ख़्वाबगाह - 1

एक बार फिर विनय का फोन। अब तो मैं मोबाइल की तरफ देखे बिना ही बता सकती हूं कि का ही फोन होगा। वह दिन में तीस चालीस बार फोन करता है। कभी यहां संख्या पचास पार कर जाती है। और इतनी ही संख्या में व्हाट्सअप मैसेज। पहले बीच-बीच में मैं उसके मैसेज पढ़ लेती थी लेकिन जब देखा कि वही मैसेज कॉपी पेस्ट करके हर दिन और हर बार रिपीट किये जा रहे हैं और उनमें अपनी हरकत के लिए माफी मांगने के अलावा कुछ नहीं होता तो मैंने वे संदेश पढ़ने भी बंद कर दिये हैं। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 2

बेशक इस पूरे घटनाक्रम में मेरा कुसूर नहीं है लेकिन....। इस लेकिन का मेरे पास कोई जवाब नहीं है। कैसे हो गया कि जिस आदमी के लिए मैंने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया, अपना दीन ईमान, चरित्र, परिवार, पति, अपने बच्चे सब को पीछे रखा और सिर्फ उसके लिए पिछले 12 वर्षों से हलकान होती रही, उससे मिलने के लिए, संबंध बनाए रखने के लिए हर तरह के रिस्क उठाती रही, उसने मेरे ही घर पर आ कर मुझे थप्पड़ मारे। एक नहीं दो, और वह भी काम वाली नौकरानी के सामने। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 3

उसके बाद से विनय के तीस चालीस फोन और इतने ही मैसेज रोज आते हैं। मिलने के लिए न आया है और न मैं ही खुद उसके पास जाने की हिम्मत जुटा पायी हूं। उसका फोन मैंने एक बार भी नहीं उठाया है। गलती उसकी है। वह भी छोटी-मोटी नहीं, बिना बात के बतंगड़ बना देना औेर मेरे ही घर पर आ कर नौकरानी के सामने मुझे दो थप्पड़ मार देना। अब भी सोचती हूं तो मेरी रूह कांप जाती है। विनय आखिर ऐसा कर कैसे गया। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 4

उसका बेपनाह मोहब्बत करना, मेरा ख्याल रखना, मेरे लिए महंगे महंगे उपहार लाना, मेरी छोटी से छोटी जिद पूरी और मेरी हर बत्तमीजी को हंसते हंसते झेल जाना, और इन सबके ऊपर उसका अपनेपन से सराबोर व्यवहार मुझे बेहद आकर्षित करता और मैं हर मुलाकात के बाद पिछली मुलाकात की तुलना में उसके प्रति और समर्पित होती जाती। दिन हो या रात, जब भी फोन आता, बावरी की तरह अटेंड करती। यह कितनी बार हुआ कि हम रात रात भर बात करते रहे और इस बात का मुझे कभी मलाल नहीं हुआ कि मुझे इस संबंध में इतना आगे नहीं जाना चाहिए कि जिनके पता चलने पर मेरे घर वाले मुझसे नाराज या परेशान हो सकते हैं। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 5

तभी मुझे विनय के शादीशुदा होने का पता चला था। मेरे जन्म दिन के सातवें दिन। हम दोपहर के यूं ही मालवीय नगर में मटरगश्ती कर रहे थे। तभी एक गोलगप्पे वाले को देख कर विनय ने कहा – चलो गोलगप्पे खाते हैं। देखते हैं कौन ज्यादा खाता है। मैं भला कहां पीछे रहने वाली थी। मैंने पैंतीस खाये थे और विनय ने तीस पर ही हाथ खड़े कर दिये थे। गोलगप्पे वाकई बहुत अच्छे थे और गोलगप्पों का पानी जायकेदार था। तभी विनय ने प्रस्ताव रखा कि ऐसे और इतने सारे गोलगप्पे बहुत दिन बाद खाये हैं। तुम एक काम करो। घर वालों के लिए लेती जाओ। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 6

मेरी शादी के एक बरस बाद की बात है। एक दिन सुबह सुबह ही विनय का मैसेज आया था आज चार बजे कनॉट प्लेस में मिलो। उसके संदेश हमेशा इतने ही शब्दों के होते कि बात पहुंच जाए। हम एक दिन पहले ही मिले थे और हमने लंच भी एक साथ लिया था और काफी सारा समय एक साथ गुज़ारा था। अगले दिन मिलने की कोई बात तय नहीं थी इसलिए मैंने दूसरे कुछ ऐसे काम तय कर लिये थे जो विनय से ही मुलाकातों के चक्कर में कब से टल रहे थे। विनय से मिलने जाने का मतलब सारे काम किसी अगली तारीख के लिए कैंसिल करना। मैंने कम से कम चार काम उस दिन के लिए तय कर रखे थे। दुविधा में थी कि क्या करूं। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 7

मैंने उसी दिन से लिस्ट बनानी शुरू की दी थी कि कौन कौन सी चीजें इस ख़्वाबगाह में आयेंगी। रूम बीस फुट लंबा और बारह फुट चौड़ा था। दरवाजा खोलते ही सामने शो केस रखने की जगह और फिर ड्राइंग रूम था। दायीं तरफ कांच के स्लाइडिंग डोर और उसके पीछे बहुत बड़ी बाल्कनी थी। ड्राइंग रूम के सामने की दीवार की तरफ किचन और दोनों तरफ अटैच्ड बाथरूम वाले बैडरूम थे। मेरी निगाह में सिर्फ ड्रांइग रूम और बाल्कनी थे। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 8

ख़्वाबगाह में जब मैंने पहली बार सारी घंटियां बजती सुनीं तो मेरी सांस एकदम तेज हो गयी थी। मैंने दुल्हन की तरह भारी गहने और साड़ी वगैरह नहीं पहने थे लेकिन मेकअप और पहनी हुई लाल साड़ी में मैं किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी। गहनों का सेट पहना ही था। मुझे सचमुच यह अहसास हो रहा था कि ये मेरी सुहाग रात है। बेशक विनय मेरा पति नहीं था। मैं अपने दोस्त का अनुरोध मान कर यह बाना धारण करके खड़ी थी। दुनिया का आठवां अजूबा घट रहा था। शादी के बाद दोस्त के साथ सुहाग रात। पति के होते हुए। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 9

तभी मैंने विनय को अपनी इस हसरत के इस तरह से पूरी होने के बारे में कहा था - शादी से पहले से और तुमसे मिलने से भी पहले से मैं कई हसरतें पाले हुए थी और तुम्हारे साथ ये सारी हसरतें पूरी हो रही हैं। - कोई और हसरत भी हो तो बता दो। हमारे पास पूरे पांच दिन हैं। नॉन स्टॉप। ये मौका फिर मिले न मिले। कह डालो। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 10

आधी रात को तेज गड़गड़ाहट से मेरी नींद खुली। बांसुरी जैसे हवा में डोल रही थी और चीख रही मैं घबरा गयी थी कि पता नहीं क्या हो गया है। उठ कर बाल्कनी तक आयी तो देखा आसमान में बादल बुरी तरह से गरज रहे थे। ये बरसात से पहले की गरज थी। अभी भी अंधेरा था। मैंने भीतर आ कर समय देखा। पौने पांच बजे थे। बरसात की मोटी मोटी बूंदें गिरने लगी थीं। मैंने अंदर आ कर विनय को जगाया था – विनय, बाहर आ कर देखो, नेचर हम पर किस तरह से मेहरबान हो रही है। विनय कुनमुनाया था - सोने दो, क्या हो गया है। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 11

अंधेरे में कालीन पर लेटे लेटे मैंने विनय को याद दिलाया कि बकेट लिस्ट की एक आइटम एक दूजे मसाज करने की भी है। पहले कौन करेगा। विनय ने पहले मसाज करने का ऑफर दिया और इतनी शानदार मसाज की कि मेरा मूड पूरी तरह से संवर चुका था। ये ख्वाबगाह का ही कमाल था कि हम दोनों की छुपी हुई कितनी ही कुशलताएं सामने आ रही थीं। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 12

इसके बाद भी हम गाहे बगाहे अपनी ख़्वाबगाह में मिलते रहे थे, लेकिन मैं कभी रात भर के लिए नहीं रुक पायी थी। बेशक विनय अक्सर वहाँ अकेले भी चला जाता और रात भर ठहर भी जाता। ...और पढ़े

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ख़्वाबगाह - 13

तभी वह हादसा हुआ था। मालती अग्रवाल वाला मामला। बेशक वे विनय के लिए आनंद और बदलाव के या मजे के मौके रहे हों, मेरे लिए किसी हादसे से कम नहीं था। तब मैं अपने घर पर ही थी। ...और पढ़े

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