हुक्मउदूली

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(एक बड़ा सा बैठकखाना है जिसमें औसत मध्यमवर्गीय स्तर का सोफा लगा है। मुखिया सोहर मिश्र का एक खास आसन लगा है । उसके सामने लगे दो तीन सामान्य सी गोल बैठकी पर सहमे से गाँव के तीन आदमी बैठे हैं। सोहर मिश्र प्रवेश करते हैं तो बैठे हुए ग्रामीण हाथ जोड़कर प्रणाम की मुद्रा में उठ जाते हैं। सोहर उन्हें बैठने का इशारा करके अपने खास आसन पर विराजते हुए पूछते हैं।)

Full Novel

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हुक्मउदूली भाग 1

(एक बड़ा सा बैठकखाना है जिसमें औसत मध्यमवर्गीय स्तर का सोफा लगा है। मुखिया सोहर मिश्र का एक खास लगा है । उसके सामने लगे दो तीन सामान्य सी गोल बैठकी पर सहमे से गाँव के तीन आदमी बैठे हैं। सोहर मिश्र प्रवेश करते हैं तो बैठे हुए ग्रामीण हाथ जोड़कर प्रणाम की मुद्रा में उठ जाते हैं। सोहर उन्हें बैठने का इशारा करके अपने खास आसन पर विराजते हुए पूछते हैं।) ...और पढ़े

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हुक्मउदूली भाग 2

(जीप के रुकने की आवाज आती है। सोहर, मनोहर और अंगरक्षक प्रवेश करते हैं। सोहर बैठकखाने के अपने खास पर सुस्ताते हुए से बैठ जाते हैं। मनोहर आवाज लगाता है।) मनोहर : गपलू...जरा पानी-वानी लाना भाई । (उमा देवी आ जाती है।) उमा देवी : बहुत देर लगा दी आपलोगों ने ? सोहर : कई गांव जाना पड़ा...सबका रोना-धोना और फरियाद सुनना...देर तो हो ही जाती है। अभिराम आ गया...कहां है वह ? उमा : आराम कर रहा है ऊपर। ...और पढ़े

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हुक्मउदूली भाग 3

(बैठकखाने में सोहर, उमा और अभिराम हैं। सोहर आवाज लगाते हैं।) सोहर : गपलू....कार आकर लग गयी है बाहर, सामान भाई, जल्दी। (गपलू अंदर से बारी-बारी से अटैची, बोरा आदि ढोकर ले जाने लगता है।) सोहर : प्रथा, अभिराम जा रहा है, बाहर आओ, भाई । (प्रथा अनमनी-सी बाहर आती है।) अभिराम : बोरे में आप क्या लदवा रहे हैं अंकल? मनोहर : गाँव से आया है बेटे, अपने खेत का चूड़ा है, कुछ बासमती चावल है। अभिराम : ओह, अंकल इसकी क्या जरूरत थी? ...और पढ़े

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