एक भयानक खोज दिल्ली की पुरानी लाइब्रेरी, जहां धूल से भरे शेल्फ़ और पन्नों की हल्की महक थी, रिया का पसंदीदा ठिकाना था। 22 साल की रिया, इतिहास की छात्रा थी, और उसे लगता था कि हर पुरानी किताब में एक नई दुनिया छिपी होती है। वह अक्सर घंटों तक यहाँ बैठकर किताबें पढ़ती, कभी-कभी तो दिनभर बाहर भी नहीं निकलती। लाइब्रेरी की शांत और पुरानी हवा उसे सुकून देती थी, खासकर जब शहर का शोर उसके दिमाग पर हावी होने लगता था।
अधुरी खिताब - 1
कहानी: “अधूरी किताब” - भाग 1: एक भयानक खोजदिल्ली की पुरानी लाइब्रेरी, जहां धूल से भरे शेल्फ़ और पन्नों हल्की महक थी, रिया का पसंदीदा ठिकाना था। 22 साल की रिया, इतिहास की छात्रा थी, और उसे लगता था कि हर पुरानी किताब में एक नई दुनिया छिपी होती है। वह अक्सर घंटों तक यहाँ बैठकर किताबें पढ़ती, कभी-कभी तो दिनभर बाहर भी नहीं निकलती। लाइब्रेरी की शांत और पुरानी हवा उसे सुकून देती थी, खासकर जब शहर का शोर उसके दिमाग पर हावी होने लगता था।एक दिन, रिया लाइब्रेरी के सबसे पुराने और सबसे कम इस्तेमाल होने ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 2
रीया की नई बेचैनीरिया शर्मा का जीवन पूरी तरह बदल चुका था। अस्पताल से वापस आने के बाद वह जैसी नहीं रही थी। लाइब्रेरी की खामोशी में डूबी वह अब अपने कमरे में बैठकर अजीब-अजीब सपनों में खो जाती थी। हर रात उसे वही किताब दिखाई देती थी – पुरानी, धूल से ढकी, और अधूरी कहानी का पन्ना खुला हुआ। रिया ने कई बार खुद से पूछा – क्या सच में कुछ हुआ था? या यह सब उसके मन का भ्रम था?एक शाम रिया खिड़की के पास खड़ी थी। बाहर हल्की बारिश हो रही थी। बूंदें जैसे उसकी ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 3
️ कहानी: “अधूरी किताब” – भाग 3: अनसुलझे रहस्य और नई खोज---️ अस्पष्ट परछाइयाँ और अनजाना डररीया शर्मा के में आने के बाद भी उसके दिल में उस किताब का प्रभाव कुछ कम नहीं हुआ था। उसके सपनों में वह किताब बार-बार उसकी आँखों के सामने आती थी – जैसे वह किसी गहरे रहस्य की पुकार हो। हर बार किताब का आखिरी पन्ना चमकता और फिर एक नाम उभरता – “राहुल वर्मा।”रीया के भीतर सवाल उठने लगे – क्या राहुल सचमुच अगला शिकार बनने वाला था? लेकिन राहुल ने खुद को पूरी तरह साहसी दिखाया। “मैं डरता नहीं हूँ,” ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 4
️ कहानी: “अधूरी किताब” – भाग 4: अधूरी यादें और नए खतरे रहस्यमयी रात का अलामरीया शर्मा, राहुल वर्मा काव्या मिश्रा ने किताब को सुरक्षित बक्से में बंद करके लाइब्रेरी के सबसे गहरे कोने में रख दिया था। लेकिन उस रात, रीया की नींद चैन से नहीं थी। उसका मन बार-बार उसी प्राचीन दृश्य में उलझता जा रहा था। उसकी आँखें खुलीं और वह अपने कमरे की खिड़की से बाहर झाँकने लगी। हवेली की अंधेरी परछाईयाँ धीरे-धीरे उसकी सोच में समा रही थीं।“क्या सच में यह खत्म हो गया?” उसने खुद से पूछा।पर जवाब था… एक अनजानी चुप्पी।उसके पास ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 5
खामोश हवेली की नई परछाईरीया शर्मा, राहुल वर्मा और काव्या मिश्रा के कदम अब धीरे-धीरे उस हवेली की ओर रहे थे, जहाँ से उनकी अधूरी किताब की गुत्थी शुरू हुई थी। हवेली का दरवाज़ा सदा की तरह जर्जर था, जैसे बरसों से किसी ने उसे खोलने की हिम्मत न की हो। अंधेरे में चारों तरफ़ चुप्पी और हल्की सिहरन थी। हर दीवार की दरारें, हर टूटा फर्श ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह उनसे कोई छुपा हुआ संदेश कहना चाहता हो।काव्या ने फुसफुसाया –“हवेली में अब बहुत समय से कोई नहीं आया। पर यहाँ की परछाइयाँ हर ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 6
एपिसोड 6 : "खामोश हवेली की नई परछाई"⏳ धुंध की चादर और अधूरी किताब का रहस्यमुंबई की उस पुरानी के सामने रीया शर्मा, राहुल वर्मा और काव्या मिश्रा खड़े थे। हवेली का दरवाज़ा सालों से जर्जर था। उसकी लकड़ी पर धूल की मोटी परत जम चुकी थी। दीवारों की दरारें और टूटे फर्श मानो अपने भीतर एक अनकहा किस्सा छुपाए हुए थे। धीरे-धीरे चारों कदम उस दरवाज़े की ओर बढ़े, जहाँ से उनकी अधूरी किताब की गुत्थी शुरू हुई थी।काव्या ने फुसफुसाते हुए कहा –“यह हवेली… यहाँ की परछाइयाँ हर कदम पर हमारे साथ चल रही हैं। यह ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 7
️ एपिसोड 7 : "दरभंगा की हवेली और नई परछाइयाँ"⏳ दरभंगा की हवेली की ओर सफररीया, राहुल और काव्या मुंबई की पुरानी हवेली से निकलते ही तय किया कि अगला कदम दरभंगा की उस हवेली की ओर होगा, जहाँ अधूरी किताब के रहस्य की नई गुत्थी उन्हें इंतजार कर रही थी।गाड़ी की खिड़कियों से बाहर देख रही रीया ने मन ही मन कहा –“अब डर नहीं, सिर्फ़ सच्चाई और साहस का सामना बाकी है।”राहुल ने ड्राइवर को निर्देश दिया –“हमें समय पर वहां पहुँचना है। अधूरी किताब के पन्नों ने हमें संकेत दे दिए हैं।”काव्या ने दस्तावेज़ को अपने ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 8
एपिसोड 8 : "अधूरी किताब का नया अध्याय"⏳ अनसुलझे सवाल और अनजानी राहेंरीया शर्मा, काव्या मिश्रा, और राहुल वर्मा हवेली से बाहर आ चुके थे। हवेली की रहस्यमयी परछाई ने जैसे उन्हें एक नए सच की ओर इशारा किया था। लेकिन अधूरी किताब का सच अभी भी पूरी तरह उजागर नहीं हुआ था।रीया के मन में अनगिनत सवाल उठ रहे थे। हर कदम पर उसके भीतर एक अजीब सी बेचैनी सी फैल रही थी।“क्या हमने सचमुच उस आत्मा को मुक्त कर दिया?” रीया ने खुद से फुसफुसाया।काव्या ने गंभीर स्वर में उत्तर दिया –“हां, परंतु यह केवल एक ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 9
--- एपिसोड 9 : "भूतिया हवेली का खौफनाक सच"⏳ भयावह संकेत और गहरे रहस्यरीया, काव्या, और राहुल ने अधूरी को सील कर सुरक्षित स्थान पर रखा। लेकिन जैसे ही उन्होंने कदम बढ़ाया, हवेली का वातावरण अचानक बदल गया। चारों ओर हल्की ठंडी हवा बहने लगी, मानो हवेली खुद उन्हें रोकने की कोशिश कर रही हो। दीवारों से सिहरन भरती आवाजें आ रही थीं – अनजानी फुसफुसाहटें, पुरानी चीखें, और अस्पष्ट संगीत की गूँज।“क्या तुमने सुनी?” काव्या ने फुसफुसाते हुए पूछा।रीया ने सिर हिलाया – “यह… यह कोई सामान्य हवा नहीं है।”राहुल ने अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट जलायी और धीरे-धीरे ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 10
️ एपिसोड 10 : "परछाइयों से उजाले की ओर – दिलों की अनकही दास्तां"⏳ नई सुबह, पर हवेली का काव्या और राहुल ने पिछली रात नेहा वर्मा की आत्मा को मुक्ति दिलाई थी। बाहर सुबह का सूरज निकल चुका था, लेकिन हवेली की दीवारों पर अंधेरे का असर अब भी बाकी था। ऐसा लग रहा था मानो हवेली अपनी अगली चाल चलने को तैयार हो।काव्या ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए कहा –“क्या तुम दोनों को नहीं लगता कि इस हवेली में कोई और ताक़त हमें देख रही है?”रीया ने धीरे से सिर हिलाया –“हाँ… यह खामोशी भी किसी ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 11
️ एपिसोड 11 : "दिलों की पुकार और परछाइयों का रहस्य"(अधूरी किताब – भुतिया कहानी)⏳ सुबह की नई दस्तकसवेरे हल्की किरणें हवेली की खिड़कियों से भीतर झाँक रही थीं। रातभर तहखाने की लड़ाई और अरविंद देव की परछाई को हराने के बाद भी किसी की आँखों में नींद नहीं थी। हवा में अब भी अजीब सी ठंडक और बेचैनी थी।काव्या ने खिड़की से बाहर देखा। आसमान पर हल्का कुहासा छाया था।“मुझे लगता है हवेली अभी भी हमें देख रही है,” उसने धीमे स्वर में कहा।रीया ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में थकान थी, लेकिन दिल में अटूट दृढ़ता।“हाँ… ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 12
--- एपिसोड 12 :“दरभंगा की पुस्तकालय और हवेली का असली राज़”⏳ यात्रा की तैयारीसुबह की हल्की किरणों के साथ में फिर से सरगर्मी लौट आई थी। पिछली रात की वो रहस्यमयी आवाज़ अब भी सबके ज़हन में गूंज रही थी। सावित्री देवी की आत्मा को मुक्त कर देने के बावजूद हवेली की दीवारें किसी अदृश्य डर का संकेत दे रही थीं।काव्या ने खिड़की के बाहर झाँकते हुए कहा –“यह हवेली… जितना देती है, उससे कहीं ज्यादा छुपा लेती है।”रीया ने गहरी साँस छोड़ी।“अब तो किताब ही हमारी राह है। वही हमें बताएगी कि आगे कहाँ जाना है।”राहुल ने उस ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 13
⏳ रात का सन्नाटा – पुस्तकालय के भीतरपुरानी पुस्तकालय की हवा और गहरी होती जा रही थी। धूल से अलमारियों में रखी किताबें मानो सदियों से किसी रहस्य की रखवाली कर रही थीं।चारों आत्माओं को मुक्त करने के बाद भी कमरे में बेचैनी कायम थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने अभी भी उन्हें घूर रखा हो।काव्या ने धीरे से फुसफुसाया –“क्या तुम्हें लगता है… वो दरवाज़ा सचमुच हमें चुनेगा?”राहुल ने अपनी मशाल की लौ ऊपर उठाई।“अगर किताब झूठ नहीं बोल रही, तो अब हमें हवेली लौटकर तहख़ाने तक पहुँचना ही होगा।”रीया ने काँपते हुए चारों ओर देखा।“लेकिन, ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 17
एपिसोड 17 : “राख के नीचे लिखा नाम”---️ 1. हवेली की राख से उठती हवारात और सुबह के बीच वो समय था — जब हवा एकदम ठहरी हुई लगती है।दरभंगा की पुरानी हवेली अब बाहर से शांत थी, लेकिन उसके भीतर अब भी कुछ चल रहा था।रमाकांत ने जब आखिरी बार तख़्त के पास झाँका था, वहाँ बस राख थी।लेकिन अब, उस राख में हल्की-सी धुआँ सी लकीर उठ रही थी — जैसे कोई साँस ले रहा हो। “राउर ध्यान देनी? ई राख हिल रहल बा…”एक बूढ़े ने काँपती आवाज़ में कहा।रमाकांत ने माथे पर पसीना पोंछा।“ई तो ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 14
⏳ अंधेरे की दस्तकदरवाज़े के पास खड़ा राहुल जैसे पत्थर बन गया था।दीवारों से निकलती ठंडी हवा उसके चेहरे छूकर फुसफुसा रही थी —"मत जाओ… वापस लौट जाओ…"लेकिन उसके भीतर कुछ और था — एक खींचाव, जो उसे दरवाज़े के पार खींच रहा था।उसने काँपते हाथों से मशाल उठाई और दरवाज़े पर उकेरे शब्दों को पढ़ा –> “जहाँ अंत लिखा है, वहीं से शुरुआत होती है।”राहुल के होंठों से बस इतना निकला –“तो फिर… यही शुरुआत होगी।”उसने दरवाज़े को धक्का दिया।कर्र… कर्र… कर्र…भारी दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा और भीतर से काली धुंध का झोंका बाहर आया।---️ अंदर की रूहेंदरवाज़े ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 15
एपिसोड 15 : “परछाइयों का पुनर्जन्म” 1. रोशनी का निगलनाकक्ष में फैली चमक अब इतनी तेज़ हो चुकी थी राहुल की आँखें खुली रहकर भी अंधी-सी लगने लगीं।वह चिल्लाया —“यह क्या हो रहा है… किताब मुझसे क्या चाहती है?”उसके शब्द हवा में खो गए।एक पल में सब कुछ रुक गया — आवाज़ें, रोशनी, यहाँ तक कि उसकी धड़कन भी।और फिर एक अनजानी फुसफुसाहट उसके कानों में गूँजी —> “राहुल… अब तू सिर्फ़ इंसान नहीं रहा…”धीरे-धीरे उसके चारों ओर हवा घूमने लगी, और वह खुद को उसी तख़्त पर पड़ा पाया जहाँ किताब रखी थी।लेकिन अब किताब खुली नहीं ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 16
--- एपिसोड 16 : “हवेली की वापसी”--- 1. धुंध की दहलीज़दरभंगा की पुरानी हवेली फिर उसी तरह चुप थी सदियों से किसी का इंतज़ार कर रही हो।दीवारों पर उगी काई अब और गहरी हो चुकी थी,खिड़कियों से झाँकती धुंध में बस एक परछाईं चल रही थी — तनिषा।वह टैक्सी से उतरी, हाथ में वही किताब थी।उसकी आँखें अब इंसानी नहीं लग रहीं थीं —कुछ अजीब, जैसे वो किसी और के इशारों पर चल रही हो।गाँव के लोग दूर से देख रहे थे।रमाकांत ने अपने पड़ोसी से कहा —> “ए भइया, ई तो उहे किताब वाली औरत है… जेकरा हाथ ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 18
एपिसोड 18 : “राख का सौदा – जब प्यार और श्राप एक हो गए”️ 1. सौदे की शुरुआतरात के पहर, दरभंगा की हवेली का हर दरवाज़ा धीरे-धीरे कराह रहा था।आसमान में काले बादल ऐसे उमड़ रहे थे जैसे किसी की आख़िरी सांसें भारी हुई हों।अनामिका उस प्राचीन तख़्त के सामने बैठी थी जहाँ किताब रखी थी — “अधूरी किताब – भाग दो : राख का लेखक।”उसकी उंगलियों पर खून सूख चुका था, लेकिन स्याही अब भी बह रही थी।“लिखो…”वो फुसफुसाहट फिर आई — वही जिसे वो अब पहचानने लगी थी।“अगर मैं न लिखूँ तो क्या होगा?” अनामिका ने काँपते ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 19
---️ एपिसोड 21 : “मिट्टी के नीचे दबी आवाज़”रात फिर वही थी — भारी, ठंडी और धीमी साँसों से की पुरानी हवेली अब राख में मिल चुकी थी, पर उसकी आवाज़... अब भी ज़िंदा थी।रमाकांत ने तीन दिन बाद उस जगह कदम रखा जहाँ हवेली हुआ करती थी।अब वहाँ बस मिट्टी थी, और मिट्टी के नीचे किसी की छुपी पुकार।हवा में हल्की धूप थी, लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बढ़ा, चारों ओर फिर वही अजीब सन्नाटा उतर आया।“ई ज़मीन अब भी गरम बा…” उसने झुककर हाथ रखा —मिट्टी सचमुच धड़क रही थी।“लगता है कहानी ख़त्म नइखे भइनी…” उसने बुदबुदाया।उसी वक़्त ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 20
एपिसोड 20 : “अधूरी किताब – वो जो अभी खत्म नहीं हुई” ️1. राख के बाद की ख़ामोशीदरभंगा की हवेली के स्थान पर अब बस राख और पत्थरों का ढेर था।पर रात के ढलते ही, हवा में फिर वही पुरानी गंध उठने लगी — स्याही और खून की मिली-जुली महक।रमाकांत ने अपने झोले से वो फटा हुआ पन्ना निकाला जो उसने उस दिन उठाया था।धूप में तो वह बस राख-सा था, पर जैसे ही अंधेरा घिरा — उस पर अक्षर उभरने लगे।> “जो कहानी अधूरी छोड़ी जाती है,वो लेखक के साथ नहीं मरती —वो अगली आत्मा को ढूँढती ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 21
एपिसोड 21 : “अधूरी किताब – अब कौन लिखेगा---1. राख की गंधदरभंगा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी उस सुबह असामान्य रूप शांत थी।सूरज की हल्की किरणें पुराने शीशों से छनकर अंदर आ रही थीं, पर मेज़ नंबर 13 पर… सिर्फ़ राख पड़ी थी।वही जगह — जहाँ कल तक आर्या घोष बैठी थी।किताब, नोट्स, कॉफी कप — सब गायब। बस राख और एक हल्की स्याही की गंध।लाइब्रेरियन मिसेज़ वर्मा ने घबराकर चौकीदार को बुलाया,“किसने रात में लाइब्रेरी खोली थी?”चौकीदार हकलाया, “कोई नइ सर… लेकिन रात के डेढ़ बजे लाइट जल उठी थी। सोचा बिजली का झटका होगा।”वर्मा ने मेज़ के पास ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 22
1. नीली राख की राहदरभंगा से निकलती ट्रेन की खिड़की पर नीली धूल चिपकी थी।रेल की आवाज़ों में एक थरथराहट थी — जैसे हर डिब्बे में कोई अनदेखी रूह सफ़र कर रही हो।दिल्ली जा रही थी प्रोफ़ेसर अनामिका मेहरा, दरभंगा विश्वविद्यालय की नई रिसर्च हेड।वो उस रहस्य को समझना चाहती थी, जिसने “अधूरी किताब” के तीन लेखकों को मिटा दिया था — आर्यन, आर्या और अब मीरा दास।अनामिका के पास मीरा का बैग था, जिसमें वही किताब थी — आधी जली, पर अब भी ज़िंदा।ट्रेन के चलते ही किताब के पन्ने खुद-ब-खुद खुले —और पहले पन्ने पर नीली स्याही ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 23
एपिसोड 22 – “काली रौशनी का वादा”---1. धुएँ से ढकी सुबहदिल्ली की उस सुबह में हल्की ठंड थी।मलिकपुर गाँव किनारे एक पुराना मकान खड़ा था — जर्जर, दीवारों पर काई और टूटी हुई खिड़कियों से झाँकती अँधेरी परछाइयाँ।लोग कहते थे, ये वही घर है जहाँ कभी आदित्य वर्मा, वो लेखक, अपनी आख़िरी किताब पूरी करने आया था — “काली रौशनी का वादा”।पर वो किताब कभी पूरी नहीं हुई।बस उसका आधा हिस्सा मिला — और उसी के बाद से वहाँ कोई नहीं टिका।---2. अनाया की तलाशदरभंगा की हवेली की राख से निकलने के बाद, अनाया अब दिल्ली पहुँच चुकी ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 24
एपिसोड 24 : “दिल्ली की हवेली – जहाँ स्याही अब भी सांस लेती है”---1. दिल्ली की रातदिल्ली की ठंडी में अक्टूबर की नमी घुली थी।साउथ एक्सटेंशन के पुराने इलाके में एक हवेली थी — “राठौर विला।”कई सालों से बंद, पर उस रात उसकी ऊँची खिड़कियों से हल्की नीली रोशनी झिलमिला रही थी।इंस्पेक्टर आदित्य सिंह ट्रेन से दिल्ली पहुँचा।मीरा दास के गायब होने के बाद सबूत सिर्फ़ एक था — किताब का आख़िरी पन्ना, जिस पर लिखा था:> “कहानी अब दिल्ली जाएगी…”दिल्ली पुलिस ने मामला “साहित्यिक पागलपन” कहकर बंद कर दिया था।पर आदित्य जानता था — यह किताब अब ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 25
एपिसोड 25 : “परछाई का पुनर्जन्म”1. दिल्ली की लाइब्रेरी – वो स्याही जो सांस लेती थीदिल्ली यूनिवर्सिटी की पुरानी में हल्की-सी ठंडक थी।काँच की खिड़कियों पर धूल की परतें और बीच में अकेली अदिति राठौर —कंधे पर किताबों का बैग, और आँखों में अनजानी बेचैनी।उसने “अधूरी किताब – अंतिम अध्याय” को फिर खोला।पहला पन्ना खाली था, बस कोने में एक वाक्य खुद उभर रहा था —> “कहानी वहीं लौटती है, जहाँ स्याही पहली बार बहती है…”अदिति ने पन्ना पलटा —और अचानक टेबल पर रखा लैम्प अपने आप जल उठा।लाइट की पीली किरण में धूल के कण ऐसे तैरने ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 26
एपिसोड 26 : “स्याही का श्राप”1. वापसी की फुसफुसाहटअदिति राठौर के गायब होने के तीन महीने बीत चुके थे।दिल्ली रफ़्तार में लौट चुकी थी, पर हवेलियों की दीवारों पर कहानियाँ अब भी साँस ले रही थीं।शहर के कोने में एक पुराना बुक-कैफ़े था — “इंक एंड सोल।”वहीं काम करता था रियान कपूर, एक युवा संपादक, जो पुराने पांडुलिपियों को संभालने का काम करता था।उस दिन उसे एक जला हुआ लिफाफा मिला।लिफ़ाफ़े पर बस दो अक्षर लिखे थे — “A.R.”रियान ने जिज्ञासावश उसे खोला।अंदर आधा जला पन्ना था, जिस पर मुश्किल से कुछ शब्द पढ़े जा सकते थे —> ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 27
---️ एपिसोड 27 — “भूला हुआ लेखक”(कहानी: अधूरी किताब)---1. रात की ख़ामोशीदिल्ली की वो ठंडी रात...घड़ी में बारह बजने थे, जब रियान कपूर अपने कमरे की लाइट बंद कर रहा था।किताब की अलमारी के पास अचानक से हल्की सी आवाज़ हुई —जैसे किसी ने अंदर से दरवाज़े पर थपकी दी हो।उसका दिल धड़क उठा।वो धीरे-धीरे आगे बढ़ा।अलमारी का शीशा धुंधला था… और उस धुंध में किसी का चेहरा झिलमिलाया —एक अनजान आदमी का चेहरा।वो फुसफुसाया,> “तुम्हें मेरी अधूरी कहानी पूरी करनी है…”रियान ने पीछे हटना चाहा, लेकिन पैर जैसे ज़मीन में धँस गए थे।किताबें अपने-आप गिरने लगीं।हर किताब के ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 28
️ एपिसोड 27 — “भूला हुआ लेखक”(कहानी: अधूरी किताब)---1. रात की ख़ामोशीदिल्ली की वो ठंडी, धुँध से भरी रात की सुई जैसे ठहर गई थी — बस टिक-टिक की हल्की आवाज़ गूंज रही थी।रियान कपूर अपने कमरे की लाइट बंद कर रहा था जब पीछे से एक धीमी “ठक” की आवाज़ आई।उसका दिल धक से रह गया।वो धीरे-धीरे मुड़ा। सामने रखी पुरानी किताबों की अलमारी अपने-आप हिल रही थी।अलमारी का शीशा धुंधला था… और उस धुंध में किसी का चेहरा झिलमिलाया।वो चेहरा किसी अनजान आदमी का था।आँखें गहरी, जैसे शब्दों में डूबा कोई इंसान सदियों से बाहर आने की ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 29
️ एपिसोड 29 — “रूह का अगला अध्याय”(कहानी: अधूरी किताब)---1. स्याही की वापसीरियान कपूर गायब हुए तीन दिन बीत थे।उसका कमरा अब सील था — पुलिस ने कहा, “ये केस आत्महत्या जैसा लगता है।”लेकिन पड़ोसियों ने उस रात कुछ और सुना था…> “टिक... टिक... टिक...”वही पुराना टाइपराइटर की आवाज़।जब दरवाज़ा खोला गया — वहाँ कोई नहीं था,बस एक नई किताब रखी थी —कवर पर लिखा था —> “The Forgotten Author – Part II”By Riaan Kapoorरियान तो कहीं था ही नहीं,मगर उसकी लिखावट अब भी ज़िंदा थी।---2. अन्वी का आगमनअगले दिन, दिल्ली यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर अन्वी राठौर वहाँ पहुँची।वो ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 30
️️ एपिसोड 30 — “किताब की वापसी”(कहानी: अधूरी किताब---1. दिल्ली से दरभंगा तकदिल्ली की सर्द रात में एक पुरानी हवा के झोंके के साथ पुरानी बुक शॉप की खिड़की से अंदर आ गिरी।मालिक — राघव मिश्रा, पुरानी किताबों का शौकीन था, लेकिन आज वो किसी अजीब बेचैनी में था।किताब का कवर आधा जला हुआ था —उस पर लिखा था —> “The Forgotten Author — Final Chapter”By Anvi Rathoreराघव ने हल्के से मुस्कराया —“ओह, फिर वही श्रापित किताब…”उसने किताब को अपने बुक सेल्फ पर रख दिया।पर उसी रात, दुकान के अंदर टाइपराइटर की आवाज़ गूंज उठी —> “टिक... टिक... टिक...”राघव ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 31
️️ एपिसोड 31 — “रूह की कलम”कहानी: अधूरी किताब---1. दरभंगा की हवेली में स्याही की गंधदरभंगा की पुरानी हवेली फिर सन्नाटे में डूबी थी।चारों ओर बस टिमटिमाते दीयों की लौ, और हवा में स्याही जैसी गंध।रूहानी सेन अपनी नोटबुक लेकर उस कमरे में दाखिल हुई —वही कमरा जहाँ कभी “काव्या सेन” की आख़िरी फुटेज रिकॉर्ड हुई थी।टेबल पर किताब रखी थी —> “The Forgotten Author – Shadow Edition”By Kavya Senरूहानी ने हल्के से फुसफुसाया —“काव्या दी… तुम्हारे साथ क्या हुआ था?”किताब अपने आप खुल गई।पहला पन्ना काँपा, और एक नीली रेखा उभरी —> “अब तुम्हारी बारी है, रूहानी…”रूहानी पीछे ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 32
. आर्या राठौर की नींद टूटीदरभंगा की वही हवेली…जहाँ अब कोई नहीं आता।रात के तीन बजे —हवेली के पुराने की खिड़की अपने आप खुली।और हवा के साथ एक किताब अंदर आ गिरी।आर्या राठौर नींद में चौंक उठी।“कौन है वहाँ?”उसकी आवाज़ सन्नाटे में गुम हो गई।टेबल पर रखी मोमबत्ती अपने आप जल उठी।और सामने वही किताब थी —> “The Soul Script”By: Ruhaani Sen (In Spirit)आर्या के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।किताब के कवर पर कुछ हिल रहा था —नीली स्याही की एक रेखा… जो धीरे-धीरे उसका नाम लिख रही थी —> ARYA RATHOREवो पीछे हटी, पर पन्ने खुद-ब-खुद खुल ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 33
एपिसोड 33 — “खून से लिखी किताब”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. लाल स्याही की सुबहदरभंगा की हवेली में सूरज नहीं उगा।खिड़कियों बस एक लाल धुंध भीतर घुस आई थी —जैसे किसी ने रोशनी की जगह खून की बूंदें फैला दी हों।टेबल पर वही किताब थी — The Soul Script —पर अब उसका कवर गहरा नीला नहीं,गाढ़ा लाल हो चुका था।किताब के कोने से धीरे-धीरे धुआँ उठ रहा था,और जब आर्या ने उसे छुआ —उंगलियों पर लाल दाग़ रह गया।> “अब स्याही खून बन चुकी है…”उसके कानों में किसी की ठंडी आवाज़ गूंजी।आर्या ने पीछे देखा —दीवार पर परछाईं थी, पर ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 34
एपिसोड 34 — “हवेली की खामोश पुकार”---1. लाल गंध की दहलीज़दरभंगा स्टेशन पर धुंध अब तक छँटी नहीं थी।सुबह पाँच बजे, प्लेटफ़ॉर्म पर बस कुछ परछाइयाँ हिल रही थीं।एक आदमी उतरा — कैमरा उसके गले में, बैग में नोटबुक और रिकॉर्डर।नाम था — अंशुमान शुक्ला,दिल्ली का पत्रकार।उसके चेहरे पर नींद की परत थी,पर आँखों में एक अलग-सी बेचैनी —जैसे कोई उसे यहाँ खींच लाया हो।टैक्सी में बैठते ही उसने ड्राइवर से पूछा —“दरभंगा के पुराने हिस्से में... वो हवेली है न, जहाँ कोई नहीं रहता?”ड्राइवर ने हड़बड़ा कर शीशा ठीक किया,“बाबू, उ हवेली में तो अब कौनो नहीं ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 35
एपिसोड 35 — “रक्त का रीडर”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. नीली साँसों का कमरादरभंगा की हवेली उस रात पहले से भी खामोश थी।दीवारों पर लगे आईनों में अब किसी का चेहरा नहीं दिखता था —बस नीली लहरें… जो मानो किसी की साँस बन चुकी हों।हवेली के बाहर हवा नहीं, आवाज़ें चल रही थीं।और हर आवाज़ में एक नाम बार-बार दोहराया जा रहा था —> “अंशुमान… अंशुमान…”पर अब वो जवाब नहीं दे रहा था।क्योंकि वो अब कहानी का हिस्सा बन चुका था।टेबल पर वही पुरानी किताब रखी थी — The Soul Script — Blood Edition.पन्ने स्थिर थे, पर नीचे एक नया ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 36
एपिसोड 36 — “स्याही में कैद रूहें”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. स्याही की साँसेंदरभंगा की हवेली में अब कोई इंसान नहीं —पर सन्नाटे में भी कुछ जीवित था।हर दीवार, हर शीशे, हर पन्ने में साँसें भरी हुई थीं…नीली, लाल और काली — तीन रंगों की रूहें, जो एक-दूसरे में उलझ चुकी थीं।टेबल पर रखी दोनों किताबें हल्की-हल्की कांप रही थीं,जैसे कोई भीतर से उन्हें पलटने की कोशिश कर रहा हो।और तभी —दरवाज़े पर दस्तक हुई।> ठक… ठक… ठक…बाहर खड़ा था एक लड़का —आरव चतुर्वेदी,दिल्ली का यूट्यूबर, जो “Haunted Tales of India” चैनल चलाता था।वो मुस्कुराया, कैमरा ऑन किया और बोला ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 37
एपिसोड 37 — “पन्नों में दफ़्न चीख़ें”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. हवेली का मौनदरभंगा की हवेली पर सुबह का सूरज नहीं धुंध थी — और उस धुंध में किसी की चीख़ घुली हुई थी।दरवाज़े के पास वही तीन किताबें रखी थीं —The Soul Script, The Reader’s Copy, और The Last Reader।पर अब उनके पन्ने बंद नहीं थे —हर किताब अपने आप पलट रही थी,मानो कोई अंदर से बाहर निकलना चाहता हो।कमरे के कोने से आवाज़ आई —> “हम अभी जिंदा हैं… पन्नों में दफ़्न, मगर अधूरे…”हवा अचानक ठंडी हो गई।दीवारों पर पुराने नाम उभरने लगे —अनन्या, अंशुमान, आर्या, और अब ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 38
एपिसोड 38 — “स्याही का श्राप”(कहानी: किताबें अब सांस लेने लगी हैं…)---1. हवेली की नई साँसदरभंगा की हवेली पर वही नीली धुंध छा गई थी।सुबह का सूरज कहीं नहीं था — बस हवा में स्याही की गंध थी।टेबल पर रखी पाँचों किताबें अब शांत नहीं थीं।The Final Chapter अपने आप खुली पड़ी थी,और उसके पहले पन्ने पर लिखा उभर रहा था —> “हर शब्द एक जन्म है… हर पंक्ति एक मौत।”दीवारें हल्की-हल्की धड़क रही थीं,जैसे हवेली अब किसी दिल की तरह जीवित हो।गाँव के लोग दूर खड़े काँप रहे थे।किसी ने धीरे से कहा —“अब ये हवेली नहीं… ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 39
एपिसोड 39— “पन्नों में दफ़्न चीख़ें”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. हवेली का मौनदरभंगा की हवेली पर सुबह का सूरज नहीं उगा।बस थी — और उस धुंध में किसी की चीख़ घुली हुई थी।दरवाज़े के पास वही तीन किताबें रखी थीं —The Soul Script, The Reader’s Copy, और The Last Reader।पर अब उनके पन्ने बंद नहीं थे —हर किताब अपने आप पलट रही थी,मानो कोई अंदर से बाहर निकलना चाहता हो।कमरे के कोने से आवाज़ आई —> “हम अभी जिंदा हैं… पन्नों में दफ़्न, मगर अधूरे…”हवा अचानक ठंडी हो गई।दीवारों पर पुराने नाम उभरने लगे —अनन्या, अंशुमान, आर्या, और अब आरव।---2. ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 40
एपिसोड 40 — “स्याही का श्राप”अधूरी किताब---1. अधूरी सुबहदरभंगा की हवेली में फिर वही सन्नाटा लौट आया था।लेकिन अब में एक नई धड़कन थी —किताब की धड़कन।टेबल पर रखी The Final Chapter अपने आप खुलती-बंद हो रही थी,जैसे कोई अंदर से सांस ले रहा हो।हर बार जब वो खुलती,स्याही की एक बूंद गिरती — और ज़मीन पर कोई नया शब्द बनता।> “मृत आत्मा से जन्म ले, नई रूह का अध्याय…”गाँव के लोग अब उस हवेली की ओर देखने की हिम्मत भी नहीं करते थे।कहते हैं, रात में हवेली के ऊपर नीली आग जलती है —और उसकी लौ में ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 41
एपिसोड 41 — “The Eternal Reader”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. हवेली की साँसेंदरभंगा की हवेली अब सिर्फ हवेली नहीं रही थी एक जीवित पुस्तक बन चुकी थी।हर दीवार पर स्याही के निशान ऐसे फैले थेजैसे किसी अदृश्य हाथ ने उन्हें लिखा हो।आँगन के बीच The Eternal Reader खुली पड़ी थी —उसके पन्ने खुद-ब-खुद पलटते रहे,और हर पन्ने से किसी के कदमों की आहट आती थी।रात के बारह बजते ही हवेली की सारी मोमबत्तियाँ जल उठीं।नीली लौ में चार परछाइयाँ उभरीं —अनन्या, आर्या, आरव, और तन्वी।> “कहानी अब लेखक ढूँढ रही है…”आर्या की रूह ने फुसफुसाया।“क्योंकि हर लेखक को अंत मेंअपनी ...और पढ़े
अधुरी खिताब - 42
एपिसोड 42 — “रूह की कलम” (सीरीज़: अधूरी किताब) (शब्द संख्या: लगभग 1500) --- 1. नीली का जागना रात का तीसरा पहर था। दरभंगा की हवेली के भीतर अब भी वो नीली चमक मौजूद थी — जैसे स्याही ने खुद को सांस दी हो। टेबल पर रखी “The Eternal Writer” धीरे-धीरे खुली, और उसके बीच से एक कलम बाहर निकली — पतली, पारदर्शी, और नीली रौशनी में चमकती हुई। वो हवा में तैर रही थी, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे थाम रखा हो। > “वक़्त आ गया है…” दीवार से एक ...और पढ़े