क्रांति एक ऐसी लड़की थी जिसे ऊपर वाले ने वह उपहार दिया था जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता। वह बहुत ही तेज दौड़ती थी। वह जब भी टीवी पर लड़कियों या फिर लड़कों को हॉकी खेलते देखती, उसके तन मन में भी वही खेलने की लगन लग जाती। उस समय उसके पांव मानो दौड़ने के लिए तत्पर हो जाते और वह घर में ही एक लकड़ी लेकर उससे खेलने लगती। बॉल को पूरे घर में इधर से उधर नचाती रहती और ऐसा करके उसे बहुत आनंद मिलता था। ऐसा लगता था कि मानो भगवान ने उसे जो उपहार दिया है, उसे पूरी तरह से पा लेने की उसने बचपन से ही ठान ली थी। इस समय उसकी उम्र लगभग आठ वर्ष थी।

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चुप्पी - भाग - 1

क्रांति एक ऐसी लड़की थी जिसे ऊपर वाले ने वह उपहार दिया था जो हर किसी के भाग्य में होता। वह बहुत ही तेज दौड़ती थी। वह जब भी टीवी पर लड़कियों या फिर लड़कों को हॉकी खेलते देखती, उसके तन मन में भी वही खेलने की लगन लग जाती। उस समय उसके पांव मानो दौड़ने के लिए तत्पर हो जाते और वह घर में ही एक लकड़ी लेकर उससे खेलने लगती। बॉल को पूरे घर में इधर से उधर नचाती रहती और ऐसा करके उसे बहुत आनंद मिलता था। ऐसा लगता था कि मानो भगवान ने उसे जो ...और पढ़े

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चुप्पी - भाग - 2

क्रांति की हॉकी खेलने की चाह को महसूस करके और उसकी ज़िद को हद से ज़्यादा बढ़ता देखकर रमिया चिंता बढ़ गई। क्रांति इन दिनों काफी उदास रहने लगी थी और उसकी उदासी का कारण रमिया अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए एक दिन रमिया ने उसे समझाते हुए कहा, "क्रांति बेटा, तुम्हें इस तरह से उदास देखकर मुझे बहुत दुःख होता है। तुम नहीं जानतीं पता नहीं कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं और उसकी शुरुआत तो घर परिवार से ही हो जाती है। सबसे पहले तो तुम्हारे पापा, वह तो तुम्हें पहली सीढ़ी पर ही खड़े मिल जाएंगे। ...और पढ़े

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चुप्पी - भाग - 3

क्रांति अपने पिता का आखिरी फ़ैसला सुनकर निराश अवश्य हुई लेकिन उसका अटल इरादा ना बदला। वह तो हॉकी कर अपने देश का सर शान से ऊंचा करके दिखाना चाहती थी। उसका मन, दिल और दिमाग़ दिन रात उसी दुनिया में खोया रहता जिसमें वह जाना चाहती थी। अब बस उसे यह तलाश थी कि वह किससे और कैसे हॉकी खेलना सीखे। क्रांति के स्कूल में हर शनिवार को खेलकूद का पीरियड होता था। आज जब वह खेलने के लिए मैदान पर गई तो उसे मुकेश सर को देखते ही ख़्याल आया कि क्यों ना वह उनसे बात करे। ...और पढ़े

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चुप्पी - भाग - 4

अगले दिन मुकेश सर ने स्कूल आते से ही हॉकी सिखाने की तैयारी शुरू कर दी। बस फिर क्या उन्होंने फटाफट एक कोच रौनक को ढूँढ लिया और स्कूल के मैदान में हॉकी खेलने की भी पूरी व्यवस्था कर ली। कुछ ही दिनों में स्कूल में हॉकी खेलने की प्रैक्टिस शुरू हो गई। आठवीं और नौवीं कक्षा से लड़कियों का चयन भी कर लिया गया। कोच रौनक ने लड़कियों को सिखाना शुरू कर दिया। वह यह देखकर दंग थे कि क्रांति तो जैसे पहले से खेल के बारे में सब कुछ जानती है। उसका खेल देखकर वह हैरान थे, ...और पढ़े

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