“शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल्लाने की आवाज़ आई। आवाज़ के साथ कोई आँगन का दरवाज़ा धड़धड़ाने लगा, जो पूरी तरह से जंग खाए बैठा था और पक्की दीवार पर टिका हुआ था। आवाज़ में उतावलापन साफ़ झलक रहा था। “अरे, आ रहा हूँ, ज़रा धीरज रखिए।” पचास साल का पुरुष खाट से खड़ा हुआ। चलने से पहले वह बड़बड़ाया, “एक तो घिसापिट दरवाज़ा है और लोग वो भी तोड़ देंगे।” उसने सफ़ेद रंग का कमीज़ और पायजामा पहना हुआ था। नए कपड़े पहने होते तो वह ज़रूर बगुले के पंख की तरह दिखता।

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ग्रीन मेन - 1

“शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल्लाने की आवाज़ आई। आवाज़ के साथ कोई का दरवाज़ा धड़धड़ाने लगा, जो पूरी तरह से जंग खाए बैठा था और पक्की दीवार पर टिका हुआ था। आवाज़ में उतावलापन साफ़ झलक रहा था। “अरे, आ रहा हूँ, ज़रा धीरज रखिए।” पचास साल का पुरुष खाट से खड़ा हुआ। चलने से पहले वह बड़बड़ाया, “एक तो घिसापिट दरवाज़ा है और लोग वो भी तोड़ देंगे।” उसने सफ़ेद रंग का कमीज़ और पायजामा पहना हुआ था। नए कपड़े पहने होते तो वह ज़रूर बगुले के पंख की ...और पढ़े

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ग्रीन मेन - 2

उन्नीस साल पहले… गुजरात का सोरठ प्रदेश। जूनागढ़ और गीर सोमनाथ के समंदर किनारे का प्रदेश, जिसे और ‘लीली नाघेर’ कहा जाता है। यह प्रदेश गीर के जंगल से घिरा है। बारिश के मौसम में वन का अलग निखार आ जाता। गर्मियों के मौसम में पेड़ो ने गर्मी की वज़ह से उतारे हुए कपड़े, बारिश के बाद सज-धज कर तैयार हो जाते। गाढ़ निद्रा में सोये झरने मीठे गीत गाते हुए वन को लपेटने निकल पड़ते। पंछी की मीठी आवाज़, मृग की उछल-कूद, झरने का मधुर संगीत और शेर की गर्जना से वन खिलखिला उठता। शेर का ...और पढ़े

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ग्रीन मेन - 3

समर पाँच साल का हो चुका था। गाँव की प्राथमिक शाला में उसका प्रवेश हो चुका था। उसका दोस्त उसके साथ ही था। वे दोनों नियमित शाला में जा रहे थे। शाला में प्रवेश हुए उन दोनों को सोलह दिन हो चुके थे। पहले तो समर को लगता था कि जैसे किसी ने भारी गठरी उनके ऊपर रख दी हो, मगर जैसे-जैसे दोस्त बनते गए वैसे-वैसे गठरी हल्की होती गई। उसने दृढ़ संकल्प बना ही लिया था कि पुलिस अफसर बनना ही है। समर को हर रोज कक्षा का रंगमंच बदलता नज़र आ रहा था मगर एक ...और पढ़े

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