एक महान व्यक्तित्व

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मेरा जन्म गाव मे एक छोटे से परिवार मे हुआ था। मेरे पापा गुजराती विषय के अध्यापक है वो एक सरकारी हाईय स्कूल मे पढ़ाते है। मेरा पुरा परिवार शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा हुआ है मेरे बडे पापा पोस्ट मे प्रेसीडेंट है मेरे चाचा सरकारी स्कूल के प्रधान अध्यापक है। जब मे पैदा हुआ था तब मेरी मम्मी ने मुझे बताया था की मे तीन महीनों तक अस्पताल मे बीमार था। मे इतना छोटा था की मुझे कुछ भी याद नही है मे ये मानता ही नही की मे तीन महीने तक बीमार हुआ होगा क्युकी मेरी और अस्पताल की कभी नही बनती लेकिन अब मम्मी बता रही है |

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एक महान व्यक्तित्व - 1

मेरा जन्म गाव मे एक छोटे से परिवार मे हुआ था। मेरे पापा गुजराती विषय के अध्यापक है वो सरकारी हाईय स्कूल मे पढ़ाते है। मेरा पुरा परिवार शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा हुआ है मेरे बडे पापा पोस्ट मे प्रेसीडेंट है मेरे चाचा सरकारी स्कूल के प्रधान अध्यापक है। जब मे पैदा हुआ था तब मेरी मम्मी ने मुझे बताया था की मे तीन महीनों तक अस्पताल मे बीमार था। मे इतना छोटा था की मुझे कुछ भी याद नही है मे ये मानता ही नही की मे तीन महीने तक बीमार हुआ होगा क्युकी मेरी और अस्पताल की ...और पढ़े

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एक महान व्यक्तित्व - 2

इसी तरह हम शहेर से वापस गाँव रहने आ गये अब आगे मेरी स्कूल की पढाई शरू हो गई। का सबसे बोरिंग काम वैसे ऐसा मुझे तब लगता था अब तो पढाई का महत्व पता चला गया है। आपको सुनके बहुत ही आश्चर्य लगेगा की मैने अपने स्कूल जीवन मे कुल 6 बार अलग अलग स्कूल बदली है उसके पीछे भी बडी लम्बी और मजेदार कहानी है। सबसे पहले तो गाव की ही माध्यमिक विद्यालय मे मुझे पापा ने भेज दिया वो मेरे घर से थोड़ा ही दूर थी मेरे घर से दिख भी रही थी। लेकिन मे वहा ...और पढ़े

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एक महान व्यक्तित्व - 3

"मेरे बचपन के मजे अब खत्म होने वाले थे चलो अब हॉस्टल तीसरी क्लास मे था मेरी किस्मत मे जाना भगवान ने लिख दिया और वो भी 200 + किलोमीटर दूर गांधीनगर मे अब इतनी दूर और पहली बार हॉस्टल मे जाना कोई छोटी बात नही थी। इतनी दूर ट्रैवल करके जाना मतलब गाडी मे बैठे बैठे के हालात खराब हो जाती थी लगातार 4 -5 घंटे तक का सफर होता था। यहाँ पे मेरा बचपन बहुत हद तक खत्म होने वाला था। यहाँ से मेरे जिवन घड़तर की शुरुवात होने वाली थी। इस कहानी का शीर्षक है एक ...और पढ़े

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एक महान व्यक्तित्व - 4

की हमारी हॉस्टल की सबसे खास बात मुझे यहाँ की प्राथना सभा लगी। हमारे जिवन मे जब हम बालक मे होते है तो सबसे जरूरी ये है की हमारे अंदर से संस्कार की पूर्ति हो जो केवल और केवल भक्ति, पार्थना और भगवान् का भजन कीर्तन करने से आती है। असल मे हमारा शरीर और आत्मा अलग अलग है हमारे पंच तत्वों से बने बाह्य शरीर को तो हम भोजन दे कर उसका विकास कर लेते है लेकिन हमारी आत्मा का विकास करने के लिये पार्थना रूपी भोजन की जरूरत पडती ही है इस लिये तो " प्राथना को ...और पढ़े

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