स्याह उजाले के धवल प्रेत

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वह उस बार में रोज़ ही देर शाम को बैठ कर घंटे भर तक व्हिस्की पीती है, जो शहर का एक ठीक-ठाक बार कहा जाता है। जगह ज़्यादा बड़ी होने के कारण शान्ति से देर तक बैठ कर पीने वालों का वह पसंदीदा बार है। वह बाहर से लेकर भीतर तक सिंपलीसिटी इज़ द बेस्ट ब्यूटी के सिद्धांत पर बना लगता है। उसकी सभी दीवारें सुपर व्हाइट कलर की हैं। सभी फ़र्नीचर स्टील के हैं। बार-टेंडर से लेकर सारा स्टाफ़ सफ़ेद रंग की ही ड्रेस में रहता है। शराब से लेकर खाने-पीने की हर चीज़ बड़ी सादगी से परोसी जाती है। उसके सेकेण्ड फ़्लोर पर केवल जोड़ों में आए लोग ही बैठ कर पी सकते हैं। वहाँ का सारा स्टाफ़ लेडीज़ है। क्योंकि मैं और वह दोनों ही वहाँ अकेले ही बैठ कर पीते हैं, इसलिए हमारी जगह नीचे ही होती है। पूरे समय वहाँ पर बहुत धीमा संगीत बजता रहता है। दीवारों पर हॉलीवुड या बॉलीवुड की नायिकाओं की नहीं, बल्कि अमेरिका की एक विख्यात पत्रिका में छपने वाली मॉडलों की क्लासिक न्यूड ए थ्री साइज़ की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें हर तरफ़ लगी हुई हैं।

Full Novel

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स्याह उजाले के धवल प्रेत - भाग 1

भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव पोस्ट-ग्रेजुएट राज-मिस्त्री वासुदेव को समाचार शब्द से ही घृणा है। वह टीवी, रेडियो, अख़बार कहीं समाचार देख सुन नहीं सकता, नाम लेते ही आग-बबूला हो जाता है। कहता है, “यह सब समाचार कम बताते हैं, बात का बतंगड़ बना कर तमाशा-ही-तमाशा करते हैं, नेताओं की तरह लोगों को भरमाते हैं, लड़ाते हैं, आग लगाते हैं, गुंडे-बदमाशों, माफ़ियाओं को दिखा-दिखा कर उन्हें हीरो बना देते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं।” उसके उलट उसकी ग्रेजुएट पत्नी दया को समाचार देखना बहुत पसंद है। उसे समाचार चैनलों पर होने वाली डिबेट्स धारावाहिकों से भी ज़्यादा पसंद हैं, क्योंकि ...और पढ़े

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स्याह उजाले के धवल प्रेत - भाग 2

भाग -2 लेकिन दया का यह जतन भी सिरे से ख़राब हो गया। वासुदेव शांत होकर बच्चों को बाहर जाने की बात पर भड़क कर कहता है, “कैसी मोटी बुद्धि की औरत है रे। तनको दिमाग़ है खोपड़ी में कि ख़ाली गोबर भरा है। जब देखो तब बराबरी करेगी कि हमहू तोहरे तरह पढ़े हैं, बी.ए. पास हई। अरे पढ़-लिख कर परीक्षा दिए रहो या बाप-महतारी पैसा-रुपया देकर कॉपी लिखवा दिए थे, या जैसे हमरे कॉलेज में हम-सब किताबें से छाप के डिग्री ले आए थे वैसे ही पढ़े हो। “अरे इतनी मोटी बात समझ में नहीं आ रही ...और पढ़े

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स्याह उजाले के धवल प्रेत - भाग 3

भाग -3 वासुदेव उसे बहुत दिन से जानता है, लेकिन यह नहीं जानता है कि वह बिना कोई काम-धंधा अपना परिवार कैसे पालता है। ग्यारह बच्चों, तीन बेगमों सहित पंद्रह लोगों का परिवार है, ठीक से खा-पी भी रहा है, तीन कमरों में पता नहीं कैसे रह रहा है। वह दरवाज़े पर ही खड़ा सोचने लगा कि देखने में कितना भला-मानुष लगता है। मगर शातिर इतना है कि अपने साढू भाई के छोटे भाई की ही बीवी भगा लाया। कितना पुलिस-फाटा सब हुआ, लेकिन छोड़ा नहीं और न ही वह औरत ही अपने शौहर के पास जाने को तैयार ...और पढ़े

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स्याह उजाले के धवल प्रेत - भाग 4

भाग -4 दूसरी तरफ़ वासुदेव का विश्लेषण, अनुमान शत-प्रतिशत सही होता गया। दंगा और ज़्यादा फैलता चला गया देखते-देखते दिन में क़रीब पाँच दर्जन क्षत-विक्षत लाशें मिलीं। एक आईबी अफ़सर को सूअरों ने धोखे से खींच कर उसे चाकू से छलनी कर दिया। उसके शरीर के अंग-अंग काट दिए, आँखें निकाल लीं। चाकुओं के चार सौ घावों से बिंधा उनका शव एक गंदे नाले में फेंक दिया। नीचता की हद यह कि नाले की गाद (सिल्ट) में जितना गहरे हो सकता था, उतना गहरे दबा दिया। यह समाचार देख कर वासुदेव ने बच्चों का भी ध्यान नहीं रखा, भयंकर ...और पढ़े

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स्याह उजाले के धवल प्रेत - भाग 5

भाग -5 लॉक-डाउन का समय जैसे-जैसे बीत रहा है, पति-पत्नी का तनाव वैसे-वैसे बढ़ रहा है। दोनों के बीच तनाव रात में हाथ गरमाने के समय भी अब ज़्यादा दिखने लगा है। एक दिन वह झल्लाती हुई बोली, “घर में बंद होने का मतलब यह नहीं है कि जब देखो तब हाथ गरमाने लगे, आख़िर तुम्हें हो क्या गया है, पहले तो ऐसे नहीं थे। “इस छोटी-सी कोठरी में न बच्चों का ध्यान रखते हो, न दिन का, न रात का। बस हाथ . . . अरे इतनी बड़ी विपत्ति आ गई है, ज़िन्दगी ख़तरे में पड़ गई है। ...और पढ़े

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स्याह उजाले के धवल प्रेत - भाग 6 (अंतिम भाग)

भाग -6 हज़ारों लोगों की हैरान-परेशान भीड़ सुलगती सड़क पर रुकने के बजाय आगे बढ़ने लगी है । वासुदेव पास भी आगे बढ़ने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है। रात-भर का थका-माँदा समूह आगे बढ़ता जा रहा है। बहुतों के पैरों में छाले पड़ गए हैं। बहुतों के तो वह छाले फूट भी चुके हैं। फूटे छालों के घाव की पीड़ा, चालीस डिग्री की तप्ती गर्मीं में भीतर तक वेध रही है। गर्म हवा के थपेड़े झुलसाए दे रहे हैं। सभी के गले सूखी बंजर भूमि से हो रहे हैं। डिहाइड्रेशन के कारण सब की हालत बदतर होती ...और पढ़े

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