~आरंभ~पतझड़ के दिन अभी अभी खत्म हुए थे, अब मौसम का सफर बसंत ऋतु की सुगंध सेमहकती हवाओं की रवानगी की और बढ़ रहा था | यह कहानी भी कई सौ साल पहले इन्हीं दिनों शुरू हुई थी | यह वह समय था जब सेनापति भानसिंह आर्य का लाडला बेटा अपने बचपन के आखिरी पडाव पर था | भानसिंह को सर्वाधिक प्रिय था अपना सबसे छोटा बेटा, अंगद | अभी बाल-अवस्था समाप्त भी नहीं हुई थी और अंगद के चेहरे पर अल्हड युवक सा तेज आ गया था |भान सिंह अपने पुत्रों के साथ अक्सर युद्ध-अभ्यास करते थे|
अंगद - एक योद्धा। - 1
आरंभ पतझड़ के दिन अभी अभी खत्म हुए थे, अब मौसम का सफर बसंत ऋतु की सुगंध सेमहकती हवाओं रवानगी की और बढ़ रहा था यह कहानी भी कई सौ साल पहले इन्हीं दिनों शुरू हुई थी यह वह समय था जब सेनापति भानसिंह आर्य का लाडला बेटा अपने बचपन के आखिरी पडाव पर था भानसिंह को सर्वाधिक प्रिय था अपना सबसे छोटा बेटा, अंगद अभी बाल-अवस्था समाप्त भी नहीं हुई थी और अंगद के चेहरे पर अल्हड युवक सा तेज आ गया था भान सिंह अपने पुत्रों के साथ अक्सर युद्ध-अभ्यास करते थे अंगद अभी ...और पढ़े
अंगद - एक योद्धा। - 2
मनपाल ने तुरंत आकाश की ओर देखा | वह एक निर्भीक योद्धा थे भय या चिंता तो उनके मुख कभी झलकती ही नहीं थी। आक्रमण की खबर सुनते ही उनकी आंखों में एक उज्जवल चमक आ गई, फौरन तैयारी करने लगे। सबको एकत्र कर लिया सारी सेना एक झटके में प्रचंड मोर्चे में बदल गई और सीमा की और कूच किया। मनपाल अब वृद्धावस्था की ओर जाने लगे थे, परंतु उनके उद्घोष किसी भी जवान योद्धा की ललकार को मात दे सकते थे। उनकी एक आवाज पर सैनिक मार-काटने और मर- कटने को आतुर हो जाते थे। शत्रु ...और पढ़े
अंगद - एक योद्धा। - 3
मनपाल के मन मे अंगद के प्रति दया नहीं थी, बल्कि उसकी मूर्खता पर वह क्रोधित थे। उन्होंने अपना अंगद पर से हटाकर युद्ध पर केंद्रित किया, और रणनीति के अनुसार शत्रु का सामना करने लगे। दोनों ओर से सिपाही अपनी पूरी ताकत से भिड़ रहे थे। मनपाल शत्रु की रणनीति समझने की कोशिश कर रहे थे, उन्होंने देखा कि वज्रपाल अपनी सेना के अग्रभाग को फैला रहा है, उसकी मंशा साफ ज़ाहिर थी कि वह मनपाल सिंह की सेना को चारों ओर से घेरना चाहता था। तभी मनपाल को हवा में एक शीश उडता हुआ दिखाई दिया, ध्यान ...और पढ़े
अंगद - एक योद्धा। - 4
अगले दिन प्रातः काल मनपाल सिंह को अंगद मंदिर की ओर से आता हुआ दिखाई दिया। साफ स्वच्छ वस्त्र किए हुए, केश सुलझे व चेहरे पर लालिमा, उसे देख लगता ही न था कि कल ही उसने कोई युद्ध लड़ा है। वह ऐसे चला आता था मानो कोई मदमस्त जवान शेर कई दिनों के आराम के बाद अपनी मांद से बाहर आया हो और जंगल की सैर करने निकला हो।अंगद के मन में एक अलग स्तर का आनंद था, जिसके पास से वह निकलता सबका हाल जान कर निकलता।जो सामने आता उसको वह मुस्कान भरी नजरों से देखता, मानो ...और पढ़े
अंगद - एक योद्धा। - 5
अंगद ने मनपाल से पुनः पूछा, कि महाराज और उसके पिता नगर वापस कब लौटेंगे, तो मनपाल ने बड़ी सी आवाज में बताया, जैसे उनकी अब उस वार्तालाप में कोई रुचि शेष न रह गई हो। वह बोले, "आज से चौथे दिन महाराज और तुम्हारे पिता दोनों लौट आएंगे। और कोई प्रश्न, कोई जानकारी लेनी हो, तो कहो- वह भी बताऊं तुम्हें।" अंगद मनपाल का व्यवहार देखकर भांप गया था कि उनके मन में क्या चल रहा है। वह धीमे से स्वर में बोला, "आप तो काका बिना किसी कारण ही रुष्ट हुए जाते हो, मुझसे कोई त्रुटि हुई ...और पढ़े
अंगद - एक योद्धा। - 6
जो-जो मेरे साथ लड़ा,जिस- जिस ने मुझे ललकारा मैं उन सब का सम्मान करता हूं। उनके लिए भी गौरव विषय है कि वह सब वीरगति को प्राप्त हुए और मैं भी खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे वीर योद्धाओं से लड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मनपाल ने बीच में ही टोक कर कहा,"अंगद तुमने निहत्थे पर वार न किय मैं समझता हूं परन्त कितनी ही वार तुम्हारी तलवार के, तुम्हारे भाले केु तुम्हारे बाणों के ऐसे थे, जो किसी योद्धा की पीठ पर हुए वह भी मैंने देखा है। यह कहां की युद्ध कौशलता है? आखिर किसी की ...और पढ़े
अंगद - एक योद्धा। - 7
अंगद ने मनपाल को रोकना नहीं चाहा, शायद वह जानता था कि उनके मस्तिष्क में उस समय क्या द्वंद रहा था। कुछ क्षण अंगद वहां रुक गया जैसे वह मनपाल की कही बातों पर विचार कर रहा हो, परंतु शीघ्र ही उसे ध्यान आया कि उसे भ्रमण को जाना है। वह अस्तबल गया और घोड़ा तैयार किया। पहले अपनी मां से मिलने गया और फिर वन की ओर निकल गया। माँ से उसने ज्यादा बातें नहीं करी, संध्या में लौटूंगा कहकर चला गया। वन उसकी पसंदीदा जगह थी अपने घर वह सिर्फ अपने माता-पिता के कारण जाता था अन्यथा ...और पढ़े
अंगद - एक योद्धा। - 8
जंगली जानवरों से अंगद का सामना पहले भी हो चुका था। जानवरों से उसे भय तो कभी महसूस ना जब भी उसका सामना किसी जंगली जानवर से होता तो वह या तो जानवर को डरा कर वहां से भगा देता या खुद होशियारी से जानवर को चकमा देकर वहां से नौ दो ग्यारह हो लेता था। जानवर को भगा देना, डरा देना या खुद उसे चकमा देकर वहां से चंपत हो लेना अंगद को आनंदित करता था, परंतु यह काम उसे कभी संतुष्ट न करता। उस दिन मानो अंगद का हृदय बरसों से विलुप्त संतुष्टि कहीं से ढूंढ निकालना ...और पढ़े