यह कहानी विभिन्न मन-स्थितियों मं जी रहे तीन ऐसे पात्रों की कहानी है जो असामान्य जीवन जीने को अभिशप्त हैं। थामस ए. हैरिस नामक अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक ने अपनी विश्वविख्यात पुस्तक ‘आई. ऐम. ओ. के. यू. आर. ओ. के.’ में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि कोई भी शिशु अपने जन्म के समय एवं शैशवास्था में उपलब्ध परिस्थितियों के अनुसार जन्म के पश्चात अधिक से अधिक पांच वर्ष में अपने लिये निम्नलिखित चार जीवन-स्थितियों मन-स्थितियों मे से कोई एक जीवन-स्थिति निर्धारित कर लेता है, जो जीवनपर्यंत उसक्रे अंतर्मन एवं आचरण को प्रभावित करती रहती हंै।

Full Novel

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भीगे पंख - 1

यह कहानी विभिन्न मन-स्थितियों मं जी रहे तीन ऐसे पात्रों की कहानी है जो असामान्य जीवन जीने को अभिशप्त ए. हैरिस नामक अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक ने अपनी विश्वविख्यात पुस्तक ‘आई. ऐम. ओ. के. यू. आर. ओ. के.’ में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि कोई भी शिशु अपने जन्म के समय एवं शैशवास्था में उपलब्ध परिस्थितियों के अनुसार जन्म के पश्चात अधिक से अधिक पांच वर्ष में अपने लिये निम्नलिखित चार जीवन-स्थितियों मन-स्थितियों मे से कोई एक जीवन-स्थिति निर्धारित कर लेता है, जो जीवनपर्यंत उसक्रे अंतर्मन एवं आचरण को प्रभावित करती रहती हंै। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 2

मानिकपुर ग्राम की भादों माह के कृष्णपक्ष की द्वितीया की वह रात्रि उस मौसम की घोरतम कालिमामय रात्रि थी- के पूर्व ही आकाश शांत और गम्भीर होने लगा था और फिर शन्ैा शनै पश्चिम दिशा से भूरे और काले रुई के भीमकाय फोहों जैसे बादल आकाश मे छाने लगे थे- पहले इक्के दुक्के फुटकर और फिर घटाटोप। सूर्यास्त होते ही घने अंघकार का साम्राज्य समस्त ग्राम मे फैल गया था। घनघोर वर्शा की आषंका के कारण चरवाहे अपने ढोरों को जल्दी ही घर वापस ले आये थे। खेतों और बागों मे दाना-कीड़ा चुगने वाले मोर, आंगन मे फुदकने वाले गौरैया, और गांव में मटरगश्ती करने वाले कुत्ते आने वाले तूफा़न का पूर्वाभास पाकर आज जल्दी ही अपने अपने शरणस्थलों मे दुबक गये थे। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 3

कार्तिक का बड़ा सुहाना महीना था- न अधिक गर्म, न अधिक ठंडा। वर्षा ऋतु के पश्चात चारों ओर छाई इतनी उत्फुल्लकारी थी कि मन और शरीर दोनों आह्लाद से भरे रहें। यह वह समय था जब मोहित सवा तीन वर्ष का हो चुका था और हवेली में धमाचैकडी़ मचाये रहता था। ग्राम्य जीवन का यह वह महीना था जब वर्षा के प्यार से प्रस्फुटित हरी-भरी प्रकृति शरत् ऋतु केा अपने अंक मे भर लेने को व्याकुल होने लगी थी। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 4

‘‘या अल्लाह....या अल्लाह......रहम कर......हाय मरी .......हाय मरी.....’’ तहसील फ़तेहपुर के विषाल परिसर में स्थित एक क्वार्टर के सीलनभरे छोटे कमरे, जिसके फ़र्श और दीवालों का प्लास्टर बेतरतीबी से उखडा हुआ था, मंे बंसखटी पर पडी़ एक कृशकाय औरत कराह रही थी। वह स्त्री सलीमा थी- तहसील फ़तेहपुर के कुर्क-अमीन मीरअली की पहली बीबी। दस साल पहले उसकी शादी मीरअली से हुई थी और आज चैथी संतान के सम्भावित जन्म की पीडा़ से वह छटपटा रही थी। हड्डियों का ढांचा मात्र बची सलीमा से मीरअली का मन कई साल पहले भर गया था और उसने अपनी फुफेरी शोड़षी बहिन से दूसरा निकाह पढ़कर नई बीबी को अलग एक नया मकान ख़रीद कर उसमें रख दिया था। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 5

सूर्योदय में अभी कुछ पल की देरी थी- रात्रि, जो देर से दिवस से मिलन केा प्रतीक्षारत रही थी, के आगमन के साथ अपने को उसके अंक में विलीन कर रही थीं। मकानों की दीवालों के छेदों में रहने वाली गौरैया ने देर से चीं-चीं करके प्रात के आगमन की सूचना देनी प्रारम्म्भ कर रखी थी। छतों पर पिछले दिनों सूखने हेतु डाले गये अनाज के बिखरे दानों को चुगने हेतु एक दो मोंरें आ वुकीं थीे। मानिकपुर के अधितर घरों में जगहर होे चुकी थी। भग्गी काछी, महते चमार, धर्माई नाई आदि अनेक लोग अपना हल-बैल लेकर खेतों को चल दिये थे। कमलिया अधजगी सतिया को गोद में उठाकर लालजी षर्मा की हवेली केा चोर की भंाति चल पडी़ थी। काम करने के लिये वहां जाने का आज उसका पहला दिन था और हल्ला द्वारा देख लिये जाने पर रोक दिये जाने के भय से उसको धुकधुकी हो रही थी। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 6

जून की चिलचिलाती दोपहरी में हवा एकदम शांत रुकी हुई थी, परंतु फिर भी उूष्मा की लहरें ऐसे प्रवाहित रही थीं जैसे ईथर के माध्यम में विद्युत्चुम्बकीय लहरें प्रवाहित होती रहतीं हैं। फ़तेहपुर कस्बे के अधिकतर व्यक्ति बदन को जलाने वाली उस ग्रीष्म से बचने हेतु कमरों की छांव में बंद हो गये थे- और अलसाये उनींदे पडे़ थे। ऐसे में मोहित दबे पांव अपने मौसा के घर से बाहर निकल आया था और पीछे जाकर जामुन के पेड़ की छांव में खडे़ होकर सामने के ताल को देख रहा था, जहां चार बतखें एक पंक्ति में तैर रहीं थीं। आगे तैरने वाला नर और पीछे तैरने वाली मांदा बतखें तो धीर-गम्भीर परंतु सतर्क मुद्रा में आगे बढ़ रहीं थीं परंतु बीच में तैरने वाले दोनों बच्चे कभी-2 पानी में डुबकी लगाकर कुलांच भर लेते थे। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 7

‘‘हट ससुर! जू का कर दओ?’’ कहकर दादी ने पिच्च से कुल्ला किया था और मोहित को अपने पेट उतारकर अपना मुॅह धोने आंगन के परनाले की ओर दौडी़ थीं। मोहित उनकी प्रतिक्रिया देखकर खिलखिलाकर हंस पडा़ था। मोहित अपनी दादी का बडा़ लाडला था। उस दिन जब दादी मोहित कोे अपने घुटनों पर लिटाकर मालिश कर रहीं थीं तो मोहित ने इतने जोश से अपनी लघुशंका का निवारण किया था कि दादी का मंुह आधा भर गया था। कालांतर में दादी उस घटना को ऐसी मिठास के साथ सुनातीं थी जैसे मोहित ने उन्हें साक्षात अमृतपान कराया हो। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 8

उस होली की रात्रि, जब हल्ला ने मोहित को सतिया के वक्ष पर पिचकारी से रंग मारते और सतिया उल्लास से मुस्कराते देख लिया था, और फिर जब कमलिया हल्ला के घर गई तब लौटते समय हल्ला ने उसे बैठक में बुला लिया था। उस दिन उन्होने खूब भंग चढा़ रखी थी और उनसे खडा़ नहीं हुआ जा रहा था। कमलिया के अंदर आते ही लड़खडा़ते पैरों से उठकर उन्होने बैठक का दरवाजा़ बंद करना चाहा परंतु सांकल लगाने के पहले ही वह लड़खड़ाते हुए पलंग पर बैठ गये थे। फिर कमलिया सेे लड़खडा़ती जु़बान से बोले थे, ...और पढ़े

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भीगे पंख - 9

काल की गति अबाध है- वह निर्लिप्त, निरपेक्ष, निस्पृह एवं निर्मम रहकर प्रवाहित होता रहता था। वषानुवर्ष गर्मिंयों की के आगमन के साथ रज़िया के हृदय में बढ़ने वाली धड़कन, नयनों में उद्वेलित प्रतीक्षा की प्यास, और मोहित के न आने से लू के थपेडा़ें से सूखे चेहरे पर बहने वाले अश्रुओं से उसे क्या मतलब? उसे तो बस अनवरत वर्तमान से भविष्य की ओर प्रवाहित होते रहना है। कहते हैं कि लम्बा समय बीत जाने से हृदय के घाव भर जाते हैं और समय पुराने सम्बंधों की चमक को फीकाकर नये सम्बंध बना देता है परंतु रज़िया के जीवन में ऐसा कुछ घटित नहीं हो रहा था। उसका जीवन मोहित पर ठहर सा गया था- उसका तो जो भी था वह मोहित ही था न तो उसके मन में कोई नवीन सम्बंध बनाने की लालसा थी और न वह अपने को इस योग्य समझती थी। वह तो ऐसी मीरा थी जिसके लिये उनका पद ‘ंमेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ अक्षरश चरितार्थ होता था। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 10

इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रणी में उत्तीर्ण कर लेने के पश्चात मोहित दिल्ली विश्वविद्यालय में बी. एस. सी. में लेने हेतु आया हुआ था- विश्वविद्यालय के भव्य भवन, वहां पर छात्र-छात्राओं की भीड़, उनके द्वारा पहने हुए आधुनिक परिधान आदि देखकर मोहित एक प्रकार से आतंकित सा था। वह रजिस्ट्ार आफ़िस, जहां ऐडमीशन फा़र्म बांटे जा रहे थे, पहुंचकर कांउंटर के सामने खडा़ हो गया था। वहां प्रवेशार्थियों की भीड़ देखकर मोहित घबरा गया था। फिर साहस कर उसने धीरे से फा़र्म बांटने वाले बाबू से फा़र्म मंागा, परंतु उसने सुनी अनसुनी कर दी और ज़ोर जो़र से चिल्लाकर फ़ार्म मांगने वाले छात्रों को फा़र्म बांटता रहा। मोहित जो़र से अपनी बात कहने में अपने को असमर्थ पा रहा था और इस कारण हीनता का अनुभव कर आत्म-ग्लानि से ग्रस्त हो रहा था कि तभी पुराने छात्र जैसे दिखने वाले एक व्यक्ति ने उससे पूछा, ...और पढ़े

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भीगे पंख - 11

सतिया की मीटिंग में आज बड़ी भीड़ थी। वह अपने हृदय में भरा हुआ क्षोभ, प्रतिशोध एवं तद्जनित विष वमन कर रही थी। उसकी उत्तेजक बात सुनकर भीड़ तालियां पीटने लगी थी एवं सतिया और जोश में भरकर बोलने लगी थी, ...और पढ़े

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भीगे पंख - 12

‘‘मोहित तुम मौसी को तो भूल ही गये?’’ मौसी के शब्दों में उलाहना थी परंतु उनकी आंखें आनंदातिरेक से झर थीं। वह अपने घर के आंगन में मोहित को सीने से लगाये खडी़ं थीं। इतने वर्षों बाद मोहित को देखकर उनका तन-मन पिघल रहा था। ...और पढ़े

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भीगे पंख - 13

केंद्रीय सचिवालय, दिल्ली मे नियुक्त आई. ए. एस. अधिकारियों की दिनचर्या में प्राय व्यस्तता रहती है -प्रात शीघ्र तैयार आफ़िस के लिये भागना और सायं अंधेरा होने के पश्चात घर लौटना, फिर पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्व निभाना। छुट्टी के दिन घर की आवश्यक खरीदारी और बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति में बीत जाते हैं। प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरण पर आकर मोहित का जीवन भी वहां की दिनचर्या में ढल रहा था। ...और पढ़े

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