रात्रि का दूसरा पहर,आकाश में तारों का समूह अपने धवल प्रकाश से धरती को प्रकाशित कर रहा है,चन्द्रमा की अठखेलियाँ अपनी चाँदनी से निरन्तर संचालित है,चन्द्रमा बादलों में कभी छुपता है तो कभी निकलता है एवं कभी किसी वृक्ष की ओट में छिप जाता है,वहीं एक वृक्ष के तले वसुन्धरा अपने प्रेमी देवनारायण की गोद में अपना सिर रखकर उससे वार्तालाप कर रही है,वो उससे कहती है.... देव!मैं सदैव सोचा करती थी कि मैं कभी किसी से प्रेम नहीं करूँगीं,मेरे पिताश्री जिससे भी मेरा विवाह करना चाहेगें तो मैं उसी से विवाह कर लूँगी,किन्तु अब मुझे भय लगता है कि

Full Novel

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सौगन्ध--भाग(१)

रात्रि का दूसरा पहर,आकाश में तारों का समूह अपने धवल प्रकाश से धरती को प्रकाशित कर रहा है,चन्द्रमा की अपनी चाँदनी से निरन्तर संचालित है,चन्द्रमा बादलों में कभी छुपता है तो कभी निकलता है एवं कभी किसी वृक्ष की ओट में छिप जाता है,वहीं एक वृक्ष के तले वसुन्धरा अपने प्रेमी देवनारायण की गोद में अपना सिर रखकर उससे वार्तालाप कर रही है,वो उससे कहती है.... देव!मैं सदैव सोचा करती थी कि मैं कभी किसी से प्रेम नहीं करूँगीं,मेरे पिताश्री जिससे भी मेरा विवाह करना चाहेगें तो मैं उसी से विवाह कर लूँगी,किन्तु अब मुझे भय लगता है कि ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(२)

समय बीत रहा था और संग संग वसुन्धरा की प्रतीक्षा भी,उसे अभी भी विश्वास था कि कदाचित देवनारायण का हो जाएं और वो उसके पास लौट आएं,वसुन्धरा कभी अश्रु बहाती तो कभी विचलित हो उठती,ज्यों ज्यों उसके गर्भ में शिशु का आकार बड़ा हो रहा था त्यों त्यों उसकी चिन्ता बढ़ती जाती,वो कभी कभी अपने जीवन से निराश भी हो उठती थी,किन्तु जब शिशु उसके गर्भ में भाँती भाँति की गतियाँ करता तो वो प्रसन्नता से रो पड़ती,वो सोचती यदि इस समय देवनारायण उसके पास होता तो वो शिशु की गतिविधियों के विषय मेँ उससे चर्चा करती,वो भी कितना ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(३)

नीलेन्द्र के तलवार निकालते ही वीरबहूटी ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वें शीघ्रता से नीलेन्द्र को बंदी लें,सैनिकों ने वीरबहूटी के आदेश पर नीलेन्द्र को बंदी बना लिया और उसे बंदीगृह में डाल दिया,इस बात से नीलेन्द्र की क्रोध की सीमा का पार ना था,उसने मन में प्रण कर लिया था कि मैं अपने अपमान का प्रतिशोध लेकर रहूँगा,वो बंदीगृह में यही विचार बना रहा था और इधर वीरबहूटी ने अपनी पुत्री वसुन्धरा से ये कह दिया कि तुम्हारा पति अत्यधिक लालची प्रवृत्ति का है एवं उसने इस राज्य का उत्तराधिकारी बनने हेतु मेरी हत्या करने का ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(४)

साँझ हो चुकी थी,अँधेरा गहराने लगा था,झोपड़ी के भीतर शम्भू की पत्नी माया अपने पुत्र लाभशंकर की प्रतीक्षा कर थीं,उसने शम्भू से लाभशंकर के विषय में पूछते हुए कहा.... ए..जी!शंकर तुमसे भी कुछ कह कर नहीं गया कि कहाँ जा रहा है? मुझसे तो कुछ भी नहीं बताकर गया,इतनी क्यों विचलित हुई जाती हो पगली?अभी आ जाएगा?जाओ...बाहर जाकर उसके मामा देवव्रत से क्यों नहीं पूछती कि उसका लाड़ला भान्जा कहाँ गया है?शम्भू बोला।। हाँ!उसे देवव्रत भ्राता ने ही बिगाड़ रखा है,मैं उन्हीं से जाकर पूछती हूँ,माया बोली।। और माया झोपड़ी से बाहर आई तो उसने देखा कि देवव्रत उदास ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(५)

मनोज्ञा ने भी जैसे ही लाभशंकर को देखा तो बोल पड़ी.... तुम वही हो ना!जिसने उस मृग को मूर्छित दिया था, जी!वो तो भूलवश हुआ था मुझसे,मैं तो केवल लक्ष्य साधकर ये ज्ञात करना चाहता था कि मैं इस योग्य हूँ या नहीं,लाभशंकर बोला।। मुझे तुम पर विश्वास नहीं है,मनोज्ञा बोली।। पुत्री मनोज्ञा!तुम्हें इसे जानने में कोई भूल हुई है,देवव्रत बोला।। अच्छा!तो आपका नाम मनोज्ञा है,लाभशंकर बोला।। नहीं!रक्त पीने वाली पिशाचिनी नाम है मेरा,मनोज्ञा बोली।। पुत्री!इस पर इतना क्रोध मत करो?देवव्रत बोला।। परन्तु!काका श्री!आप इसे नहीं जानते,ये अत्यधिक निर्दयी व्यक्ति है,इसने मृग को मूर्छित किया था,मनोज्ञा बोली।। पुत्री!मैं इसे ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(६)

मनोज्ञा ने कलश लेकर गृह में प्रवेश किया एवं कलश को आँगन में रखकर वो शीघ्रता के संग अपने में चली गई,वो अपने बिछौनें पर जाकर बैठ गई,उसकी आँखों से निरन्तर अश्रुधारा बह रही थी,उसने धीरे से मन में कहा.... क्षमा करना शंकर!मैं तुमसे प्रेम नहीं कर सकती,मैं विवश हूँ।। तभी एकाएक बाहर से मनोज्ञा को भूकालेश्वर जी ने पुकारा..... मनोज्ञा....मनोज्ञा पुत्री!कहाँ हो तुम? जी!अभी आई पिताश्री!इतना कहकर वो अपने कक्ष से निकलकर बाहर आई और भूकालेश्वर जी से पूछा।। जी!पिताश्री!कहिए क्या बात है?मनोज्ञा ने पूछा।। मैं ये कह रहा था पुत्री कि सम्पूर्ण राज्य में ये चर्चा हो ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(७)

देवव्रत राजमाता एवं राजकुमार के पीछे पीछे सैनिकों के साथ चल रहा था,उसने जब राजमाता वसुन्धरा को उस समय दूर से ही देखा था,अब वो उनके पीछे पीछे चल रहा था,लगभग दो घंटे की यात्रा के पश्चात उन सभी ने राज्य में प्रवेश किया,अब देवव्रत ने उस सैनिक से उनका संग छोड़ने की आज्ञा माँगकर राज्य के आगें की ओर प्रस्थान किया... देवव्रत राज्य के भीतर की ओर चला गया एवं उसने वहाँ के वासियों से पूछा कि क्या यहाँ कोई देवदासी मनोज्ञा रहतीं हैं?वहाँ के वासियों ने देवव्रत को हाँ में उत्तर दिया,ये सुनकर देवव्रत प्रसन्न हुआ,उसे लगा ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(८)

देवव्रत निरन्तर ही वसुन्धरा के मुँख की ओर निहारे जा रहा था किन्तु उसे कुछ याद नहीं आ रहा कि उसने पहले उन्हें कहाँ देखा है,वो इसी अन्तर्द्वन्द्व में उलझा हुआ आगें बढ़ गया,जब धर्मशाला पहुँचा तो वो अत्यधिक चिन्तित था,उसने जैसे ही धर्मशाला के कक्ष में प्रवेश किया तो उसके विचारमग्न मुँख को देखकर लाभशंकर ने पूछा.... क्या हुआ मामाश्री! माँ ने कुछ कहा है क्या है जो आप इतने चिन्तित प्रतीत हो रहे हैं? ना पुत्र!ऐसा कुछ भी नहीं है,देवव्रत बोला।। तो आप इतने गम्भीर क्यों दिख रहे हैं?लाभशंकर बोला।। ना जाने क्यों मार्ग में राजमाता वसुन्धरा ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(९)

राज्य की शोभा देखते ही बनती थी,मंदिर को सुन्दर सुन्दर पुष्पों की लड़ियों से सजाया गया था,जिस स्थान पर का नृत्य होना निश्चित था उस स्थान के चारों कोनों को भानुफल(केले) के पत्रों एवं अनेकों कलशों से सजाया गया था,राज्य के सभी जन धरती पर बिछे बिछौने पर पंक्तियों में बैठ गए,स्त्रियों की पंक्तियाँ अलग थी और पुरुषों की पंक्तियांँ अलग थीं,सभी राज्यवासियों की आँखें इस प्रतीक्षा में थीं कि कब राजमाता वसुन्धरा मंदिर में पधारें और मनोज्ञा उनके समक्ष अपना नृत्य प्रस्तुत करें, राजमाता ने विशेष रूप से देवदासी के लिए वस्त्र भिजवाएं थे एवं उन्होंने अनुदेश दिया ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(१०)

देवव्रत का स्वर सुनकर लाभशंकर बोला.... मनोज्ञा!अब मुझे जाना होगा,कदाचित मामाश्री मुझे पुकार रहे हैं... ठीक है तो अब जा सकते हो,मनोज्ञा बोली... इसके उपरान्त लाभशंकर बाहर आ गया एवं उसकी दृष्टि देवव्रत पर पड़ी ,जो कि अत्यधिक चिन्तित दिखाई दे रहे थे,लाभशंकर ने उनके समीप जाकर पूछा.... क्या हुआ मामाश्री?आप इतने चिन्तित क्यों दिखाई पड़ रहे हैं? पुत्र!हम दोनों को इसी समय राजमहल जाकर रानी वसुन्धरा से मिलना होगा,नहीं तो मैं चिन्ता से मर जाऊँगा,मुझे उनसे ही अपने प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं,देवव्रत बोलें... किन्तु इस समय राजमहल जाने पर उन्हें कोई आपत्ति तो नहीं होगी,लाभशंकर बोला।। ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(११)

बसन्तवीर के तलवार निकालते ही वहाँ शीघ्र ही भूकालेश्वर जी उपस्थित हुए और उन्होंने बसन्तवीर से पूछा... राजकुमार!ये क्या रहा है?आपको अपनी तलवार निकालने की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये आप मुझसे ना पूछकर अपनी पुत्री मनोज्ञा से पूछिए,राजकुमार बसन्तवीर बोले।। क्या हुआ पुत्री?भूकालेश्वर जी ने मनोज्ञा से पूछा।। तब मनोज्ञा बोली.... पिताश्री!राजकुमार चाहते थे कि मैं उनके राजदरबार में नृत्य करूँ,किन्तु मैनें मना किया तो ये मुझसे अभद्रतापूर्ण व्यवहार करने लगें,तभी लाभशंकर यहाँ पहुँचा और उसने कारण पूछा कि राजकुमार क्यों क्रोधित हो रहे हैं तो राजकुमार लाभशंकर से भी अनावश्यक वार्तालाप करने लगे एवं उसके लिए अनुचित शब्दों ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(१२)

सभी मंदिर की ओर आएं एवं वहाँ से वें सभी भूकालेश्वर जी के निवासस्थान पहुँचें एवं मनोज्ञा से मिलें,इसके रानी वसुन्धरा ने मनोज्ञा से अपने पुत्र बसन्तवीर के कहें वाक्यों को कहा,जिसे सुनकर मनोज्ञा अत्यधिक क्रोधित होकर बोली.... राजमाता!आपने ऐसे संस्कार दिए हैं अपने पुत्र को.... मुझे नहीं ज्ञात था पुत्री कि मेरा पुत्र ऐसा निकलेगा,कदाचित मेरे पालन पोषण में ही कोई कमी रह गई थी ,तभी तो वो ऐसा निकला,वसुन्धरा बोली.... तब लाभशंकर मनोज्ञा से बोला... मनोज्ञा!राजमाता से कुछ भी कहना व्यर्थ है,ऐसी बातों से उन्हें और कष्ट मत पहुँचाओ,वें पहले से ही अत्यधिक व्यथित हैं.... लाभशंकर की ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(१३)

जब चंचला देवव्रत के गले लगी तो ये देवव्रत को अच्छा ना लगा और उसने अन्ततः चंचला से कह दिया.... कौन हैं आप?एवं ऐसा व्यवहार क्यों रहीं हैं? ओह...पिताश्री!ऐसा प्रतीत होता है आप उस दिन की बात को लेकर अब भी मुझसे क्रोधित हैं,चंचला बोली... किसका....पिता...एवं...कौन सी बात?देवव्रत ने चंचला को स्वयं से दूर करते हुए कहा.... यही कि मैं उस नवयुवक से सरोवर के किनारे मिली थी,परन्तु यह सत्य नहीं है,मेरा तो उस नवयुवक से कोई भी नाता नहीं है,चंचला बोली.... देखो पुत्री!तुम्हें कोई भ्रम हुआ है ,मैं तुम्हारा पिता नहीं हूँ,देवव्रत बोला... पिताश्री!ये आप कैसीं बातें कर ...और पढ़े

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सौगन्ध--भाग(१४)

प्रातः हुई एवं सभी जागे एवं सभी के मध्य वार्तालाप चलने लगा,तभी वार्तालाप के मध्य भूकालेश्वर जी बोलें.... देवव्रत ने राजमहल में बसन्तवीर के समक्ष इतना बुरा अभिनय किया था कि किसी भी क्षण लग रहा था कि बस अभी पकड़े...अभी पकड़े,यदि उस समय बसन्तवीर ने पहचान लिया होता ना जाने क्या परिणाम होता,देवव्रत से अच्छा अभिनय तो मैं ही कर लेता हूँ... भूकालेश्वर जी की बात सुनकर सभी हँस पड़े,तब लाभशंकर बोला..... चंचला बनकर मेरी तो बुरी दशा हो रही थीं,ना जाने युवतियाँ कैसें इतना श्रृंगार कर लेतीं हैं.... लेकिन लाभशंकर तुम बहुत सुन्दर लग रहे थे चंचला ...और पढ़े

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सौगन्ध - (अन्तिम भाग)

मेरी बुआ ने,जो मेरे प्रसव के समय वहाँ उपस्थित थी,कन्या को जन्म देने के पश्चात मैं अचेत हो गई जब सचेत हुई तो मुझे ये दुखभरी सूचना मिली...वसुन्धरा बोली.... तब भूकालेश्वर जी बोले... यदि मैं कहूँ कि वो पुत्री जीवित है तो... परन्तु!ये कैसें हो सकता है मेरी बुआ ने कहा था कि वो तो जन्म लेते ही स्वर्ग सिधार गई थी.... आपने कन्या की सूरत देखी थी,भूकालेश्वर जी ने पूछा... जी!नहीं!वसुन्धरा बोली... तो किसी के मुँख से कही बात पर आपने कैसें विश्वास कर लिया,ऐसा भी तो हो सकता है कि आपके पिताश्री देवनारायण की भाँति उस कन्या ...और पढ़े

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