तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये?

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सिमला के बाहर बेहद खूबसूरत पहाड़ियों के बीच बनी पगडण्डी पर चलते हुए राहुल की अचानक किसी से टक्कर हो गई. इस टक्कर से राहुल स्वयं दो कदम पीछे लड़खड़ा गया. जल्दी से वह खुद संभला, फिर उसने टकराने वाले व्यक्ति को बांहों से थाम कर खुद आधा कदम पीछे हट कर उसे भी गिरने से बचाया और उनकी और देखा. राहुल के पांव से माथे तक एक सिहरन दोड़ गई. वह एक सुन्दर सी युवती थी. हल्का सा श्याम वर्ण! खिले हुए फूल सा हसीन चेहरा. उम्मीदों और सपनो से भरी आखें. गुलाब की पंखुड़ियों से नाजुक गुलाबी होंठ और उसके नीचे बना एक छोटा सा काला टिल. वह उम्र में दो तीन साल उससे बड़ी नज़र आ रही थी. हलके नीले रंग का सफ़ेद गुलाबी फूलों वाला ड्रेस धारण किये और अपने बदन को क्रीम रंग की साल में लपेटे वह परी से ज़रा भी कम न लग रही थी.

Full Novel

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 1

चोरी से जब दिल चुरा ले जाता है कोई; चुपके से जब अपना बना ले जाता है कोई; दूर के भी लगता है दिल के पास है कोई; न नाम न पता फिर भी रूह में उतर जाता है कोई; क्या इसी को तो नहीं कहते हैं दुनियां प्यार कोई? सिमला के बाहर बेहद खूबसूरत पहाड़ियों के बीच बनी पगडण्डी पर चलते हुए राहुल की अचानक किसी से टक्कर हो गई. इस टक्कर से राहुल स्वयं दो कदम पीछे लड़खड़ा गया. जल्दी से वह खुद संभला, फिर उसने टकराने वाले व्यक्ति को बांहों से थाम कर खुद आधा कदम ...और पढ़े

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 2

दो तीन दिनों से उसके दिल में अजीब सी फिलिंग हो रही थी. बिना किसी वजह के कभी उसके कोई अनजानी ख़ुशी का सागर उफान मारने लगता, तो कभी उसका मन अनजाने विरह और बेचैनी से व्याकुल हो उठता. उसका मन किसी काम में लग नहीं रहा था. उसकी ऐसी दशा क्यूँ हो रही थी? उसे कुछ पता लग नहीं रहा था. पर अब उसे ओम शांति ओम का शाहरुख खान का वह पोपुलर डायलोग अपनी ही ज़िन्दगी में सार्थक साबित होता हुआ प्रतीत होने लगा. "अभी भी वैसी ही दिख रही हैं. बस, चहरे पर थोड़ा सा फर्क ...और पढ़े

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 4

ऐसे ही कई दिन गुज़र गए. किसी वजह से एक मंडे की एक्स्ट्रा छुट्टी के बाद राहुल अगले ट्यूसडे स्कूल पहुंचा. रीसेस तक सब कुछ रूटीन चला. पर रीसेस के बाद उसे एक सरप्राइज़ मिलने वाला था. पर यह सरप्राइज़ उसके लिए अच्छा साबित होगा या बुरा? यह तो नियति तै करने वाली थी. रीसेस ख़त्म कर उसके सारे दोस्त आज पहले ही क्लास में एन्टर हो चुके थे और वह लास्ट में रह गया था. जैसे ही वह जरा देरी से क्लास में पहुंचा, वह दरवाज़े में ही ठिठक कर रह गया. नयी मेडम क्लास में खड़ी थीं! ...और पढ़े

4

तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 5

पर उसके यह आनंद भरे दिन बहुत लम्बे न चले. ऐसे ही तीन चार हप्ते बीत गए और पुरानी वाली मेडम वापस आ गई. और नयी मेडम का क्लास में आना एकदम बंध हो गया. सभी लड़के नयी मेडम को भूल गए पर राहुल का मन बिलकुल न बदला. भले ही नयी मेडम क्लास से चली गई हो पर उनके मन में वह बस गई थी. अब नयी मेडम सिर्फ स्कूल एसेम्बली में ही दिखाई देती थी वो भी दूर से. राहुल बेचैन हो उठा. एक दिन राहुल का मन हुआ की नयी मेडम किस तरफ से आती जाती ...और पढ़े

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 6

मेडम राहुल के साथ दोस्त की तरह ही बर्ताव कर रही थी और राहुल भी उसे काफी रिस्पेक्ट देता रिंछगढ़ और धुपगढ़ में सनसेट पॉइंट की विजित के साथ उन लोगों का पहला दिन समाप्त हो गया. अपने ठिकाने पर लौटते वक्त राहुल मेडम के साथ ही चल रहा था. "आउच!" चिल्लाते हुए मेडम ने बगल में चल रहे राहुल के कंधे को थाम लिया. उनके पाँव में काँटा चुभ गया था. राहुल ने उनके पाँव से काँटा निकालने में उनकी सहायता की. काँटा जंगली पौधे का होने की वजह से मेडम को चलने में दर्द हो रहा था ...और पढ़े

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 7

कोलेज काल में जहां अन्य लड़कों का ज्यादातर वक्त लड़कियों के पीछे और लड़कियों का वक्त लड़कों के पीछे होता रहता था, वहां राहुल का पूरा फोकस अपनी पढ़ाई पर रहा और उसने एम्.ई विथ ऑटोमोटिव एंजिनियरिंग के साथ पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप कर दिया. जिसके बारें में उसने सपने में भी नहीं सोचा था. उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े. और उसने अपनी इस सफलता के लिए सबसे पहले जिसे याद किया, वह इश्वर नहीं था; बल्कि वह तो उसकी यादों में बसने वाली उसके ख्वाबो की मल्लिका थी. उसीने तो उस सरारती और पढ़ाई में कमज़ोर छोकरे ...और पढ़े

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 3

"ओह! सोरी मेडम..." माफ़ी माँगते हुए राहुल ने शर्म से अपनी नज़रें दूसरी और घुमा ली. मेडम को यूँ वक्त वह यह बिलकुल भूल गया था कि वह कभी उसकी टीचर हुआ करती थीं और उम्र में भी वह उससे बड़ी थीं. "अभी भी वैसे के वैसे ही हो." सरारत भरी आँखे नचाते हुए मेडम आगे बोली. मेडम की बात सुन राहुल बेहद शर्मिंदगी से पानी पानी हो उठा. उसके चहरे के भाव देख मेडम खिलखिला कर हंस पड़ी. मेडम को यूँ हँसते देख राहुल ने उनके सामने देखा. अपनी गलती पर मेडम ने ज़रा भी बुरा नहीं लगाया ...और पढ़े

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 8 अंतिम

कुछ देर बाद अपने अपने हाथों में कोफ़ी के प्याले लिए दोनों चुपचाप खड़े थे. लाल चुनर ओढ़े धरती दुल्हन बनी थी. पश्चिम में अस्त होता सूरज अपने सिंदूरी हाथों से धरती को जैसे आलिंगन में बाँधने को उत्सुक था. कोफ़ी की चुस्कियां लेते हुए मेडम अवनी पर फैली बहारों को जी भर के अपनी आँखों में बसा रही थी. पर राहुल कहीं और खोया हुआ था. गुमसुम सा और शुन्य मनस्क उसकी आँखे मेडम पर ही टिकी थी. वदन पर मुग्धता धारण किये मेडम राहुल की और मुड़ी. उसने अपनी नशीली निगाहों को राहुल की निगाहों में मिला ...और पढ़े

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