“एक तो सुबह की भागादौड़ी दूसरे तुम... बच्चों की तरह हर तीसरे दिन शर्ट का बटन तोड़ लाते हो.” झल्लाती मिताली पति की शर्ट पर बटन टाँकने के लिए सुई में मैचिंग धागा पिरोने लगी. “मुझे भी अपना तीसरा बच्चा ही समझो तुम तो.” मालती के चेहरे पर गर्दन झुकाते हुए वैभव ने अपनी बायीं आँख चला दी. उसकी इस शरारत पर मिताली झेंप गई और सुई बटन से होती हुई उसकी उंगली में धंस गई. एक सिसकी सी निकली और अगले ही पल मिताली की उंगली वैभव के मुँह में थी. इसी बीच उंगली से निकली एक लाल बूंद वैभव की सफ़ेद शर्ट में समा गई.

Full Novel

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तोड़ के बंधन - 1

1 “एक तो सुबह की भागादौड़ी दूसरे तुम... बच्चों की तरह हर तीसरे दिन शर्ट का बटन तोड़ लाते झल्लाती मिताली पति की शर्ट पर बटन टाँकने के लिए सुई में मैचिंग धागा पिरोने लगी. “मुझे भी अपना तीसरा बच्चा ही समझो तुम तो.” मालती के चेहरे पर गर्दन झुकाते हुए वैभव ने अपनी बायीं आँख चला दी. उसकी इस शरारत पर मिताली झेंप गई और सुई बटन से होती हुई उसकी उंगली में धंस गई. एक सिसकी सी निकली और अगले ही पल मिताली की उंगली वैभव के मुँह में थी. इसी बीच उंगली से निकली एक लाल ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 2

2 “मम्मा! इस शनिवार मेरे स्कूल में पैरेंट-टीचर मीटिंग हैं. आपको आना है.” आज निधि ने स्कूल से आते कहा तो खाना परोसती मिताली के हाथ रुक गए. “भागने से समस्याएं कभी हल हुई हैं क्या. अब तो वैभव के हिस्से के काम भी मुझे ही करने होंगे. आज नहीं तो कल,नौकरी के लिए भी तो घर से बाहर निकलना ही होगा. अपना बोझा खुद ही उठाना पड़ता है. क्या हुआ जो कोई पल दो पल के लिए हमारे इस भार को कम कर दे लेकिन सदा के लिए तो कौन हमारी जिम्मेदारी लेगा.” मिताली मन ही मन न ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 3

3 लोकेश... उनका पड़ौसी... मिताली और वैभव के प्रेम का गवाह था. सड़क के दूसरी तरफ घर के ठीक ही तो रहता था. दोनों का रूठना-मानना... प्यार-मोहब्बत... झगड़ा-सुलह... सब कुछ उसकी रसोई की खिड़की से साफ़-साफ़ दिखाई देता था. वह बात-बात में उनके छलकते हुए स्नेह को महसूस करता था. यूँ तो वह किसी से कोई खास मतलब नहीं रखता था लेकिन वैभव और मिताली से जब भी टकराता था तो हाय-हैल्लो जरूर कर लेता था. लोकेश के बारे में मिताली भी अधिक कुछ नहीं जानती थी. बस इतना ही कि वह उनके सामने वाले घर में अपनी माँ ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 4

4 आजकल निधि का समय आईने के सामने कुछ ज्यादा ही गुजरने लगा है. कभी अलग-अलग स्टाइल से बाल जाते, कभी मुँह की अजीबोगरीब भाव-भंगिमाएं बनाई-बिगाड़ी जाती... कभी कपड़े पहन-पहन कर कई बार उतारे जाते तो कभी चेहरे पर तरह-तरह के लेप लगाये जाते. उम्र के इस दौर की नजाकत को मिताली बहुत अच्छी तरह से समझती थी. माँ थी ना! वह जानती थी कि निधि को इस समय उसके भावनात्मक साथ की बहुत जरुरत है लेकिन इस तथ्य से भी किसे इनकार था कि जीने के लिए पैसा और पैसे के लिए नौकरी बहुत जरुरी है. बेशक मिताली ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 5

5 इधर दोनों परिवारों का बढ़ता मेलजोल मोहल्ले में आम चर्चा का विषय होने लगा. लोकेश भी इन सबसे नहीं था. हालाँकि वह मिताली को इस आँच से दूर रखना चाहता था लेकिन किस अधिकार से. वह मिताली से इस बारे में चर्चा करना चाहता था लेकिन डरता था कि कहीं भयभीत मिताली ये रिश्ता ही ना खत्म कर दे. उधर सिन्हा साब ने भी मिताली के साथ अपना नाम जुड़ने की चर्चा उड़ती-उड़ती सी सुनी थी लेकिन उन्होंने उस पर ध्यान नहीं दिया. न जाने क्यों वे मिताली के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी महसूस करते थे. शायद वैभव की ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 6

6 “मिताली जी! कल सुबह एक इंपोर्टेंट मीटिंग है. जरूरी इन्फॉर्मेशन आज ही कलेक्ट करके फ़ाइल बना देना.” सिन्हा ने दोपहर बाद मिताली को हिदायत दी. “ठीक है सर. लेकिन कल तो सनडे है ना!” मिताली ने याद दिलाया. “हाँआँ, सनडे तो है लेकिन ये बड़े लोग छुट्टी के दिन ही मीटिंग रखते हैं ताकि ऑफिस के दूसरे दबाव न हों.” बॉस ने हँसते हुये कहा. इन दिनों सिन्हा साब का सेक्रेटरी छुट्टी पर चल रहा है इसलिए मिताली को अतिरिक्त काम देखना पड़ रहा है. बच्चों को देर होने का कहकर मिताली मीटिंग की तैयारी में जुट गई. ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 7

7 “हेल्लो मिताली! कल मैं वापस जा रहा हूँ. जाने से पहले नीतू को तुमसे मिलवाना चाहता हूँ. आज आ रहे हैं हम दोनों.” मयंक का फोन था. सुनते ही मिताली चहक उठी. शाम को लगभग सात बजे मयंक अपनी पत्नी नीतू के साथ हाजिर था. “आइये! आपका... इन्तजार था...” मिताली ने अदा से झुककर कर दरवाजा खोला और मुस्कुरा दी. पीले सलवार-कमीज में मिताली बहुत मासूम लग रही थी. “आप कहें और हम ना आयें... ऐसे तो हालात नहीं...” मयंक ने भी उसी के अंदाज में उसका अभिवादन किया. दोनों हँस पड़े. “नीतू! ये है मिताली. कॉलेज में ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 8

8 “हाल कैसा है जनाब का.” फोन पर मयंक की आवाज सुनते ही मिताली ने सारे ताव-तनाव पीछे धकेल अपने आप को सहज किया. “कहो कैसे रस्ता भूल पड़े.” कहिये जनाब! आज कैसे याद फरमाया.” मिताली ने भी उसी लहजे में प्रतिउत्तर दिया. “कुछ खास नहीं, बस! आज जरा फुर्सत में था तो सोचा कि तुम्हें डिस्टर्ब किया जाये. तुमसे मिलने की तमन्ना है… प्यार का इरादा है... और इक वादा है...” गाने की पंक्ति का अगला शब्द “जानम” मयंक चबा गया. “क्या बात है! बड़े रोमांटिक हो रहे हो. नीतू पास नहीं है क्या?” मिताली हँसी. “अरे यार! ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 9

9 मयंक के साथ अनचाही स्थिति भोगने के बाद मिताली ने तय कर लिया था कि वह रिश्तों को ढंग से निभाने की कला सीखेगी. लोकेश हो या मयंक… बॉस हों या जेठानी... वह सबसे बहुत ही संतुलित व्यवहार रखेगी. अनावश्यक फोन तो मिताली पहले भी किसी को नहीं करती थी. लेकिन हाँ! अब जरूरत पड़ने पर वह अपने सब परिचितों में भी सबसे अधिक उचित पात्र को चुनकर ही फोन करने लगी. लोकेश से जहाँ सामान्य दोस्ताना व्यवहार रहता वहीं जेठानी तथा बॉस से बातचीत करते समय उसका लहजा बहुत ही सम्मानजनक होता था. मयंक अवश्य कभीकभार छेड़छाड़ ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 10

10 कहने को तो मिताली ने विशु से कह दिया था कि स्कूल वाली घटना में अकेला वही दोषी है लेकिन कहीं न कहीं वह घटना मिताली तो भीतर तक आहत कर गई थी. वह अपने बच्चों को बेहतर परवरिश देने के लिए दृढ़ संकल्प थी ऐसे में यह घटना उसके प्रयासों पर प्रश्न चिन्ह लगा रही थी. बहुत सोच-विचार करने के बाद मिताली को सबसे सलाह लेना उचित लगा. शायद कोई नई राह सूझे यही सोचकर उसने इस घटना का जिक्र उसने सबके सामने किया. सबसे पहले उसने सिन्हा साब को अपनी समस्या बताई. “मुझे दो बच्चों की ...और पढ़े

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तोड़ के बंधन - 11 - अंतिम भाग

11 इन दिनों मिताली कुछ ज्यादा ही सोचने लगी है. माथे पर दिखती तीन लकीरें दिनोंदिन स्थायित्व की ओर रही है. लेकिन सिर्फ सोचते रहने से ही क्या होता है. जितना वह विचारों के अंधड़ में विचरती, उतनी ही अधिक धूल से सन जाती. “माँ! कहाँ खोई रहती हो आजकल ? जानती हो ज्यादा सिर खपाने से बाल सफ़ेद होने लगते हैं?” निधि उसे सामान्य करने की कोशिश करती जिसे मिताली सिर्फ मुस्कुरा कर टाल देती. दूसरी तरफ विशु यह सोचकर ग्लानि से भर उठता कि माँ की परेशानी का कारण वही है लेकिन उसे भी मिताली गले लगाकर ...और पढ़े

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