झंझावात में चिड़िया

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गोरा - चिट्टा, गोल - मटोल, आंखों से मुस्कराता सा खड़ा था। पड़ोस की कोठी में काम करने वाली बूढ़ी औरत बोल पड़ी - काला टीका दे दो माथे पर! - अरे नहीं - नहीं! ऊपर से नीचे तक बस वो टीका ही टीका दिखेगा। देखती नहीं, सेमल के फूल सा खिला खड़ा है सफ़ेद रंग में। कहीं खेल - खेल में हाथ लग गया तो पूरे माथे पर फ़ैल जायेगी कालिख। वाशबेसिन साफ करती - करती खड़ी हो गई घर की कामवाली बाई बोली। - खेल - खेल में? अरे खेलने ही तो जा रहा है। उसके चेहरे पर क्रीम लगाती मां ने कहा। - इतना सा? क्या खेलेगा ये? बूढ़ी ने शंका जताई। बच्चे ने आग्नेय नज़रों से देखा उस बूढ़ी औरत को। बच्चे की मां ने अपने आंचल से एक बार मुंह पोंछा बेटे का। फ़िर गर्व से बोली - ओ, ऐसे मत बोल। पैदा होने के दिन से ही तो खेल रहा है। देखती नहीं, सर्दी- गर्मी- बरसात कुछ भी हो खेलना नहीं छोड़ता। दो- तीन घंटे रोज़ पसीना बहाता है। इसके पप्पा थक जायें, ये नहीं थकता है।

Full Novel

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झंझावात में चिड़िया - 1

गोरा - चिट्टा, गोल - मटोल, आंखों से मुस्कराता सा खड़ा था। पड़ोस की कोठी में काम करने वाली औरत बोल पड़ी - काला टीका दे दो माथे पर! - अरे नहीं - नहीं! ऊपर से नीचे तक बस वो टीका ही टीका दिखेगा। देखती नहीं, सेमल के फूल सा खिला खड़ा है सफ़ेद रंग में। कहीं खेल - खेल में हाथ लग गया तो पूरे माथे पर फ़ैल जायेगी कालिख। वाशबेसिन साफ करती - करती खड़ी हो गई घर की कामवाली बाई बोली। - खेल - खेल में? अरे खेलने ही तो जा रहा है। उसके चेहरे पर ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 2

ये अपने आप में एक रिकॉर्ड ही था कि पंद्रह सोलह साल की उम्र का किशोर पहले किसी खेल जूनियर राष्ट्रीय चैम्पियन बने और लगभग उसी साल खेल का सीनियर वर्ग का राष्ट्रीय चैम्पियन भी बन जाए। अपने तूफ़ानी खेल से दर्शकों का लगातार दिल जीतने वाला प्रकाश एक दिन बैडमिंटन को उस मुकाम पर ले आया जहां उसे क्रिकेट के बाद नई पीढ़ी का सबसे पसंदीदा खेल समझा जाने लगा। सात वर्ष के प्रकाश ने ये चमत्कार कोई एक दिन में नहीं कर दिया बल्कि उसकी लगातार तपस्या जैसी कड़ी मेहनत उसे इस मंज़िल की ओर लाई। पहली ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 3

शेर की ये क़िस्म और नस्ल किसी ने कभी भी कहीं भी सुनी या देखी न होगी। न किसी में और न किसी टाइगर रिजर्व में! लेकिन उन्हें यही दर्ज़ा दिया गया। छः फुट एक इंच लंबे प्रकाश को बैडमिंटन कोर्ट पर "जेंटल टाइगर" अर्थात 'विनम्र सिंह' कहा गया। एक ऐसा शेर जो राजा है पर खूंखार नहीं है। संजीदा, सरल और विनम्र। सातवां दशक बीतते - बीतते प्रकाश को जबलपुर शहर में अपने पसंदीदा, पर बेहद आक्रामक इंडोनेशियाई खिलाड़ी रूडी हर्टोनो के साथ खेलने का अवसर मिला। यहीं प्रकाश को ये एहसास हुआ कि वो ख़ुद काफ़ी रक्षात्मक ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 4

धुआंधार सफलताओं की इस आंधी के बाद प्रकाश का अब एक पैर भारत में और दूसरा विदेश में रहने उसका दिल कोई भी प्रतियोगिता छोड़ने के लिए तैयार न होता, चाहें राष्ट्रीय हो या अंतरराष्ट्रीय। कहते हैं जब इंसान ज़मीन पर हो तो वो शिखर की ओर उठने का सपना देखता है और जब कुछ ऊंचाई पर पहुंचता है तो शिखर की चोटी पर पहुंचने का। लेकिन चोटी पर पहुंच जाने पर भी इंसान की ख्वाहिशों पर लगाम नहीं लगती। फ़िर वो शिखर पर बने रहने का ख़्वाब देखता है। प्रकाश के कदम भी रुके नहीं। पद्मश्री से सम्मानित ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 5

खेल की दुनिया अजब - गजब है। ये युवाओं की दुनिया है। और इंसान की ज़िंदगी में जवानी कब है कब जाती है, कोई नहीं जानता। प्रकाश पादुकोण जैसे महान खिलाड़ी भी उम्र का पैंतीसवा साल जाते - जाते ये सोचने लगे कि अब नई कोंपलों को जगह देनी चाहिए। खेल के मैदान में तो सपनों और उम्मीदों से लबरेज़ युवा ही चहकते हुए अच्छे लगते हैं। सक्रिय खेल जीवन से संन्यास ले लेने की बात अब इस लीजेंड बन चुके शख़्स के दिमाग़ में भी आने लगी। अब पारिवारिक जिम्मेदारियां भी उनके वक्त की मांग करती थीं। दुनिया ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 6

प्रकाश को ये भी नहीं रुच रहा था कि अब वो कुछ भी न करके केवल आराम ही आराम कुछ वर्ष तक भारतीय बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष रहने के बाद इस विलक्षण बहुमुखी प्रतिभा संपन्न खिलाड़ी को ऐसा महसूस हुआ कि नई पीढ़ी के युवकों में खेल के लिए ज़ुनून तो हमेशा से रहता ही है, हौसलों की कमी भी नहीं रहती। लेकिन फ़िर भी उन्हें एक मार्गदर्शन की दरकार तो हमेशा रहती ही है। ख़ुद उनके मामले में तो उन्हें ऐसा मार्गदर्शन अपने पिता से ही मिलता रहा था क्योंकि पिता भी बैडमिंटन से ही जुड़े हुए थे ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 7

एक शाम अपने दफ़्तर में प्रकाश बैठे थे कि उनके वही दोस्त मिलने चले आए जिन्होंने कभी उन्हें क्लब दो दोस्तों की कहानी सुनाई थी। बातों के बीच न जाने कैसे उस दिन प्रकाश को बैठे बैठे उनकी वह कहानी याद आ गई। बरसों पुरानी बात। प्रकाश ने उनसे पूछा - यार, तुमने ये तो बता दिया था कि विदेश में जीत कर आने के बाद दोस्त के बेटे ने उनकी कोई भी बात मानना छोड़ दिया था, लेकिन ये तो बताओ कि बच्चे ने ऐसा किया क्यों? क्या उसे अपनी जीत से घमंड हो गया था या फ़िर ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 8

रात के ग्यारह बजे थे। प्रेस क्लब भीड़ - भाड़ से ख़ाली होने लगा था। हम लोग भी उठकर ही लगे थे कि हमारी मित्र मंडली में शामिल एक सज्जन ने आदतन कहा - दो मिनट प्लीज़, मैं अभी आया। किसी की आवाज़ आई - बैठो, वो अब पंद्रह मिनट से पहले नहीं आने वाले। वाशरूम गए हैं, उनका पेट मसाला डोसा आने के पहले से ही गुड़गुड़ा रहा था। ऊपर से खा भी लिया है। सब हंस पड़े। हम इंतज़ार में एक दूसरी टेबल पर जा बैठे जिस पर कुछ परिचित लोग बैठे बातों में मशगूल थे। सबके ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 9

सांसद अभिनेता गोविंदा ने एक बार एक तहरीर करते हुए कहा कि श्रद्धा में तो शक्ति होती ही है, आश्चर्य की बात है कि शक्ति में भी श्रद्धा हो सकती है। ये परिहास उन्होंने जिस फिल्मी माहौल में किया वहां श्रद्धा कपूर भी उपस्थित थीं और उनके पिता शक्ति कपूर भी। ये मिसाल इस लिए याद आती है कि दीपक से प्रकाश होना तो स्वाभाविक ही है किंतु प्रकाश से दीपिका का उदय होना भी कोई अनहोनी नहीं है। और अगर प्रकाश की चमक उज्ज्वला हो तो फ़िर दीपिका के ग्लैमर की कोई सीमा ही नहीं, इसका उजाला ज़रूर ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 10

कहते हैं कि इंसान को दुनिया में पैदा होते समय अपने पिछले जन्म की बातें याद होती हैं। लेकिन तक? कहा जाता है कि जब तक वो अन्न न खाए। लेकिन जब अन्न खाना शुरू कर देता है तो सब भूल कर वो अपने इसी जन्म का हो जाता है। यदि किसी को शुरू से बिना अन्न के पाला जाए तो क्या वो अपने पिछले जन्म की बातें बताने लगेगा? ऐसा कभी नहीं होगा कि कोई मां अपनी संतान को भोजन के बिना एक पल भी रहने दे। वो चाहे कहीं से भी, कैसे भी लाए, पर औलाद के ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 11

जो लोग भारतीय फ़िल्म उद्योग में गहरी दिलचस्पी रखते हैं वो समय- समय पर इसमें परवान चढ़ती प्रवृत्तियों से अनजान नहीं हैं। हमारी फ़िल्मों ने दो संस्कृतियों के सम्मिलित स्वर का स्वागत हमेशा से किया है। यही कारण है कि यहां कई मुस्लिम अभिनेत्रियां और अभिनेता नाम बदल कर इस तरह आए कि आम लोगों को उनका असली धर्म मालूम तक नहीं पड़ा। यहां आरंभ में मधुबाला, मीना कुमारी, रीना रॉय, लीना चंदावरकर जैसी अभिनेत्रियों को धर्म बदल कर अपनी पहचान विलीन कर देते हुए भी लोगों ने देखा। दूसरी ओर अपने धर्म से इतर दूसरे धर्मों में विवाह ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 12

ओम शांति ओम की देश विदेश की जबरदस्त कामयाबी के बाद अगले वर्ष दीपिका की केवल एक फ़िल्म आई। उनके साथ नायक रणबीर कपूर थे जो नई पीढ़ी के दर्शकों में तो उस समय लोकप्रिय थे ही, पुरानी पीढ़ी भी ऋषि कपूर और नीतू सिंह के बेटे के रूप में उन्हें जानती थी। वे कई सफ़ल फ़िल्में दे चुके थे। "बचना ऐ हसीनो" फ़िल्म का शीर्षक एक पुराने लोकप्रिय गीत "बचना ऐ हसीनो लो मैं आ गया" से लिया गया था और पर्याप्त आकर्षक तथा कैची था। फ़िल्मों के उस दौर में एक के बाद एक कई मिस यूनिवर्स, ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 13

ये सच है कि इन चार सालों में दीपिका पादुकोण ने ओम शांति ओम जैसी सफ़लता नहीं दोहराई लेकिन उनके स्टारडम में कोई कमी नहीं दिखाई दी। इसका कारण यही था कि वो कोई संयोग से या अकस्मात इस फ़िल्म जगत में नहीं चली आई थीं बल्कि उन्होंने अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और मेधा के बावजूद सीढ़ी दर सीढ़ी एक लंबी रेस की तैयारी की थी। वे अपने शहर बैंगलोर से मुंबई में आने के बाद से कभी ख़ाली नहीं रहीं। यहां अपनी चाची के साथ रह कर उन्होंने फ़िल्मों में किसी स्टारकिड की भांति दस्तक नहीं दी। वे पहले ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 14

साल दो हज़ार तेरह दीपिका पादुकोण के लिए राजयोग लेकर आया। राजयोग का मतलब ये नहीं होता कि मुल्क राजा कहीं चला जायेगा और राजपाट आपको सौंप जायेगा। राजयोग का मतलब ये होता है कि आप जहां हैं, जो कुछ कर रहे हैं, वहां दूर - दूर तक आपका कोई सानी नहीं होगा। बॉलीवुड में लोग भारी जद्दोजहद के बाद आ जाते हैं फ़िर सालों साल एक हिट फ़िल्म के लिए तरसते हैं। सफ़लता मिलती है तो टिक जाते हैं नहीं तो लौट जाते हैं। यहां कई शाह,बादशाह, शहंशाह ऐसे हुए कि योग नहीं था तो लाख सिर पटकने ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 15

इसी वर्ष दो हज़ार तेरह में रिलीज़ हुई फ़िल्म "गोलियों की रासलीला रामलीला" में दीपिका पादुकोण को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड पहली बार मिला। इस तरह उनकी सफ़लता पर एक बार फ़िर लोगों और समीक्षकों की मोहर लग गई, क्योंकि इससे पहले उन्होंने साल की सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री का खिताब तो पाया था किंतु सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए उनका सिर्फ़ नामांकन दो बार हो चुका था। संजय लीला भंसाली की ये फ़िल्म ज़बरदस्त ढंग से कामयाब हुई। आजकल जैसे एक परिपाटी सी ही चल पड़ी थी कि सफ़ल और लोकप्रिय फ़िल्मों को किसी न किसी बहाने ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 16

इसी साल आई "चेन्नई एक्सप्रेस"। शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की जोड़ी दर्शकों को एक बार फ़िर दिखाई दी। ख़ान के निर्माण और रोहित शेट्टी के निर्देशन में इस दक्षिण भारतीय परिवेश में बनी हिंदी फ़िल्म ने सफ़लता के झंडे गाढ़े। बॉक्स ऑफिस के लिहाज से ब्लॉक बस्टर रही इस फ़िल्म को वैश्विक कमाई की नज़र से अब तक की सबसे सफ़ल फ़िल्म बताया गया। ये सब बातें शाहरुख खान के रेड चिली एंटरटेनमेंट के लिए माइने रखती होंगी किंतु दीपिका पादुकोण के लिए ये साल उन्हें फ़िल्म वर्ल्ड की निर्विवाद नंबर वन एक्ट्रेस बनाने वाला रहा। इस फ़िल्म ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 17

दो हज़ार चौदह का साल दीपिका पादुकोण के लिए ठीक वैसा ही गुज़रा जैसे किसी काश्तकार का भरपूर फ़सल के बाद का समय उसे काटने और समेटने में जाता है। इस साल उन पर दौलत और शोहरत के साथ - साथ पुरस्कारों की बारिश भी हुई। इसी वर्ष उन्हें फ़िल्मफ़ेयर का प्रतिष्ठित बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड तो मिला ही, उन्हें फ़िल्म "चेन्नई एक्सप्रेस" के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का आइफा अवार्ड भी दिया गया। आइफा ने उन्हें "ये जवानी है दीवानी" फ़िल्म में वर्ष की सर्वश्रेष्ठ जोड़ी का खिताब भी रणबीर कपूर के साथ दिया। मजे़दार बात ये रही कि ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 18

आख़िर ये हम सब की ज़िंदगी है। हम सब कोई निसर्ग की बनाई कठपुतलियां नहीं हैं कि हर सुबह के उजाले के साथ जागेंगे और शाम को सूरज के क्षितिज पर गिरने के बाद फ़िर से एक लंबी रात में बेसुध होकर पड़ जायेंगे। हमें सपने देखने का काम भी करना है और उन्हें पूरा करने का भी। वर्ष दो हज़ार पंद्रह आते आते दीपिका एक सफ़ल, सजग, संपन्न और सुलझी हुई शख्सियत बन चुकी थीं। उन्हें बखूबी याद था कि वो चाहे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र विषय में अपनी डिग्री पूरी नहीं कर सकी ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 19

बाजीराव मस्तानी में कुल दस गीत थे और एक से बढ़कर एक उम्दा नृत्य। पूर्णता यानी परफेक्शन के हामी लीला भंसाली ने इसमें दीपिका के आकर्षक नृत्य के लिए निर्देशक के रूप में डांस के क्षेत्र के लीजेंड महान पंडित बिरजू महाराज की सेवाएं भी लीं। फ़िल्म का संगीत स्वयं संजय ने ही तैयार किया। दीपिका पादुकोण ने इस फ़िल्म में बाजीराव पेशवा की प्रेमिका और दूसरी पत्नी मस्तानी का किरदार निभाया। बाजीराव की पहली धर्मपत्नी काशीबाई की भूमिका में प्रियंका चोपड़ा थीं। दीपिका का ये पात्र एक तरह से कुछ ग्रे शेड्स लिए हुए भी था क्योंकि एक ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 20

नगाड़ा संग ढोल बाजे, बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी, मटरगश्ती, अगर तुम साथ हो...जैसे लोकप्रिय गानों ने दीपिका ख्याति को हर गांव - शहर -महानगर के हर मौके के जश्न में पहुंचा दिया। इस नई सदी में कभी - कभी ऐसा कहा जाता था कि सुरीले गीत संगीत का जो दौर "गोल्डन एरा" कहे जाने वाले पिछली सदी के कुछ दशकों में था वो जैसे फ़िर लौट आया है। दीपिका सफ़लता की नई नई पायदान चढ़ती चली जा रही थीं किंतु इसका मतलब कहीं से भी ये नहीं था कि उनकी इस नई मैच्योरिटी के साथ उनका ताज़गी ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 21

अगर इस सदी की नायिकाओं की बात करें तो काजोल ने अजय देवगण से, ऐश्वर्या राय ने अभिषेक बच्चन विद्या बालन ने सिद्धार्थ रॉय कपूर से, अनुष्का शर्मा ने विराट कोहली से और प्रियंका चोपड़ा ने निक जोनस से विवाह रचाया और अब सभी गरिमापूर्ण वैवाहिक जीवन बिता रही हैं। कुछ ऐसी ही छवि दीपिका पादुकोण के शुभचिंतक उनके लिए भी रणवीर सिंह को लेकर चाहते थे। इन्हीं दिनों संजय लीला भंसाली ने फिर एक ऐतिहासिक कथानक को लेकर अत्यंत महत्वाकांक्षी मेगा प्रॉजेक्ट शुरू किया और उन्हें पहली पसंद के रूप में दीपिका पादुकोण का नाम ही उपयुक्त दिखाई ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - 22

योग, संयोग और प्रतिरोध ने पद्मावत के रिलीज़ में देरी की और इससे सन दो हज़ार सत्रह दीपिका के "ज़ीरो" इयर अर्थात ख़ाली साल चला गया लेकिन दीपिका ने इसे रजतपट यानी स्क्रीन पर शून्यकाल की तरह नहीं जाने दिया। इस साल शाहरुख खान की कैटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा के साथ एक फ़िल्म आई - ज़ीरो। इस फ़िल्म में भी ठीक उसी तरह मेहमान कलाकारों की बहुतायत थी जैसे दीपिका की पहली फ़िल्म "ओम शांति ओम" में। तो इस बार दीपिका खुद अपने ही फिल्मस्टार के रोल में इस फ़िल्म में नज़र आईं। और इस मेहमान भूमिका से ...और पढ़े

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झंझावात में चिड़िया - अंतिम भाग

कोई नहीं जानता था कि काल के कैलेंडर में अगला वर्ष एक नया तूफ़ान लिए सामने खड़ा है। फिज़ा कुछ ऐसी खौफ़नाक तरंगें तैर रही थीं कि सबके देखते - देखते "झंझावात में दुनिया" का ही ऐलान हो गया। सन दो हज़ार बीस के आरंभ में ही दीपिका द्वारा निर्मित "छपाक" हिंदी फ़िल्म दर्शकों के दिल और दिमाग़ पर दस्तक देने के लिए पर तौल रही थी। ये उनकी निर्माण संस्था फॉक्स स्टार स्टूडियोज़ का भी पहला इम्तहान था। दीपिका को इसमें हवा के ख़िलाफ़ बहना था। मनोरंजन उद्योग में एक ऐसा शाहकार लेकर आना था जिसका मनोरंजन से ...और पढ़े

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