उस साल ऋतुएं थोड़ा पहले आ गयीं थीं। इतना पहले कि वसंत अभी कोहरे में ही था। इसकी सफेदी और ठंडी नमी ने पेड़ों के पीले पत्तों को गिरने से रोक रखा था। बुलबुलों के गलों के रंग भी अभी सुर्ख होना शुरू नहीं हो पाये थे। कोयलें अभी कामातुर नहीं हुयीं थीं। अंधेरे बिलों में दुबके सांपों के खून अभी जमे थे। ऐसे ही कुछ बेतुके से दिनों में, जब प्रार्थनाओं में ईश्वर नहीं थे, करूणा अकारण थी और वसंत में पीली उदासी नहीं थी, अचानक एक दिन, तीन डर, मेरे अन्दर एक के बाद एक जन्मते चले गये। मेरे डराें का इन दिनों से कोई ताल्लुक नहीं था। प्रार्थनाओं, करूणा और वसंत से भी नहीं था। उन का ताल्लुक घोड़ों, कविता और पिता से था।

Full Novel

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गोधूलि - 1

गोधूलि (1) उस साल ऋतुएं थोड़ा पहले आ गयीं थीं। इतना पहले कि वसंत अभी कोहरे में ही था। सफेदी और ठंडी नमी ने पेड़ों के पीले पत्तों को गिरने से रोक रखा था। बुलबुलों के गलों के रंग भी अभी सुर्ख होना शुरू नहीं हो पाये थे। कोयलें अभी कामातुर नहीं हुयीं थीं। ...और पढ़े

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गोधूलि - 2

गोधूलि (2) फिर तीन साल के लिए मैं दूसरे शहर चला गया। उससे कोई सम्पर्क नहीं रहा। लौटा, तो तरह, रात शुरू होने के पहले होटल डी. कश्मीर चला गया। बारिश हो कर चुकी थी। मिट्‌टी से गंध उठ रही थी। क्यारियों में सफेद नारंगी हरसिंगार टूटे थे। ऊपर अंधेरा था। सन्नाटा भी । पाँचों कमरों में जाने वाली दूब की पगडंडी पानी में डूबी थी। उस पर नींबू के टूटे फूल और पत्तियाँ तैर रहीं थीं। कमरों वाले हिस्से में अंधेरा था। खिड़कियाँ बंद थीं। दरवाजे बंद थे। मैं थोड़ा और आगे आया। दरवाजे के कांच से अंदर ...और पढ़े

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गोधूलि - 3

गोधूलि (3) जिस दिन वह गांव में आता सारे जानवर इकट्‌ठा किए जाते थे। उत्साह होता था। जानवर उसे थे। भागते थे, पर पकड़ लिए जाते थे। घोड़े, सुअर, मुर्गे, बकरों के अंडकोश से राजाओं की दावतें होती थीं। इन्सान ने अपने सुख के लिए दूसरों के अंडकोशों तक का इस्तेमाल किया है। उन्होंने बताया कि इस जानवर के अंडकोश से औरतों के लायक हमेशा बने रहने की दवा बनती है। बाजार मे उसकी लाखें रूपए की कीमत है। पता नहीं कैसे, पर यह बात यह जानवर जानता है। जैसे ही किसी शिकारी को देखता है, पूरी ताकत से ...और पढ़े

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गोधूलि - 4 - अंतिम भाग

गोधूलि (4) पिता ने इशारा किया। आका बाबा ने उनके हाथ से गिलास ले कर बोतल से थोड़ी कोन्याक कुछ बूँद गर्म पानी, फिर गिलास पिता को दे दिया। कुछ क्षण गिलास को नाक के आगे लहराते हुए पिता उससे उठने वाली गंध के रेशों को सूंघते रहे, फिर एक घूंट लिया, फिर बोले ‘‘जैसे कि, तुम इसे उन परियों की कहानियाँ सुनाओगी जिनके देश मे कछुए हरे और हिरण नीले होते हैं। घर कुकुरमुत्तों के होते हैं। झाड़ियाँ सितारों की बनी होती हैं। फूलों के पुल होते हैं जिन पर कोई खरगोश किसी राजकुमारी की गाड़ी खीचता हैं। ...और पढ़े

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