असली आज़ादी वाली आज़ादी

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देश को आज़ाद कराना आसान नही था बहुत त्याग और संघर्ष के बाद इस देश को आज़ादी नसीब हुई। आजादी बेशकीमती थी क्योंकि लाखों लोगों ने इसे पाने के लिए बिना कुछ सोंचे समझें अपनी जान न्योछावर कर दी। आज़ादी के दीवानों का न कोई धर्म था न कोई जाति न कोई ऊंचा न कोई नीचा न कोई दलित और न कोई पिछड़ा, वो सभी सिर्फ हिंदुस्तानी थे। लगभग साढ़े तीन सौ साल की गुलामी के बाद मिली आज़ादी खूबसूरत और सुकून भारी होनी चाहिये। और शायद ऐसा होता भी यदि अपने देश के दो टुकड़े न हुए होते। दो

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असली आज़ादी वाली आज़ादी

देश को आज़ाद कराना आसान नही था बहुत त्याग और संघर्ष के बाद इस देश को आज़ादी नसीब हुई। बेशकीमती थी क्योंकि लाखों लोगों ने इसे पाने के लिए बिना कुछ सोंचे समझें अपनी जान न्योछावर कर दी। आज़ादी के दीवानों का न कोई धर्म था न कोई जाति न कोई ऊंचा न कोई नीचा न कोई दलित और न कोई पिछड़ा, वो सभी सिर्फ हिंदुस्तानी थे। लगभग साढ़े तीन सौ साल की गुलामी के बाद मिली आज़ादी खूबसूरत और सुकून भारी होनी चाहिये। और शायद ऐसा होता भी यदि अपने देश के दो टुकड़े न हुए होते। दो ...और पढ़े

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असली आज़ादी वाली आज़ादी - (भाग-2)

पिछले भाग से आगे--- युद्ध खत्म होते ही दोनों परिवार अपने अपने बच्चों का घर पर इंतजार करने लगें। समाप्त होने के अगले दिन ही सुबहनन्नू अपने घर के आंगन में बैठे हुए अपनी भैस का सानी चारा कर रहे थे। उनकी पत्नी और बड़ी बेटी पास में खाट पर बैठ कर धूप सेंक रहे थे। कानपुर में जनवरी का महीना बहुत ठंडा होता है। दिन भी देर से होता है और धूप सेंकने का एक अलग ही आनंद होता है। अचानक किसी ने बाहर दरवाज़ा खटखटाया और आनंद में खलल पड़ गया। नन्नू अपनी बेटी से बोले- बेटा ...और पढ़े

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असली आज़ादी वाली आज़ादी (भाग-3)

भाग-2 से आगे की कहानी- (इस भाग में लिखी बातें किसी धर्म या समुदाय विशेष को ऊंचा या नीचा के लिए नहीं बल्कि समाज में फैली बुराइयों के पीछे का दर्द समझाना है। मैं अपने पाठकों से वादा करता हूँ कि कहानी का अंत शानदार ही होगा) बेटे की अर्थी का बोझ सारी जिंदगी अब नन्नू के कंधों पर रहने वाला था। नन्नू सारा क्रिया कर्म करके अपने घर आ गया पर चूल्हा जलाने की हिम्मत किसी मे न हुई। अब तो घर में आये हुए कुछ मेहमान अपने घर वापिस जा चुके थे और कुछ ही लोग घर ...और पढ़े

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असली आज़ादी वाली आज़ादी (भाग-4)

भाग 3 से आगे- मनोरमा ने सभी के सामने चौहान साहब को चुनौती तो दे डाली पर उसके आगे करना है और कैसे करना है उसे कुछ नही पता था। आधे गांव वाले तो डर ही गए थे कि अब तो चौहान या तो जान ले लेगा या तो मान ले लेगा। पीछे हटने में ही भलाई है। नन्नू के परिवार के लिए आगे का जीवन बिल्कुल भी आसान नही होने वाला था। अब दोनों बेटियों की फिक्र होने लगी थी और जिस तरह चौहान साहब का बेटा एक दरिंदे की तरह मनोरमा को देख रहा था। खतरा तो ...और पढ़े

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असली आज़ादी वाली आज़ादी - (भाग-5)

भाग-4 से आगे- सभी गांव वाले चौहान साहब के घर पहुंचे और सभी ने चौहान साहब को बाहर बुलाया। नौकर बाहर आके बोला- मालिक तो दिल्ली गए है और छोटे मालिक भी साथ गए है कल रात ही, अब दो दिन बाद ही मिलेंगे। सभी को हैरानी हुई कि अगर श्रीकांत चौहान साहब के साथ दिल्ली गया है तो मनोरमा के साथ ये दुष्कर्म किसने किया। सभी सोंचने लगे कि कहीं नन्नू ने ही तो चौहान साहब के ख़िलाफ़ कोई षड्यंत्र तो नहीं रच दिया। क्यूंकि चौहान साहब ने ही दो दिन पहले नन्नू की खिलाफत की थी। कहीं ...और पढ़े

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असली आज़ादी वाली आजादी - (भाग-6)

भाग -5 से आगे अगली सुबह मैं थोड़ी जल्दी घर से निकला। रात भर सो तो नही पाया था भी सुबह अपने आप ही नींद जल्दी खुल गयी। सोंचा कि पहले अस्पताल में मनोरमा बिटिया को देख लूंगा फिर गांव जाके रोज़ाना का काम निपटा लूंगा। ये भी तो देखना है कि आज चौहान साहब के दिल्ली से वापिस आने पर कौन सी नई कहानी शुरू होती है। मैं थोड़ी गई देर में अस्पताल पहुंचा। वहाँ पहुंच कर मैं मनोरमा के कमरे की तरफ़ जाने लगा कि देखा पुलिस वाले उसी कमरे से बाहर निकल रहे है। मैंने मन ...और पढ़े

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असली आज़ादी वाली आज़ादी - (भाग-7)

भाग -6 से आगे- मैंने शैलेन्द्र की उत्सुकता को देखते हुए ये तो समझ ही लिया कि शैलेन्द्र बिना कहानी जाने मानेगा नहीं और वैसे भी अपनी बहन के बारे में जानने का हक़ है उसे पर मैं सिर्फ कुछ समय के लिए ये सब टालना चाहता था। हमारे पास उस समय एक सवाल और भी था कि शैलेन्द्र आखिर वापिस कैसे आया। अगर एक बार ये पता चल जाये तो फिर पूरी कहानी को एक सूत्र में पिरो कर समझ और समझाया जा सकता है। मैंने शैलेन्द्र को दो पल रुकने को कहा और सुलोचना को बुलाया। सुलोचना ...और पढ़े

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असली आज़ादी वाली आज़ादी (भाग-८)

भाग 7 से आगे- चौहान साहब चीख रहे थे और ऐसा चीख रहे थे जैसे आसमान को ही हिला रख देंगे। पूरा गांव इकठ्ठा हो चुका था। सभी छोटे बड़े, ऊंचे नीचे और गांव के अन्य सम्माननीय और बिना सम्मान वाले लोग भी इकट्ठे हो चुके थे और ये सब सिर्फ देख रहे थे पर किसी की भी हिम्मत न थी चौहान साहब को चुप कराने की। सब यही सोंच रहे थे कि आखिर हुआ क्या है। नन्नू का परिवार भी घर के अंदर था पर आज वो डरा हुआ नही था। वो परिवार आज इसका सामना करना चाहता ...और पढ़े

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