आम की बाग को आखिरी बार देखने पूरा परिवार गया था। मेरा वहां जाने का मन बिल्कुल नहीं था। मां-पिता जिन्हें हम पापा-अम्मा कहते थे, की जिद थी तो चला गया। पापा ने अम्मा की अनिच्छा के बावजूद बाग को बेचने का निर्णय ले लिया था। बाग यूं तो फसल के समय हर साल बिकती थी। और फसल यानी आम की फसल पूरी होने पर खरीददार सारे आम तोड़कर चलता बनता था। और पापा अगली फसल की तैयारी के लिए फिर कोशिश में लग जाते थे।
Full Novel
मेरी जनहित याचिका - 1
आम की बाग को आखिरी बार देखने पूरा परिवार गया था। मेरा वहां जाने का मन बिल्कुल नहीं था। जिन्हें हम पापा-अम्मा कहते थे, की जिद थी तो चला गया। पापा ने अम्मा की अनिच्छा के बावजूद बाग को बेचने का निर्णय ले लिया था। बाग यूं तो फसल के समय हर साल बिकती थी। और फसल यानी आम की फसल पूरी होने पर खरीददार सारे आम तोड़कर चलता बनता था। और पापा अगली फसल की तैयारी के लिए फिर कोशिश में लग जाते थे। ...और पढ़े
मेरी जनहित याचिका - 2
मंझली भाभी ने थाने में धारा 498। (दहेज प्रताड़ना कानुन)के तहत हम तीनों भाइयों, पापा-अम्मा के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज थी। साथ ही जान से मारने का प्रयास भी जुड़ा था। हम सब गिड़गिड़ाने लगे कि यह सब झूठ है। घर में दहेज का तो कभी नाम ही नहीं लिया गया। यह मामूली घरेलू कलह के अलावा कुछ नहीं है। बड़ी भाभी को भइया ने सामने लाकर खड़ा कर दिया। कहा कि ‘घर की ये बड़ी बहू हैं। इन्हीं से पूछताछ कर लीजिए, क्या इन्हें एक शब्द भी कभी दहेज के लिए कहा गया है।’ ...और पढ़े
मेरी जनहित याचिका - 3
पापा के साथ खाना खाते समय मेरी बातें होती रहीं। मैंने देखा कि पापा दोनों भाइयों के बारे में करने के इच्छुक नहीं हैं। वही पापा जो पहले बच्चों की बात करते नहीं थकते थे। पापा खाना खाकर लेटे और जल्दी ही सो गए। मैं थका था। लेकिन इन्हीं सब बातों को लेकर मन में चल रही उलझन के कारण नींद नहीं आ रही थी। दोनों भाइयों, भाभी और अनु की बातें घूम रही थीं। उन सारी बातों का मन में एक विश्लेषण सा होने लगा। ...और पढ़े
मेरी जनहित याचिका - 4
मैंने सोचा कि यह तो अकेले थी। इसने यह तो बताया ही नहीं कि मुझे दो को सर्विस देनी जब एक अंदर घर में थी तो गेट पर बाहर से ताला लगाने का क्या मतलब है? हालांकि दोनों की बॉडी लैंग्वेज, हाव-भाव बड़े अच्छे थे। बेहद शालीन, सभ्य, सुसंस्कृत लग रही थीं। दोनों ने ऐसे बात शुरू की जैसे हम बहुत पहले से मित्र रहे हैं। पांच मिनट की बात में ही दोनों ने ही मेरे मुंह से सच निकलवा लिया कि मैं इस फ़ील्ड में न्यूकमर हूं, यह मेरा पहला दिन है। मेरे सॉरी बोलने पर वह दोनों मुस्कुरा कर रह गईं। इस बीच मुझसे यह पूछ लिया गया कि क्या मैं दोनों को सर्विस दे सकता हूं। क्षण भर में मैंने सोच लिया कि मैंने ना किया तो कमज़ोर साबित होऊंगा। अनाड़ी तो साबित हो ही चुका हूं। ...और पढ़े
मेरी जनहित याचिका - 5
प्रोफ़ेसर साहब की बात मुझे सही लगी। शंपा जी की कहानी जानने के बाद मेरे मन में उनके लिए भाव उत्पन्न हो गया। मैंने कहा कि मैं उनके पास किसी ऐसी-वैसी भावना के साथ जाना भी नहीं चाहता। मैं थीसिस मिलने के बाद उनसे मिलते रहना चाहूंगा। एक मित्र के नाते। यदि वह चाहेंगी तो नहीं तो नहीं। ...और पढ़े
मेरी जनहित याचिका - 6
मैंने शंपा जी के घर के पास ही मकान लेना तय किया था। इस लिए ब्रोकर को वही जगह तीसरे दिन उस एरिया में उसने कई मकान दिखाए। उन्हीं में से एक मैंने ले लिया। वह कुल मिला कर छोटा सा एक अपॉर्टमेंट था। आने-जाने के टाइम को लेकर वहां कोई बंदिश नहीं थी। लैंडलॉर्ड कहीं बाहर रहता था। और मैंने वन बी. एच. के, फ्लैट लिया था। फ्लैट में ताला लगा कर जब घर पहुंचा तो मंडली को मैंने बताया। पूरा झूठ बताया कि मेरे फादर एक दो महीने के लिए आ रहे हैं। इस लिए मैं शिफ़्ट हो रहा हूं। यहां एक और व्यक्ति के लिए स्पेस नहीं है, इस लिए जा रहा हूं। अचानक ही यह जान कर मंडली बोली। ...और पढ़े
मेरी जनहित याचिका - 7
यह गुडमॉर्निंग फिर जल्दी ही महीने में दो-तीन बार, फिर हफ्ते में होने लगा। मैं पूरे अधिकार के साथ आमंत्रित करता और वह खुशी-खुशी आतीं। इस बीच वह मुझे मेरे विषय में बहुत कुछ बतातीं रहती थीं। लेकिन उस अभियान उस योजना के बारे में हर बार टाल जातीं। आखिर चार महीने बाद प्रोफेसर साहब की मेहनत, और मोटी रकम की रिश्वत ने एक कॉलेज में मेरी नौकरी पक्की कर दी। ...और पढ़े
मेरी जनहित याचिका - 8
दो दिन बाद वह फिर आने वाले थे तो हमने चिंतन-मनन कर कुछ प्रश्न, कुछ शर्तें तैयार कीं। उनसे के लिए। वह जब आए तो हमने अपने प्रश्न किए। जिसके उन्होंने संतोषजनक उत्तर दिए। हमने कहा कि भविष्य में या कभी भी कोई शर्त नहीं रखी जाएगी कि यह काम ऐसे किया जाएगा या वैसे। इसे शामिल कर लें या इसे हटा दें। यह बातें भी जब वह थोड़े ना-नुकुर के बाद मान गए तो हमने चंदा लेना स्वीकार कर लिया। पहले महीने चंदा इतना मिला कि काम को आगे बढ़ाने में आर्थिक समस्या ना आई। लिटरेचर को छपने के लिए दे दिया गया। हम दोनों ने सोचा कि इन लोगों से कहीं बीच में एक कार्यालय खुलवाने की व्यवस्था करने की बात कही जाएगी। ...और पढ़े
मेरी जनहित याचिका - 9
मेरे आने के करीब तीन घंटे बाद शंपा ग्यारह बजे घर आई। अक्सर इतनी देर होती ही रहती थी मैं निश्चिंत था। उसे फ़ोन नहीं किया। और करीब हफ्ते भर बाद मैंने फिर खाना भी बना लिया था। भूख लगी थी लेकिन शंपा का इंतजार करता रहा कि आएगी तो उसके ही साथ खाऊंगा। वह पोर्च में कार खड़ी कर अंदर आई तो उसके हाथ में कागज़ों के दो भारी भरकम बंडल थे। वह पैम्पलेट थे। उसके अभियान से संबंधित। जिसे लेने हम दोनों को साथ जाना था। लेकिन वह बताए बिना अकेली ही ले आई। मेरे दिमाग से उतर गया था कि सात बजे उसे कॉल करना था। बंडल उसने एक तरफ पटका। सोफे पर बैठ गई। ...और पढ़े