आज खुद को किसी की जुबान से सुना एक नन्ही सी परी ओर इतने बड़े बड़े शब्दों में सिमटी हुई कुछ तो गुजर रहा होगा जिन्दगी में उसके जो खेलने कूदने खिलकर हंसने की उम्र में डिप्रेशन,एंजायटी, hospital, काउंसलिंग जैसे शब्दों को इतना गहराई से जानती हैं वो नन्हा सा बचपन उस दौर में है जहां जीवन ही बेमाना लगता है यूं तो कई हाथ हैं उसके पास पर वो एक कंधा जिसपे सर रख कर सहमी हुईं वो रोक पाती अपने आसू अपना दर्द अपनी बेचैनी और अपनी घुटन उसे देखा उसकी बातों में एक दोस्त को तलासते हुए |

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डिप्रेशन - भाग 1

आज खुद को किसी की जुबान से सुना एक नन्ही सी परी ओर इतने बड़े बड़े शब्दों में सिमटी कुछ तो गुजर रहा होगा जिन्दगी में उसके जो खेलने कूदने खिलकर हंसने की उम्र में डिप्रेशन,एंजायटी, hospital, काउंसलिंग जैसे शब्दों को इतना गहराई से जानती हैं वो नन्हा सा बचपन उस दौर में है जहां जीवन ही बेमाना लगता है यूं तो कई हाथ हैं उसके पास पर वो एक कंधा जिसपे सर रख कर सहमी हुईं वो रोक पाती अपने आसू अपना दर्द अपनी बेचैनी और अपनी घुटन उसे देखा उसकी बातों में एक दोस्त को तलासते हुए ...और पढ़े

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डिप्रेशन - भाग 2

"में जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हु छोड़ के घर। ये की घर की उदासी भी साथ हो गई "वो नन्हा सा बचपन जो खुद अपने मम्मी - पापा के झगड़ों में खोजता है वो एक अकेले कमरे में बैठकर रोता है वो सोचता है कोई तो चुप करने आयेगा मेरे मन मैं उठ इस तूफान को पर वह अकेला सा बचपन खुद को ढूंढ रहा है किसी और के आंगन में क्यों उसका घर आंगन इतना छोटा पड़ गया उसकी सोच इतनी गहरी कैसे एक रुपएक टॉफी खाने के उम्र ...और पढ़े

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