'और मास्टर जी, आजकल फिर यहीं...?' चंदन ने अपनी लहराती साइकल की तेज़ रफ़्तार को जान- बूझकर ब्रेक लगाया और घंटी बजाकर मास्टर जी को जगाते हुए पूछा। जून की तपती दुपहरी में मास्टर जी आम के पेड़ों की छांव में सो रहे थे। अचानक बजी घंटी से वे हड़बड़ाकर उठ बैठे। चंदन की शरारत को भांपते हुए बोले, 'दूर, दूर, दूर रहो जी।' चंदन हंसते हुए बोला, 'इधर से जा रहे थे, सोचे आपका हालचाल...?' बात पूरी भी नहीं हुई थी कि मास्टर जी ने उसे डांटते हुए कहा, 'अच्छा... अच्छा, हमें सब पता है। चलो निकलो यहां से।'
आम का बगीचा - भाग 1
'और मास्टर जी, आजकल फिर यहीं...?'चंदन ने अपनी लहराती साइकल की तेज़ रफ़्तार को जान- बूझकर ब्रेक लगाया और बजाकर मास्टर जी को जगाते हुए पूछा।जून की तपती दुपहरी में मास्टर जी आम के पेड़ों की छांव में सो रहे थे। अचानक बजी घंटी से वे हड़बड़ाकर उठ बैठे। चंदन की शरारत को भांपते हुए बोले, 'दूर, दूर, दूर रहो जी।'चंदन हंसते हुए बोला, 'इधर से जा रहे थे, सोचे आपका हालचाल...?'बात पूरी भी नहीं हुई थी कि मास्टर जी ने उसे डांटते हुए कहा, 'अच्छा... अच्छा, हमें सब पता है। चलो निकलो यहां से।'मनचाही इच्छा पूरी न हो ...और पढ़े
आम का बगीचा - भाग 2
'कल पढ़ाया था ना, अ से अनार, आ से आम। लिखो।'यहां भी आम... ये आम, आम होकर भी इतना क्यों है? शायद यही विचार रानी के भी थे, लेकिन नन्ही जान इतनी गहराई से बोलेगी कैसे। उसने आम भले ही नहीं लिखा, लेकिन अपनी गर्दन टेढ़ी कर ऊपर की तरफ़ लटक रहे आमों को देखा ज़रूर। 'चल लिख अब। नहीं तो अम्मा आ जाएगी बुलाने, फिर पढ़ती रहना।'रानी और मास्टर जी ने कुछ देर पढ़ाई की और जब रानी ने 'उ से उड़ना, ऊ से ऊंचा' कहा तो मास्टर जी हंस पड़े। 'उ से उल्लू, ऊ से ऊंट। तू ...और पढ़े
आम का बगीचा - भाग 3
'जन्मदिन, 10 जून... हम तो भूल ही गए थे।' रानी ख़ुशी के मारे तालियां बजानेमास्टर जी गहरी सोच में गए। सबकुछ तो ठीक है, लेकिन सालों से जिसे आम भेज रहे हैं, वह बेटा उनकी सुध लेने का नाम नहीं लेता। अपने बेटे का जीवन संवारने के लिए उन्होंने खुद साधारण जीवन जिया, मगर उसकी कोई क़द्र नहीं। कितनी अजीब बात है कि जिन माता-पिता की छांव में बच्चे पनपते हैं, वही बच्चे बड़े होकर उन्हें छांव नहीं दे पाते।अनजान लोग उन्हें सर-माथे पर बिठाते हैं और अपना ही बेटा... खैर... मास्टर जी की आंखों के कोने गीले हो ...और पढ़े