उस सुनसान और दुनिया के लिए डरावने, भूत-प्रेतों से भरे मनहूस रास्ते पर निकलना मुझे किसी शांत सुन्दर उपवन में टहलने जैसा लगता था। शहर में बहने वाले एक गंदे नाले के तट-बंध पर बनी रोड तब बहुत टूटी-फूटी जर्जर हालत में थी। एक तरफ़ पंद्रह-बीस फ़ीट गहरा गंदा नाला, जिसकी धारा किनारे से काफ़ी दूर बीच में है, सिल्ट से पटी हुई। तो दूसरी तरफ़ पंद्रह-बीस फ़ीट गहरे खड्ड हैं। दिन में भी लोग उधर से निकलने में कतराते थे, अँधेरा होने के बाद तो कोई भी विवशतावश ही निकलता था। अँधेरा होते ही झाड़-झंखाड़ों में जो होता है, वही वहाँ भी होता था। कीड़ों-मकोड़ों, झींगुरों की आवाज़ें आती थीं। लेकिन मैं अपनी डिज़ायनर जीप लेकर उस उबड़-खाबड़ क़रीब पाँच किलोमीटर लंबे रास्ते पर देर शाम को ज़रूर निकलता था। शाम के पाँच बजते ही मुझे लगता कि जैसे वह रास्ता मुझे अपनी तरफ़ खींच रहा है। अन्धेरा होते ही यह खिंचाव इतना हो जाता था कि मैं सारा काम-धाम भूल जाता था। मुझे और कुछ भी याद नहीं रहता था सिवाय वहाँ जाने के। लुटती है मेरी दुनिया तो लुट जाए, मुझे इसकी भी परवाह नहीं रहती थी। अपना मोटर वर्कशॉप कर्मचारियों के हवाले कर अन्धेरा होते ही निकल देता था, दुनिया के लिए उस अभिशप्त रास्ते पर।
Full Novel
सुमन खंडेलवाल - भाग 1
भाग -1 प्रदीप श्रीवास्तव उस सुनसान और दुनिया के लिए डरावने, भूत-प्रेतों से भरे मनहूस रास्ते पर निकलना मुझे शांत सुन्दर उपवन में टहलने जैसा लगता था। शहर में बहने वाले एक गंदे नाले के तट-बंध पर बनी रोड तब बहुत टूटी-फूटी जर्जर हालत में थी। एक तरफ़ पंद्रह-बीस फ़ीट गहरा गंदा नाला, जिसकी धारा किनारे से काफ़ी दूर बीच में है, सिल्ट से पटी हुई। तो दूसरी तरफ़ पंद्रह-बीस फ़ीट गहरे खड्ड हैं। दिन में भी लोग उधर से निकलने में कतराते थे, अँधेरा होने के बाद तो कोई भी विवशतावश ही निकलता था। अँधेरा होते ही झाड़-झंखाड़ों ...और पढ़े
सुमन खंडेलवाल - भाग 2
भाग -2 गाड़ी फिर रोज़ की तरह उसी उबड़-खाबड़ अभिशप्त रास्ते पर रेंगने लगी। पैदल चाल से क़रीब दो ही आगे चला होऊँगा कि देखा सामने से एक दुबली-पतली सी औरत चली आ रही है। उसके बदन पर पीले रंग का सूट है। उसने रूबिया जैसे सेमी ट्रांसपेरेंट कपड़े का चूड़ीदार पजामा और कुर्ता पहन रखा है। कुर्ता घुटने से ऊपर और काफ़ी चुस्त था। उसे देखकर लगा जैसे यह तो फ़ैशन शो में रैंप पर चलने वाली ज़ीरो फ़िगर मॉडल है। गाड़ी की हेड-लाइट डिपर कर दी। वह मुश्किल से बीस-इक्कीस साल की एक बेहद गोरी युवती थी। ...और पढ़े
सुमन खंडेलवाल - भाग 3
भाग -3 कुछ ही साल बीते होंगे कि मुझे उसके फ़ादर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर दिखाई दिए। मैं नए-नए शुरू किए गए बिज़नेस के सिलसिले में दिल्ली गया हुआ था। जिस बोगी से प्लैटफ़ॉर्म पर मैं उतरा, उसी बोगी के पिछले दरवाज़े से वह भी उतरे। उनके साथ मध्यम क़द काठी की साँवली सी एक महिला भी थी। उन पर निगाहें पड़ते ही मैंने उन्हें पहचान लिया। मेरी आँखों के सामने एकदम से सुमन खंडेलवाल का चेहरा घूम गया। मैं लपक कर उनके पास पहुँचा। हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते की। वह एकदम हक्का-बक्का से हो गए। नमस्ते का ...और पढ़े
सुमन खंडेलवाल - भाग 4
भाग -4 बहुत रिक्वेस्ट करने के बाद उनके कपड़े उनको दे दिए। भुवन चंद्र जी ने आख़िर तमंचे वाले पूछा, “आप लोग कौन हैं? मुझसे क्या चाहते हैं?” तो उसने कहा, “अब हम जो कहेंगे, तुम्हें वही करना होगा, नहीं तो यह औरत अभी थाने में रिपोर्ट लिखाएगी कि तुम उसके घर में घुसकर उसका रेप कर रहे थे।” भुवन चंद्र जी बोले, “यह सब झूठ है, साज़िश। यह मुझसे शादी करने वाली है। हमारे बीच पति-पत्नी का ही रिश्ता है, मैं इनके कहने पर ही यहाँ आता हूँ, सब-कुछ इनकी इच्छा से ही हो रहा है। पुलिस झूठी ...और पढ़े
सुमन खंडेलवाल - भाग 5 (अंतिम भाग)
भाग -5 वह बहुत ही विनम्र, भले आदमी लग रहे थे। बात आगे बढ़ी तो मैंने कहा, “जब यहाँ बार यह फोटो देखी तो मुझे लगा कि यह सुमन जी ही हैं। इतने बरसों बाद सुमन जी, खंडेलवाल साहब के परिवार के बारे में इस तरह की जानकारी मिलेगी यह मैंने सोचा भी नहीं था। मुझे बहुत दुःख हो रहा है।” मैंने उनसे भुवन चंद्र जी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “उन्हें कई बीमारियाँ हो गई थीं, एक दिन वह ऊपर से नीचे उतर रहे थे, हल्की-हल्की बारिश की वजह से रास्ते में फिसलन थी, वह सँभल ...और पढ़े