‘हमारी पृथ्वी सौर-मण्डल का एक बहुत ही विचित्र ग्रह है। इसकी संरचना भगवान ने मानो स्वयं अपने हाथों से प्राणी जगत की उत्पति एवं उत्थान हेतु की है। इस ग्रह की सुन्दर संरचना में प्रकृति भी पीछे नहीं रही है। कहीं विशाल पहाड़ हैं तो कहीं पत्थरीले पठार और कहीं मनमोहक सुन्दर घाटियाँ हैं, जिनके आंचल में दूर-दूर तक फैले अनेकों छोटे-बड़े हरे-भरे मैदान हैं। यही नहीं, पृथ्वी का कोई भाग तो सर्द हवाओं के थपेड़ों से ठिठुर रहा है और कहीं पर तपते रेगिस्तान की गर्मी अपने आगोश में आई हर वस्तु को झुलसा रही है, तो कहीं समुद्र की लहरें घोर गर्जना के साथ मानव को अपनी प्रत्यक्षतः तथा महान शक्ति का उद्बोधन करा रही हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी मनुष्य प्रकृति पर विजय पाने की अपनी लालसा और हठ पर अड़िग है। धरती का शायद ही कोई हिस्सा, चाहे कितना भी दुर्गम क्यों न हो, शेष रहा हो जहाँ पर मनुष्य ने अपने पाँव न पसारे हों। और यह प्रकृति की एक अजीब विडंबना भी है कि प्रत्येक प्राणी को वही स्थान सब से अच्छा लगता है जहाँ पर वह पैदा हुआ और पला-बढ़ा है।

Full Novel

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बड़ी माँ - भाग 1

बड़ी माँ ‘हमारी पृथ्वी सौर-मण्डल का एक बहुत ही विचित्र ग्रह है। इसकी संरचना भगवान ने मानो स्वयं अपने से प्राणी जगत की उत्पति एवं उत्थान हेतु की है। इस ग्रह की सुन्दर संरचना में प्रकृति भी पीछे नहीं रही है। कहीं विशाल पहाड़ हैं तो कहीं पत्थरीले पठार और कहीं मनमोहक सुन्दर घाटियाँ हैं, जिनके आंचल में दूर-दूर तक फैले अनेकों छोटे-बड़े हरे-भरे मैदान हैं। यही नहीं, पृथ्वी का कोई भाग तो सर्द हवाओं के थपेड़ों से ठिठुर रहा है और कहीं पर तपते रेगिस्तान की गर्मी अपने आगोश में आई हर वस्तु को झुलसा रही है, तो ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 2

2 शाम को देर से सोने के कारण अगली सुबह साहब जरा थोड़ी देर से उठे, इसलिए उन्होंने चाय लिए रामू काका को नहीं बोला। नहाने-धोने से निवृत हुए तो आठ बज चुके थे। रामू काका सुबह से आदेश की प्रतीक्षा में बैठा था। आखिर उसने दरवाजे पर दस्तक दे ही दी। इससे पहले की वह कुछ आगे बोलता साहब ने उसकी नमस्ते का जवाब दिया और साथ ही उसे नाश्ता जल्दी लाने के लिए कह दिया। नाश्ता लेने के पश्चात् पति-पत्नी, दोनों रामू काका को कुछ कहकर नदी किनारे खड़े उन खंडहरों की ओर चल पडे़। मकानों के ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 3

3 अपनी आँखों के तारे को, जिसे वह एक पल भी अपनी नज़रों से दूर नहीं होने देती खोकर कौशल्या पागलों की तरह व्यवहार करने लगी थी। उसने अपने सिर के बाल नोच-नोचकर अपना बहुत बुरा हाल कर लिया था। वह शुष्क नज़रों से इधर-उधर देखती और कभी नीचे बैठकर जमीन पर जोर-जोर से अपने हाथ मारने लगती, जिसके कारण उसके हाथों से खून निकलने लगा था। लाला दीवान चन्द जी बेबस थे। उधर जिगर का टुकड़ा चला गया था और इधर पत्नी का दुःख देखना उनके बस से बाहर हो चला था। थोड़़ी हिम्मत करके पत्नी को ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 4

4 रातभर मुरली को बेचैनी रही। उसे नींद नहीं आ रही थी। सारी रात उसके मन में यही उधेड़-बुन रही कि इस लड़के का क्या किया जाए? यदि कहीं इसके घर वालों को पता चल गया तो ये हाथ से चला जाएगा। और दूसरी तरफ यह राम आसरी, जो मेरे सामने चूँ नहीं करती थी, आज मुझे आँखें दिखा रही है। सोचते-सोचते आधी रात बीत चुकी थी। मुरली उठकर बैठ गया। उसने अपने कमीज की जेब में से बीड़ी का बंडल और माचिस बाहर निकाले और फिर बीड़ी सुलगाकर उसे पीने लगा। बीड़ी खत्म होने से पहले ही उसने ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 5

5 मुरली के चले जाने के दो दिन बाद तक राम आसरी को आस रही कि शायद वह वापस जाए। यदि पुलिस वालों ने उसे पकड़ रखा है तो वह इसकी सूचना घर वालों को पहुँचाएंगे ही और यदि वह कहीं शराब पीकर पड़ा है तो भी दो दिन बाद घर जरूर पहुँचेगा। परन्तु तीसरे दिन उसका धैर्य जवाब दे चुका था। सुबह-सुबह जल्दी उठकर मुंशी के झोपड़े पर गई और उससे कहने लगीः ‘मुंशी जी, मेरा और मुरली का हिसाब देखना, कितना बनता है? मुझे पैसों की सख्त जरूरत है। मुरली को यहाँ से गए तीन दिन ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 6

6 गाड़ी के खाली डिब्बे सरकारी एजेन्सियों द्वारा खरीदे गए गेहूँ को उठाने के लिए चण्डीगढ़ रेलवे स्टेशन के रवाना किए गए थे। जब गाड़ी चण्डीगढ़ रेलवे स्टेशन पर पहुँची तो उस समय सुबह के लगभग साढे़ चार बजे थे। गाड़ी द्वारा जरक से रुकने के कारण राम- आसरी की अर्ध निंद्रा टूटी तो वह अपनी गोद में सोए हुए बच्चे को अपनी बाहों और कंधे का सहारा देकर उठी और थोड़ा दरवाजा खोलकर बाहर के परिदृष्य का जायजा लेने लगी। बाहर हलका अंधेरा था। जब वह आश्वस्त हो गई कि उसे कोई नहीं देख रहा है, तो उसने ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 7

7 लाला दीवान चन्द और कौशल्या ने कुछ जरूरी सामान और कपड़े वगैरह साथ लिए और मकान को ताला तथा पड़ोसियों को निगरानी रखने के लिए कहकर, अम्बाला शहर के लिए चल पड़े। कौशल्या की मौसी जी का मकान वार्ड न0 एक मंजी साहब गुरुद्वारा वाली गली में था। पुरानी तर्ज पर बना यह एक अच्छा खासा बड़ा मकान था। गली के साथ डयोड़ी थी, उसके आगे खुला आँगन था और दोनों बगलों व पीछे की और बरामदे समेत पाँच-छः कमरे बने हुए थे। परिवार छोटा था, इसलिए इतनी जगह उनके रहने के लिए पर्याप्त थी। पहली मंजिल पर ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 8

8 राम आसरी का समय अब बहुत अच्छी तरह से व्यतीत होने लगा था। सारा दिन घर के कामों व्यस्त रहती। शाम को मुन्ना के साथ बैठकर बहुत देर तक बतियाती। न खाने की चिंता थी और न पहनने की। रहने के लिए साफ सुथरा मकान था। ऊपर से जो पैसे मिलते थे वो सब बचत के थे। कभी-कभी अकेली बैठकर जब उसे अपने पुराने दिन याद आते तो सिहर उठती। कैसे सुबह जल्दी उठकर और रूखी-सूखी खाकर सारा दिन नदी में रेत और बजरी निकालना, भूखे पेट और बीमारी की हालत में कमर बाँधकर सारा-सारा दिन टोकरी उठाना ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 9

9 आचार्य दीवान चन्द जी ने स्नातकोतर की उपाधि प्राप्त कर ली थी। इसलिए उच्च कक्षाओं के छात्रों को का कुछ उत्तरदायित्व भी उन्हें सौंप दिया गया था। परन्तु जितना आनंद और संतोष उन्हें छोटी कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाने में आता था उतना शायद ही किसी दूसरे भले काम में आता हो। इसलिए उनकी प्राथमिकता सदैव यही रहती थी कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय छोटी कक्षाओं को पढ़ाने के लिए मिले। दूसरे वह बच्चों के साथ प्यार बाँट कर अपना गम भूलाना चाहते थे। वह बच्चों में मनुष्य का वह पवित्र स्वरूप देखते थे जिसमें सस्कारों का ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 10

10 मुन्ना द्वारा चैथी कक्षा पास करते ही राम आसरी वह मकान खाली करके किसी दूसरी जगह चले जाना थी। इसलिए उसने, जिस लाला से राशन का सामान लेती थी, उससे मकान मालिक को चिट्ठी लिखवाकर अपनी मंशा से अवगत करवा दिया था। टेलीफोन पर काफी समझाने-बुझाने के पश्चात् भी जब राम आसरी टॅस से मस नहीं हुई तो उन्होंने कहा कि जब वह मकान छोड़कर जाए तो चाबी पड़ोसियों के यहाँ सौंप जाए। काफी मशकत करने के बाद उसने चण्डीगढ़ के सैक्टर सात में एक कोठी की अनैक्सी में एक कमरा किराये पर लिया और मनीमाजरा का कमरा ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 11

11 आगामी छुट्टियों में राम आसरी ने मुन्ना को रोज-गार्डन, रॉक-गार्डन व कुछ अन्य दर्शनीय स्थानों की सैर इस प्रकार मुन्ना अब चण्डीगढ़ से काफी परिचित हो चुका था और उसे इस शहर से बहुत अधिक लगाव भी हो गया था। धीरे-धीरे समय गुजरता गया, इक्कतीस मार्च आया और साथ में वार्षिक परीक्षाओं के परिणाम लाया। मुन्ना अब पाँचवी कक्षा उत्तीर्ण करके छठी कक्षा में हो गया था। पढ़ने-लिखने और बोलने में तो वह चुस्त था ही, उसकी चाल-ढाल व पहनावा भी उस पर खूब फबता था। उसे देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह ...और पढ़े

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बड़ी माँ - भाग 12 (अंतिम भाग)

12 अब तक दोपहर के दो बज चुके थे। सूरज बढ़ के पुराने पेड़ की विशाल टहनियों के पीछे करने लगा था और छाया वृक्ष से भी लम्बी होने लगी थी। इसलिए सर्दियों की धूप में बैठकर जो आनन्द का अनुभव हो रहा था, वह कुछ फीका पड़ने लगा था। रामू काका एक बजे से ही डाक बंगले से निकलकर बार-बार नदी की ओर झाँक रहा था। अभी तक साहिब लोग वापिस क्यों नहीं आए? खाना खाने का समय हो रहा है। अगर खाना बना दिया और वे नहीं आए तो पड़ा-पड़ा ठंडा हो जाएगा। उसे स्वयं भी भूख ...और पढ़े

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